मुख़्तार का दुश्मन नंबर एक बृजेश सिंह, दिलचस्प है डॉन बृजेश सिंह की गिरफ्तारी की कहानी, बृजेश सिंह के खिलाफ होनी थी मुख्तार की गवाही

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मुख़्तार का दुश्मन नंबर एक बृजेश सिंह, दिलचस्प है डॉन बृजेश सिंह की गिरफ्तारी की कहानी, बृजेश सिंह ...
जांच जारी
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UP Crime News Mukhtar: बीस साल बाद। जी हां। पूरे बीस साल बाद उसका चेहरा पहली बार हिंदुस्तान के सामने आया था। पूरे बीस साल तक वो हिंदुस्तान की पुलिस की आंखों में धूल झोंकता रहा। इन बीस सालों में वो खुलेआम शहर-शहर घूमता रहा। पर चूंकि उसका चेहरा सिर्फ उसी के पास था, लिहाजा पास से गुजरने पर भी पुलिस उसे कभी पहचान नहीं पाई। मगर अब वो छलावा आखिरकार पुलिस की गिरफ्त में आ ही गया। भुवनेश्वर के बड़ा बाजार की एक शाम। एक शख्स खरीदादारी करने के बाद अपनी हौंडा कार की तरफ बढ़ता है। लेकिन इससे पहले कि वो कार में सवार हो पाता, अचानक एक इंडिका कार ठीक उसके कार के पास आकर रुकती है। फिर इससे पहले कि वो संभल पाता इंडिका से चार लोग नीचे उतरते हैं और पिस्टल की नोक पर उस शख्स को कब्जे में लेकर उसी इंडिका से निकल भागते हैं। भूवनेश्वर के पूरे बड़ा बाजार में अचानक हड़कंप मच जाता है। भरे बाजार से एक शख्स को अगवा कर लिया गया है। 

बृजेश सिंह की नाटकीय अंदाज में गिरफ्तारी

बीच बाजार में अपहरण की खबर आग की तरह भुवनेश्वर पुलिस के कानों तक पहुंचती है। पुलिस फौरन हरकत में आती है और चश्मदीदों के बयान पर कुछ देर बाद ही उस इंडिका कार को ढूंढ निकालती है। कार भुवनेश्वर एयरपोर्ट पर मिलती है। कार में सवार सभी लोग और अगवा हुआ शख्स अब उड़ीसा पुलिस के शिकंजे में हैं। लेकिन इससे पहले कि उड़ीसा पुलिस अपनी कामयाबी पर खुश होती कार में सवार लोगों ने अपना-अपना आई-कार्ड बाहर निकाल लिया। अब झटका खाने की बारी उड़ीसा पुलिस की थी। क्योंकि कार मे सवार लोग अपहर्ता नहीं बल्कि दिल्ली पुलिस के स्पेशल सैल के जवान थे और जिस शख्स को उन्होंने बड़ा बाजार से उठाया था वो कोई और नहीं यूपी का सबसे बड़ा छलावा। यूपी का सबसे बड़ा सरगना। यूपी का सबसे बड़ा डॉन यानि यूपी का वीरप्पन बृजेश सिंह था। जी हां 2008 में बृजेश सिंह की बिल्कुल नाटकीय अंदाज में उड़ीसा से गिरफ्तारी हुई थी। 

पांच लाख का इनामी डॉन

जी हां। यूपी में पिछले बीस सालों से दहशत का सबसे बड़ा नाम। वो नाम जिसका सिर्फ नाम ही सामने था। चेहरा किसी ने नहीं देखा था। और वो चेहरा दिखा पूरे बीस साल बाद। यही है ब्रिजेश सिंह। पांच लाख का इनामी डॉन। देश भर में सौ से ज्यादा मुकदमों में वॉंटेड। 50 से ज्यादा कत्ल। दर्जन भर से ज्यादा पुलिसवालों के मर्ड्रर। हर महीने करोड़ों की वसूली करने वाला यूपी का सबसे बड़ा सरगना। 1992 तक डी कंपनी का पक्का वफादार। यही है वो वो खूंखार सरगना जिसने 2002 में यूपी की मुख्यमंत्री मायावती के कत्ल की सुपारी ली थी। बीस साल से गुम ब्रिजेश इस दौरान अलग-अलग ठिकानों पर छुपता रहा। देश के अलावा नेपाल, मलेशिया, बैंकाक तक वो गया। मगर पिछले तीन सालों से उसने भुवनश्वर को अपना ठिकाना बना रखा था। यहां वो बतौर बिजनेसमैन रह रहा था। और इन्हीं तीन सालों से दिल्ली पुलिस उसके पीछे पड़ी थी। 

