खुल गया साक्षी के कातिल साहिल के कलावे का राज़, ये है पीर बाबा के कलावे का सच!
Delhi Sakshi Murder Exclusive: दरगाहों और मजारों पर मिलता है जिसे प्रसाद के तौर पर बुजुर्गों की दरगाह या मजार पर नज़्र किया जाता है जिसके बाद इस कलावे को धारण किया जाता है।
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Delhi Sakshi Murder Exclusive: दिल्ली में साक्षी को साहिल ने मौत के घाट उतार दिया साहिल ने साक्षी पर चाकू से दर्जनों वार किए और उसे मौत के घाट उतार दिया। इस हत्याकांड में एक अहम बात सामने आई है कि साहिल ने अपने दाहिने हाथ में लाल रंग का कलावा पहन रखा था। बार-बार यही सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इस कलावे का मतलब क्या है इस तरह का कालावा आमतौर पर हिंदू समुदाय में पहना जाता है। तो आइए हम आपको बताते हैं कि हाथों में कलावा सिर्फ हिंदू समुदाय में ही नहीं मुस्लिम समुदाय में भी कलावा पहनने का चलन है। खासकर मुसलमानों में शिया समुदाय की बात करें तो शिया समुदाय में कलावा और साथ में कड़ा भी पहनने का चलन है।
मजार के जालियों में बांधते हैं कलावा
यह कलावा कई अलग-अलग दरगाहों और मजारों पर मिलता है जिसे प्रसाद के तौर पर बुजुर्गों की दरगाह या मजार पर नज़्र किया जाता है जिसके बाद इस कलावे को धारण किया जाता है। कई जगहों पर कई पीरों की मजारों पर लोग कलावा मजार के जालियों में बांधते हैं और मन्नत मांगते हैं जिसके बाद उसका एक हिस्सा अपने हाथों में बांध लेते हैं ताकि जब उनकी मन्नत पूरी हो तो उस कलावे को खोल दिया जाए।
साहिल को पीर बाबा ने दिया कलावा
अजमेर की हज़रत मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह, दिल्ली की हज़रत निज़ामुद्दीन, बाराबंकी की देवा शरीफ़, कलियर शरीफ़, हो या फिर शिया धर्म से जुड़ी हुई जोगीरामपूरा व रतलाम की हुसैन टीकरी की दरगाह के अलावा देश के कई हिस्सों में पीर फकीरों की दरगाह व मजार हैं जहाँ कलावे का चलन है। सुन्नी समुदाय से जुड़े हुए कई मुसलमान भी हैं जो दरगाह और मजारों की ज़ियारत को मानते हैं वह भी कलावा मन्नत के तौर पर पहनते हैं। इस कलावे का रंग लाल, पीला, काला और हरा हो सकता है।
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मुस्लिम समाज में भी है कलावे का चलन
साहिल के बारे में भी यही बात की जा रही है कि वह दरगाह और मजार को मानता था तभी कलावा पहना करता था। साहिल के बारे में भी यही बात की जा रही है कि वह दरगाह और मजार को मानता था तभी कलावा धारण करता था। साहिल ने पुलिस को बताया है कि उसे एक पीर बाबा ने कलावा पहनने की सलाह दी थी। साहिल के पिता मोहम्मद सरफ़राज़ सुन्नी समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं ये परिवार बुलन्दशहर का रहने वाला है।
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