एक अमेरिकी किताब ने सुलझा दिया भारत में Blind Murder, पसीने की बूंद से खुली महीनों पुरानी रहस्य की गांठ

Blind Murder Solve: मध्य प्रदेश की दमोह पुलिस के लिए एक कत्ल की गुत्थी ने उसे अंधेरे में बुरी तरह धकेल दिया था। केस की गुत्थी को सुलझाने में लगे पुलिस अफसर को रास्ता ही नहीं समझ में आ रहा था कि तभी उसके सामने एक अमेरिकी किताब आई और देखते ही देखते रहस्य की गांठें खुलती चली गई।

CrimeTak

30 Aug 2024 (अपडेटेड: Aug 30 2024 12:37 PM)

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17 महीनों तक Blind Murder की गुत्थी में उलझी रही मध्य प्रदेश पुलिस

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अमेरिकी किताब ने रास्ता दिखाया, IVF से पैदा हुए बच्चों का ऐसे होता है DNA

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किताब के पन्ने की इबारत ने खोली गांठ, पकड़ में आ गया कत्ल का आरोपी

Damoh, MP Blind Murder: कहते हैं किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। जब आपको दुनिया में कोई रास्ता न दिख रहा हो, तब किताबों में लिखी हुई इबारतें आपको रास्ता दिखा सकती हैं, बशर्ते आप किताबों को थोड़ा ध्यान से पढ़ लें। ऐसा ही एक किताब जब एक पुलिस अफसर की दोस्त बनीं तो कत्ल की जो गुत्थी बीते 17 महीनों से खुलने का नाम नहीं ले रही थी, वो एक ही झटके में खुलती चली गई और पूरे केस शीशे की तरह साफ हो गया। 

कत्ल की थकाने वाली तफ्तीश

पुलिस कत्ल के अजीबो गरीब केस को सुलझाने के लिए क्या क्या जतन करती है, ये बात अक्सर हमारे सामने नहीं आ पाती। लोगों के सामने सबसे पहले कत्ल का केस आता है और उसको सुलझाने के बाद उसका नतीजा सामने आ जाता है। लेकिन कत्ल के एक सिरे से लेकर आखिरी सिरे तक पुलिस कैसे पहुँचती है, ये सफर न सिर्फ बेहद थका देने वाला होता है, पेंचीदा होता है मगर कभी कभी रोमांच से भी भरपूर हो जाता है। मध्य प्रदेश के दमोह पुलिस ने ऐसे ही एक ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी को सुलझाने का दावा किया है। इस मर्डर केस की बंद गांठ खोलने में ही पुलिस को 17 महीने का वक्त लग गया। लेकिन जब गुत्थी खुली तो हर कोई हैरत में पड़ गया। मगर सबसे ज्यादा दिलचस्प तो ये है कि पुलिस ने जिस तरीके से ब्लाइंड मर्डर केस पर गौर किया। और पुलिस को उस अंधेरे में रोशनी दिखाई 

ब्लाइंड मर्डर सुलझाने में लगे 17 महीने

दमोह पुलिस ने 10वीं के छात्र के ब्लाइंड मर्डर केस का पर्दाफाश करते हुए एक आरोपी को गिरफ्तार किया है। यह केस इतना पेचीदा था कि पुलिस को इसे सुलझाने में 17 महीने लग गए। किस्सा शुरू होता है पिछले साल मई के महीने से। जब पुलिस को पिछले साल 14 मई को एक खेत से एक नर कंकाल मिला था। पथरिया गांव के रहने वाले लक्ष्मण पटेल और उनकी पत्नी यशोदा ने कपड़े और सामान के आधार पर कंकाल की शिनाख्त अपने बेटे जयराज के रूप में की थी।

कंकाल का DNA टेस्ट गया खाली

पुख्ता सबूत जुटाने के लिए पुलिस ने दो बार उस कंकाल का DNA टेस्ट करवाया, लेकिन DNA मैच ही नहीं हुआ। अब घरवालों के साथ साथ पुलिस भी उलझन में पड़ गई कि आखिर चक्कर क्या है। और थोड़ी छानबीन हुई और गहराई से पूछताछ में ये बात खुली कि असल में जयराज का जन्म IVF यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक से हुआ था।यहां तक भी बात समझ में आ गई। लेकिन सवाल यहीं आकर अटका हुआ था कि आखिर DNA कैसे पता लगाएं। और फिर उसे मैच करवाएं। 

पुलिस के सामने उलझी गुत्थी

इसी उधेड़बुन में लगे पुलिस के जांच अधिकारी इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश में लगे रहे लेकिन कामयाबी उनसे कोसों दूर थी। तभी उस जांच अधिकारी के हाथ एक किताब लगी। अमेरिकी पुलिस की वो किताब पढ़ते ही उस जांच अधिकारी के दिमाग की बत्ती जल गई। उस किताब में वही चीज लिखी थी जिसकी तलाश में दमोह के पुलिस अफसर भटक रहे थे।

