बिस्तर पर 11 साल से पड़ा है 'कंकाल' बेटा, जवान बेटे के लिए मौत की दुआ मांगता एक परिवार, संसार का सबसे भारी बोझ उठाने को तैयार बैठा एक अभागा बूढ़ा बाप

Active Euthanasia Reject HC: दिल्ली के 62 साल के अशोक राणा के दर्द की दास्तां ऐसी है कि सुनने वाला कोई भी कितना भी पत्थर दिल हो, जार जार रोने लग सकता है। एक बुजुर्ग पिता दिन रात अपने 30 साल के जवान बेटे के लिए मौत की दुआ मांग रहा है। परिवार के इस दर्दनाक फैसले के पीछे उनका 11 सालों से हर रोज तिल तिलकर मरने का संघर्ष छुपा है।

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11 Jul 2024 (अपडेटेड: Jul 11 2024 4:43 PM)

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न्यूज़ हाइलाइट्स

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जवान बेटे के लिए मौत की दुआ मांगता एक परिवार

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11 साल से बिस्तर पर कंकाल बनकर पड़ा है बेटा

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हाईकोर्ट ने इच्छा मृत्यू की याचिका खारिज की

Tragic Story of A Parents of Delhi: 'आंखों की दहलीज पर आकर सपना बोला आंसू से, घर तो आखिर घर होता है, तुम रह लो या मैं रह लूं'। ये पुराना शेर असल में 62 साल के अशोक राणा की मौजूदा जिंदगी बन गई है। दुनिया का कौन सा ऐसा बाप होगा जो अपने ही जिगर के टुकड़े की मौत की दुआ करेगा। मगर 62 साल के अशोक राणा दिन रात यही दुआ कर रहे हैं। एक बार को सुनकर यही लगेगा कि ये कैसा अभागा बाप है जो बददुआ नहीं बल्कि बेटे की मौत की दुआ कर रहा। लेकिन ये उनकी बेरहमी नहीं, अपनी औलाद के लिए उनकी बेपनाह मोहब्बत है जिसकी वजह से वो ये दुआ मांग रहे हैं। सोचिए, वे माता-पिता कितने अभागे होंगे जिन्हें अपने ही बेटे की मौत की कामना करनी पड़ रही है।

आंसू बनकर बहने लगते हैं सपने

अशोक राणा का दर्द उनकी तड़प की कोई हद नहीं है। अपने बेटे के लिए मौत आने की कामना करते करते अशोक राणा के आंखों के सारे सपने आंसू बनकर बहने लगते हैं। ये वाकया वाकई इतना दर्दनाक है कि इसे पढ़ते पढ़ते न जाने कितने लोगों की आंखें छलक आती हैं। सोचिये उन मां बाप पर क्या गुजर रही है जिन्होंने अपनी आंखों के तमाम सपनों को बेमौत मारकर अब आंसुओं का बसेरा कर लिया है। वो शायद समझ चुके हैं उम्र के इस पड़ाव पर वो जीवन का सबसे भारी बोझ उठाने को अभिशप्त हैं। शायद उनकी बची हुई सांसें उसी दिन का इंतजार भी कर रही हैं। 

जवान बेटा जो अब कंकाल बनकर रह गया

वो इस सच को जी रहे हैं, साथ में उनके जानने वाले भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि उनके घर का जवान बेटा अब बस कंकाल बनकर रह गया है। 30 साल का उनका बेटा हरीश बिस्तर पर जिंदा लाश की तरह पड़ा हुआ है। जब अपने बेटे का दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ तो अशोक राणा ने दिल्ली हाईकोर्ट से गुहार लगाई थी कि उन्हें अपने 30 साल के जवान बेटे के लिए इच्छा मृत्यु देने की इजाजत दे दी जाए। मगर अफसोस उनकी इस मांग ने भी इंसाफ की चौखट पर जाकर दम तोड़ दिया। यानी अशोक राणा को अभी और सजा भुगतनी पड़ेगी। 

11 साल से तिल तिलकर मरते माता पिता

दरअसल दिल्ली के ही रहने वाले 62 साल के अशोक राणा अपने 30 साल के जवान बेटे के लिए इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे हैं। परिवार के इस दर्दनाक फैसले के पीछे 11 सालों से रोज रोज तिल तिलकर मरने जैसा संघर्ष है। रोज़ रोज अपने सामने बिस्तर पर बेजान पड़े बेटे को देखना किसी भी माता बाप के लिए किसी श्राप के जैसा है। वो बीते 11 सालों से इस जंग को लड़ रहे हैं लेकिन अब अशोक राणा और उनकी पत्नी की हिम्मत जवाब दे गई है। अब उनसे अपने बेटे का दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा है। 

