Lathmar Holi Video: देखिए बरसाने में खेली गई लठमार होली, हुरियारों का रंग, हुरियारिनों की लाठी
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Mathura: युग बदलने के बाद भी परंपरा नहीं बदली है। अब भी नंदगांव के लोग पीली पोखर के पास इकट्ठे होते हैं जहां उनका स्वागत ठंडाई और भांग से होता है।
Mathura: युग बदलने के बाद भी परंपरा नहीं बदली है। अब भी नंदगांव के लोग पीली पोखर के पास इकट्ठे होते हैं जहां उनका स्वागत ठंडाई और भांग से होता है।
Mathura Holi News: ब्रज की होली देश दुनिया में मशहूर है और बात अगर बरसाने की लठमार होली की हो तो कहने ही क्या। लठमार होली का त्योहार पारंपरिक रूप से मनाया जाता है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण अपने दोस्तों के साथ नंदगाव से राधा रानी संग होली खेलने बरसाने आते थे, तब राधा रानी और उनकी सखियों पर वो रंग डालते थे और लाठी खाते थे।
युग बदलने के बाद भी परंपरा नहीं बदली है। अब भी नंदगांव के लोग पीली पोखर के पास इकट्ठे होते हैं जहां उनका स्वागत ठंडाई और भांग से होता है। स्वागत सत्कार के बाद नंदगांव से आए हुरियारे रंगीली गली पहुंचकर बरसाने की गोपियों को होली खेनने का न्योता देते हैं।
स्थानीय लोगों ने बताया कि बहुत अच्छा लगता है। 28 साल हो गए। लाठियों पर तेल लगाते हैं, ढाल भी बनाते हैं। नंदगांव से ग्वाले आते हैं। एक महीने से तैयार करते हैं, लाठियों को तेल पिलाते हैं। दूध-दही खाते हैं। फिर होली की तैयारी करती हैं अच्छे से। फिर नंदगांव से ग्वाले आते हैं। ये ब्रज गोपी राधा रानी का रूप होता है।
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महिलाओं के आने के साथ ही शुरू हो जाती है लठमार होली। बरसाने की गोपियां हुरियारों को प्यार से लठ मारकर दूर जाने को कहती हैं जबकि सिर पर ढाल रखकर हुरियारे अपना बचाव करते हैं। सदियों पुरानी लठमार होली की परंपरा के हर साल हजारों लोग गवाह बनते हैं। ब्रज में होली का त्योहार करीब 40 दिन तक चलता है लेकिन जब तक लठमार होली नहीं खेली जाती तब तक होली का खुमार अधूरा ही रहता है।
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