25 साल बाद पकड़ा गया क़ातिल, फेसबुक से होते हुए पुलिस ने ऐसे सुलझाई ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी
Shams ki Zubani: पुलिस अगर चाह ले तो किसी भी मुजरिम का बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। दिल्ली पुलिस ने एक ब्लाइंड मर्डर केस की गुत्थी को 25 साल बाद सुलझाकर ये बात साबित कर दी।
ADVERTISEMENT
Shams ki Zubani: क्राइम में आज की कहानी एक ऐसे क़त्ल का क़िस्सा है जिसे सुलझाने में पुलिस को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा और कई सालों तक पसीना बहाने के बाद एक ऐसी तरकीब से पूरा केस सुलझाया कि सुनने वाले आज भी दंग रह जाते हैं।
पुलिस के बारे में यूं तो कई कहावतें और क़िस्से मशहूर हैं लेकिन कहा जाता है कि अगर पुलिस या खाकी वर्दी अपनी पर आ जाए तो फिर किसी भी गुनहगार के बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है। और पुलिस वालों को ट्रेनिंग के दौरान यही बात सिखाई और समझाई जाती है कि मुजरिम कितना भी शातिर या चालाक क्यों न हो...मौका-ए-वारदात पर कोई न कोई ऐसा निशान ज़रूर छोड़ देता है जिसको पहचानते ही क़ातिल या मुजरिम की पहचान करना आसान हो जाता है। बस ज़रूरत इसी बात की होती है कि तफ्तीश करने वाला पुलिस ऑफिसर किसी भी तरह से मुजरिम के छोड़े गए उस निशान को मौके से बरामद कर ले।
तो आज की कहानी ऐसे ही एक ऐसे गड़े मुर्दे को उखाड़ने की कहानी है जिसे सुलझाने के लिए पुलिस को एक दो नहीं पूरे 25 सालों तक पसीना बहाना पड़ा।
ADVERTISEMENT
Shams ki Zubani: उन 25 सालों के दौरान केस को सुलझाते सुलझाते न जाने कितने थानेदार बदल गए, लेकिन केस की तफ्तीश करने वाले न जाने कितने जांच अधिकारी केस सुलझाते सुलझाते रिटायर तक हो गए लेकिन केस की गुत्थी नहीं सुलझ सकी। पूरे 25 सालों तक क़ातिल बेखौफ होकर आज़ाद हवा में सांस लेता रहा और इस गुमान में जीने लगा कि वो शायद क़ानून के लंबे हाथों से बहुत दूर है।
लेकिन एक पुलिस अफसर ने जब पुराने अनसुलझे केस की फाइल को पढ़कर उसे सुलझाने का इरादा किया तो फिर केस को सुलझने में सिर्फ एक साल लगा और क़ातिल की कलाई तक क़ानून की हथकड़ियां पहुँच गईं।
ADVERTISEMENT
क़त्ल का क़िस्सा दिल्ली का है। दिल्ली के ओखला इलाक़े के इंडस्ट्रियल एरिया में एक परिवार रहता था। किशनलाल अपनी पत्नी सुनीता के साथ रहता था। किस्से की शुरुआत होती है 1997 से। फरवरी 1997 में सुनीता गर्भवती थी। इस वक़्त तक सब कुछ ठीक रहता है लेकिन 4 फरवरी को सुनीता को खबर मिलती है कि किसी ने उसके पति किशनलाल की चाकू गोदकर हत्या कर दी।
ADVERTISEMENT
ये बात पुलिस तक पहुँची तो मौके पर पहुँचकर पुलिस शुरुआती तफ्तीश में लग जाती है। पहले पहल तो पुलिसिया औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद पुलिस उस क़ातिल की तलाश में लग जाती है जिसने किशन लाल को मौत के घाट उतारा। मगर पुलिस को कहीं से न तो कोई सुराग मिलता है और न ही कोई चश्मदीद।