सपनों से भरी आंखों में भर गए आंसू

ये वाकया साल 2013 का है जब एक हादसे से पहले अशोक राणा और उनके परिवार की ज़िंदगी ठीक-ठाक चल रही थी। उनका बेटा हरीश मोहाली में चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी से बीटेक की पढ़ाई कर रहा था। हरीश ने और हरीश को लेकर अशोक राणा ने आगे की जिंदगी के लिए हजारों सपने देखे थे। उनके परिवार के कई ख्वाब भी उनकी आंखों में पल रहे थे। बताया जा रहा है कि हरीश ने सोचा था कि बीटेक की पढ़ाई पूरी कर वो अपने माता-पिता का सहारा बनेंगा। लेकिन साल 2013 में एक दिन उनके सारे सपने एक ही झटके में चकनाचूर हो गए, और उन सपनों की जगह आंसू भर गए।  एक हादसे ने हरीश और उनके पूरे परिवार की जिंदगी हमेशा-हमेशा के लिए पूरी तरह से बदल दिया। हरीश अपने पीजी में चौथे मंजिल से नीचे गिर गए, इस हादसे में उनके सिर में गंभीर चोट आई जिसकी वजह से वो बीते 11 साल से बिस्तर पर बेजान पड़े हैं। हरीश को ट्यूब के जरिए लिक्विड फूड दिया जा रहा है और बीते 11 सालों में हरीश 100 फीसदी अपंग हो चुके हैं। 

कमाई से ज्यादा इलाज पर खर्च 

हरीश का नाम लेते ही अशोक की जुबान खामोश हो जाती है और आंखें बोलने लगती है। और उनके बहते आंसू दर्दभरी कहानी सुनाने लगते हैं। उनके शब्दों में 11 साल का दर्द सुनाई पड़ता है। अपने 11 साल के दर्द को समेटते हुए अशोक राणा ने बताया कि जब हरीश को चोट लगी तब उन्होंने PGI चंडीगढ़, दिल्ली में AIIMS, राम मनोहर लोहिया अस्पताल, लोक कल्याण और फोर्टिस में भी इलाज कराया मगर हरीश की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।

बेटे के इलाज की हर रुकावट को दूर किया

शुरुआत में करीब एक साल हरीश की देखभाल और इलाज के लिए घर पर 27 हज़ार रुपये महीने पर नर्स भी रखी वो भी तब, जब उनकी खुद की तनख्वाह 28 हज़ार रुपये महीना थी। नर्स के खर्च के आलावा फिजियोथैरेपी के लिए भी 14 हज़ार रुपये देने पड़ते थे, जो कि लंबे समय तक अशोक राणा और उनके परिवार के लिए बेहद मुश्किल था। आखिरकार तंगी की वजह से उन्होंने घर पर खुद ही हरीश की देखभाल करने का फैसला लिया।
हरीश के इलाज के लिए पिता अशोक राणा ने वो सब कुछ किया जो एक पिता कर सकता है। उन्होंने दक्षिणी-पश्चिमी दिल्ली में बना अपना तीन मंजिला मकान तक औने पौने दामों में बेच दिया। इस मकान में उनका परिवार साल 1988 से रह रहा था। इस घर से जुड़ी अपनी तमाम यादों को उन्होंने जिंदा दफ्न कर दिया और अपने बेटे के इलाज के लिए ये कुर्बानी दे दी। अशोक राणा बताते हैं कि उनके इस घर तक एंबुलेंस की पहुंच नहीं थी और हरीश की हालत ऐसी थी कि कभी भी किसी भी वक्त एंबुलेंस की जरूरत पड़ सकती थी लिहाजा उन्होंने घर बेचने का फैसला किया जिससे बेटे के इलाज के लिए रास्ता साफ रहे। 

इच्छा मृत्यु की याचिका ठुकरा दी गई

अशोक राणा अब 62 साल के हो चुके हैं। उनकी पत्नी निर्मला देवी भी 55 साल की हैं। ऐसे में बढ़ती उम्र के कारण हरीश की देखभाल करना उनके लिए बेहद मुश्किल हो गया है। अशोक राणा अब रिटायर हो चुके हैं, उनकी पेंशन महज़ 3 हज़ार रुपये महीना है। उनका छोटा बेटा आशीष अब एक निजी कंपनी में नौकरी कर रहा है जिससे घर का खर्च जैसे तैसे चल रहा है। ऐसे में हरीश के इलाज का खर्च उठाना भी उनके लिए अब बेहद मुश्किल है।
बीते 11 साल से चल रहे इलाज में लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी हरीश की हालत में तनिक भी कोई सुधार नहीं है। लिहाजा इस परिवार ने अब अपना मन मारकर हरीश को गरिमामय मौत देने का इरादा किया था। मगर लगता है अशोक राणा कि किस्मत में अभी दुखों का अंत नहीं हुआ है तभी तो हाई कोर्ट में मांगी गई उनकी इच्छा मृत्यु की याचिका को ठुकरा दिया गया। 

Active Euthanasia कहकर ठुकरा दी गुहार

दिल्ली हाई कोर्ट ने अशोक राणा की याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले को चिकित्सा बोर्ड को सौंपने से इनकार कर दिया है। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद का कहना है कि हरीश किसी भी जीवन रक्षक मशीन पर नहीं है वो बिना किसी अतिरिक्त बाहरी सहायता के जीवित है। उन्होंने कहा कि “अदालत माता-पिता के प्रति सहानुभूति रखती है, लेकिन याचिकाकर्ता असाध्य रूप से बीमार नहीं है, इसलिए यह अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है.” जस्टिस प्रसाद ने कहा कि मरीज की ये याचिका पैसिव यूथेनेशिया के लिए ना होकर एक्टिव यूथेनेशिया यानी सक्रिय इच्छा मृत्यु की मांग करती दिख रही है जो कि भारत में कानूनी तौर पर स्वीकार्य नहीं है।

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