क्रिकेट में बेइमानी का पुराना रिश्ता
IPL शुरू होते ही होने लगती है फ़िक्सिंग की चर्चा, स्पॉट फ़िक्सिंग से बहुत अलग होती है मैच फ़िक्सिंग
क्रिकेट में बेइमानी का पुराना इतिहास, ग्रेस के क्रिकेट से ग़ायब हो गया ग्रेस, जेंटलमेंट क्रिकेट में घुस गया जुर्म, क्रिकेट के मैदान में घुसा भ्रष्टाचार DIFFERENCE BETWEEN MATCH FIXING AND SPOT FIXING
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26 Mar 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:16 PM)
IPL MATCH FIXING : हुआ यूं कि एक बार क्रिकेट के जनक कहे जाने वाले W G GRACE क्रिकेट खेल रहे थे। सारे क़ायदे और क़ानून के साथ। तभी अचानक अम्पायर ने उन्हें एक गेंद पर L B W यानी पगबाधा करार दे दिया। ग़ुस्से में तमतमाकर W G GRACE ने पहले तो आउट होने से ही इनकार कर दिया और फिर अंपायर को बल्ला दिखाते हुए कहा कि आज से तुम अम्पायर नहीं होगे।
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क्रिकेट के मैदान पर इस तरह की बदतमीज़ी को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता क्योंकि कायदा तो यही तय हुआ था कि अंपायर जो कहेगा वही माना जाएगा।
हालांकि W G GRACE की वो बेइमानी एक हद तक बदतमीज़ी तो कही जा सकती है, क्योंकि वो खेलना चाहते थे मगर क़ायदे के मुताबिक उन्हें अम्पायर का फैसला मानकर बाहर चले जाना चाहिए था। लेकिन इस बेइमानी को भ्रष्टाचार कतई नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इसमें खालिस खेल के लिए की गई बदतमीज़ी है, न की इससे कमाई करने के लिए।
बेइमानी से फिक्सिंग तक
IPL MATCH FIXING : मगर W G GRACE के वक़्त से अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है। बल्कि साफ तौर पर देखा और सुना भी जा सकता है कि अब ज़माना बदल गया है। हालात बदल गए हैं, टेक्नोलॉजी बदल गई है, खिलाड़ी और उनकी सोच बदल चुकी है। अब तो WG GRACE के बनाए इस जेंटलमैन गेम को पूरी तरह से बदले हुए भी एक ज़माना हो चुका है।
अब तो क्रिकेट में ये बेइमानी का ऐसा तड़का लग चुका है, कि पूछो मत। बस यूं समझ लीजिए कि मैदान में खेले जाने वाले एक क्रिकेट मैच में करोड़ों और अरबों डॉलर की रकम दांव पर लग जाती है। और इस रकम की ख़ातिर किसी भी खिलाड़ी को अपना दीन ईमान दांव पर लगाने में न तो देर लगती है और न ही शर्म आती है।
आज हालत ये है कि जब भी क्रिकेट का कोई भी मैच होता है, तो कई शब्द हवा में गोते लगाने लगते हैं। सफ़ेद कपड़ों वाला ये खेल जबसे रंगीन हुआ है, हर रोज इसे और भी ज़्यादा चमकीला और भड़कीला बनाने की हर कोशिश आज़माई जा रही है। इन्हीं कोशिशों के बीच सट्टा भी इस क्रिकेट के मैदान में घुस गया और देखते ही देखते लोगों की ज़ुबां से कुछ अल्फ़ाज फिसलने लगे। मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग।
मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग में फ़र्क़
IPL MATCH FIXING : क्रिकेट जैसे कई खेलों में अब इस शब्दावली का इस्तेमाल होता है। मगर अक्सर यही देखा जाता है कि इसका इस्तेमाल करने वाले ज़्यादातर लोगों को इसमें फर्क ही नहीं मालूम है। वो तो बस अंधी चलाए पड़े हैं। मतलब पता नहीं बस बात झोंक देते हैं।
ये मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग को लेकर अक्सर कई खिलाड़ियों के नामों का भी ज़िक्र किया जाता है, मगर यहां हम उन खिलाड़ियों का ज़िक्र जानबूझकर नहीं कर रहे। लेकिन ये दो शब्द एक दूसरे से कितना अलग हैं, इनके बारे में ज़रूर बात कर रहे हैं।
सबसे पहले बात करते हैं मैच फिक्सिंग की । जैसा की नाम से ही समझ में आ सकता है कि मैच फिक्सिंग का मतलब पूरे मैच से है न कि मैच के किसी एक हिस्से से। यानी ये फिक्सिंग पूरे मैच के नतीजे को लेकर हो सकती है।
मैच फिक्सिंग का असली मतलब ये है
IPL MATCH FIXING : कहने का मतलब ये है कि इस मैच फिक्सिंग में कोई बुकी किसी मैच के नतीजे को मैच शुरू होने से पहले ही उसका नतीजा तय कर देता है और उस पर दांव लगाता है। और जब नतीजा उसके तय किए अनुसार दांव पर खरा उतरता है तो उस नतीजे के हिसाब से वो जीत जाता है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कोई बुकी किसी टीम A को किसी खास मैच में टीम B के ख़िलाफ़ जीता हुआ पहले से तय कर देता है।