Shams ki Zubani: शुरुआती तफ्तीश में पुलिस को इतना पता चलता है कि किशनलाल को आखिरी बार जिंदा उसके एक साथी रामू के साथ देखा गया था। लेकिन किशनलाल की मौत के बाद रामू का कहीं कोई अता पता नहीं चलता। किशनलाल की पत्नी सुनीता पुलिस के सामने शक जताती है कि उसके पति के मौत के पीछे कहीं न कहीं रामू का ही हाथ हो सकता है।
सुनीता की शिकायत मिलते ही पुलिस रामू के बारे में पता लगाती है। पुलिस को पता चलता है कि जिस रोज किशन का कत्ल हुआ उस रोज रामू ने ही एक पार्टी दी थी जिसमें किशन लाल को भी बुलाया गया था। लेकिन पुलिस उस कड़ी को नहीं जोड़ पाती कि आखिर पार्टी के बाद कैसे किशन लाल की लाश मिलती है।
किशनलाल को चाकू से मारा गया ता और उसली लाश खून से लथपथ हालत में मिली थी। लिहाजा तमाम बिखरी कड़ियों के सिरों को जोड़ने और पूरा क़िस्सा समझने के लिए पुलिस के लिए अब रामू की तलाश जरूरी हो जाती है। दिल्ली पुलिस ने रामू की तलाश में जगह जगह टीमें भेजी लेकिन रामू का कहीं पता नहीं चला। वक़्त गुज़रता गया लेकिन पुलिस को रामू नहीं मिल सका।
Shams ki Zubani: दिन महीने साल गुज़र जाते हैं लेकिन रामू नहीं मिलता है। तब पुलिस को मजबूरी में अदालत में अपनी क्लोजर रिपोर्ट लगाती है। उस रिपोर्ट में पुलिस अदालत के सामने मजबूरी जाहिर करती है कि कत्ल के क़िस्से में कोई सबूत है नहीं और जिस संदिग्ध की तलाश है वो मिल नहीं रहा, लिहाजा केस को सुलझाना फिलहाल मुश्किल है।
तब अदालत पुलिस की बात को सुनकर रामू को भगोड़ा घोषित कर देती है। पुलिस भी मामले को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल देती है जबकि सुनीता लगातार थाने के चक्कर लगाती रहती है। मगर कातिल का पता नहीं चल पाता।
सुनीता इंसाफ के लिए भटकती रहती है। और पुलिस से गुहार लगाती है कि किसी भी तरह उसके पति के कातिल को पकड़ा जाए। मगर सुनीता की गुहार और पुलिस की कोशिश किसी भी सूरत में रामू का पता नहीं दे पाती।
गुजरते वक़्त के साथ पुलिस के साथ साथ सुनीता भी यही सोचकर बैठ जाती है कि शायद उसकी जिंदगी में इंसाफ नहीं मिल सकता। वो मन मसोसकर रह जाती है। वक्त बीतता जाता है। सुनीता का वो बेटा अब जवान हो जाता है जो किशनलाल की मौत के बाद पैदा हुआ था। बेटा 24 साल का हो जाता है।
Shams ki Zubani: इसी बीच साल 2021 में दिल्ली पुलिस के ओखला थाने के पुलिस अफसर ने पुराने अनसुलझे केस को खंगालने और उन्हें सुलझाने के लिए एक नई टीम बनाती है। पुलिस की इस टीम की नज़र किशनलाल मर्डर केस पर पड़ती है। केस 24 साल पुराना था। लेकिन पुलिस अफसर न जाने क्यों इस केस को सबसे पहले सुलझाने की ठानते हैं और नए सिरे से इस मामले की तलाश में जुट जाते हैं।
