स्टॉकहोम के बैंक के वो शरीफ लुटेरे जिनसे बंधक बनी लड़की को हो गया था प्यार
Shams ki Zubani: इस कहानी में एक डकैती का क़िस्सा है। डकैती के दौरान बंधक बनाए गए लोगों के जज्बात हैं और वारदात के बाद जन्म लेने वाली एक प्यार मोहब्बत की दास्तां भी है।
ADVERTISEMENT
Shams ki Zubani: क्राइम की आज की कहानी अपने आप में अनोखी है। बल्कि ये भी कहा जा सकता है कि बैंक डकैती का ये किस्सा इस मामले में भी अनोखा है क्योंकि इसके बाद क्राइम पर नज़र रखने वाले रिसर्चरों ने एक के बाद एक कई ऐसे रिसर्च कर डाले जिन्हें ऐसे किसी अपराध के बाद पैदा हुए हालात को देखने का नज़रिया ही बदल जाता है।
ये क़िस्सा 23 अगस्त 1973 का है। स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम और उसके जुड़वा शहर सिल्टन स्टॉकहोम में काम करने वाला एक नामी बैंक में सुबह के वक्त काम शुरू हुआ था। बैंक के तमाम कर्मचारी अपने काम में लगे हुए थे और बैंक में ग्राहकों का आना जाना लगा हुआ था। इसी बीच ग्राहकों की भीड़ में एक शख्स नज़र आता है।
लंबी कद काठी वाले उस शख्स ने अपने सिर पर लेडीज़ विग भी लगा रखी थी। देखकर कोई भी बड़ी ही आसानी से बता सकता था कि उसने अपना हुलिया बदलने की कोशिश की थी। उसकी आंखें सनग्लास से ढकी हुई थी। हाथ में एक बैग लेकर वो बैंक में दाखिल होता है। एकदम अकेला और तन्हा।
ADVERTISEMENT
बैंक में आने के बाद वो अपना बैग खोलता है और उसमें से एक टॉमीगन निकालता है और छत की तरफ एक फायर भी करता है। और फायर करते ही वो ज़ोर से कहता है, अब पार्टी शुरू होती है। अचानक चली गोली और एक शक्स के इस तरह से चिल्लाने के बाद बैंक में आने वाले तमाम ग्राहक हैरान हो जाते हैं...कुछ तो डर के मारे बैंक से बाहर भी निकल जाते हैं जबकि कुछ वहीं बैंक में ही रहते हैं।
Shams ki Zubani : इसके बाद वो शख्स सीधे काउंटर पर बैठे बैंक स्टाफ के पास पहुँचता है, वहां तीन लड़कियां और एक मर्द बैठे थे। उनको बंदूक दिखाते हुए वो शख्स तिजोरी वाली जगह पर चलने को कहता है। तिजोरी वाली जगह पर जाकर वो बैंक के तीन स्टाफ के लोगों के साथ मिलकर खुद को उसी कमरे में बंद कर लेता है।
ADVERTISEMENT
उसकी इस हरकत से बैंक में करीब करीब भगदड़ सी मच गई। बैंक से निकलकर लोग सड़क पर जा पहुँचे। और देखते ही देखते बात स्टॉकहोम पुलिस तक जा पहुँची। देखते ही देखते पुलिस बैंक को चारो तरफ से घेर लेती है, बैंक के आस पास की ऊंची ऊंची बिल्डिगों में पुलिस के शूटर्स निशाना साधकर बैठ जाते हैं। और बात उड़ते उड़ते मीडिया तक जा पहुँचती है।
ADVERTISEMENT
सभी अपनी अपनी जगह तैनात। बैंक में पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ था। केवल बैंक की तिजोरी वाले हिस्से से कुछ अहट महसूस होती है। बैंक के बाहर पुलिस और मीडिया की टीमें अपनी अपनी पोजिशन पर तैनात, इस इंतज़ार में कि भीतर से कोई हलचल हो तो कुछ एक्शन किया जाए।
अब पुलिस इस दुविधा में थी कि अगर वो छापा मार कार्रवाई करते हुए अगर भीतर जाती है तो कहीं वो लुटेरा बंधकों को कोई नुकसान न पहुँचा दे।
इसी बीच लुटेरे की तरफ से पहली डिमांड सामने आती है। और वो डिमांड बड़ी ही अटपटी थी। उसने पुलिस से कहा था कि उसका एक साथी है जो जेल में बंद है लिहाजा उसे न सिर्फ छोड़ा जाए बल्कि पुलिस उसे लेकर बैंक तक भी आए।
Shams ki Zubani: थोड़ी ही देर बाद उस लुटेरे ने अपनी दूसरी मांग रखी। उसने पुलिस से तीन मिलियन स्वीडिश क्रोनर मांगे। ये रकम चार लाख डॉलर के बराबर थी।
