दुनिया की सबसे अनोखी LOVE STORY, एक आशिक़ साइकिल पर सवार होकर पहुंच गया सात समंदर पार

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दुनिया की सबसे अनोखी LOVE STORY, एक आशिक़ साइकिल पर सवार होकर पहुंच गया सात समंदर पार
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Shams ki Zubani: क्राइम की कहानी में आज का क़िस्सा जुर्म का तो नहीं है अलबत्ता ये अपने किस्म का सबसे अनोखा वाकया जरूर है। ये प्यार मोहब्बत का ऐसा क़िस्सा है जो इस बात को साबित कर देता है कि इश्क सरहदों को नहीं मानता, उसे होना होता है तो हो ही जाता है, और फिर अपने प्यार की ख़ातिर इंसान कहां से कहां तक पहुँच जाता है।

इस अनोखे प्यार की दास्तां में एक किरदार भारत का है दो दूसरा सात समंदर पार यूरोप के देश स्वीडन का। यानी करीब 6500 किलोमीटर दूर अपने प्यार के पास पहुँचने के लिए उस हिन्दुस्तानी शख्स ने कितने देशों की हदों को पार किया और आखिरकार वहां पहुँच ही गया जहां उसे पहुँचना था।

इस वाकये की शुरूआत होती है साल 1975 से। भारत की राजधानी दिल्ली में एक शख्स जिसका नाम प्रद्दुमन कुमार महानंदिया है। दिल्ली के कनॉट प्लेस में उसकी मुलाकात होती है स्वीडन की रहने वाली चार्लट वॉन शेदविन से। प्रद्दुमन कुमार पेशे से एक पेंटर था। और लोगों के स्केच बनाने में उसे महारत हासिल थी।

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चार्लट वॉन भी प्रद्दुमन कुमार के पास इसी सिलसिले में पहुँचती है। चार्लट को अपना एक स्केच बनवाना था। लेकिन चार्लट को देखते ही प्रद्दुमन के दिल के तार बज उठे और चार्लट के बारे में जानकर प्रद्दुमन कुमार यानी पीके को अपनी मां की कही वो बात याद आ गई जो उसकी मां ने उसे बचपन में बताईथी।

पीके की मां को ज्योतिष में बड़ा भरोसा था। और उसी के आधार पर पीके की मां ने उससे ये बात कही थी कि उसकी शादी किसी दूर देश की रहने वाली एक खूबसूरत लड़की के साथ होगी जो हर लिहाज से संपन्न तो होगी लेकिन तबीयत से वो एक कलाकार होगी। बचपन की बात बचपन तक ही रही लेकिन पीके हिन्दुस्तान के सामाजिक ताने बाने के बीच उलझकर अपनी जिंदगी को रफ्तार देने के लिए उड़ीसा से दिल्ली चला आया।

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Shams ki Zubani: तो दिल्ली में जब चार्लट की पीके के साथ पहली मुकाकात हुई तो उसका कोई खास असर नहीं हुआ अलबत्ता इतना जरूर हुआ कि पीके ने महज 10 मिनट के भीतर उसका स्केच तैयार कर दिया। उस स्केच को बनवाकर चार्लट वहां से रवाना हो गई। लेकिन न जाने क्यों पीके उसके जाने के बाद चार्लट के बारे में ही सोचता रहा।

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इत्तेफाक से चार्लट अगले रोज पीके से मिलने वहां पहुँच गई। तब पीके ने चार्लट की एक और खूबसूरत तस्वीर बनाई, जिसको देखकर चार्लट बहुत प्रभावित हुई। उस तस्वीर को बनाने के दौरान पीके और चार्लट के बीच बहुत सी बातें हुईं...चार्लट ने पीके को अपने बारे में सब कुछ बताया। उसने ये भी बताया कि स्वीडन में उसका एक फॉर्म है, एक जंगल भी उसके पास है लेकिन पियानो बजाना उसे सबसे ज़्यादा पसंद है। ये सुनकर पीके को लगा कि उसकी मां की कही बात सही हो रही है...तो पीके ने चार्लट को अपनी मां की कही बात उसे बताई।

पीके की बात सुनकर चार्लट उससे बहुत प्रभावित हुई और उसने पीके के संग ओडीशा जाने की बात कही। पीके चार्लट को लेकर ओडीशा गया वहां चार्लट ने मशहूर कोणार्क मंदिर भी देखा। जिसे देखकर चार्लट बहुत प्रभावित भी हुई और भावुक भी हुई।

