...तो इस वजह से वसीम रिजवी को इस्लाम छोड़ने के लिए किया गया मजबूर! हिंदू बनकर अब रख लिया अपना ये नया नाम

इस्लाम धर्म छोड़ वसीम रिजवी (Syed Waseem Rizvi) बने जितेंद्र नारायण त्यागी, जानें पूरी कहानी, Read more latest crime news, photos and videos on Crime Tak.

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06 Dec 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:10 PM)

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लखनऊ से कुबूल अहमद की रिपोर्ट

UP News : उत्तर प्रदेश शिया वक्‍फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी (Waseem Rizvi) ने इस्लाम धर्म छोड़ दिया है. 6 दिसंबर को उन्होंने इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया. अब वसीम रिजवी का नया नाम जितेंद्र नारायण त्यागी हो गया है. हिंदू धर्म अपनाने के बाद उन्होंने कहा कि जब मुझे इस्लाम से निकाल दिया गया तो फिर मेरी मर्जी है कि मैं कौन सा धर्म स्वीकार करूं.

बताया जाता है कि वसीम रिजवी ने ये भी कहा कि सनातन धर्म दुनिया का सबसे पहला धर्म है, जितनी उसमें अच्छाइयां पाई जाती हैं, और किसी धर्म में नहीं हैं. वसीम रिजवी के इस कदम पर कई तरह के रिएक्शन आ रहे हैं. ऐसे में हम बताते हैं कि कौन हैं वसीम रिजवी जिन्होंने क्यों इस्लाम छोड़ सनातन धर्म अपनाया?

2017 से चर्चा में वसीम रिजवी

Waseem Rizvi Hindu News : बता दें कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से वसीम रिजवी लगातार चर्चा के केंद्र में बने हुए हैं. उन्होंने देश की 9 मस्जिदों को हिंदुओं को सौंप दिए जाने की बात उठाई थी.

कुतुब मीनार परिसर में स्थित मस्जिद को हिंदुस्तान की धरती पर कलंक बताया था. मदरसों की तलीम को आतंकवाद से जोड़ा था. कुरान की 26 आयतों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, जिसके बाद शिया और सुन्नी समुदाय के उलेमाओं ने फतवा देकर उन्हें इस्लाम से खारिज कर दिया.

मुस्लिम आवाम ही नहीं बल्कि वसीम रिजवी के परिवार के लोग भी उनके खिलाफ हो गए थे, उनकी मां और भाई ने भी अपना नाता तोड़ लिया था. वहीं, अब वसीम रिजवी को सोमवार को गाजियाबाद के देवी मंदिर में यति नरसिंहानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म में शामिल कराया. वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण त्यागी अपने माथे पर त्रिपुंड लगाए गले में भगवा बाना पहने और अपने हाथ जोड़कर भगवान की पूजा करते नजर आए.

वसीम रिजवी से जितेंद्र त्यागी बने

Waseem Rizvi Biography : हिंदू धर्म अपनाने के बाद जितेंद्र नारायण त्यागी (वसीम रिजवी) ने कहा कि मुझे इस्लाम से निकाल दिया गया तो फिर मेरी मर्जी है कि मैं कौन सा धर्म स्वीकार करूं. सनातन धर्म दुनिया का पहला धर्म है, जितनी उसमें अच्छाइयां पाई जाती हैं, और किसी धर्म में नहीं है. इस्लाम को हम धर्म ही नहीं समझते. हर जुमे की नमाज के बाद हमारा सिर काटने के लिए फतवे दिए जाते हैं तो ऐसी परिस्थिति में हमको कोई मुसलमान कहे, इससे हमको खुद शर्म आती है.'

रिजवी का फैमिली बैकग्राउंड

बता दें कि हिंदू धर्म अपनाने वाले वसीम रिजवी का जन्म शिया मुस्लिम परिवार में हुआ. उनके पिता रेलवे के कर्मचारी थे, लेकिन जब रिजवी क्लास 6 की पढ़ाई कर रहे थे तभी उनके वालिद (पिता) का निधन हो गया था.

इसके बाद वसीम रिजवी और उनके भाई-बहनों की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई. वसीम रिजवी अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे और वे 12वीं की पढ़ाई के बाद सऊदी अरब में एक होटल में नौकरी करने चले गए और फिर बाद में जापान और अमेरिका में काम किया.