इसके बाद वो तीसरी मांग पुलिस के सामने रखता है। उसने दो कार, दो गन और बुलेटप्रूफ जैकेट के साथ साथ वहां से सुरक्षित बाहर निकलने का रास्ता मांगता है।
इसके साथ उसने एक और बात रखी। उसने कहा था कि जब उसकी मांगे पूरी हो जाएंगी और वो जब यहां से जाएगा तो अपने साथ एक बंधक को भी लेता जाएगा और अपनी सुरक्षित जगह पर पहुँचने के बाद उसे छोड़ देगा। गरज ये कि पुलिस उसका पीछा न करे। साथ ही उसने धमकी दी कि अगर उसकी मांग नहीं मानी गई तो वो एक एक करके बंधकों को मार डालेगा।
दुनिया पहली बार मीडिया में लाइव बैंक डकैती भी देख रही थी। क्योंकि बैंक के बाहर स्वीडिश टीवी का रिपोर्टर उस डकैती के वक्त बैंक में बने हालात की लाइव रिपोर्टिंग कर रहा था।
इस बीच बैंक के भीतर से बाहर आए ग्राहकों और बैंक के स्टाफ से पूछताछ के दौरान पुलिस को ये अंदाजा हो गया कि बैंक के भीतर एक लुटेरे के कब्जे में तीन बंधक हैं।
Shams ki Zubani: जाहिर है एक ही लुटेरे के बारे में जानने के बाद पुलिस अब ऑपरेशन का प्लान करती है लेकिन उसे सरकार और प्रशासन की तरफ से साफ निर्देश थे कि किसी भी बंधक को खरोंच तक नहीं आनी चाहिए। क्योंकि किसी भी सूरत में वो पब्लिक के जज्बात को भड़काना नहीं देना चाहती थी। इसी बीच बैंक डकैती का लाइव प्रसारण देखने के बाद अलग अलग लोग अलग अलग तरीके से अपनी राय भी पुलिस को देते हैं।
अब स्टॉकहोम पुलिस दुविधा में फंसने के बाद लुटेरे की मांग पूरी करने के लिएसरकार से बात करती है और उसके कैदी दोस्त की रिहाई का इंतजाम करती है। पुलिस उस कैदी को जेल से निकालकर सीधे बैंक के दरवाजे पर लेकर आती है और उसे छोड़ देती है। अब बैंक में दो बदमाश पहुँच जाते हैं। पहला जो तिजोरी में था जबकि दूसरा उसने बंधकों की दम पर बैंक में बुलवा लेता है।
पुलिस अपनी उहापोह में उलझी रहती है और पूरा दिन निकल जाता है। यानी 23 अगस्त का दिन बीत जाता है और दो लुटेरों के साथ चार बंधक बैंक के भीतर ही मौजूद रहते हैं।
Shams ki Zubani: अब अगले रोज यानी 24 अगस्त को फिर से नए सिरे से पुलिस अपनी रूप रेखा तैयार करती है और लुटेरों के साथ समझौता करने में लग जाती है। पुलिस अलग अलग तरह के हथकंडे अपनाकर किसी तरह लुटेरे को बाहर निकालने के तरीके तलाश करने में लगी रहती है लेकिन डर के मारे कोई भी ऑपरेशन नहीं करती। इसी हां और ना के चक्कर में दूसरा दिन भी गुज़र गया। यानी दो दिन से वो बैंक में बंधक के साथ लुटेरे के होने का सारा तमाशा चलता रहा।
इसी बीच बैंक के भीतर लुटेरों को रवैया किसी भी सूरत में खूंखार बदमाशों जैसा बिलकुल भी नहीं था। क्योंकि वो बंधकों को किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं दे रहे थे। वो बंधकों को खाना पानी सब कुछ मुहैया करवा रहे थे। इसके अलावा एक बंधक महिला लुटेरे से अपने घरवालों के परेशान होने की बात कहती है तो लुटेरा उसकी उसके घरवालों से फोन पर बात भी करवाता है।
लुटेरे के रवैये से बंधकों को ताज्जुब भी होता है...लेकिन वो सब आपस में दोस्ती कर लेते हैं। बैंक के भीतर एक तरह से पिकनिक जैसा माहौल और बैंक के बाहर पुलिस टेंशन में। वो इसी फिराक में कि कोई मौका मिले तो वो कुछ एक्शन ले। इसी उधेड़बुन में तीसरा दिन भी बीत गया। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आता कि आखिर भीतर कुछ चल क्यों नहीं रहा।
