Places Of Worship Act 1991: ज्ञानवापी में जिस कानून को लेकर मुस्लिम पक्ष ने दी तगड़ी दलील, उसे जान लीजिए

What is Place of Worship Act, 1991?: क्या है Place of Worship Act, 1991? आइए जानते हैं इस Crimetak Explianer के माध्यम से

CrimeTak

23 May 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:19 PM)

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Place of Worship Act, 1991: वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) की चर्चा देश का सबसे बड़ा चर्चित मुद्दा बना हुआ है जिसको लेकर बात सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) तक जा पहुंची. सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को वाराणसी के जिला जज को ट्रांसफर कर दिया है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर अड़ा हुआ है. इस समय ACT 1991 चर्चा का विषय बना हुआ है. क्या है Place of Worship Act, 1991? आइए जानते हैं इस Crimetak Explianer के माध्यम से

क्या कहता है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991? | What is Place of Worship Act, 1991?
1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places Of Worship Act, 1991) कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. अगर कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है. यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी. यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था.


यह धारा कहती है कि 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा.

इस धारा के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है. इसके साथ ही यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के रूप में ना बदला जाए या फिर एक ही धर्म के अलग खंड में भी ना बदला जाए

इस कानून की धारा 4(1) कहती है कि 15 अगस्त 1947 को एक पूजा स्थल का चरित्र जैसा था उसे वैसा ही बरकरार रखा जाएगा.

धारा- 4 (2) के अनुसार यह उन मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने की बात करता है जो प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के लागू होने की तारीख पर पेंडिंग थे.


में प्रावधान है कि यह एक्ट रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं करेगा.

यह कानून (Pooja Sthal kanon, 1991) तब बनाया गया जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम सीमा पर भी पहुंचा था. इस आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य मंदिरों और मस्जिदों पर भी पड़ा. उस वक्त अयोध्या के अलावा भी कई विवाद सामने आने लगे. बस फिर क्या था इस पर विराम लगाने के लिए ही उस वक्त की नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी.

पेनल्टी
यह कानून सभी के लिए समान रूप से कार्य करता है. इस एक्ट का उल्लंघन करने वाले को तीन साल की सजा और फाइन का प्रावधान है.

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