What is Rape and IPC section 376: बलात्कार, एक ऐसा संगीन जुर्म, जिसका पूरा सच कोई नहीं जानता!

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What is Rape and IPC section 376: बलात्कार, एक ऐसा संगीन जुर्म, जिसका पूरा सच कोई नहीं जानता!
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बलात्कार के मामले में आपके और हमारे अंदाज़ से कहीं ज़्यादा उस इंसान को ख़ासतौर पर महिला को मानसिक और शारीरिक तक़लीफ़ से गुज़रना पड़ता है। उस तक़लीफ़ को शायद शब्दों में बयां करना किसी भी भाषा और बोली में बता पाना मुश्किल ही नहीं क़रीब क़रीब नामुमकिन है।

सवाल यही है कि आखिर बलात्कार होता क्या है? What is Rape?

यूं तो बलात्कार वो जुर्म है जिसे जुबानी या अल्फ़ाज़ से बताना नामुमकिन है। लेकिन फिर भी क़ानून बनाने वालों ने इस जुर्म की एक अपनी परिभाषा दी है। और उस क़ानूनी परिभाषा के मुताबिक़-

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जब कोई पुरुष किसी भी महिला के साथ उसकी इच्छा के ख़िलाफ़, उसकी सहमति के बगैर, उसे डराकर, या धमका कर, दिमागीतौर पर कमज़ोर या मानसिक तौर पर पागल महिला को धोखा देकर, शराब या किसी भी नशीले पदार्थ के असर में लाकर उसके साथ संभोग करता है, उसे बलात्कार कहा जाता है।

धारा 376 क्या हैं?

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भारतीय दंड संहिता जिसे हम सब IPC के नाम से जानते हैं, उसकी धारा 376 है । जिसके तहत जब भी किसी महिला के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती शारीरिक संबंध बनाया जाता है उसे बलात्कार मानते हुए इसी श्रेणी में दर्ज किया जाता है। और जब इस मामले को अदालत के पटल तक पहुँचाया जाता है, यानी इसे अदालत की कार्यवाही के लिए रखा जाता है तो धारा 376 के तहत मुकदमा दर्ज होता है।

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झूठे धारा 376 के आरोप में बचाव के उपाय क्या है?

झूठे आरोप यानी धारा 376 का झूठा केस दर्ज होने पर बचाव के उपाय क्या हो सकते हैं?

इसे समझने के लिए सबसे पहले ये समझना बेहद ज़रूरी है कि आखिर इस मामले में क़ानून क्या कहता है।

क़ानून क्या कहता है?

IPC की धारा 376 के तहत बलात्कार का मुकदमा दर्ज होता है। और आरोप साबित होने पर अपराधी को कम से कम सात साल की सज़ा मिलती है। कभी कभी कुछ मामलों में ये सज़ा कम से कम दस साल तक भी हो सकती है।

- कई बार ये भी देखा जाता है कि कुछ लोगों के ख़िलाफ़ बलात्कार का झूठा केस भी दर्ज करवा दिया जाता है। ऐसी सूरत में उसके पास बचने के क्या क्या रास्ते या उपाय हो सकते हैं।

पहला- गिरफ़्तार होने से पहले

अगर किसी व्यक्ति को ये महसूस होता है कि उसके ख़िलाफ़ ऐसा आरोप लगाया जा सकता है तो वो पहले अपने लिए अग्रिम ज़मानत यानी ANTICIPATORY BAIL के लिए कोर्ट में याचिका दे सकता है ताकि पुलिस हिरासत में लेकर परेशान न करे।

दूसरा- चार्जशीट फ़ाइल होने के बाद

इसमें भी दो हिस्से हैं (1)- CrPC यानी कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीडिंग की धारा 482 के तहत आवेदन किया जा सकता है, ताकि FIR में लगी आपराधिक कार्यवाही को खारिज करवाई जा सके। उसके लिए ज़रूरी है कि आरोपी को ये साबित करना पड़ता है कि उसके ख़िलाफ़ प्रथम दृष्टतया ये केस नहीं बनता, या फिर इस बात के सबूत पेश करे कि ऐसा करना असम्भव है।

और ये साबित कर दे कि ये प्रक्रिया उसे सिर्फ परेशान करने के लिए की जा रही है। इनके सबके साथ हाईकोर्ट को ये यकीन हो जाए कि आवेदन करने वाला व्यक्ति वाकई तमाम शर्तों को पूरी करता है, तो अदालत FIR की आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर सकता है।

(2)- हाईकोर्ट के सामने रिट याचिका दायर करना। जब ये आशंका हो कि इस मामले में पुलिस या निचली अदालत में जानबूझकर आरोपी के ख़िलाफ़ कार्यवाही की जा रही है तो हाईकोर्ट संबंधित अधिकारियों को ये आदेश दे सकती है कि अपना फर्ज़ उचित रुप से निभायें।

ये भी हो सकता है कि हाईकोर्ट रिट ऑफ प्रोहिबिशन (निषेधाज्ञा का अधिकार) जारी करके आवेदनकर्ता के ख़िलाफ़ निचली अदालत में चल रही आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 226 में ऐसा प्रावधान है।

एक सवाल यहां और उठता है कि आखिर भारत में बलात्कार के लिए क्या क़ानून है?