अमेरिकी किताब ने दिखाया रास्ता

असल में उस किताब में IVF की तकनीक से पैदा हुए बच्चों का DNA टेस्ट करने का सही और साइंटिफिक तरीका बताया गया था। इस टेस्ट के लिए खून की नहीं बल्कि मुंह के लार या फिर पसीने के नमूने की जरूरत पड़ती है। बस पुलिस किताब में लिखी उस इबारत को लेकर आगे बढ़ी और उसे ऐसा लगा कि उसे खजाने की कुंजी मिल गई। वो एक के बाद एक ताले खोलती चली गई। 

एक अमेरिकी किताब से सुलझी 10 वीं के छात्र के कत्ल की गुत्थी

कपड़े से हुई थी बच्चे की पहचान

जयराज के पिता लक्ष्मण पटेल बताते हैं कि हमने अपने स्तर पर बेटे को ढूंढने की कोशिश की थी। उसे ढूंढकर लाने वाले को पांच लाख रुपए इनाम देने का ऐलान भी किया था। जिस दिन पुलिस को मेरे ही खेत से कंकाल मिला तो मैं और पत्नी दोनों साथ गए थे। कंकाल के पास से पैंट, टी-शर्ट और बेल्ट मिली थी यानी जिन कपड़ों में जयराज गायब हुआ था वही कपड़े उसके माता पिता को खेत से मिले थे।

मां बाप का नहीं मिला था DNA

उन कपड़ों की पहचान से ही पुलिस के सामने जयराज के तौर पर शिनाख्त की थी। माता-पिता ने तो कपड़े से कंकाल की शिनाख्त कर ली थी, लेकिन पुलिस को पुख्ता सबूत चाहिए थे। इसके लिए पुलिस के बास एक ही तरीका है कि शव के सेंपल से माता पिता के खून से DNA टेस्ट से मिलान करवा लिया जाए और पहचान को पुख्ता कर लिया जाए। लक्ष्मण और यशोदा के ब्लड और हड्डियों के सैंपल जांच के लिए सागर की फोरेंसिक लैब भेजे गए। पुलिस ने तब तक नर कंकाल को सील कर अपनी कस्टडी में रखा। कुछ दिनों बाद सागर FSL से रिपोर्ट आई कि कंकाल और लक्ष्मण पटेल और यशोदा का DNA मैच नहीं हुआ। सागर से रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस ने एक बार फिर परिवार के सैंपल लिए और इन्हें चंडीगढ़ FSL भिजवाया। तकनीक के मामले में चंडीगढ़ FSL की गिनती देश की सबसे अच्छी लैब के रूप में होती है। हालांकि, यहां भी DNA मैच नहीं हुआ।

IVF सेंटर का टका सा जवाब

अब पुलिस के सामने चुनौती थी कि जो कंकाल मिला वह जयराज का था या किसी और का। लक्ष्मण और यशोदा लगातार पुलिस से गुहार लगा रहे थे कि उन्हें उनके बच्चे का कंकाल सौंप दिया जाए ताकि वे उसका अंतिम संस्कार कर सकें। लक्ष्मण पटेल ने पुलिस को ये बताया था कि यशोदा से उनकी शादी 2004 में हुई थी। शादी के चार साल तक जब उन्हें कोई संतान नहीं हुई तो दोनों इंदौर के एक IVF सेंटर गए थे। साल 2009 में टेस्ट ट्यूब टेक्नीक से जयराज पैदा हुआ था। पुलिस फौरन इंदौर के इस IVF सेंटर का पता लगाया जहां से यशोदा ने टेस्टट्यूब बेबी के लिए स्पर्म हासिल किया था। पुलिस ने आईवीएफ सेंटर से स्पर्म डोनर की जानकारी मांगी, मगर सेंटर ने नियमों का हवाला देकर पुलिस को भी जानकारी देने से इनकार कर दिया गया।

 अमेरिकी केस स्टडी से दिखा रास्ता

उलझन में फंसी पुलिस के अधिकारी एएसपी संदीप मिश्रा लगातार FSL से जुड़ी किताबें पढ़ रहे थे। ताकि कोई रास्ता मिले। इसी बीच उन्हें अमेरिका में IVF तकनीक से पैदा हुए बच्चों की चोरी का एक केस पढ़ने को मिला। अमेरिका की पुलिस ने इन बच्चों की शिनाख्त के लिए DNA टेस्ट करवाया था। इसके लिए जिन पेरेंट्स ने बच्चों पर दावा किया था उनके घर से बच्चों की वस्तुएं मंगाई गई थीं। उन वस्तुओं पर लार या पसीने के सैंपल की बच्चे के DNA से जांच की गई। जिन बच्चों का DNA मैच हुआ उन्हें उनके पेरेंट्स को सौंपा गया था। जैसे ही संदीप मिश्रा ने ये केस स्टडी पढ़ी तो उनके दिमाग की बत्ती जल गई। 

