एक रात तो गुजारो गुजरात के शराबी पिंजरे में.....

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एक रात तो गुजारो गुजरात के शराबी पिंजरे में.....
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इन पिंजरों को गांव के चौरहों पर रखा जाता है ताकि आने-जाने वाले लोग पिंजरे में बंद शराबियों को देख सकें। बस ये समझ लीजिए जिस तरह से चिड़ियाघर में लोग जानवरों को देखकर मसखरी करते हैं। कुछ ऐसा ही इन शराबियों के साथ होता है जिन पर गांव के आने जाने वाले लोग हंसते हैं।

दरअसल शराबियों को पिंजरे में बंद करने की शुरुआत गुजरात के नट समाज ने की जो शराब की आदत से काफी परेशान थे। यहां तक की इस समाज के कई लोगों की मौत शराब पीने से हो गई है। शराब पीने के बाद घर में मारपीट और लड़ाई झगड़े से तंग आकर नट समाज ने फैसला लिया कि जो भी शराब पीकर उत्पात मचाएगा उसे एक रात के लिए पिंजरे में बंद रहना पड़ेगा साथ ही उस पर 1200 रुपये का हर्जाना भी लगाया जाएगा।

इसकी शुरुआत साणंद शहर से 7 किलोमीटर दूर मोतीपुरा गांव से हुई। यहां से शुरु हुए इस प्रयोग को इतनी सफलता मिली की गुजरात के 23 और गांवों ने शराबियों को पकड़कर पिंजरों में बंद करना शुरु कर दिया। हालांकि इन गांवों में हर्जाने की रकम बढ़ाकर 2500 रुपये कर दी गई।

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महिलाएं देती हैं शराबियों के बारे में टिप-ऑफ

इस अभियान में महिलाओं को ही जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वो अपने गांव में ऐसे लोगों के बारे में सूचना दें जो शराब पी रहे हों। इन महिलाओं की पहचान गुप्त रखी जाती है और शराबियों से वसूले जाने वाले हर्जाने से 500 से 1100 रुपये तक इन महिलाओं को दिए जाते हैं। शराबियों को पिंजरे में बंद अभियान के बाद इन गांवों में घरेलू हिंसा के मामलों में 90 फीसदी कमी आई है। शराबियों को पिंजरे में बंद करने की वजह से पुलिस का भी बोझ कम हुआ है। अब शराब पीकर हंगामा करने वालों को पुलिस को सौंपने के बजाय पिंजरों में बंद किया जाता है।

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शराबियों को पकड़ने के लिए दस्ते करते हैं छापेमारी

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महिलाओं की सूचना के बाद गांव के बुजुर्गों से बने छापेमार दस्ते गांव के ऐसे घरों पर छापेमारी करते हैं जहां पर शराब पी जा रही हो। पकड़े गए लोगों को गांव के चौराहों पर रखे पिंजरों में लाकर बंद कर दिया जाता है। उन्हें पीने के लिए दो बोतल पानी दिया जाता है। रात भर पिंजरे में गुजारने के बाद सुबह इन्हें वहां से निकाला जाता है। इस चेतावनी के साथ की अगर वो अगली बार शराब पीते पकड़े गए तो उन्हे समाज से भी बहिष्कृत किया जा सकता है। गुजरात के कुछ गांव में चल रहे इस प्रयोग को अब दूसरे गांवों में लागू करने पर विचार किया जा रहा है।

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