जब ओलंपिक में मेडल की जगह बटीं मौत

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जब ओलंपिक में मेडल की जगह बटीं मौत
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पूरी दुनिया में घूमती हुई ओलंपिक मशाल 26 अगस्त 1972 में जर्मनी के म्यूनिख पहुंची, 20वें ओलंपिक खेलों की शुरूआत भी ठीक वैसे ही हुई, जैसी ओलंपिक खेलों की परंपरा है। दुनियाभर के सैकड़ों देशों के झंडे लहरा रहे थे, लाखों लोग खुशी से झूम रहे थे। उत्साह अपने पूरे चरम पर था और खेलों की शुरूआत हो चुकी थी। लेकिन इस ओलंपिक में वो होने वाला था जो अब से पहले कभी नहीं हुआ।

5 सितंबर 1972 की सुबह म्यूनिख के खेलगांव से चिड़ियों की चहचहाहट से पहले गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज़ें गूंजने लगी, 8 आतंकियों ने मिलकर इज़राइल के 11 ओलंपिक खिलाड़ियों को उन्हीं के कमरों में बंधक बना लिया। ओलंपिक के इतिहास में ये पहली बार कोई आतंकी हमला हुआ था, जिसमें शिकार बनने वाले थे खुद खिलाड़ी, वो भी एक दो नहीं पूरे 11, इस वारदात ने म्यूनिख से लेकर मास्को तक, फिलीस्तीन से लेकर तेल अवीब तक, वाशिंगटन से लेकर लंदन तक सारी दुनिया को हिला दिया।

ओलंपिक कवर करने आए टीवी कैमरों पर खेल के बदले पहली बार दिखाए दे रहे थे नकाब पहने आतंकी और खौफ से सने खिलाड़ियों के चेहरे, करीब 50 साल हो चुके हैं लेकिन म्यूनिख ओलंपिक का वो मंज़र कभी कोई नहीं भूल पाया, तब से लेकर अब तक कई ओलंपिक खेल हो चुके हैं, लेकिन जब जब कोई ओलंपिक होने वाला होता है याद आ जाता है म्यूनिख, क्योकि म्यूनिख में खेला गया था वो खेल  जिसकी ओलंपिक में कोई जगह नहीं है। वो खेल जिसमें हारने वाले को मिली मौत, और जीतने वाले को भी मिली मौत। इस ओलंपिक में पहली बार पहनाया गया था - मौत का मेडल।

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तारीख- 4 सितंबर 1972

जगह - म्यूनिख, जर्मनी

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म्यूनिख में यही वो काली रात थी जब ओलंपिक के दामन में ऐसा खूनी दाग लगने वाला था जो फिर कभी नहीं छूटेगा, म्यूनिख में ओलंपिक खेलों के लिए बने खेलगांव में लाइटें बुझा दी गईं थी, अपने अपने अपार्टमेंट में खिलाड़ी सो रहे थे, तभी गेट से दाखिल हुए मौत के सौदागर।

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दुनिया भर के कई देशों के खिलाड़ी खेलगांव की अलग अलग विंग में ठहरे हुए थे, लेकिन आतंकियों को तलाश थी उस अपार्टमेंट की जहां इज़राइली खिलाड़ी रूके हुए थे, इन आतंकवादियों को जिस मिशन पर म्यूनिख के इस ओलंपिक खेलगांव में भेजा गया था, वो था इज़राइली खिलाड़ियों को बंधक बनाना।

म्यूनिख के इस खेलगांव में खिलाड़ियों जैसा कपड़ा पहने उन लोगों के पास खेल का सामान नहीं बल्कि मौत का सामान था, बैग में राइफल, पिस्टल औऱ ग्रैनेड लेकर इन आतंकियों ने इज़राइली खिलाड़ियों के अपार्टमेंट पर धावा बोल दिया।

ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने आए इज़ारइली खिलाड़ी गहरी नींद में थे कि अचानक गोलियां के तड़तड़ाहट की आवाज़ पूरे अपार्टमेंट में गूंजने लगी। अपार्टमेंट में मौजूद खिलाड़ियों ने इन आतंकवादियों को रोकने की कोशिश की लेकिन हथियारों से लैस 8-8 आंतकियों को रोक पाना मुमकिन नही था, कुछ खिलाड़ियों ने भागने की कोशिश की लेकिन वो नाकाम रहे।

खूंखार आतंकियों ने कुछ खिलाड़ियों को इतने करीब से गोली मारी कि उनकी आंखें फटी रह गई, अपार्टमेंट के बाहर ओलंपिक खिलाड़ियों पर हमले की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई, बाहर दूसरे देश के खिलाड़ी ये मंज़र देख रहे थे और अंदर 11-11 इज़राइली खिलाड़ी ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे।

एक-एक कमरे में घुसकर आतंकी खिलाड़ियों को बंधक बना रहे थे, और जो भागने की कोशिश कर रहे थे उनपर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई जा रही थी। कुछ खिलाड़ियों ने मरने से पहले उन आतंकियों का सामना करने की कोशिश कि लेकिन उन्हें दूसरा मौका नहीं दिया गया और उनके सीने में गोलियां उतार दी।