IPC की धारा 376 के तहत बलात्कार के अपराध के लिए कठोर दंड का प्रावधान है। क़ानून के तहत बलात्कार के मुक़दमें धारा 376, 376 A, 376 B, 376 C के अलावा 376 D और 376 E के तहत इस संगीन अपराध के लिए दंड का बंदोबस्त किया गया है। धाराए 376 में दो उप धाराएं भी हैं।

376 (क)- ये धारा कहती है कि पति पत्नी के अलग अलग रहने के दौरान अगर पुरुष पत्नी के साथ संभोग करता है तो वो भी बलात्कार की श्रेणी में आएगा। जिसमें दो साल की सज़ा और जुर्माना है, जबकि

376 (ख)- ये धारा कहती है कि आपके संरक्षण में रहने वाली किसी भी स्त्री के साथ संभोग इसी अपराध की श्रेणी में आएगा, जिसमें पांच साल की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है।

अब यहां एक सवाल ये भी पैदा होता है कि अगर बलात्कार हुआ तो कितने दिनों तक रेप के सैंपल से रिज़ल्ट मिलता है और वो भी सही

बलात्कार के 12 से 24 घंटों के भीतर लिया जाना चाहिए। यही आदर्श स्थिति है, वर्ना नतीजे पर असर पड़ सकता है। अगर वजाइना में यौनांग डाला जाता है तो तीन से पांच दिनों के भीतर सैंपल ले लिया जाना चाहिए। वरना सही नतीजे नहीं आ पाते।

सरकारी गाइडलाइन कहती है कि रेप की शिकायत पर पीड़ित का सैंपल 96 घंटों के भीतर ही लिया जाना चाहिए, तभी रिपोर्ट सही आ पाती है।

सैंपल इकट्ठा होने के बाद बलात्कार की पुष्टि कैसे की जाती है, ये सवाल यहां आकर खड़ा होता है?

क़ानून के बनाए नियमों के मुताबिक़ शिकार या पीड़ित की जांच के लिए लड़की, महिला या पुरुष को सफ़ेद कपड़े पर खड़ा करके उसको झाड़ा जाता है, ताकि छोटे से सबूत भी मिल जाएं, मसलन बाल, बटन, कोई रेशा इत्यादि। उन छोटे सबूतों को फिर विश्लेषण किया जाता है। इसके अलावा शरीर पर कहीं कोई खून का निशान या फिर योनि स्राव (VAGINAL SECRETION), लार (SALIVA) और योनि उपकला कोशिकाओं का परीक्षण किया जाता है।

बलात्कार जैसी वारदात के सामने आने के बाद हम सभी एक परीक्षण के बारे में अक्सर सुनते रहते हैं टू फ़िंगर टेस्ट (Two Finger Test), यानी ये दो उंगली परीक्षण क्या बला है?

देश में इस TFT यानी टू फिंगर टेस्ट के ज़रिए पीड़ित महिला की वजाइना के लचीलेपन की जांच की जाती है। इसके तहत योनि यानी वजाइना में दो उंगलियों को प्रवेश करवाया जाता है जिसके आधार पर डॉक्टर ये अपनी राय देता है कि महिला सक्रिय सेक्स लाइफ़ में है या नहीं।

एक सवाल यहां ज़रूर पैदा होता है कि आखिर किन्हीं हालातों में रेप के झूठे आरोप लगें तो उसका बचाव कैसे किया जा सकता है

आज के इस ज़माने में किसी भी महिला और पुरुष के दोस्ती के बाद शारीरिक सम्बन्ध का बनना कोई बड़ी बात नहीं। ऐसे में कई बार देखा गया है कि महिला पुरुष से नाजायज फ़ायदा उठाने के लिए बलात्कार का झूठा केस लगा देती हैं ऐसे में उसके बचने के कुछ उपाय क़ानून में हैं-

1- अगर रेप के कोई ठोस सबूत नहीं हो तो आप शारीरिक सम्बन्ध नकार सकते हैं और मेडिकल टेस्ट में TFT की रिपोर्ट पर ज़ोर देकर महिला को ग़लत साबित कर सकते हैं

2- अगर शारीरिक सम्बन्धों के सबूत फॉरेंसिक रिपोर्ट या वीडियो अथवा फोटो में है तो आप सम्बन्ध बनाना स्वीकार करें और सम्बन्ध धोखे से नहीं बनाए गए हैं ये साबित करें, लेकिन ये तभी कारगर है जब लड़की की उम्र 18 या उससे ज़्यादा है

3- अगर महिला ने कभी आपको शारीरिक सम्बन्धों के लिए आमंत्रित किया है और उसका कोई सबूत आपके पास है तो उसे कोर्ट में पेश करें। गवाह भी पेश कर सकते हैं

4- आरोपों के अनुसार महिला से पूछा जा सकता है कि सम्बन्ध बने ते उस वक्त उसने क्या सोचकर सम्बन्धों को सहमति दी थी और विरोध क्यों नहीं किया। कितनी बार सम्बन्ध बनाए और इस बारे में पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी।

5- मेडिकल रिपोर्ट में कमिया देखें और उसका इस्तेमाल अपने बचाव में करें

6- धारा 376 केस ज़्यादा गंभीर है तो चार्जशीट जल्दी दाखिल करवाने को कहें।

7- धारा 376 बलात्कार के मामले में FSL (Forensic Science Laboratory) रिपोर्ट हमेशा देर से आती है उसके आधार पर ज़मानत के लिए कोर्ट पर दबाव बनाएं

8- धारा 376 के मामलों में घरेलू मजबूरियों का हवाला देकर भी ज़मानत मिल सकती है।

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