तो क्या बागेश्वर बाबा जाएंगे जेल? क्या कहता है जादू टोना और अंधविश्वास पर बना महाराष्ट्र का क़ानून!
Bageshwar Dham Controversy: बागेश्वर धाम से जुड़े बाबा के विवाद से जादू टोना, चमत्कार और अंधविश्वास के लिए बने महाराष्ट्र के दो क़ानून चर्चा में आ गए हैं।
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Controversy of Bageshwardham Sarkar: बागेश्वर धाम से जुड़े बाबा धीरेंद्र शास्त्री (Dheerendra Shashtri) इन दिनों सुर्खियों में हैं। नागपुर में बाबा धीरेंद्र शास्त्री ने जो कुछ कहा और किया उसको लेकर अब एक बार फिर बहस छिड़ गई है। बहस अंधविश्वास (Superstitious) को बढ़ावा देने और उसे फैलाने को लेकर। क्योंकि बागेश्वर धाम के बाबा पर जादू टोना करने और दरबार लगाकर अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगा है।
असल में नागपुर की अंधविश्वास उन्मूलन समिति का कहना है कि दिव्य दरबार और प्रेत दरबार लगाकर धीरेंद्र शास्त्री ‘जादू टोना’ करते हैं। समिति का ये भी इल्ज़ाम है कि देव धर्म के नाम पर आम लोगों को लूटने के साथसाथ उनके साथ धोखाधड़ी भी होती है और शोषण भी किया जाता है।
इस समिति ने इस सिलसिले में जब पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई तो उसने महाराष्ट्र के उन दो कानूनों का भी ज़िक्र किया जिसके जरिए क़ानून महाराष्ट्र की हद में जादू टोना और चमत्कार जैसी हरकत करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सकती है।
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News Of ACT: पहला क़ानून है ड्रग एंड मैजिक रेमेडीज़ एक्ट 1954 (Drug and Magic Remedies Act-1954) यानी औषधि और जादुई उपचार अधिनियम 1954। असल में ये संसद का क़ानून है।
और इस क़ानून के तहत उन तमाम दावों और उनसे जुड़े विज्ञापनों पर रोक लगाई जा सकती है जो जादुई गुणों वाली दवाओं से इलाज करने का दावा करते हैं। और सबसे गौरतलब तो ये है कि ये एक संज्ञेय अपराध माना जाता है। जिस पर अदालत को ही जमानत देने का अधिकार है।
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इसके अलावा महाराष्ट्र में अंधविश्वास को रोकने और जादू टोना जैसी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए एक क़ानून और है। वो क़ानून है महाराष्ट्र मानव बलिदान और अन्य अमानवीय, बुराई और अघोरी प्रथा अथवा काला जादू रोकथाम और उन्मूलन अधिनियम 2013 (Maharashtra Prevention and Eradication of Human Sacrifice and other Inhuman, Evil and Aghori Practices and Black Magic Act, 2013)।
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Bageshwardham Sarkar: ये क़ानून भी महाराष्ट्र राज्य का आपराधिक क़ानून एक्ट है, जिसको तैयार किया था जाने माने समाजसेवी और महाराष्ट्र अंधविश्वास निर्मूलन समिति के संस्थापक नरेंद्र दाभोलकर ने तैयार किया था। नरेंद्र दाभोलकर ने साल 2003 से इस कानून के लिए संघर्ष किया और जिस साल नरेंद्र दाभोलकर की मृत्यु हुई उसी साल महाराष्ट्र सरकार ने इसे क़ानून बनाया था।
इस क़ानून के तहत टोना टोटका, मानव बलि, जादू से बीमारियों को दूर करने या ठीक करने जैसी गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में रखा गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि कोई भी लोगों की आस्था और उनके अंधविश्वास का बेजा लाभ न उठा सके।
इस क़ानून के कुल 12 हिस्से हैं जिनके तहत अलग अलग अपराधों के लिए उनकी पहचान की जा सकती है। इस क़ानून के तहत कम से कम छह महीनों और ज़्यादा से ज़्यादा सात साल की सज़ा का प्रावधान रखा गया है। इसके अलावा हैसियत और अपराध के असर के हिसाब से पांच हज़ार से लेकर 50 हज़ार तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
महाराष्ट्र सरकार ने जुलाई 2003 में नरेंद्र दाभोलकर के पहले ड्राफ्ट को हरी झंडी दी थी उसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार के पास अप्रूवल के लिए भेजा था। मगर अंध विश्वास, काला जादू, तंत्र मंत्र और जादू टोना जैसे शब्दों को ठीक से परिभाषित न किए जाने के लिए काफी आलोचना हुई थी।
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