कब तक खामोश और सहे हम...चलो सड़क पर आवाज़ तो उठाए.. अब कश्मीर फिर से कश्मीरी पंडितों के खून से रंगने लगा है.

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बडगाम में 12 मई को राहुल भट्ट की हत्या के बाद से कश्मीर घाटी से पलायन शुरू हो गया है.

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चेहरे पर उदासी और बेबसी साफ झलक रही है. क्योंकि Target Killing से घाटी में माहौल बेहद तनावपूर्ण है. फिर से 90 के दशक में लौट आया है.

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तीन पीढ़ियों के आंसू एक साथ. दादी संग इस लड़की के दर्द को दूर से ही समझ सकते हैं. कश्मीर घाटी में Target Killing से 26 दिनों में 10 हत्याएं हो चुकीं हैं.

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यहां गम है. गुस्सा और बेबसी भी. ये अपने ही घर से बेघर हो चुके हैं. बैग पर गुड लक लिखा है. पर इससे बड़ी बदकिस्मती क्या होगी इनके लिए....

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खुद के बसाए आशियाने को छोड़ना और फिर उससे दूर चले जाना. वो भी खुद की मर्जी से नहीं. बल्कि किसी के खून खराबे से. इससे बड़ी बेबसी क्या होगी

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Target Killing से कश्मीरी हिंदुओं में इस बात का डर है कि 'पता नहीं, कौन, कब, कहां से गोली मार दे.'

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