आखिर क्यों कॉन्ट्रेक्ट किलर को कहते हैं सुपारी किलर? किसने और किसे दी मौत की सबसे पहली सुपारी, पेश है 'सुपारी' की पूरी कहानी  

ADVERTISEMENT

CrimeTak
social share
google news

Mumbai: आज हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों कॉन्ट्रेक्ट किलर को सुपारी किलर कहा जाता है। आखिर सुपारी नाम का जन्म कैसे हुआ? यूं तो सुपारी पान में खाई जाती है। लेकिन हम बाद कर रहे हैं उस सुपारी की जिसे लेने का मतलब होता है किसी की जान लेना। आखिर क्यों और कैसे किराए के क़ातिल लेते हैं किसी की सुपारी और कैसी होती है जुर्म के इन बाजीगरों की ख़ौफनाक दुनिया? हिंदुस्तान में कैसे शुरु हुई कॉन्ट्रेक्ट किलिंग और आखिर क्यों कॉन्ट्रेक्ट किलर को कहते हैं सुपारी किलर? पेश है सुपारी की पूरी कहानी।  

आखिर सुपारी नाम का जन्म कैसे हुआ

मायानगरी मुंबई। तारीख 17 अप्रैल 1970 का दिन। एक पान की दुकान पर खड़े दो लोग इस वक्त किसी को ठिकाने लगाने की तैयारी कर रहे थे। इनमें एक तो जिसे ठिकाने लगाया जाना है उसका दुश्मन है, लेकिन दूसरा जिसे ठिकाने लगाना है उसे जानता तक नहीं। लेकिन कमाल ये है कि यही अंजान शख्स उस तीसरे शख्स को मौत के घाट उतारेगा। दरअसल, बिना दुश्मनी के किसी को मारने वाला ये वो इंसान हैं जिन्होंने किसी ज़माने में पहली-पहली बार हिंदुस्तान में किराए पर मौत बांटने की दुकान सजाई थी।

सुपारी मतलब जान से मारने का ठेका

अब सौदा पट चुका था लेकिन अड़चन ये है कि इस वक्त क़त्ल का ठेका देने वाले इस शख्स के पास किराए के क़ातिल को देने के लिए इतने रुपए नहीं है। कहते हैं ना जुर्म की दुनिया के भी कुछ उसूल होते हैं और इन्हीं उसूलों के चलते मौत का वर्क ऑर्डर देने वाला शख्स दुकानदार से सुपारी लेकर किराए के क़ातिल को सौंप देता है। और चंद रोज़ बाद वो शख्स गोलियों से छलनी कर दिया जाता है, जिसके नाम की सुपारी एक पान की दुकान पर उठाई गई थी।

ADVERTISEMENT

क्राइम की दुनिया में मौत का शगुन 

अपने यहां किसी को पान-सुपारी भेंट करना ना सिर्फ इज्ज़त बख्शने के तौर पर लिया जाता है, बल्कि इन्हें खाना एक शगुन भी माना जाता है। कहते हैं मुंबई में सत्तर के दशक में शुरू हुए कांट्रैक्ट किलिंग के इस ख़ौफ़नाक धंधे का नाम तभी से सुपारी किलिंग के तौर पर मशहूर हो गया। वक्त गुज़रा, दिन बदले और अंडरवर्ल्ड भी बदल गया लेकिन तब से लेकर अब तक किराए पर होने वाले क़त्ल यानि सुपारी किलिंग का धंधा भी आज भी बदस्तूर जारी है। ये बात साठ के दशक की है।

सत्तर के दशक में शुरू हुई कांट्रैक्ट किलिंग

कभी कुली का काम करनेवाला हाजी मस्तान मायानगरी मुंबई में किसी रॉबिनहुड की तरह उभर रहा था। उसने मुंबई में ना सिर्फ अंडरवर्ल्ड की नींव डाली, बल्कि आर्गेनाइज्ड क्राइम को पहली बार एक चेहरा दिया। तकरीबन उन्हीं दिनों में दक्षिण में वरदराजन मुदलियार और मुंबई में करीम लाला जैसे लोग भी अपनी जड़ें मज़बूत कर रहे थे लेकिन तब तक अंडरवर्ल्ड में सुपारी किलिंग की बुनियाद नहीं पड़ी थी। फिर 1974 में कोंकण पुलिस के एक कांस्टेबल के बेटे दाऊद इब्राहिम ने अंडरवर्ल्ड की दुनिया में पहली बार अपना कदम रखा।

