Shraddha Case : आफताब के नार्को टेस्ट में क्या और कैसे होगा? सबकुछ NARCO करने वाले डॉक्टर से जानें

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Shraddha Case : आफताब के नार्को टेस्ट में क्या और कैसे होगा? सबकुछ NARCO करने वाले डॉक्टर से जानें
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श्रद्धा मर्डर केस में 1 दिसंबर को आफताब का नार्को टेस्ट होगा. लेकिन क्या वाकई वो सबकुछ सच बोल देगा. क्या वाकई नार्को टेस्ट के दौरान कोई आरोपी पूरी तरह बेहोश रहता है या फिर क्या हालत होती है. इससे पहले क्राइम के जिन मामलों में नार्को टेस्ट हुए उनमें क्या हुआ फायदा.

क्या अपराधी के टेस्ट से पुलिस किसी नतीजे पर पहुंच पाई. उसे पूरा समझते हैं. शुरुआत देश के खिलाफ सबसे बड़ी आतंकी घटना को अंजाम देने वाले पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब के नार्को टेस्ट से समझते हैं. लेकिन पहले जानते हैं कि आफताब (AFTAB) का नार्को (NARCO) करने वाले डॉक्टर नवीन कुमार क्या कहते हैं. जानते हैं कैसे होगा ये पूरा नार्को टेस्ट. उन्हीं की जुबानी.

AFTAB NARCO TEST : आफताब का नार्को टेस्ट कैसे होगा, नार्को करने वाले डॉ. नवीन कुमार से जानें

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आफताब का नार्को टेस्ट कैसे होगा?

How will Aftab Narco Test : आफताब का नार्को टेस्ट कैसे होगा। और कौन करेगा। डॉक्टर नवीन अंबेडकर अस्पताल के नार्को डिपार्टमेंट के नोडल अफसर हैं। डॉ नवीन की अगुवाई में ही आफताब का पूरा नार्को टेस्ट किया जाएगा। चूंकि नार्को टेस्ट से गुजरनेवाले शख्स को होशो हवास में रहने नहीं दिया जाता है, इसीलिए सबसे पहले इंजेक्शन के जरिए उसकी रगों में बेहोशी की दवा पहुंचाई जाती है। जैसे अमूमन किसी बडे ऑपरेशन से पहले मरीज को बेहोश करने के लिए एनस्थिशिया दी जाती है। पर यहां इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि नार्को टेस्ट से गुजरनेवाले शख्स की सेहत, उम्र और वजन क्या है।

उसे कोई बीमारी तो नहीं है। फिर उसी हिसाब से बेहोशी की दवा की डोज तय की जाती है। डोज की मात्रा इतनी ही होनी चाहिए कि ना वो पूरी तरह बेहोश हो और ना ही पूरी तरह होश में। क्योंकि अगर वो पूरी तरह बेहोश हो गया, तो फिर सवालों के जवाब नहीं देगा। और अगर होश में ही रह गया, तो फिर झूठे जवाब ही देगा। हालांकि दवा के असर से नार्को टेस्ट से गुजरनेवाला शख्स अक्सर गहरी नींद में जाने की कोशिश करता है। आपने देखा होगा ऐसे कई नार्को टेस्ट के दौरान इसीलिए सवाल पूछनेवाला डॉक्टर लगातार उसे थपकियां देकर जगाए रखता है।

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अब जानते हैं कि पहले जो नार्को टेस्ट हुए वो कितने कारगर साबित हुए. शुरुआत पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब के नार्को टेस्ट से लेकर निठारी केस के नार्को टेस्ट तक.

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अजमल कसाब से लेकर निठारी केस तक के नार्को में क्या हुआ

Narco test : अजमल कसाब 26-11 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले का गुनहगार और इकलौता जिंदा पकडा गया आतंकी भी. इसका भी नार्को टेस्ट हुआ था. जिसमें उसने बताया था कि कैसे पाकिस्तान की तरफ से वो भारत में अटैक करने के लिए आया था. इस नारको में उसने वो सच उगला था जो मुंबई के तेज तर्रार ऑफिसर के पूछताछ के दौरान भी नहीं आ पाया था. इसके अलावा अब्दुल करीम तेलगी का नार्को टेस्ट हुआ. वही स्टांप घोटाले का मास्टरमाइंड. पुलिस के सामने वो किसी का नाम नहीं ले रहा था लेकिन नार्को टेस्ट के दौरान स्टैंप  घोटाले के मास्टरमाइंड ने उन नेताओं के भी नाम ले डाले, जिन्हें इसने पैसे दिए थे.

