बैन हुई Jamaat-e-Islami, बांग्लादेश में कट्टरपंथी जमात पर सरकार की नजरें टेढ़ी

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न्यूज़ हाइलाइट्स

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बांग्लादेश ने जमात-ए-इस्लामी को किया बैन

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मुल्क में हिंसा और बदअमनी फैलाने का आरोप

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जुलाई महीने में हुई हिंसा में 150 की मौत

Dhaka: देश भर में फैली हिंसा और महीने भर तक चले छात्रों के आंदोलन के बाद अब बांग्लादेश ने कट्टरपंथी संगठन जमात--इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर देश भर में छात्रों के जबरदस्त विरोध प्रदर्शन के बाद बांग्लादेश सरकार ने मंगलवार को जमात--इस्लामी पर बैन लगाने का फैसला ले लिया है। जमात पर उस आंदोलन का फायदा उठाने का आरोप है जिसमें कम से कम 150 लोग मारे गए। बुधवार से जमात--इस्लामी (Jamaat-e-Islami) पर प्रतिबंध लगाने का फैसला सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) की अवामी लीग (Awami League) के नेतृत्व वाले 14-पार्टियों के गठबंधन की बैठक के एक दिन बाद हुआ है। इसमें प्रस्ताव पारित किया गया कि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) की सहयोगी जमात को राजनीति से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

 

पूर्व पीएम खालिदा जिया की सहयोगी रही है जमात

"अल्लाह की मर्जी.. कानून मंत्री अनिसुल हक ने मंगलवार को अपने दफ्तर में संवाददाताओं से कहा, "जमात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला कल घोषित किया जाएगा।" उन्होंने कहा कि यह एक कार्यकारी आदेश (Executive Order) होगा जिसके जरिये जमात--इस्लामी (Jamaat-e-Islami) पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। जमात--इस्लामी की स्थापना 1941 में ब्रिटिश शासन के तहत अविभाजित भारत (Undivided India) में हुई थी। आरक्षण विरोधी आंदोलन (Anti Reservation Movement) के दौरान विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों ने कहा कि उनका हिंसा से कोई संबंध नहीं है, जबकि इस बात के सबूत हैं कि जमात, सकी छात्र शाखा (Student Wing) इस्लामी छात्र शिबिर (Bangladesh Islami Chhatrashibir), पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया (Former Prime Minister Khalida Zia) की बांग्लादेश नेशनल पार्टी- बीएनपी (Bangladesh National Party, BNP) और सके छात्र मोर्चे ने इस हिंसा को अंजाम दिया। इस बीच, प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्तारूढ़ अवामी लीग (एएल) (Awami League) के महासचिव ओबैदुल कादर ने कहा कि सरकार जमात-शिबिर पर प्रतिबंध लगाने से पहले कानूनी पहलुओं की गहराई से जांच करेगी, ताकि किसी भी संभावित कानूनी खामी से बचा जा सके उनके मुताबिक इसका फायदा यह चरमपंथी समूह बांग्लादेश की राजनीति में शामिल होने के लिए उठा सकता है। कादर ने कह, 14 दलों के गठबंधन ने देश की खातिर राष्ट्र विरोधी ताकतों को खत्म करने के लिए जमात-शिबिर पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है।

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जमात ने छात्रों को ढाल की तरह किया इस्तेमाल

सड़क परिवहन मंत्री कादर ने कहा कि जमात और बीएनपी ने आंदोलन के दौरान छात्रों को "ढाल" के रूप में इस्तेमाल किया, जबकि "सरकार को उनक मंशा, भड़काऊ सोच और फंडिंग के जरियों की पूरी खबर है।" जुलाई के दौरान बांग्लादेश में रह रह कर हिंसा भड़कती रही। इस महीने की शुरुआत में ही विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन जल्द ही प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी सरकार की नीतियों के खिलाफ एक बड़े आंदोलन में बदल गए। सरकार ने नौकरी कोटा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए सेना को बुलाया, जिसके बाद हुए टकराव में कम से कम 150 लोग मारे गए और पुलिसकर्मियों सहित कई हजार लोग घायल हो गए कई प्रमुख सरकारी दफ्तरों और सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा। 

1971 में बांग्लादेश की आजादी की विरोधी थी जमात

इस बीच, सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग के नेतृत्व वाले 14-पार्टियों के गठबंधन से जुड़े नेताओं ने हसीना की अध्यक्षता में एक बैठक की और एक प्रस्ताव पारित किया कि जमात, जो बांग्लादेश की 1971 की आजादी  का विरोध करती थी, को राजनीति से बैन किया जाना चाहिए। सूत्रों के मुताबिक हसीना ने बैठक में कहा कि उन्हें खुफिया रिपोर् मिली थीं कि जमात-शिबिर गुट ने बांग्लादेश के अलग-अलग हिस्सों से अपने लोग बुला कर राजधानी ढाका में आगजनी और हिंसा फैलाई और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया।

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चुनाव आयोग 2018 में रेजिस्ट्रेशन कर चुका है रद्द

2018 में, हाई कोर्ट के फैसले के मद्देनजर चुनाव आयोग ने जमात का रेजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था। फैसले से जमात, जो 2001-2006 के कार्यकाल में बीएनपी के नेतृत्व वाली चार-पार्टियों के गठबंधन वाली सरकार में एक प्रमुख पार्टी थी, चुनाव लड़ने को लेकर अयोग्य करार दे दी गई। बांग्लादेश हाई कोर्ट ने 1 अगस्त, 2013 को एक ऐतिहासिक फैसले में चुनाव आयोग के साथ जमात के रेजिस्ट्रेशन को अवैध घोषित कर दिया था। इसके बाद जमात ने इस फैसले के खिलाफ अपील की और आखिर में 2018 में इसका रेजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया।बांग्लादेश ने 2009 में 1971 में पाकिस्तानी सैनिकों के प्रमुख सहयोगियों पर मानवता के खिलाफ अपराध के आरोप में मुकदमा चलाने की प्रक्रिया शुरू की और जमात के छह शीर्ष नेताओं और बीएनपी के एक नेता को दो विशेष युद्ध अपराध न्यायाधिकरणों (War Crime Tribunal) में मुकदमा चलाने के बाद फांसी पर लटका दिया गया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला बरकरार रखा।

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