तीन साल दो बड़े एनकाउंटर मगर एक जैसी कहानी। इसे इत्तेफाक न कहा जाए तो क्या कहा जाए...क्योंकि यूपी पुलिस की डायरी से झांकती इबारत में जो दर्ज है वो कुछ ऐसा ही है। क्योंकि तीन साल के फासले पर यूपी पुलिस ने दो ऐसे एनकाउंटर किए हैं जिनकी कहानी करीब करीब बिल्कुल एक जैसी है...बस दिन तारीख और किरदार बदल गए हैं...। ये भी अजीब इत्तेफाक ही है कि इन दोनों बड़े एनकाउंटर की स्क्रिप्ट एक ही अफसर ने लिखी...और उस अफसर का नाम है अमिताभ यश।
One Script, Two Encounter Three Years: तीन सालों में दो बड़े एनकाउंटर की एक जैसी स्क्रिप्ट एक ही अफसर ने लिखी!
Asad Encounter Effect: उत्तर प्रदेश की एसटीएफ ने तीन सालों में जिन दो बड़े एनकाउंटर को अंजाम दिया उन्हें लिखने वाला एक ही अफसर है जिसने दोनों एनकाउंटर की स्क्रिप्ट बिलकुल एक जैसे तरीके और एक जैसे अंदाज में लिखी। बस बदला है तो वक्त तारीख जगह और कि
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असद और विकास दुबे के एनकाउंटर की मिलती जुलती कहानी
14 Apr 2023 (अपडेटेड: Apr 14 2023 7:51 AM)
अमिताभ यश ने लिखी दो एनकाउंटरों की एक जैसी स्क्रिप्ट: जी हां झांसी में हुए एनकाउंटर को जिस STFकी टीम ने अंजाम दिया उसे कोई और नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट और 1996 बैच के IPSअफसर अमिताभ यश ही लीड कर रहे थे। अमिताभ यश उत्तर प्रदेश की यूपी एसटीएफ के चीफ भी है और उनके नाम करीब 150 एनकाउंटर का स्याह सफेद रिकॉर्ड भी जुड़ा है।
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लेकिन अमिताभ यश की ही देख रेख में साल 2020 में कानपुर के बदमाश विकास दुबे की गाड़ी पलटी थी और उसे एनकाउंटर में मार गिराया गया था और साल 2023 में उन्हीं अमिताभ यश की देख रेख में यूपी के माफिया डॉन अतीक अहमद के फरार बेटे असद अहमद और उसके साथ मोहम्मद गुलाम की मोटरसाइकिल पलटी और फिर दोनों को एनकाउंटर में मार गिराया गया।
विकास दुबे का एनकाउंटर कानपुर के नजदीक हुआ था तो असद और गुलाम की मोटरसाइकिल झांसी के पास पारीछा में पलट गई।
एनकाउंटर के इन दोनों ही किस्सों ने सूबे की सियासत में जबरदस्त उबाल भी ला दिया। क्योंकि एनकाउंटर पर तब भी सवाल उठे थे और एनकाउंटर पर इस बार भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
क्या अजीब इत्तेफाक है कि जो बदमाश प्रयागराज हत्याकांड के बाद 49 दिन तक यूपी पुलिस की आंखों को चकमा देते रहे उन्हें ढेर करने में पुलिस को 49 मिनट भी नहीं लगे।
मीडिया से खेली आंख मिचौली: वैसे अतीक अहमद या उसके परिवार के किसी भी सदस्य के ऐसे ही एनकाउंटर की ऐसी ही कहानी के लिए पूरा सूबा पहले से ही अटकलें भी लगा रहा था। जैसे ही यूपी पुलिस ने उमेश पाल के मामले में कोर्ट में पेश करने के लिए अतीक अहमद को गुजरात की साबरमती जेल से सड़क के रास्ते उत्तर प्रदेश पहुँचाने का इरादा किया इस बात को जुबान मिलने लगी कि यूपी पुलिस ने एनकाउंटर की तैयारी कर ली है..अब इस बार फिर लगता है अतीक की गाड़ी पलट जाएगी। ऐसे में मीडिया के कैमरे अतीक की गाड़ी का पीछा करते रहे। साबरमती से प्रयागराज तक और फिर प्रयागराज से साबरमती तक मीडिया अतीक को देखता और दिखाता रहा।