और जब मैच ख़त्म होता है तो टीम A ही जीत हासिल करती है। यानी बुकी ने ऐसा इंतज़ाम कर लिया था कि मैच का नतीज़ा हर हाल में उसके ही हक़ में आए और हर हाल में टीम A ही जीत हासिल करे, इसके लिए वो उस मैच से जुड़े तमाम ज़रूरी किरदारों को प्रभावित करके, लालच देकर या जैसे भी अपने कहे अनुसार काम करने के लिए तैयार कर लेता है, इसे ही मैच फिक्सिंग कहा जा सकता है।
सट्टेबाज़ या बुकीज़ तय करते हैं मैच का नतीजा
IPL MATCH FIXING : आमतौर पर यही देखा गया है कि जिस मैच को फिक्स किया जाता है कि तो सट्टेबाज़ या बुकी हारने वाली टीम को ही मना लेते हैं। मसलन वो लोग कुछ ऐसा उपाय करते हैं जिससे उस टीम के कुछ अच्छे और मज़बूत खिलाड़ी या फिर पूरी टीम अपनी असली क्षमता के मुताबिक प्रदर्शन नहीं करती और नतीजा वही निकलता है जो बुकी ने पहले से तय कर लिया होता है। यानी वो टीम मज़बूत होते हुए भी हार जाती है।
इसके एवज हारी हुई टीम को बुकी या सट्टेबाज़ी की तरफ से तय रकम दे दी जाती है। हालांकि खेल देखने वालों को यही लगता है कि फलां टीम अपनी पूरी ताक़त से नहीं खेली इसलिए हार गई। या फलां टीम उम्मीद से ज़्यादा बेहतर खेली और वो जीत गई। लेकिन असल में खेल तो कहीं और ही हो रहा था।
स्पॉट फ़िक्सिंग अलग है मैच फिक्सिंग से
IPL MATCH FIXING : अब बात स्पॉट फिक्सिंग की। इस स्पॉट फिक्सिंग में मैच के किसी ख़ास हिस्से को ही फिक्स किया जाता है। मसनल, वाइड बॉल, नो बॉल, चौका पड़ना, छक्का पड़ना, कैच छोड़ना, रन आउट होना वगैराह वगैराह।
यानी एक सट्टेबाज़ पूरे मैच के नतीजे की बजाए पूरे मैच के दौरान अलग अलग हिस्से पर अनुमान पर दांव लगवाता है, और मैदान पर वैसा ही होता है जिसको लेकर दांव लगा होता है तो ये माना जा सकता है कि सट्टेबाज़ या बुकी ने किसी खास खिलाड़ी को अपने प्रभाव में लाकर ऐसा करवा सकता है। ये मैच फिक्सिंग के मुकाबले ज़्यादा आसान और तार्किक भी लग सकता है। क्योंकि किसी मैच में किसी खास खिलाड़ी के खेल पर दांव लगाया भी जा सकता है।
खिलाड़ी बन जाता है बुकीज़ के हाथ की कठपुतली
IPL MATCH FIXING : स्पॉट फ़िक्सिंग में कोई भी खिलाड़ी बुकी के कहे अनुसार मैच के किसी ख़ास हिस्से में खास तरह का काम करता है। मसलन कोई गेंदबाज़ अपने एक ओवर में जानबूझकर नो बॉल या वाइड बॉल फेंकता है, या कोई बल्लेबाज किसी खास ओवर में कोई भी रन नहीं बनाता। या फिर कप्तान मैदान पर कुछ ऐसे फैसले लेता हुआ दिखाई देता है जो शायद पहले से ही फिक्स किया जा चुके हैं।
IPL और स्पॉट फिक्सिंग का रिश्ता पहली बार 2012 में उजागर हुआ था जब एक स्टिंग ऑपरेशन के दौरान पांच खिलाड़ियों ने स्पॉट फिक्सिंग की बात कबूली थी और बताया था कैसे उन्होंने पैसों के बदले मैदान पर पहले से तय की गई हरकत को करके पैसे लिए थे।
पूरी दुनिया को भारत के जाने माने क्रिकेटर एस श्रीसंत का वो IPL के मैच में ट्राउज़र में तौलिया लटकाने वाला एपिसोड तो सभी को याद होगा।
रूपया अगर खुदा नहीं तो खुदा से कम भी नहीं
IPL MATCH FIXING : अब सवाल यही उठता है कि आखिर एक मैच को कैसे फिक्स किया जा सकता है जबकि मैदान में किसी भी मैच की जीत हार के बीच 22 खिलाड़ियों के अलावा दो अम्पायर, बल्कि आज कल तो तीन अंपायर, इसके अलावा ग्राउंड स्टाफ़ के साथ साथ मौसम भी काफी हद तक ज़िम्मेदार हो सकता है।
लिहाजा किसी एक मैच के नतीजे को पहले से तय कर पाना किसी भी सूरत में आसान नहीं होता, बल्कि कुछ लोग तो इस मैच फिक्सिंग जैसी चीज़ के वजूद को ही सिरे से खारिज करने को तैयार रहते हैं। उनका तर्क यही होता है कि किसी भी मैच में 20 या 50 ओवर या फिर पांच दिनों तक चलने वाला टेस्ट मैच को कैसे कंट्रोल किया जा सकता है।
इसके लिए ज़रूरी है कि पूरे मैच का मन मुताबिक नतीजा पाने वाला कोई खुदा हो जाए। लेकिन वो शायद ये भूल जाते हैं कि रूपया अगर खुदा नहीं तो खुदा से कम भी नहीं है। और इस मनमाफ़िक नतीजे के लिए इतनी रकम की दी जाती है जिसका शायद कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता।
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