13 महीने बाद बेटे का अंतिम संस्कार

इसी बीच लक्ष्मण पटेल ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई और बच्चे का कंकाल अंतिम संस्कार के लिए उन्हें सौंपने की मांग की। कोर्ट ने भी माता पिता की सुनी और पुलिस को कंकाल सौंपने के आदेश दे दिए, तब तक दमोह SP के तौर पर श्रुतकीर्ति सोमवंशी चार्ज ले चुके थे। तब उन्होंने उस वक्त के TI सुधीर बेगी से लक्ष्मण पटेल को उनके बेटे का कंकाल सौंपने को कह दिया। सुधीर बेगी कंकाल लेकर गांव पहुंचे और उसे लक्ष्मण पटेल के सुपुर्द किया। 13 महीने बाद 12 मई 2024 को लक्ष्मण ने अपने बेटे का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

बिना सबूत थम गई पुलिस की जांच

जिस दिन जयराज का कंकाल मिला था उसी दिन लक्ष्मण ने हत्या के लिए जिम्मेदार आरोपियों के नाम बताए थे, लेकिन पुलिस के पास उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं था। साथ ही कंकाल जयराज का ही है यह भी वैज्ञानिक तौर पर साबित नहीं हुआ था। तब लक्ष्मण ने मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री डॉक्टर मोहन यादव से मुलाकात की और उन्हें अपनी परेशानी बताई। इसी बीच ASP संदीप मिश्रा ने उस किताब के पन्ने की तस्वीर के साथ TI सुधीर नेगी को पत्र लिखा। अब पुलिस के पास दो ठोस वजह थी नए सिरे से जांच के लिए। पहली तो एएसपी संदीप मिश्रा की नई खोज जिसके आधार पर इस जांच को दोबारा शुरू करने की बात थी। और दूसरी वजह सीएम डॉक्टर मोहन यादव ने भी पुलिस को निर्देश दिए थे कि लक्ष्मण को इंसाफ दिलाया जाए। लिहाजा एक बार फिर DNA की जांच शुरू हुई। 

पसीने के सैंपल से जांच

पुलिस ने लक्ष्मण पटेल के घर से जयराज के बचपन के खिलौने, कपड़े, ग्लव्स, टोपी, सीटी, स्कूल का आई कार्ड इकट्ठा किए। इन सभी वस्तुओं को चंडीगढ़ की FSL भेजा गया। पुलिस को उम्मीद थी कि इन वस्तुओं में जयराज के शरीर के बाल, नाखून या पसीने के सैंपल मिल सकते हैं। पुलिस की ये तरकीब काम कर गई और साबित हो गया कि जयराज लक्ष्मण और यशोदा पटेल की ही औलाद था। लेकिन अब सवाल ये था कि आखिर कौन हो जिसने जयराज को मौत के घाट उतारा। 

पहले शक फिर हुआ यकीन

दरअसल, लक्ष्मण ने जयराज के अपहरण और हत्या के लिए अपने सौतेले भाई दशरथ पटेल के बेटे मानवेंद्र पर शक जाहिर किया था। गांव के लोगों ने भी जयराज को आखिरी बार मानवेंद्र के साथ ही देखा था। लक्ष्मण ने पुलिस को बताया था कि वह और दशरथ एक मां पार्वती की संतान थे, लेकिन उनके दो पिता थे। लक्ष्मण पटेल के पिता श्यामले पटेल और दशरथ पटेल के पिता धनीराम पटेल थे। यह भी बताया कि दशरथ और उसके बेटे मानवेंद्र की उनकी संपत्ति पर नजर है। लिहाजा पुलिस ने अब शक के आधार पर पुलिस ने लक्ष्मण के शक के आधार पर मानवेंद्र को हिरासत में लिया। उससे जब सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया और उसने जयराज की हत्या करना कबूल किया। 

आरोपी ने कबूल किया गुनाह

पूछताछ में मानवेंद्र ने बताया कि जब लक्ष्मण पटेल को कोई संतान नहीं हुई तो उसे उम्मीद थी कि पूरी संपत्ति का वह अकेला वारिस होगा। मगर, IVF तकनीक के जरिए जयराज का जन्म हुआ तो उनके मंसूबों पर पानी फिर गया। दरअसल, लक्ष्मण पटेल की 100 एकड़ खेती है। साथ ही दमोह में एक प्लॉट और मकान भी है, जिसकी कीमत करोड़ों रुपए है। मानवेंद्र जैसे ही बड़ा हुआ वह जयराज को रास्ते से हटाने का प्लान तैयार करने लगा। पुलिस के सामने उसने खुलासा किया कि जयराज को रास्ते से हटाने का यह मौका उसे 28 मार्च को मिला। मोटरसाइकिल सिखाने के लिए वह दोपहर 12 बजे जयराज को अपने साथ ले गया। खेत में पहुंचकर उसने जयराज की गला दबाकर हत्या कर दी और खेत में लाश को दबा दिया था। डेढ़ महीने बाद पुलिस को कंकाल मिला। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया और 25 अगस्त को उसे जेल भेज दिया गया।

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