...और आखिरकार नौ साल के बाद पुलिस ने 'मुर्दे' को किया गिरफ्तार, फिर जो खुलासा हुआ तो सारे शहर में सनसनी फैल गई

GOPAL SHUKLA

27 Jun 2024 (अपडेटेड: Jun 27 2024 1:35 PM)

Criminal Faked Death: उधम सिंह नगर की पुलिस ने एक ऐसा केस सुलझाया है जिसके बारे में सुनकर अब लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं। पुलिस ने नौ साल पहले ही मर चुके एक अपराधी को उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, और मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ पकड़ा, और उसके बाद जो खुलासा हुआ तो झूठ, लूट, हत्या और फरेब का वो किस्सा सामने आया जिसने सभी को हैरत में डाल दिया।

CrimeTak
follow google news

Udham Singh Nagar, UK: देवभूमि उत्तराखंड के उधम सिंह नगर में पुलिस ने एक 'मुर्दे' (Dead Man) को गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुँचा दिया है। मुर्दा सुनकर चौंकना लाजमी है पर ये है सरासर सच। क्योंकि सरकारी दस्तावेज में यही मुर्दा नौ साल पहले ही मर चुका एक शख्स था। लेकिन नौ साल बाद जब पुलिस ने उसे पकड़ा, तो एक ही झटके में कई राज फाश हो गए, और सामने आ गया एक सनसनीखेज वारदात का दिलचस्प किस्सा। 

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ गिरफ्तार

यह भी पढ़ें...

हालांकि इस मुर्दे की साजिश के जब किस्से उजागर हुए तो पुलिस तो चौंकी ही, पब्लिक में भी जिसने सुना वो आंख फाड़कर और मुंह खोलकर बस सुनता ही नजर आया। इस किस्से में लूट, डकैती और साजिश करके बीमा की रकम हड़पने से लेकर एक दिलजले आशिक का भी किस्सा है। तो सबसे पहले आपका उस मुर्दे से तार्रुफ करवा देते हैं। नाम है मुनेश यादव। जिसे पुलिस ने उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ गिरफ्तार किया है। अब यहां ये बताने की जरूरत शायद नहीं है कि अगर पुलिस ने इसे इन तमाम दस्तावेजों के साथ गिरफ्तार किया है तो ये सारी चीजें असली हैं, बल्कि वो सब फर्जी हैं और जिनकी हैसियत किसी भी सूरत में कागज के एक मामूली टुकड़े से ज्यादा कुछ नहीं। मगर जब पुलिस ने इस 'मुर्दा' बनकर घूम रहे मुनेश यादव को गिरफ्तार किया, तो 9 साल के बाद एक से बढ़कर एक जुर्म की कहानियां सामने आई हैं। तो चलिए शुरू से शुरुआत करते हैं। 

कर्जदारों से बचने के लिए चली चाल

तो जिसे पुलिस ने पकड़ा उसका असली नाम मुकेश यादव है। 29 जुलाई 2015 को CHC सितारगंज के ज्वाला प्रसाद ने थाना सितारगंज में मुकेश कुमार पुत्र भीकम सिंह निवासी मुरादाबाद की एक्सीडेंट में मृत्यु होने की सूचना दी थी। 9 साल पहले अपने मुकदमों और कर्जदारों से बचने के लिए वह सितारगंज रह रहा था। उस पर उत्तर प्रदेश के कई जिलों में लूट, डकैती और गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज थे। जबकि एक सिक्योरिटी कंपनी का उसपर लाखों रुपये का कर्ज भी चढ़ा हुआ था। उन सारे मुकदमों से  बचने के लिए मुकेश यादव ने एक चाल चली। अपने घरवालों और एक जानकार की मदद से मोर्चरी से एक अज्ञात डेडबॉडी की चोरी करवाई और उस शव के पास अपना आधार, मोबाइल नंबर और डायरी रखकर खुद को मरा घोषित करवा दिया। 

एक तीर कई निशाने

इस एक तीर से मुकेश ने कई निशाने एक साथ साध लिए। पहले तो मरा हुआ जानकर पुलिस ने उसके खिलाफ चल रहे तमाम मुकदमों की फाइलें बंद करके स्टोर रूम में डाल दी। जबकि जिस सिक्योरिटी कंपनी का उस पर लाखों का कर्ज था वो भी रफा दफा हो गया। इसके बाद उसने अपनी मौत के बाद जीवन बीमा की रकम भी हड़प ली। और फिर से आजाद होकर एक नई पहचान यानी दूसरी पहचान यानी मुनेश यादव के नाम से जिंदगी जीने लगा। लेकिन कहते हैं कि झूठ के पांव नहीं होते, मगर वो कहीं से भी फूट पड़ता है। आखिरकार नौ साल बाद पुलिस ने मुकेश यादव को उसकी मृत्यु प्रमाण पत्र, उसको मरा साबित करने वाली पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और एक पंचायतनामा के साथ पकड़ा। पुलिस ने जब उसका मुंह खुलवाया तो लूट फरेब हत्या और जालसाजी का ऐसा कॉकटेल सामने आया जिसने सभी को हैरत में डाल दिया। 

घरवालों के साथ मिलकर रची साजिश

मुकेश ने ही पुलिस को बताया कि उसके ऊपर लाखों का कर्जा हो गया था जिसे चुका पाना करीब करीब नामुमकिन लग रहा था। साथ ही उसके खिलाफ लूट, डकैती और छेड़छाड़ के कई मुकदमें भी दर्ज थे जिनकी वजह से उस पर हमेशा ही गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहती थी। लिहाजा इन सबसे बचने के लिए उसने एक प्लान बनाया। उसके इस प्लान में उसका भाई धर्मपाल, पिता भीकम सिंह यादव, पुत्र किशन पाल, पत्नी सुधा और बहन संगीता को शामिल किया। वो सबकी आंखों से बचने के लिए सितारगंज में मनिंदर सिंह नाम के एक शख्स के साथ रह रहा था। मनिंदर सिंह ड्राइवर का काम करता था। मुकेश ने अपने घरवालों की मदद से मनिंदर सिंह की हत्या की और सड़क हादसे की शक्ल देकर मनिंदर की पहचान ही बदल दी। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर अब वो सरकारी तौर पर मर चुका था। ऐसे में उसके परिवार के लोगों ने इन्हीं तमाम फर्जी दस्तावेजों के जरिए जीवन बीमा की रकम भी हासिल कर ली जो एक अच्छी खासी रकम बताई जा रही है।

अब जेल से बाहर आना नामुमकिन

इस मामले में एक गवाह मोनू कुमार ने पुलिस को बताया कि साल 2016 में उसने अपने भाई मनिंदर की गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने में दर्ज करानी चाही थी क्योंकि उसके भाई का कई दिनों से कुछ अता पता नहीं मिल रहा था, मगर थाने में उसकी रिपोर्ट ही दर्ज नहीं हो सकी। और अब नौ साल बाद पता चला कि मुकेश ने अपने फायदे के लिए उसको बेमौत मार डाला। पुलिस ने अब जाकर गिरफ्तारी किया है। अब जो जो किस्से खुले उसके मुताबिक मुकेश अब लंबा अंदर जाएगा। अब शायद ही वो कभी जेल से बाहर आ सके। 
 

    follow google newsfollow whatsapp