ADVERTISEMENT

दाऊद इब्राहीम ने फैलाया सुपारी किलर्स का जाल

जल्द ही दाऊद ने अपना एक मज़बूत गैंग तैयार कर लिया और फिर जुर्म की दुनिया में अपनी बादशाहत कायम करने को दाऊद गिरोह ने पठान भाइयों से दो-दो हाथ करना शुरू कर दिया। ये वो दिन थे, जब हिंदुस्तान ने पहली-पहली बार गैंगवार देखी थी। पहले तो गिरोह आपस में टकराए लेकिन फिर क़त्ल के काम की आउटसोर्सिंग की जाने लगी और यहीं से मुंबई में सुपारी किलिंग की शुरुआत हुई। सुपारी किलर्स यानि खूंखार क़ातिलों का वो गिरोह जिनके लिए इंसानी ज़िंदगी के कोई मायने नहीं।

ADVERTISEMENT

सिक्कों की खनक पर मौत बांटते किलर

लेकिन लोगों को मौत बांटने वाले ये बदमाश भी किसी कॉरपोरेट कंपनी की मानिंद काम करते हैं। एक ऐसी कंपनी जिसमें बॉस भी होता है और भरा-पूरा स्टाफ भी होता है। संगठित अपराध करने वाले गैंग हो यां अंडरवर्ल्ड की दुनिया। हर जगह एक तबका ऐसा भी है, जो सिर्फ और सिर्फ सिक्कों की खनक पर मौत बांटता है और इस तबके का नाम है सुपारी किलर्स जी हां, दूसरे लफ्ज़ों में कहें तो कांट्रैक्ट किलर्स की वो जमात, जो चंद रुपयों की ख़ातिर किसी की भी जान ले सकता है। 

दाऊद इब्राहिम की असली ताकत सुपारी किलर्स

सच पूछिए तो मुंबई के अंडरवर्ल्ड के सबसे बड़े डॉन दाऊद इब्राहिम की असली ताकत भी यही सुपारी किलर्स हैं, जो अपने आका के इशारे पर किसी को भी मौत के घाट उतार सकते हैं फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि किसी खास गैंग के लिए काम करनेवाले सुपारी किलर्स आमतौर पर गैंग से बाहर किसी और के इशारे पर सुपारी नहीं उठाते। सुपारी किलर्स की दुनिया कितनी ख़तरनाक है, ये समझने के लिए खुद दाऊद के साथ हुए वाकये को देखा जा सकता है। वर्चस्व और रंजिश के चलते जब पठान सिंडिकेट ने दाऊद इब्राहिम के भाई साबिर को 1982 में मौत के घाट उतार दिया, तो दाऊद ने भी अपने बदले की आग शांत करने के लिए सुपारी किलर्स का ही सहारा लिया।

सस्ती जान, 50 हजार में सुपारी किलिंग

पठान सिंडिकेट के एक बड़े बदमाश आलमगिर ने खुद अपने हाथों से साबिर को मौत के घाट उतारा था और ये दाऊद को उसके मांद में घुस कर चुनौती देनेवाली बात थी। लिहाज़ा, दाऊद ने आलमगिर के नाम पूरे 50 हज़ार रुपए की सुपारी निकली। वैसे मौत का कारोबार करनेवाले सुपारी किलर्स के भी काम करने के अपने तौर-तरीके हैं। आम तौर पर चार या पांच सुपारी किलर्स एक साथ किसी के नाम की सुपारी उठाते हैं और फिर किसी भी शिकार पर हमला करने से पहले ये शूटर्स उसकी रेकी करते हैं।

रेकी या फील्डिंग के ज़रिए शिकार

रेकी या फील्डिंग के ज़रिए पहले शिकार की डेली रूटीन और उसकी आदतों को समझने की कोशिश की जाती है और फिर मौका देख कर तब उस पर हमला किया जाता है, जब वो अपनी हिफाज़त को लेकर सबसे ज्यादा लापरवाह हो। सुपारी किलर्स आम तौर पर किसी भी वारदात को कम से कम दो और ज्यादा से ज्यादा पांच लोगों के गिरोह में अंजाम देते हैं। इनमें शिकार पर गोली चलाने वाला मेन शूटर होता है, जबकि उसे कवर करने वाला सेकेंड शूटर कभी हथियार ना चलने या फिर मिसफायर होने पर सेकेंड शूटर अपने हथियार का मुंह खोल देता है।

दिल्ली में पहली बार 1975 में दी गई बड़ी सुपारी

जबकि तीसरी कतार के बदमाश आस-पास के इलाके की निगरानी करने के साथ-साथ भाग निकलने का रास्ता भी तलाशते हैं और जब काम पूरा हो जाता है, तो यही थर्ड लाइन के किलर्स अपने आका को इसकी खबर पहुंचाते हैं। हिंदुस्तान में सुपारी मुंबई के बाद सबसे ज्यादा दिल्ली में ली और दी गई। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक दिल्ली में पहली बार कोई बड़ी सुपारी 1975 में दी गई  थी। इसके बाद तो राजधानी में सुपारी किलिंग की कई वारदात हुई। दरअसल दिल्ली में सुपारी लेने वाले ज्यादातर शूटर यूपी और हरियाणा से आते हैं। 

    यह भी पढ़ें...

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT