NARCO TEST : जिस नारको से श्रद्धा केस का सच आएगा, वो इंडिया में पहली बार कब और किस केस में हुआ था?

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NARCO TEST : जिस नारको से श्रद्धा केस का सच आएगा, वो इंडिया में पहली बार कब और किस केस में हुआ था?
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Narco Test : श्रद्धा मर्डर केस (Shraddha Murder case) में आरोपी आफताब (Aftab Narco Test) का पहले पॉलीग्राफी टेस्ट और फिर नारको टेस्ट किया जाएगा. असल में आफताब लगातार पुलिस को गुमराह कर रहा है. हालांकि, उसके कमरे से मिले मर्डर के बाद एक मैप से पुलिस को काफी आसानी हुई है. जिसमें मर्डर के बाद लाश के टुकड़ों को कहां-कहां ठिकाने लगाने हैं. उसे लेकर काफी अहम जानकारी और लाश के टुकड़े भी मिले.

लेकिन श्रद्धा केस की पूरी सच्चाई का पता लगाने के लिए आरोपी का नारको टेस्ट कराने की तैयारी शुरू हो गई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में पहला नारको टेस्ट कब और किस केस में हुआ था. नारको टेस्ट में ऐसा क्या होता है कि अपराधी काफी हद तक सच बोल देता है. नारको टेस्ट की क्या कोर्ट में मान्यता है या नहीं. जानेंगे इस रिपोर्ट से....

क्या है नारको एनालिसिस टेस्ट

What is Narco Test : नारको एनालिसिस को नारको टेस्ट भी कहा जाता है. नारको एनालिसिस शब्द के जनल होसले (Hosley) को कहा जाता है. पूरी दुनिया में इसका पहली बार प्रयोग साल 1922 में हुई था. उस समय रावर्ट हाउस ने दो कैदियों से उनका सच उगलवाने के लिए इसका इस्तेमाल किया था. हालांकि, उस समय स्कोपोलामाइन ड्रग का इस्तेमाल कर दोनों कैदियों से सच निकाला गया था. जिसमें ये ड्रग काफी कारगर रहा था. उसी समय से माना गया कि अगर क्रिमिनल कोई बात अपने दिमाग में छुपा ले तो इस तरीके से उसके सच को बाहर लाया जा सकता है.

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नारको टेस्ट में किस केमिकल का इस्तेमाल होता है

नारको टेस्ट में किसी भी आरोपी से सच उगलवाने के लिए एक ट्रूथ सीरम (Truth Serum) का इस्तेमाल किया जाता है. उसे सोडियम पेन्टोथाल (Sodium Pentothol) कहा जाता है. इसे थायोपेंटल सोडियम (Thiopental sodium) या सोडियम एमिटल (Sodium Amytal) या स्पोपोलामाइन (Scopolamine) केमिकल को एक खास क्वॉन्टिटी में इंजेक्शन के जरिए दिया जाता है.

आधा बेहोशी की हालत में सच आता है सामने

इस इंजेक्शन के जरिए कोई भी इंसान आधी बेहोशी की हालत में चला जाता है. असल में वो व्यक्ति ऐसी हालत में हो जाता है कि वो सोचकर कोई झूठ नहीं बोल पाता है. एक तरह से वह सम्मोहन की स्थिति में चला जाता है. जिस वजह से वो हर सवाल का सही सही जवाब देता है. लेकिन ये कह देना कि हर सवाल का वो सही जवाब देगा, ये भी पूरी तरह से सच नहीं है.

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असल में कई लोग जो ज्यादा नशा करने के आदी होते हैं वो कभी अर्ध बेहोशी तो कभी होश में आकर अपने तरीके से भी जवाब दे देते हैं. यही वजह है कि नारको टेस्ट का रिजल्ट 100 प्रतिशत सही नहीं होता है. ये 95 से 96 प्रतिशत तक ही सही हो सकता है.

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भारत में पहला नारको टेस्ट कब और किस केस में हुआ था

India First NARCO Test : अब मन में सवाल होता है कि इस नारको टेस्ट की शुरुआत भारत में कब हुई. आपको बता दें कि इंडिया में पहला नारको टेस्ट (First NARCO Test in India) साल 2002 में हुआ था. ये गोधरा कांड (Godhra Case) में हुआ था. उस समय गोधरा केस के 5 आरोपियों का नारको टेस्ट किया गया था. इस केस का सच जानने के लिए संदिग्धों के नारको टेस्ट कराए गए थे.

इसके बाद अरुण भट्ट अपहरण कांड, स्टांप घोटाले में अब्दुल करीम तेलगी का भी नारको टेस्ट हुआ था. यूपी में पहला नारको टेस्ट निठारी कांड (Nithari Case) के दोषी सुरेंद्र कोली (Surendra Koli) का हुआ था. आरुषि मर्डर केस (Aarushi Murder Case) में भी नारको टेस्ट हुआ था. इस टेस्ट के दौरान एक्सपर्ट के साथ डॉक्टर, स्पेशलिस्ट, मनोवैज्ञानिक होते हैं. साथ ही पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग की जाती है.

क्या कोर्ट में नारको लीगल है

Is NARCO Test legal in court : असल में कोर्ट में नारको टेस्ट रिपोर्ट की वैधानिकता नहीं है. मतलब कोर्ट में नारको टेस्ट मान्य नहीं है. असल में विशेष साक्ष्य की धारा-56 के तहत कोर्ट में इसे मान्यता नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि फिर पुलिस किसी अपराधी का नारको टेस्ट क्यों कराती है. असल में कई बार अपराधी पुलिस को बार-बार बदलकर बयान देता है. किसी भी तरह से वो पूरी घटना का सच नहीं बताता है.

किस हथियार से कत्ल हुआ ये तो बता देता है लेकिन उसे कहां फेंका. इसकी जानकारी नहीं देता है. कई सबूतों को कहां छुपाया. उसे भी नहीं बताता है. ऐसे में पुलिस नारको टेस्ट के जरिए उन छुपी हुई डिटेल को जानकर उसी के आधार पर अपराधी के खिलाफ साक्ष्य जुटाते हैं. इससे पुलिस को काफी फायदा मिलता है.

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