Bihar : वॉट्सऐप पर जज की फर्जी DP लगा DGP को फोन करने और IPS आदित्य के साजिश रचने की पूरी कहानी
Bihar DGP and Fake Judge inside Story : बिहार के डीजीपी SK Singhal को फर्जी कॉल करने की पूरी कहानी. कैसे अभिषेक अग्रवाल ने कॉल किया. साजिश रची आईपीएस आदित्य कुमार ( Bihar IPS Aditya Kumar).
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Bihar DGP News : फर्जी कॉल से बचने के टिप्स अक्सर पुलिस देती है. लेकिन अगर एक राज्य का पुलिस मुखिया यानी DGP ही फर्जी कॉल के झांसे में आ जाएं तो क्या कहेंगे. ये मामला बिहार का है. एक पुराने जालसाज ने वॉट्सऐप प्रोफाइल में हाईकोर्ट के जज (High Court Judge) की फोटो लगाई. फिर एक नंबर घुमाया. सीधे कह दिया.
हैलो...मैं हाई कोर्ट का ...जज बोल रहा हूं. आप कैसे हैं. उधर से DGP ने जवाब दिया. सर...सर.. जय हिंद... इसके बाद 40 से 50 बार दोनों के बीच बात होती है. कई बार तो खुद डीजीपी भी उस कथित हाईकोर्ट के जज को फोन मिलाते हैं. हद तो तब होती है जब फर्जी जज किसी बात पर नाराजगी जताते हैं तो डीजीपी साहब वॉट्सऐप पर मैसेज कर पहले बात करने के लिए समय लेते हैं. फिर वॉट्सऐप कॉल करके बात करते हैं. एक मीडिया रिपोर्ट (Media Report) में इस बात का दावा है कि कैसे फ्रॉड अभिषेक अग्रवाल ने नाराजगी जताई तो डीजीपी ने एक तरह से अप्वाइंटमेंट लेकर कॉल किया था.
ये सिलसिला कुछ दिन चलता है और उसका रिजल्ट भी दिखता है. लेकिन इस सिलसिले का जब अंत होता है तो ये खबर पूरे देश में सुर्खियों में आ जाती है. असल में पूरा केस ही नटवरलाल जैसा सामने आता है. फर्जी हाईकोर्ट जज बनकर डीजीपी को फोन कराने के पीछे भी बिहार के आला आईपीएस पुलिस अफसर का हाथ मिलता है. इस केस का जब खुलासा हुआ तब कई राज बाहर निकलते हैं.
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बिहार के डीजीपी एसके सिंघल को फर्जी कॉल करने वाला आरोपी अभिषेक अग्रवाल है. इस शख्स की पहचान ये है कि इसके कई सीनियर आईपीएस अफसर दोस्त हैं. इस पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं. ये खुद कई आईपीएस अफसरों से ठगी कर चुका है. तिहाड़ जेल जा चुका है. इसके कारनामे भी खूब है. जिसे आगे पूरी तरह से जानेंगे. पर उससे पहले हाल में डीजीपी को फोन करने की पूरी कहानी.
इस पूरी कहानी की शुरुआत होती है डेढ़ साल पहले मार्च 2021 से. उस समय बिहार के गया में एसएसपी पद पर IPS आदित्य कुमार थे. बिहार में शराबबंदी के बाद भी शराब की तस्करी की खबरें आती रहतीं हैं. इस केस में शराब और शराब तस्करी है. शराब तस्करी के एक केस को रफा-दफा कर दिया गया. असल में गया के फतेहपुर थाने में 8 मार्च 2021 को एक शराब तस्कर को पकड़ा गया था. ये तस्कर बाइक से शराब ले जा रहा था. उस समय फतेहपुर थाने के प्रभारी संजय कुमार ने इसमें एफआईआर नहीं लिखी गई. बस खानापूर्ति कर छोड़ दिया गया.