पुलिस के लिए सबसे बड़ा सरदर्द तो यही था कि इस केस से जुड़े किरदारों को कहां कहां तलाशा जाए। पुलिस किसी तरह किशनलाल की पत्नी सुनीता तक पहुँचती है। तमाम पूछताछ के बाद पुलिस को पहली बार उस भगोड़े रामू के एक और दोस्त का पता चलता है जिसका नाम टिल्लू था। पुलिस को पता चलता है कि टिल्लू वहीं ओखला के इलाक़े में ही रह रहा है। पुलिस अब टिल्लू तक पहुँच जाती है। और उसे पकड़कर थाने ले आती है। यहां टिल्लू से पूछताछ शुरू होती है। पुलिस के सामने टिल्लू रामू के बारे में बहुत कुछ बता देता है। और साथ ही पुलिस को ये भी बताता है कि किशनलाल का कत्ल रामू ने ही किया था। और वो खुद को उस कत्ल के मामले में बेकसूर बताता है।
जब पुलिस टिल्लू से रामू का पता पूछती है तो वो ये कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि बरसों से उससे कोई संपर्क नहीं रहा। पुलिस एक बार फिर डेडएंड पर पहुँच जाती है। लेकिन केस सुलझाने की ज़िद में अड़ी पुलिस की टीम फिर से तफ्तीश को आगे बढ़ाती है और सुनीता से हर छोटी बड़ी जानकारी हासिल करती है जिसका ताल्लुक किशन और उसके दोस्तों से हो सकता है।
Shams ki Zubani: इसी पूछताछ के सिलसिले में पुलिस को एक रोज सुनीता से पता चलता है कि रामू का एक भाई अपनी पत्नी के साथ दिल्ली के तुगलकाबाद में रहता है। तब पुलिस तुगलकाबाद इलाक़े में जाकर रामू के भाई का पता लगाती है।
रामू के भाई का पता लगाते लगाते पुलिस को ये पता चलता है कि कुछ रोज पहले ही एक सड़क हादसे में रामू की मां की मौत हो जाती है। लिहाजा उन दिनों उनके घर में मातम भी चल रहा था। अब पुलिस ने इस मौके को अपनी तफ्तीश का हिस्सा बनाया और रामू की मां की सड़क हादसे में हुई मौत को अपनी तफ्तीश में शामिल कर लिया।
पुलिस की एक टीम रामू के भाई के घर तुगलकाबाद में डेरा डाल लेती है। और पहले छुप छुपाकर और फिर खुलकर रामू के भाई से पूछताछ शुरू करती है। रामू के घरवाले पुलिस के इस प्लान पर शक नहीं करते हैं क्योंकि पुलिस यहां बीमा कंपनी के एजेंट बनकर अपना काम कर रही थी।
और रामू के भाई को इस बात का भरोसा दिलाती है कि सड़क हादसे में मरने वालों को मुआवजा दिया जाता है इसलिए पूरी तफ्तीश की जा रही है। ताकि इस बात को पुख्ता किया जा सके कि मुआवजे की रकम पीड़ित के परिजनों को ही दी जा सके।
पुलिस की ये कोशिश काफी हद तक कामयाब रहती है और पूछताछ में रामू का भाई सब कुछ तो बता देता है लेकिन जब पुलिस रामू का पता जानने की कोशिश करती है तो उसे वहीं तुगलकाबाद का ही पता बता दिया जाता है। यहां पुलिस को लगा कि मामला फिर डेडएंड की तरफ जा सकता है। क्योंकि रामू का भाई पुलिस को ये भी बताता है कि उसे रामू के बारे में पिछले कई बरसों से कुछ नहीं पता। पुलिस क़रीब करीब डेडएंड पर ही खड़ी थी लेकिन वो मुखबिरी करना बंद नहीं करती।
Shams ki Zubani: इसी बीच पुलिस को रामू से जुड़ी एक बात पता चली कि उसका एक बेटा है जो लखनऊ में रहता है। रामू के बेटे का नाम और पता जान लेने के बाद पुलिस उसकी तलाश और उसके बारे में पता लगाने के लिए सोशल मीडिया को खंगालती है क्योंकि पुलिस को ये यकीन था कि नई पीढ़ी के लोग सोशल मीडिया पर ही एक्टिव होते हैं।