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देश भर में सौ से ज्यादा मुकदमों में वॉंटेड था

दरअसल दिल्ली पुलिस को ब्रिजेश का मोबाइल नंबर मिल गया था और उसी नंबर के जरिए वो लगातार दिल्ली पुलिस की नजर में था और इसी मोबाइल की मदद से आखिरकार बीस साल बाद ये छलावा कानून के शिकंजे में फंस ही गया। अपने दुश्मनों को जिंदा छोड़ना उसे कभी पसंद नहीं रहा। फिर दुश्मन को मारने के लिए चाहे उसे भरी अदालत में क्यों ना घुसना पड़े। उसने जज के सामने कत्ल किया। अस्पताल के आईसीयू में घुस कर खून बहाया। और जब भी उसके दुश्मनों के बीच में पुलिस आई उसने उन्हें भी नहीं बख्शा। ब्रजेश दरअसल हिंदुस्तान का सबसे खूंखार कस्टडी किलर है। और ब्रजेश सिंह को ये नाम मिला है। उसकी उस आदत की बदौलत, जिसमें वो अपने दुश्मन पर तभी हमला करता है, जब दुश्मन पुलिस की हिरासत में होता है। ये बात बेशक चौंकाने वाली लगे, मगर हक़ीकत यही है कि ब्रजेश ने अपने 90 फीसदी दुश्मनों को तभी ठिकाने लगाय है, जब वे पुलिस की हिरासत में थे। और इसी वजह से दर्जन से ज्यादा पुलिसवाले भी उसके हाथों मारे गए।

अदालत में की हत्या

माया सिंह उर्फ नाटा का अंजाम आज भी यूपी के लोगों को याद है। दरअसल ब्रजेश और नाटे में दुश्मनी थी। एक रोज़ जब पुलिस नाटे को अदालत में पेश करने ले जा रही थी, तब ब्रजेश ने अपने साथियों के साथ उसे अदालत में ही घेर लिया। गोलियों की बौछार के बीच नाटे किसी तरह भाग कर अदालत के अंदर घुस गया। लेकिन यहां भी वो मौत से अपना पीछा नहीं छुड़ा सका। ब्रजेश अदालत में दाखिल हुआ और जज के सामने ही नाटे को गोलियों से छलनी कर भाग निकला।

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1992 में उसने गुजरात के महेसाणा में अपने एक दुश्मन रघुनाथ यादव को तब गोलियों से भून दिया, जब वो पुलिस हिरासत में था। इस हमले में एक एएसआई को गोली लगी और वो पैरालाइसिस का शिकार हो गया। 
 
1991 में ब्रजेश ने मुंबई के जेजे अस्पताल में घुस कर छोटा राजन के साथी पर हमला बोल दिया। तब वो पुलिस कस्टडी में वहां इलाज करवा रहा था। इस हमले में भी सैलेश के साथ-साथ दो पुलिसवाले भी मारे गए।

1993 में इसने उत्तर प्रदेश के एक विधायक पंडित पर अदालत में पेशी के दौरान हमला किया। इस हमले में विधायक तो बच गले लेकिन पांच और लोगों की मौत हो गई।

अपराधी वीरेंद्र टाटा पर भी ब्रिजेश ने तभी हमला किया जब वो इलाहाबद कोर्ट से जेल ले जाया जा रहा था। इस हमले में भी दो पुलिसवाले मारे गए।

ब्रजेश ने अपने एक दुश्मन साधु सिंह को तो पुलिस की वर्दी में ही निशाना बनाया था। इस हमले में कुल आठ लोग मारे गए थे।

इसके अलावा 1991 में ब्रिजेश ने आजमगढ़ में मुख्तार अंसारी के बाई अफजाल अंसारी की जीप पर हमला किया था। इस हमले में अफजाल तो बच गए मगर छह लोग मारे गए।

ट्रक में छिपे बैठे थे एके 47 से लैस शूटर

आजमगढ़ में ही मुख्तार अंसारी के साथ गोलीबारी में ब्रजेश ने सात लोगों को मार गिराया था। दरअसल ब्रजेश हमेशा एके-47 राइफल का इस्तेमाल करता था। और इसीलिए जब कभी वो हमला बोलता तो उसके दुश्मन के आसपास खड़े लोग भी उसका शिकार बन जाते। यूपी में छोटे-मोटे अपराधियों के हाथों में एक-47 पहुंचाने वाला यही ब्रजेश है। यूपी का सबसे खूंखार डॉन बगैर किसी खून-खराबे के इतनी आसानी से पुलिस के हत्थे कैसे चढ़ गया? जो हमेशा खतरनाक हथियारों से लैस होकर चलता हो वो बगैर हथियार के कैसे पकड़ा गया? क्या बृजेश को सचमुच पुलिस ने गिरफ्तार किया है? या फिर उसने सरेंडेर किया है? बृजेश सिंह, यानी वो छलावा जिसे हथकड़ी पहनाने का ख्वाब लिये यूपी के न जाने कितने पुलिसवाले रिटायर हो गये। लेकिन बीस साल लम्बी इस फरारी में बृजेश ने ऐसी एक भी गलती नहीं की जो पुलिस के हाथ उस तक पहुंच पाते।  