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ये बात तो बाइक से शराब तस्करी की थी. फिर इसी थाने में 26 मार्च 2021 को यानी करीब 18 दिन बाद ही एक सैंट्रो कार को भी शराब तस्करी में पकड़ा गया. लेकिन इसे भी छोड़ दिया गया. कहा जाता है कि इस बारे में एसएसपी आदित्य कुमार को पूरी जानकारी थी. लेकिन एसएसपी के सबसे खास और चहेते थे फतेहपुर थाने के प्रभारी.
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लिहाजा, दोनों केस कब आए और कब गायब हो गए, किसी को खबर नहीं मिली. लेकिन ये खबर किसी तरह से बिहार पुलिस के मुख्यालय तक पहुंच गई. क्योंकि मामला शराब तस्करी का था. और बिहार में शराबबंदी है. अब शराबबंदी में पुलिस चेहरा देखकर एक्शन लेगी तो बात दूर तक जाएगी ही. ऐसा ही कुछ इस केस में हुआ. अब पुलिस मुख्यालय से इस केस में फतेहपुर थाना प्रभारी के खिलाफ जांच के आदेश जारी हो गए. उस समय इस केस की जांच तत्कालीन एएसपी मनीष कुमार को दी गई.
मनीष कुमार ने सही जांच की. थाना प्रभारी को शराब तस्करों को छोड़ने का दोषी पाया. अपनी रिपोर्ट में कार्रवाई करने की अनुशंसा भी कर दी. अब इस रिपोर्ट पर एक्शन लेने की जिम्मेदारी एसएसपी आदित्य कुमार को थी. लेकिन एसएसपी ने कोई एक्शन नहीं लिया. अब ये जानकारी गया रेंज के आईजी अमित लोढ़ा तक पहुंची. उन्होंने नाराजगी जताई.
एसएसपी आदित्य कुमार से सवाल-जवाब किया. लेकिन इसके बाद भी एसएसपी आदित्य कुमार ने अपने चहेते थाना प्रभारी संजय कुमार को सस्पेंड या बर्खास्त नहीं किया. सिर्फ लाइन हाजिर कर दिया. पुलिस लाइन हाजिर करने का मतलब होता है कि उस पुलिसकर्मी को किसी विभाग या थाने से हटाकर पुलिस लाइन में तैनात कर दिया जाना. अभी मामला यहीं खत्म नहीं हुआ.
उस दरोगा को 15 दिन बाद ही एसएसपी ने फिर से तैनात कर दिया. दारोगा संजय कुमार को बाराचट्टी थाने का प्रभारी बना दिया. ये देखते ही आईजी अमित लोढा भी चौंक गए. तब उन्होंने मामले को गंभीरता से उठाया तो उस संजय कुमार का ट्रांसफर ही औरंगाबाद करा दिया.
इसके बाद शराब तस्करी को लेकर आईजी अमित लोढ़ा और एसएसपी आदित्य कुमार के बीच विवाद शुरू हो गया. ये विवाद मीडिया में भी आने लगा. फिर मामला पुलिस मुख्यालय तक पहुंचा. मामला गंभीर होने पर राज्य सरकार ने आईजी और एसएसपी दोनों का ही ट्रांसफर कर दिया. फिर विभागीय जांच भी शुरू हो गई.
इस जांच में शराब तस्करी को छोड़ने वाली बात सही साबित हुई. इसके बाद मार्च 2022 में तत्कालीन एसएसपी आदित्य कुमार और आरोपी थानेदार संजय कुमार के खिलाफ उसी फतेहपुर थाने में एफआईआर भी दर्ज हुई थी. ये एफआईआर डीएसपी अंजनी कुमार सिंह ने कराई थी. इसके बाद आदित्य कुमार ने गया के स्पेशल एक्साइज कोर्ट-1 में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी. लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था.
अब जमानत खारिज होने के बाद से ही ये माना जा रहा था कि पूर्व एसएसपी यानी आदित्य कुमार और थाना प्रभारी रहे संजय कुमार की कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है. अब आईपीएस अफसर आदित्य कुमार ये चाहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाए, उनकी गिरफ्तारी नहीं हो. अब यहीं से होती है फ्रॉड और नटरवलाल अभिषेक अग्रवाल की एंट्री.