बड़ी तलाश के बाद पुलिस को आखिकर रामू का बेटा फेसबुक पर नज़र आ जाता है। उसी फेसबुक से ही पुलिस ये भी पता चलता है कि किशनलाल की पत्नी भी फेसबुक पर एक्टिव है। तब पुलिस रामू के बेटे की फेसबुक प्रोफाइल खंगालती है। उसी खोजबीन के दौरान पुलिस को एक चेहरा दिखाई देता है जिस पर अशोक यादव लिखा हुआ था। रामू के बेटे की प्रोफाइल खंगालने के बाद पुलिस की एक टीम लखनऊ जाती है। उसी इंश्योरेंस की छद्म लबादे में छुपकर।
पुलिस की टीम ने रामू के बेटे से पूछताछ शुरू की और उसके परिवार के साथ साथ माता पिता के बारे में पूछा। तो रामू का बेटा अपने पिता का नाम अशोक यादव बताता है। लेकिन पुलिस को ये भी पता चल जाता है कि रामू के बेटे का पिता वहीं लखनऊ में ही है। जिसका नाम अशोक यादव है।
Shams ki Zubani: अब पुलिस फिर से लखनऊ के चक्कर लगाने लगती है ताकि वो वहां पर अशोक यादव को ढूंढ़ सके। अब यहां पहली बार पुलिस अपना लबादा बदलती है और इंश्योरेंश का चोला उतारकर ई रिक्शा की कंपनी का रुप धारण करती है। और अशोक यादव तक ये संदेशा भिजवाया जाता है कि एक ई रिक्शा की कंपनी उसके साथ कोई डील करना चाहती है। और आखिरकार पुलिस ई रिक्शा की डीलिंग के नाम पर अशोक यादव तक पहुँच जाती है। पुलिस जब अशोक यादव से पूछताछ करती है तो उसकी आईडी प्रूफ वगैराह मांगती है। अशोक यादव सब कुछ अशोक यादव की आईडी दिखा भी देता है।
अब पुलिस एक बार फिर फंस जाती है...वो शक के आधार पर अशोक यादव को पकड़ना नहीं चाहती थी क्योंकि उसके छूट जाने के पूरे पूरे आसार बने रहते। तब पुलिस एक नई चाल चलती है और दिल्ली से सुनीता को लखनऊ बुलवाती है ताकि अशोक यादव की शिनाख्त की जा सके।
Shams ki Zubani: सुनीता के दिल में भी पहली बार इंसाफ की आस जाग उठती है लिहाजा वो भी लखनऊ चली जाती है। लखनऊ में सुनीता को लेकर पुलिस अशोक यादव के सामने पहुंच जाती है और सुनीता को वहीं उसके सामने बैठा देती है। कई घंटों तक अशोक यादव के सामने बैठकर देखने के बाद आखिरकार सुनीता ये कहकर बेहोश हो जाती है कि पुलिस ने जिसे उसके सामने लाकर खड़ा किया है वो ही वो शक्स है जिसने 25 साल पहले उसका घर उजाडा था।
पुलिस अब सुनीता और अशोक यादव को लेकर दिल्ली आ जाती है और यहां जब पूछताछ शुरू करती है तो अशोक यादव इस बात को कुबूल कर लेता है कि हां उसी ने 25 साल पहले किशनलाल की चाकू मारकर हत्या की थी। कत्ल की वजह के बारे में पुलिस को अशोक यादव यही बताता है कि उसे पता चला था कि किशनलाल को कहीं से एक मुश्त बड़ी रकम हाथ लगी है और उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी।
लिहाजा उन्हीं पैसों के लालच में आकर उसने किशन लाल का क़त्ल कर दिया। रामू ने पुलिस के सामने ये भी कबूल किया कि पुलिस से बचने के लिए ही उसने अपने तमाम रिश्तेदारों तक से अपना नाता तोड़ लिया था। और बाद में कई जगह भटकने के बाद वो लखनऊ पहुँचा और नई पहचान के साथ लखनऊ में रहने लगा।
ADVERTISEMENT