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17 लोगों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज

फिर यूपी का सबसे खतरनाक माफिया डॉन अब ऐसी क्या गलती कर बैठा जो पुलिस ने उसे किसी आम अपराधी की तरह धर दबोचा। बृजेश को पुलिस ने पकड़ा है या फिर उसने सरेंडर किया था? दिल्ली पुलिस की जिस टीम ने बृजेश को भुवनेश्र्वर से गिरफ्तार किया था उसे जरा भी मुश्किल पेश नहीं आई थी। गिरफ्तारी के वक्त न तो बृजेश का अपना कोई आदमी उसके साथ था और ना ही खुद उसने गिरफ्तारी से बचने के लिये पुलिस टीम का मुकाबला करने की कोशिश की। तो फिर क्या यूपी के अंडरवर्लड पर राज कर चुके माफिया डॉन को पक़ड़ना इतना आसान था। कहीं ऐसा तो नहीं कि बृजेश का यूं पुलिस की गोद में आकर बैठ जाना एक सोची समझी रणनीति के तहत हुआ? उत्तर प्रदेश और खासतौर पर पूर्वांचल की राजनीति समझने वाले यही कह रहे थे कि अपने आपराधिक इतिहास को पीछे छोड़ बृजेश अब सियासत में हाथ आजमाना चाहता था। 

23 साल पुराने कांड में होनी थी गवाही

राजनीतिक हलकों में तो चर्चा यहां तक गर्म रही कि बृजेश को एक खास रणनीति के तहत सरेंडर कराया गया है। और इसके पीछे यूपी के एक बड़े नेता जो कि राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं, उनका हाथ था। बृजेश सिंह और उसके परिवार का यूपी में इस बड़े नेता के साथ पुराना और करीबी रिश्ता रहा है। खुद बृजेश के भाई चुलबुल सिंह एमएलसी थे, जबकि भतीजा सुशील सिंह बीजेपी से विधायक है। इसी रिश्ते को सामने रख अब यही लोग बृजेश के राजनीति में आने और चुनाव लड़ने की बात कर रहे थे। अप्रैल 2022 में हुए MLC चुनाव में बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह बतौर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वाराणसी से जीत दर्ज की। मुख्तार की मौत के बाद परिजनों का दावा है कि 23 साल पुराने उसरी चट्टी हत्याकांड में मुख्तार की गवाही होनी थी। मुख्तार अंसारी की गवाही को रोकने के लिए जेल में उसकी हत्या करवा दी गई। 

मुख्तार अंसारी की मौत से किसे फायदा

दरअसल उसरी चट्टी कांड में मुख्तार अंसारी के काफिले पर माफिया बृजेश सिंह और उसके साथी त्रिभुवन सिंह द्वारा जानलेवा हमला कराने का आरोप है। इस केस में मुख्तार अंसारी खुद वादी और गवाह दोनों ही था। मुख्तार अंसारी की गवाही पर बृजेश सिंह को उम्र कैद और फांसी तक की सजा हो सकती थी। आपको बता दें कि गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद थाना क्षेत्र के उसरी चट्टी इलाके का ये मामला करीब 23 साल पुराना है। 15 जुलाई सन 2001 में यूपी पंचायत चुनाव के दौरान मोहम्मदाबाद से 7 किलोमीटर मुख्तार के काफिले पर अत्याधुनिक हथियारों से ताबड़तोड़ फायरिंग हुई थी। इस हमले में तीन लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि मुख्तार समेत आठ लोग गंभीर रूप से घायल थे। मुख्तार अंसारी ने इस मामले में माफिया बृजेश सिंह और उसके साथी त्रिभुवन सिंह को नामजद कराते हुए कुल 17 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। केस में बृजेश और त्रिभुवन सिंह के अलावा बाकी 15 अज्ञात लोग शामिल थे। मुख्तार अंसारी इस अहम केस में वादी और चश्मदीद गवाह दोनों ही था।

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