पर यहां सवाल ये था कि एक सीनियर पुलिस अफसर कैसे किसी को भी डीजीपी को फोन कराने के लिए कह सकता था. ऐसे में पुराने और तेज तर्रार फ्रॉड का सहारा लिया. कई मामलों में फर्जी अफसर या मंत्री का पीए बनकर लोगों को फोन कर चुका अभिषेक अग्रवाल पहले भी जेल जा चुका था. इसलिए आदित्य कुमार ने उसे ही चुना. पहले भी कई बार अभिषेक अग्रवाल इस आईपीएस से मिल चुका था. कई खास मौके पर फोटो खिंचवा कर लोगों पर रौब झाड़ चुका था. दरअसल, ये कुछ ऐसे लोग होते हैं जो कई अफसरों के साथ मिलकर इधर-उधर के काम को निपटाने से लेकर पैसों की कमाई में जुटे रहते हैं. ऐसा ही है अभिषेक अग्रवाल.
नव भारत टाइम्स (NBT) की रिपोर्ट के अनुसार, नटवरलाल का रोल निभाने वाले अभिषेक अग्रवाल ने आदित्य कुमार को क्लीन चिट दिलाने के लिए बिहार के डीजीपी एस.के. सिंघल को फोन किया. लेकिन इस फोन को कराने से लेकर उसकी प्लानिंग की पूरी स्क्रिप्ट खुद आईपीएस अधिकारी आदित्य कुमार ने लिखी थी.
इसके लिए बाकायदा नया फोन. फर्जी पते और नाम पर सिम कार्ड उपलब्ध कराए गए. जांच में सामने आया है कि कुल 9 मोबाइल सिम कार्ड और दर्जनों फोन बरामद हुए हैं. बाकायदा अभिषेक ने पुलिस को बयान दिया है कि उसने पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार को बचाने के लिए फर्जी जज बनकर ये कदम उठाया. मीडिया रिपोर्ट में दावा है कि उसकी दर्जनों बार डीजीपी से बात हुई. उसकी बात से डीजीपी सहमत भी थे. वो उसकी हर बात का जवाब देते. सर...सर कहते थे. फोन करने के 24 घंटे के बाद क्लीन चिट भी मिल गई थी.
फर्जी कॉल से क्लीन चिट या फिर इसके पीछे कुछ और...
मीडिया रिपोर्ट में ये दावा है कि जिस एफआईआर में आदित्य कुमार और थाना प्रभारी रहे संजय कुमार की गिरफ्तारी होने की बात कही जा रही थी उसी केस को फर्जी कॉल के बाद रद्द कर दिया गया था. एसएसपी के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर को मिस्टेक ऑफ लॉ यानी कानूनी भूल करार दिया गया. हालांकि, मीडिया के इस तरह के दावे पर खुद बिहार के डीजीपी एसके सिंघल का कहना है कि दो अलग-अलग विभागीय केस हैं. जिसमें क्लीन चिट मिलने का मीडिया में दावा किया जा रहा है.
हालांकि, वो कौन से केस हैं, इस बारे में भी डीजीपी ने खुलकर कुछ नहीं बताया. अब फिलहाल इस पूरे केस में पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार पर भी एक नई एफआईआर दर्ज हुई है. पर सवाल वही है कि कैसे एक राज्य के पुलिस मुखिया एक अंजान कॉल के झांसे में आ गए. कैसे डीजीप ने उस पर भरोसा कर लिया. कैसे एक वॉट्सऐप डीपी में जज की फोटो देखकर वो जाल में फंस गए. क्या एक कॉल भर से किसी गंभीर केस में क्लीन चिट में दी जा सकत है. ये वो तमाम सवाल हैं जिसे लेकर अभी डीजीपी को सामना करना पड़ेगा.
फिलहाल इस केस में अभिषेक अग्रवाल समेत कुल 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इस केस की बिहार की स्पेशल टीम जांच कर रही है. इस केस में दूसरे आरोपी आईपीएस अफसर आदित्य कुमार फिलहाल फरार है. पुलिस का दावा है कि आदित्य कुमार की गिरफ्तारी भी जल्द होगी.
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