Marital Rape : मैरिटल रेप क्राइम है या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट 14 मार्च से करेगा सुनवाई

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Marital Rape : मैरिटल रेप क्राइम है या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट 14 मार्च से करेगा सुनवाई
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Marital Rape is Crime Or Not : मेरिटल रेप (Marital Rape) को अपराध के दायरे में लाया जाए या नहीं? यानी दंपति के बीच वैवाहिक रिश्तों में मर्जी के खिलाफ संबंध बनाने को रेप (Rape) अपराध की श्रेणी में लाने की लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 14 मार्च को करेगा सुनवाई. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 15 फरवरी तक जवाब दाखिल करने को कहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष 3 मार्च तक लिखित दलीलें दाखिल करें. याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने कुछ महीने पहले सभी हितधारकों से विचार मांगे थे. हम इस मामले में जवाब दाखिल करना चाहते हैं. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है. पिछले साल यानी 16 सितंबर 2022 को मैरिटल रेप अपराध है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करने को तैयार हो गया था. इसके बाद ही केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया था.

हाईकोर्ट ने पहले दिया था मैरिटल रेप पर ये फैसला

Marital Rape in India : इस मैरिटल रेप पर पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला दिया था. असल में 11 मई 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों ने अलग-अलग फैसला दिया था. भारतीय कानून में फिलहाल मैरिटल रेप कानूनी तौर पर अपराध नहीं है. हालांकि, इसे अपराध घोषित करने की मांग को लेकर कई संगठनों की ओर से लंबे वक्त से मांग चल रही है. सुप्रीम कोर्ट में मेरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग की गई है. दरअसल, 11 मई को मेरिटल रेप अपराध है या नहीं इस पर दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच का बंटा हुआ फैसला सामने आया था.

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इस मामले की सुनवाई के दौरान दोनों जजों की राय एक मत नहीं दिखी। इसी के चलते दोनों जजों ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तावित किया था। सुनवाई के दौरान जहां पीठ की अध्यक्षता करने वाले जस्टिस राजीव शकधर ने मैरिटल रेप अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया. वहीं, जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि IPC के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है. दरअसल, याचिकाकर्ता ने IPC की धारा 375( रेप) के तहत मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी थी. इस धारा के अनुसार, विवाहित महिला से उसके पति द्वारा की गई यौन क्रिया को दुष्कर्म (Rape) नहीं माना जाएगा जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो.

गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मामले में पक्ष रखने के लिए बार-बार समय मांगने पर केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई थी. अदालत ने केंद्र को समय प्रदान करने से इनकार करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पीठ के समक्ष केंद्र ने तर्क रखा था कि उसने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणी के लिए पत्र भेजा है.

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