पारिवारिक परिस्थितियों के कारण वसीम रिजवी लखनऊ लौटे और अपना खुद का काम शुरू कर दिया, जिसके चलते उनके तमाम लोगों के साथ अच्छे संबंध बने तो उन्होंने नगर निगम का चुनाव लड़ने का फैसला किया. यहीं से उनके राजनीतिक करियर की शुरूआत हुई.

इसके बाद रिजवी शिया मौलाना कल्बे जव्वाद के करीब आए और शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य बने. रिजवी ने दो शादियां कीं और दोनों ही लखनऊ में हुई हैं. रिवजी के पहली पत्नी से तीन बच्चे हैं, जिनमें दो बेटियां और एक बेटा है. तीनों ही बच्चों की शादियां हो चुकी है.

कल्बे जव्वाद से रहा गहरा नाता

Waseem Rizvi News : साल 2003 में जब यूपी में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो वक्फ मंत्री आजम खान की सिफारिश पर सपा नेता मुख्तार अनीस को शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया. लेकिन अनीस के कार्यकाल में लखनऊ के हजरतगंज में एक वक्फ संपत्ति को बेचे जाने का मौलाना कल्बे जव्वाद ने कड़ा विरोध किया था.

मौलाना के तल्ख रुख पर मुख्तार अनीस को बोर्ड के चेयरमैन पद से हटना पड़ा था. इसके बाद मुलायम सिंह यादव से 2004 में मौलाना कल्बे जव्वाद की सिफारिश पर वसीम रिजवी को शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बना दिया.

साल 2007 में विधानसभा चुनाव के बाद मायावती की सरकार बनने के बाद ही वसीम रिजवी ने सपा छोड़ बसपा का दामन थाम लिया. 2009 में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद जब नए शिया बोर्ड का गठन हुआ तो मौलाना कल्बे जव्वाद की सहमति से उनके बहनोई जमालुद्दीन अकबर को चेयरमैन बनाया गया और इस बोर्ड में वसीम रिजवी सदस्य चुने गए. यहीं से वसीम रिजवी और मौलाना कल्बे जव्वाद के बीच सियासी वर्चस्व की जंग छिड़ गई.

रिजवी और जव्वाद में वर्चस्व की जंग

साल 2010 में शिया वक्फ बोर्ड पर भ्रष्टाचार का आरोप लगे तो तत्कालीन चेयरमैन जमालुद्दीन अकबर ने इस्तीफा दे दिया और इसके बाद वसीम रिजवी एक बार फिर शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष पद पर काबिज हो गए.

तीन साल के बाद 2012 में सत्ता परिवर्तन हुआ और सपा सरकार बनने के दो महीने बाद 28 मई को वक्फ बोर्ड को भंग कर दिया गया. वसीम रिजवी ने आजम खान से करीबी नाते के चलते साल 2014 में वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बन गए, जिसे लेकर मौलाना कल्बे जव्वाद ने सपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

कल्बे जव्वाद ने अपने समर्थकों के साथ सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया, लेकिन आजम खान के सियासी प्रभाव के चलते वसीम रिजवी वक्फ बोर्ड अध्यक्ष बने रहे. साल 2017 में सत्ता परिवर्तन होने के बाद वसीम रिजवी ने अपने राजनीतिक तेवर भी पूरी तरह से बदल दिए. वसीम रिजवी ने अपना शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन के तौर पर अपना कार्यकाल 18 मई 2020 को पूरा किया, लेकिन दोबारा से वापसी नहीं हो सकी. हालांकि, शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य अभी भी हैं.

रिजवी पर भ्रष्टाचार के लगे आरोप

वसीम रिजवी पर कई वक्फ संपत्तियों में भ्रष्टाचार करने के आरोप लगे, जिसे लेकर तमाम एफआईआर दर्ज कराई गई. कल्बे जव्वाद के प्रभाव में योगी सरकार ने वक्फ संपत्तियों पर हुए अवैध कब्जे की जांच सीबीसीआईडी के हवाले कर दी. अब यह मामला सीबीआई के हवाले हैं.

सूबे के पांच जिलों में धांधली मामले में वसीम रिजवी समेत कुल 11 लोगों पर मुकदमा दर्ज किए हैं. सीबीआई ने सूबे के शिया वक्फ संपत्तियों को गैर कानूनी तरीके से बेचने, खरीदने और हस्तांतरित करने के आरोप में यह मामला दर्ज हैं. ऐसे वो अब इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया है और वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण त्यागी बन गए हैं

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