भागने की कोशिश कर रहे दो इज़राइली खिलाड़ियों ने मौत के घाट उतार दिया था, और बाकि बचे डरे सहमें 9 खिलाड़ी उन आतंकियों का बंधक बनने के लिए मजबूर हो गए। इस सबसे बड़ी आतंकी घटना की खबर पूरी दुनिया को लग चुकी थी, लोग टीवी से चिपके इन खिलाड़ियों के लिए दुआ कर रहे थे।

म्यूनिख के खेलगांव पर हमला करने वाले उन आतंकियों का मक़सद और निशाना पहले से तय था, इन आंतकियों के निशाने पर सिर्फ इज़राइली खिलाड़ी थे। इसलिए आतंकियों ने अपार्टमेंट में मौजूद उर्गवे और हांगकांग के खिलाड़ियों को बिना कोई नुकसान पहुंचाए बाहर जाने का रास्ता देकर साफ दिया कि उनका ये हमला सिर्फ इज़राइल पर है।

इमारत में मौजूद इज़राइली खिलाड़ियों की हत्या औऱ बंधक बनाए जाने के पीछे आंतकियों ने कुछ घंटे में ही अपना मक़सद बयान कर दिया, ओलंपिक खेलों में इस नरसंहार के पीछे उन आंतकियों का मक़सद था, इज़राइली जेलों में बंद 234 फिलीस्तीनी कैदियों की रिहाई और इसके लिए आतंकियों ने इज़राइल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर को दी सिर्फ 24 घटें की मोहलत।

आतंकी दो इज़राइली खिलाड़ियों की हत्या कर इज़राइल सरकार पर दबाव बनाना चाहते थे, ताकि इज़राइली जेल में बंद फिलीस्तीनी कैदियों को रिहा करा सकें, फिलीस्तीनी आतंकवादी रेसलिंग कोच मोशे वेनबर्ग और रेसलर योसेफ रोमानो को मौत के घाट उतार चुके थे और उनके कब्ज़े में अभी 9 इज़राइली खिलाड़ी थे, जिन्हें बंधक बनाकर बंदूक की नोक पर खामोश बैठने के लिए मजबूर कर दिया गया था। ओलंपिक के खेलगांव में आंतकवादियों के कब्ज़े में जो 9 खिलाड़ी थे उनमें,

रेसलिंग रेफरी - योसेफ गटफ्रांड

शॉर्प शूटिंग कोच- केहट शोर

ट्रैक एंड फील्ड कोच - एमिट्ज़र शपिरा

फेंसिंग मास्टर- एंद्रे स्पिटज़र

वेटलिफ्टिंग जज - यकोव स्प्रिंगर

रेसलर - एलिज़र हालफिन

और मार्क स्लाविन के अलावा

वेटलिफ्टर- डेविड बर्गर और ज़ीव फ्रेडमैन

इन सारे खिलाड़ियों की सलामती की ज़िम्मेदारी अब इज़राइल सरकार के ऊपर थी, आतंकवादियों ने इज़राइल सरकार को डराने और झुकाने के लिए मोशे वेनबर्ग की लाश को अपार्टमेंट के बाहर फेंक दिया ताकि लोगों और सरकार में खौफ पैदा हो सके। लेकिन इज़राइल सरकार झुकने के बजाए इन आंतकियों से निपटने का मन बना रही थी, ओलंपिक के खेलगांव में लगे कई कैमरों से अपार्टमेंट के अंदर हो रही हलचल पर नज़र रखी जा रही थी ताकि हमलावरों की सही तादाद औऱ उनके मूवमेंट का पता लगाया जा सके। लेकिन आतंकवादी भी अपार्टमेंट के अंदर ही टीवी के ज़रिए बाहर होने वाली घटनाओं और सरकार के रूख पर नज़र बनाए हुए थे।

दूसरी तऱफ इस हालात से निपटने के लिए स्पेशल फोर्स भेजने की इज़राइल की मांग को ठुकरा कर, अपने ऊपर लगे इस कलंक को जर्मन सिक्योरिटी एजेंसी खुद ही धोना चाहती थी, लेकिन इस हालात से निपटना जर्मन सिक्यूरिटी एजेंसी के लिए आसान नहीं था, जर्मन सरकार ने आतंकवादियों को मुंह मांगी रकम देने के अलावा सुरक्षित पैसेज देने का प्रस्ताव दिया था लेकिन आतंकियों ने इसे ठुकरा दिया।

लंबी बातचीत के बाद ये तय हुआ कि अगर आतंकी बंधकों को किसी अरब देश में ले जाना चाहते हैं तो इससे इज़राइल को कोई ऐतराज़ नहीं होगा बशर्ते उन्हें नुकसान न पहुंचाया जाए, आंतकियों ने इसके बाद काहिरा जाने के लिए रास्ता देने की मांग की, और रात 10 बजकर 10 मिनट पर म्यूनिख के खेल गांव से आंतकी को तमाम बंधकों के साथ बस से फर्स्टेनफेल्डब्रक के नाटो एयरबेस पर पहुंचा दिया गया। जहां से उन्हें म्यूनिख के रीम इंटरनेशनल एयरपोर्ट ले जाने की योजना थी।