Shams ki Zubani: उसने ही बताया कि लंदन में पढ़ाई के दौरान उसने कोणार्क मंदिर के पत्थर के पहियों का चित्र देखा था और तभी से उसके दिल में उसे नज़दीक से देखने की इच्छा हुई थी। लेकिन पीके ने चार्लट को उसे उसके सपनों के इतने नजदीक पहुँचा दिया था लिहाजा वो पीके को दिल से चाहने लगी। कुछ दिन ओडीशा घूमने और पीके के गांव में दिन बिताने के बाद दोनों दिल्ली लौट आए। अब दोनों का मिलने का सिलसिला बढ़ गया। हालात ऐसे हो गए कि दोनों अब एक दूसरे के बिना अब रह नहीं पा रहे थे।

लिहाजा पीके ने चार्लट को अपने परिवार के लोगों से मिलवाया और फिर सबकी रजा मंदी के बाद दोनों ने शादी कर ली। यहां तक तो सब ठीक था लेकिन चार्लट का वीजा की मियाद खत्म होने लगी तो उसे वापस लौटना पड़ा। लेकिन चार्लट के अपने वतन लौटने के बाद पीके अब चार्लट से मिलने के लिए तड़प उठा। तब उसने अपने ही साधन से चार्लट के पास पहुँचने के इरादा किया।

पीके को ये आइडिया इसलिए आया क्योंकि चार्लट खुद अपने दोस्तों के साथ स्वीडन से भारत आई थी। और भारत आने के लिए चार्लट ने यूरोप, तुर्की, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ता लिया था। लिहाजा पीके ने भी इसी रास्ते से स्वीडन तक पहुँचने का इरादा किया। वैसे भी पीके के पास हवाई जहाज के टिकट के पैसे भी नहीं थे। लिहाजा उसने अपने पास मौजूद तमाम चीजों को बेचकर एक साइकिल खरीदी और साइकिल से ही उसी तर्ज पर हिप्पी ट्रेल के जरिए स्वीडन के लिए निकल पड़ा।

Shams ki Zubani: ये साल था 1977 का। जनवरी के महीने में पीके ने स्वीडन के लिए अपना सफर शुरू किया। रोजाना वो 70 किलोमीटर साइकिल चलाता था। खुद पीके ने अपने बारे में कहा था कि उसे इस रास्ते में उसकी कला ने उसका बहुत साथ दिया। क्योंकि पैसों की तंगी को दूर करने के लिए वो रास्ते में लोगों के स्केच बनाकर पैसों का जुगाड़ करता था और रास्ते के लिए जरूरी सामान और खाने पीने का इंतजाम करने लगा। पीके के मुताबिक ये वो दौर था जब ज़्यादातर देशों में जाने के लिए वीजा की ज़रूरत नहीं पड़ती थी।

अपने सफर के दौरान पीके ने काफी वक़्त अफग़ानिस्तान में बिताया क्योंकि अफगानिस्तान में लोगों ने पीके की कला को काफी सराहा भी। इसके अलावा अफगानिस्तान में उन्हें भाषा की भी दिक्कत नहीं हुई क्योंकि वहां लोग उनकी हिन्दी भाषा को अच्छी तरह समझ लेते थे और उनकी बात और जरूरत को समझकर उनकी मदद कर देते थे।

Shams ki Zubani: खुद पीके के मुताबिक अपनी प्रेमिका से मिलने की चाहत में थकान कभी भी उन पर हावी नहीं हो सकी। अपने सफर के बारे में पीके का कहना था कि अफगानिस्तान से ईरान जब वो पहुँचे तो वहां उन्हें ज़रूर काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

पीके ने 22 जनवरी को अपने सफर की शुरूआत की थी, और पूरे पांच महीनों के बाद 28 मई को पीके तुर्की के इस्तांबुल और ऑस्ट्रिया के विएना होते हुए यूरोप पहुँच गए। इसके बाद उन्होंने अपनी साइकिल को भी छोड़ दिया और ट्रेन के जरिए स्वीडन के गॉथनबर्ग जा पहुँचें जहां उन्हें उनकी चार्लट मिल गई।

स्वीडन पहुँचने के बाद भी पीके की दुश्वारी खत्म नहीं हुई, क्योंकि चार्लट के माता पिता दोनों की शादी के लिए रजामंद नहीं थे। मगर पीके ने बड़ी ही शिद्दत से चार्लट के माता पिता को मनाया। आखिरकार उनकी ये कोशिश भी कामयाब रही और दोनों की शादी करने के लिए चार्लट के माता पिता राजी हो गए।

पीके अब 64 साल के हैं और अपनी महबूब यानी चार्लट के साथ वहीं स्वीडन में ही रहते हैं। स्वीडन में पीके एक कलाकार के तौर पर काम करते हैं। मजे की बात ये है कि चार्लट और पीके के दो बच्चे भी हैं।

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