पंडित बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को हुआ था. वे लखनऊ घराने से ताल्लुक रखते थे. उनका पूरा नाम पंडित बृजमोहन मिश्रा था.

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दुनिया इन्हें पंडित बिरजू महाराज के नाम से जानती रही. पहले उनका नाम 'दुखहरण' रखा गया था. बाद में 'बृजमोहन नाथ मिश्रा' रखा गया था.

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दुखहरण नाम के पीछे कहा जाता है कि लखनऊ के जिस अस्पताल में इनका जन्म हुआ था उसमें उस दिन 11 लड़कियों का जन्म हुआ था. ये इकलौते लड़के थे.

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11 लड़कियों के बीच अकेले लड़का पैदा होने की वजह से लोगों ने कन्हैया कहना शुरू किया. फिर इनका नाम बृजमोहन रखा गया. बाद में प्यार से लोग बिरजू कहने लगे थे.

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बिरजू महाराज को कथक विरासत में मिला था. पूरी दुनिया में इन्होंने भारतीय कथक को नई पहचान दिलाई. ठुमरी, दादरा, भजन और ग़ज़लों पर इन्हें महारत हासिल थी.

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इनके कथक और संगीत की शुरुआत सबसे पहले लोगों ने 7 साल की छोटी सी उम्र में लोगों ने देखी थी. उस समय उन्होंने गाने की शानदार प्रस्तुति मंच पर पेश की थी.

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बिरजू महाराज कथक नर्तकों के महान महाराज परिवार के वंश थे. इनके दो चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज और उनके पिता और गुरु अच्छन महाराज महान शख्सियतें रहीं हैं.

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बिरजू महाराज को वायलिन और सरोज बजाने का शौक भी था. वो 500 ठुमरी जानते थे.कहा जाता है कि जिस उम्र में लोग कथक सीखते थे उसी उम्र में ये सिखाने लगे थे.

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एक इंटरव्यू में बिरजू महाराज ने कहा था कि माधुरी दीक्षित फिल्मों में मेरी फेवरेट हैं. महाराज ने देवदास के गाने 'काहे छेड़ छेड़ मोहे' गाने की कोरियोग्राफी कर चुके हैं.

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पंडित बिरजू महाराज को साल 1986 में पद्म विभूषण सम्मान मिला था. 83 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से दिल्ली के एक अस्पताल में 16 जनवरी 2022 की देर रात में निधन हुआ.

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