रीम इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर इन आतंकियों का बड़ी बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे, जर्मन सेना के 5 स्नाइपर जिन्हें एयरपोर्ट पर अलग अलग जगह पर तैनात किया गया था। एयरपोर्ट पर इज़राइली खुफीया एजेंसी के कुछ एजेंट भी मौजूद थे जो सिर्फ इस ऑपरेशन पर नज़र रखे हुए थे, उन्हें कुछ भी एक्शन लेने की इजाज़त जर्मनी सरकार ने नहीं दी थी।

डील के मुताबिक आतंकियों ने अगले मूवमेंट से पहले बोइंग 727 विमान का इंस्पेक्शन किया, फ्लाइट क्रिव की ड्रेस में जर्मन आफीसर्स मौके पर मौजूद थे। कंट्रोल रूम के ऊपर लगी तीन बत्तियां जलीं और जर्मन स्नाइपर की गोलियां दोनों आतंकियों के शरीर में जा धंसी, लेकिन जर्मन सिक्यूरिटी उस वक़्त हैरान रह गई जब उन्हें एहसास हुआ कि आतंकियों की संख्या दरअसल 8 है, मिशन फेल हो चुका था। दोनों तरफ से ताबड़तोड़ गोलियां चलने लगी, दो आतंकवादियों ने अलग अलग हेलीकॉप्टर में बैठे 9 इज़राइली खिलाड़ियों को गोलियों से भून डाला, और मरने से पहले इनमें से एक आतंकवादी ने सेना के उस हेलीकॉप्टर को ग्रेनेड से उड़ा दिया। जिसमें स्प्रिंगर, हालफिन, फ्रेडमैन और बर्गर की लाश थी।

म्यूनिख ओलंपिक के इस नरसंहार के बाद आठों आतंकियों की पहचान हुई, इन सबका ताल्लुक फिलीस्तीनी आतंकवादी संगठन ब्लैक सेप्टेंबर से था। जिनमें लेबनन, सीरिया और जार्डन के रहने वाले आतंकी शामिल थे, ईसा की निगरानी में ब्लैक सेप्टेंबर के इन आतंकियों ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया.. जिसमें,

* लुत्तिफ अफिफ उर्फ ईसा के अलावा

* यूसुफ नज़ल उर्फ टोनी

* अफिफ अहमद हामिद उर्फ पाओलो

* खालिद जावेद उर्फ सलाह

* अहमद चिक था उर्फ अबू हल्ला

* मोहमम्द सफादी उर्फ बदरन

* अदनान अल गशे उर्फ देनावी

* जमाल अल गशे उर्फ समीर

ऑपरेशन में मारे गए अफिफ नज़ल चिक था हामिद और जावेद की लाश लीबिया को सौंप दी गई जबकि तीन ज़िंदा आतंकी सफादी, अल गशे और जमाल पर जर्मनी में मुकदमा चलाया गया, लेकिन सिर्फ दो महीने के बाद जर्मन सरकार को इन तीनों आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा क्योंकि ब्लैक सेप्टेंबर संगठन के दो आतंकवादियों ने प्लेन हाईजैक करने के बाद इन तीनों की रिहाई की मांग की थी।

म्यूनिख में नरसंहार करने के बाद ब्लैक सेप्टेंबर के तीनों आतंकियों को रिहाई तो मिल गई लेकिन इसके बाद इन्हें कभी चैन की नींद नहीं आ पाई, क्योंकि अब उन्हें उस बदले का सामना करना थे जो दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी मोसाद उनसे लेने वाली थी।

मौत के घाट उतारे जा चुके इज़राइली खिलाड़ियों का खून अभी ठंडा भी नहीं हो पाया था कि मोसाद ने बदले की पूरी योजना बना ली थी, और इसके बाद शुरू हुआ ऑपरेशन स्प्रिंग ऑफ यूथ और ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड, यानी खुदा का गुस्सा।

पूरे इज़राइल का गुस्सा ताकत बनकर मोसाद की रगों में दौड़ने लगा, और फिर शुरू हो गया वो मिशन, जिसका मक़सद था इस वारदात को अंजाम देने वाले बचे आतंकियो को ढूंढ- ढूंढ कर मारना। मोसाद अगले 20 सालों तक म्यूनिख हत्याकांड का बदला लेती रही, अलग-अलग देशों में छिपकर रह रहे उन हत्यारों को मोसाद के सपने आते रहे और वो भागते रहे। लेकिन मुसाद ने इस हत्याकांड के गुनाहगारों को दुनिया के चप्पे-चप्पे से ढूंढ़कर मारा।

माना जाता है कि म्यूनिख नरसंहार में शामिल आतंकियों जमाल अल-गाशे उर्फ़ समीर को छोड़कर मोसाद ने सफादी और अदनान अल गाशे के अलावा म्यूनिख नरसंहार से जुड़े लोगों को दर्दनाक मौत दे दी, जमाल अल-गाशी को मोसाद के एजेंट ढूंढ नहीं पाए। यानी बदला अभी बाकी है।

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