इसके बाद बात करते हैं आरुषि मर्डर केस की. आरुषि मर्डर केस की साजिश देश में हुए कत्ल की सबसे गहरी साजिश में से एक थी. आरुषि और हेमराज को किसने मारा, ये पुलिस से लेकर सीबीआई तक पता नहीं लगा पाई. ऐसे में सच उगलवाने के लिए आरुषि के मां-बाप और घरेलू नौकरों को भी नार्को टेस्ट से गुजारा गया. हालांकि अफसोस की बात ये है कि नार्को टेस्ट भी साजिश को बेनकाब नहीं कर पाया. 2008 में हुआ आरुषि हेमराज मर्डर केस आज भी मिस्ट्री बना हुआ है.

Nithari Case : पूरे देश को दहला देनेवाले निठारी केस की कहानी भी आधी अधूरी सामने आ रही थी. निठारी का गुनहगार सुरेंद्र कोली और उसका मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर होशो हवास में अलग-अलग कहानियां सुना रहे थे. ये दोनों भी नार्को टेस्ट से गुजरे थे. इसी टेस्ट से पता चला था कि निठारी का असली गुनहगार सुरेंद्र कोली था.

Aftab Amin Narco :
अब इसी कड़ी में 1 दिसंबर को एक नया नाम जुडने जा रहा है. उसका नाम है आफताब अमीन पूनावाला का. हाल के वक्त के सबसे सनसनीखेज कत्ल का आरोपी. दिल्ली के भीम राव अंबेडकर अस्पताल एक दिसंबर की सुबह आफताब का नार्को टेस्ट होना है. इस टेस्ट के दौरान आफताब हर उस सवाल से गुजरेगा, जिसके जवाब श्रद्धा मर्डर केस की गुत्थियों को सुलझाएंगे. आफताब पर ये नार्को टेस्ट कैसे होगा, ये हम आपको आगे बताएंगे। पहले ये जान लीजिए कि एक दिसंबर को होनेवाला ये नार्को टेस्ट दिल्ली पुलिस के लिए इतना अहम क्यों हैं।

श्रद्धा मर्डर केस की सबसे बड़ी चुनौती : एक भी चश्मदीद नहीं


श्रद्धा मर्डर केस की सबसे कमजोर कड़ी ये है कि इस केस में एक भी चश्मदीद नहीं है. यानी अब जो कुछ है या पुलिस को जो कुछ करना है वो सिर्फ और सिर्फ चंद इंसानी हड्डियों, चंद खून के कतरे और आफताब के बदलते बयानों को सामने रख कर ही करना है। ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि नार्को टेस्ट के दौरान आफताब कुछ ऐसे सुराग या सबूत उगल दे, जिससे उसका बच पाना नामुकिन हो जाए। इस टेस्ट के जरिए पुलिस को खास तौर पर जिन सवालों के आफताब से सच-सच जवाब चाहिए, वो सवाल ये हैं।

श्रद्धा का कत्ल किस तारीख को किया?
श्रद्धा को क्यों मारा?
श्रद्धा को कैसे मारा?
लाश के टुकडे कैसे किए?
टुकडे करने के लिए हथियार कहां से खरीदे?
टुकडों को घर में कितना वक्त तक रखा?
टुकडों को कैसे और कहां रखा?
लाश के टुकडों को कहां-कहां ठिकाने लगाए?
हथियार कहां फेंके?
कत्ल के बाद छह महीने तक क्या कुछ किया?
अगर कत्ल गुस्से में और गलती से किया तो तभी पुलिस के सामने सरेंडर क्यों नहीं किया?


मनोवैज्ञानिकों की एक टीम के साथ मिलकर केस के जांच अधिकारी और आला पुलिस अफसरों ने इन सवालों के अलावा बाकी सवालों की एक लंबी फेहरिस्त तैयार की है। लेकिन कुल मिलाकर जिन सवालों पर पुलिस का ज्यादा जोर है, वो सवाल सीधे सबूतों से जुडे हैं। जैसे श्रद्धा की लाश के टुकडे या हड्डियां कहां-कहां हो सकती हैं? कहां कहां उसने फेंके? श्रद्धा के मोबाइल कपडे कत्ल और करते और लाश के टुकडे करते हुए खुद के पहने कपडे कहां छुपाए?