तब यूपी STF ने अपना दांव चला और अचानक 13 अप्रैल की दोपहर खबर आई कि झांसी के पास असद का एनकाउंटर हो गया। असद के साथ उसका साथी मोहम्मद गुलाम भी मारा गया दोनों बाइक पर सवार थे और उनकी बाइक पलट गई।
जाहिर है लोगों ने इस एनकाउंटर को पुराने चश्मे से देखना शुरू किया और बिकरू कांड के आरोपी विकास दुबे के एनकाउंटर की कहानी से इस कहानी और उसके सीक्वेंस को मिलाना शुरू किया। हैरानी नहीं हुई कि दोनों ही कहानी एक ही स्याही से एक ही तरह के कागज पर एक ही तरह के लहजे में लिखी दिखाई दी। बस कहानी के किरदार बदले हुए थे।
दोनों ही एनकाउंटर के किरदारों की बात करें तो यहां भी सब कुछ एक जैसा दिखता है...आजतक में छपी खबर के मुताबक असद और विकास दुबे दोनों ने ही उत्तर प्रदेश में पुलिसवालों पर हमला किया था और उनकी जान ली थी। वारदात के बाद दोनों लंबे समय तक पुलिस के साथ आंख मिचौली का खेल खेल रहे थे। और आखिर में पुलिस के चंगुल में दोनों कुछ इस अंदाज में फंसे कि उनके बचने के सारे रास्ते बंद हो गए। बस इन दोनों किस्से में हल्का सा फर्क है...असद और गुलाम दोनों पुलिस से बचने के चक्कर में पुलिस की गोली का निशाना बन गए जबकि विकास दुबे तो पुलिस के चंगुल में फंसने के बाद पुलिस की गोली का निशाना बना।
सवाल विकास दुबे के एनकाउंटर के वक्त भी उठे थे...और सवाल इस बार भी असद और गुलाम के एनकाउंटर के बाद भी उठ रहे हैं।
असद और गुलाम पर यूपी पुलिस ने पांच पांच लाख रुपये का इनाम घोषित किया था। असद अहमद माफिया डॉन अतीक का तीसरा बेटा है। कहा यही जा रहा है कि असद पढ़ने लिखने वाला लड़का था लेकिन जब अतीक के दोनों बड़े बेटों को जेल भेज दिया गया था तो असद ने ही गैंग की कमान अपने हाथ में ले ली थी। और प्रयागराज हत्याकांड में सामने आए सीसीटीवी की तस्वीरें में उमेश पाल पर गोली चलाने वाले जिस शख्स की पहचान हुई उसे लोगों ने असद के तौर पर ही पहचाना। और उस वारदात को दिनदहाड़े और सरेआम अंजाम देने के बाद वो गुलाम मोहम्मद के साथ फरार हो गया था।
असद से थोड़ी अलग विकास दुबे का किस्सा है। ये बात 2 जुलाई 2020 की है जब कानपुर देहात के बिकरू गांव में पुलिस की एक टीम विकास दुबे को गिरफ्तार करने उसके गांव वाले घर पर पहुँची थी तो विकास दुबे और उसके साथियों ने पुलिस पार्टी पर जमकर गोलियां बरसाईं थीं जिसमें आठ पुलिसवालों की मौत हो गई थी। मरने वाले पुलिसवालों में एक डीएसपी रैंक का अफसर भी शामिल था। जबकि कई पुलिसवाले बुरी तरह चोटिल हुए थे। इस वारदात के करीब आठ दिन के बाद ही विकास दुबे का एनकाउंटर हो गया था...उसके साथ साथ उसके छह और साथियों को पुलिस ने अलग अलग एनकाउंटर में ढेर कर दिया था।
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