इसी बीच पुलिस ने एक चाल चली और बैंक के भीतर खाना पहुँचाने वाले के जरिए उस तिजोरी के बाहर एक माइक्रोफोन भी पहुँचवा दिया जाता है ताकि बंधक और लुटेरों के बीच की बातचीत सुनी जा सके।
Shams ki Zubani: पुलिस जब उनकी बातचीत सुनती है तो पुलिस के ही होश उड़ जाते हैं क्योंकि उस बातचीत में न तो किसी खून खराबे का जिक्र और न ही किसी लूट मार की बात। बात होती है तो घर परिवार और हंसी मज़ाक की।
पुलिस ताज्जुब करती है कि इन हालात से कैसे निपटे। पुलिस के सामने एक अजीब सी स्थिति पैदा हो जाती है कि वो करे तो क्या करे। पुलिस जब तक हालात को समझने की कोशिश करती। चार दिन गुज़र गए।
लिहाजा अब पांचवे रोज पुलिस फिर से सौदेबाजी शुरू करती है और लुटेरों से कहती है कि उनकी सारी शर्तें पूरी कर दी जाएंगी लेकिन पुलिस ने एक शर्त रखी, पहले बंधकों को बैंक से बाहर निकाले। पुलिस की इस शर्त के बाद जो हालात बने उसने तो पुलिस को और भी बुरी तरह से चौंका दिया।
Shams ki Zubani: क्योंकि अब लुटेरों की तरफ से कोई शर्त नहीं रखी गई बल्कि बंधकों ने पुलिस के सामने शर्त रखनी शुरू कर दी। बंधकों ने कहना शुरू किया कि सबसे पहले दोनों लुटेरों को यहां से सेफ पैसेज देकर उनकी मांग पूरी करते हुए यहां से रवाना किया जाए उसके बाद ही पुलिस बैंक के भीतर दाखिल हो या सारे बंधक बैंक से बाहर जाएंगे।
अब पुलिस फिर उलझ गई। उसे समझ में ही नहीं आ रहा है कि इस हालात से कैसे निपटे। इसी चक्कर में पूरा दिन निकल गया। अब बैंक में बंधक और लुटेरों का ये छठा दिन है।और सबसे मजेदार बात ये है कि छह दिनों से टीवी पर यही बैंक रॉबरी की खबर टीवी पर चल रही थी।
और देखते ही देखते ये खबर पड़ोसी मुल्कों तक भी जा पहुँची। उस खबर पर हर किसी की दिलचस्पी होने लगी। और जो हालात आखिरी में बनकर सामने आए उसने तो और भी लोगों को चटकारे लेने को मौका दे दिया।
Shams ki Zubani: छह दिन तक पुलिस लुटेरों के रवैये को लेकर गौर करती रही तो उसे इतना तो यकीन हो गया कि ये बदमाश किसी भी सूरत में कोई नुकसान तो नहीं पहुँचाएंगे। लिहाजा अब पुलिस खतरा उठाने की फिराक में लग जाती है और छठे दिन एक ऑपरेशन करती है।
वो एक आदमी के जरिए तिजोरी वाले कमरे में आंसू गैस के गोले फिकवा देती है और जब तिजोरी के भीतर बंधक और लुटेरों की आंखों में जलन पैदा होती है और घुटन शुरू होती है तो वो वहां से बाहर निकलने की फिराक में लगते हैं तभी धुएँ का फायदा उठाते हुए पुलिस की एक टीम चारो बंधक और दोनों लुटेरों को अपने कब्जे में ले लेती है।
पुलिस के कब्जे में आने के बाद बदमाशों को जब जेल भेजने की तैयारी की जाती है तो बंधक लड़कियां बदमाशों के हक में आकर खड़ी हो जाती हैं और कहती है कि इन लोगों ने उन्हें कोई तकलीफ नहीं दी न ही बुरा बर्ताव किया लिहाजा इन्हें छोड़ दिया जाए। पुलिस बुरी तरह उलझ जाती है।
कहा जाता है कि स्टॉकहोम में लोगों ने उन बदमाशों का मुकदमा लड़ने के लिए आपस में चंदा करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं बदमाशों के चंगुल में छह दिनों तक रहने वाली एक लड़की तो उन बदमाशों में से एक से प्यार तक करने लगी। और पूरे शहर में इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई कि इन बदमाशों को किस तरह पुलिस के चंगुल से बाहर निकाला जाए।
हालांकि दोनों ने क़ानून तोड़ा था लिहाजा अदालत में चले मुकदमे के बाद दोनों को सजा हुई। और एक लंबी सज़ा पूरी करने के बाद दोनों जेल से रिहा भी हुए। और आज भी दोनों बदमाश स्टॉकहोम में एक आजाद ज़िंदगी जी रहे हैं।
ADVERTISEMENT