अगर नीम बेहोशी की हालत में आफताब अंजाने में सच बोल गया, तो इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली पुलिस के हाथ सबूतों का पूरा पुलिंदा लग जाएगा। लेकिन अगर कहीं सवालों के जवाब में अबु सलेम की तरह गाना गाने लगा तो सबूत ढूंढना, मुश्किल हो जाएगा। ये बात पुलिस भी अच्छी तरह से जानती है। इसीलिए डॉक्टरों की जो टीम आफताब का नार्को टेस्ट करने जा रही है, उस टीम के साथ आला पुलिस अफसरों की कई मीटिंग हो चुकी है।

क्या है नारको एनालिसिस टेस्ट

What is Narco Test : नारको एनालिसिस को नारको टेस्ट भी कहा जाता है. नारको एनालिसिस शब्द के जनल होसले (Hosley) को कहा जाता है. पूरी दुनिया में इसका पहली बार प्रयोग साल 1922 में हुई था. उस समय रावर्ट हाउस ने दो कैदियों से उनका सच उगलवाने के लिए इसका इस्तेमाल किया था. हालांकि, उस समय स्कोपोलामाइन ड्रग का इस्तेमाल कर दोनों कैदियों से सच निकाला गया था. जिसमें ये ड्रग काफी कारगर रहा था. उसी समय से माना गया कि अगर क्रिमिनल कोई बात अपने दिमाग में छुपा ले तो इस तरीके से उसके सच को बाहर लाया जा सकता है.

नारको टेस्ट में किस केमिकल का इस्तेमाल होता है

नारको टेस्ट में किसी भी आरोपी से सच उगलवाने के लिए एक ट्रूथ सीरम (Truth Serum) का इस्तेमाल किया जाता है. उसे सोडियम पेन्टोथाल (Sodium Pentothol) कहा जाता है. इसे थायोपेंटल सोडियम (Thiopental sodium) या सोडियम एमिटल (Sodium Amytal) या स्पोपोलामाइन (Scopolamine) केमिकल को एक खास क्वॉन्टिटी में इंजेक्शन के जरिए दिया जाता है.

आधा बेहोशी की हालत में सच आता है सामने

इस इंजेक्शन के जरिए कोई भी इंसान आधी बेहोशी की हालत में चला जाता है. असल में वो व्यक्ति ऐसी हालत में हो जाता है कि वो सोचकर कोई झूठ नहीं बोल पाता है. एक तरह से वह सम्मोहन की स्थिति में चला जाता है. जिस वजह से वो हर सवाल का सही सही जवाब देता है. लेकिन ये कह देना कि हर सवाल का वो सही जवाब देगा, ये भी पूरी तरह से सच नहीं है.

असल में कई लोग जो ज्यादा नशा करने के आदी होते हैं वो कभी अर्ध बेहोशी तो कभी होश में आकर अपने तरीके से भी जवाब दे देते हैं. यही वजह है कि नारको टेस्ट का रिजल्ट 100 प्रतिशत सही नहीं होता है. ये 95 से 96 प्रतिशत तक ही सही हो सकता है.

भारत में पहला नारको टेस्ट कब और किस केस में हुआ था

India First NARCO Test : अब मन में सवाल होता है कि इस नारको टेस्ट की शुरुआत भारत में कब हुई. आपको बता दें कि इंडिया में पहला नारको टेस्ट (First NARCO Test in India) साल 2002 में हुआ था. ये गोधरा कांड (Godhra Case) में हुआ था. उस समय गोधरा केस के 5 आरोपियों का नारको टेस्ट किया गया था. इस केस का सच जानने के लिए संदिग्धों के नारको टेस्ट कराए गए थे.

इसके बाद अरुण भट्ट अपहरण कांड, स्टांप घोटाले में अब्दुल करीम तेलगी का भी नारको टेस्ट हुआ था. यूपी में पहला नारको टेस्ट निठारी कांड (Nithari Case) के दोषी सुरेंद्र कोली (Surendra Koli) का हुआ था. आरुषि मर्डर केस (Aarushi Murder Case) में भी नारको टेस्ट हुआ था. इस टेस्ट के दौरान एक्सपर्ट के साथ डॉक्टर, स्पेशलिस्ट, मनोवैज्ञानिक होते हैं. साथ ही पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग की जाती है.

क्या कोर्ट में नारको लीगल है

Is NARCO Test legal in court : असल में कोर्ट में नारको टेस्ट रिपोर्ट की वैधानिकता नहीं है. मतलब कोर्ट में नारको टेस्ट मान्य नहीं है. असल में विशेष साक्ष्य की धारा-56 के तहत कोर्ट में इसे मान्यता नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि फिर पुलिस किसी अपराधी का नारको टेस्ट क्यों कराती है. असल में कई बार अपराधी पुलिस को बार-बार बदलकर बयान देता है. किसी भी तरह से वो पूरी घटना का सच नहीं बताता है.

किस हथियार से कत्ल हुआ ये तो बता देता है लेकिन उसे कहां फेंका. इसकी जानकारी नहीं देता है. कई सबूतों को कहां छुपाया. उसे भी नहीं बताता है. ऐसे में पुलिस नारको टेस्ट के जरिए उन छुपी हुई डिटेल को जानकर उसी के आधार पर अपराधी के खिलाफ साक्ष्य जुटाते हैं. इससे पुलिस को काफी फायदा मिलता है.

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