क़त्ल के बाद उस इंसान के गोश्त की बनाई गई करी और पूरे मोहल्ले को खिला दी, सिंगापुर का Perfact Murder
Shams ki Zubani : 38 साल पहले सिंगापुर में एक कत्ल होता है, उसके बाद कातिलों ने उस इंसानी गोश्त की करी बनाकर पूरे मोहल्ले को खिला दी, एक सनसनीखेज़ कत्ल की दिलदहलाने वाली कहानी।
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Shams ki Zubani :क्राइम की कहानी में आज एक ऐसे क़त्ल का किस्सा है जिसके बारे में अनगिनत सच्चे झूठे क़िस्से सुने और सुनाए जा चुके हैं। ये क़त्ल का ऐसा क़िस्सा है जिसे देखकर और सुनकर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि आज भी ऐसे लोग हैं जो किसी इंसान के साथ ऐसा भी सुलूक कर सकते हैं जिसके बारे में सुनकर भी रूह फनां हो जाए।
ये एक मर्डर का किस्सा तो है लेकिन इतना परफेक्ट मर्डर जिसकी थ्योरी तो बहुत सुनी और सुनाई गई लेकिन पुलिस को न तो कभी उसके सबूत मिले और न ही कोई ऐसा चश्मदीद जिसने क़त्ल होते खुद देखा हो।
क़त्ल का ये क़िस्सा सिंगापुर का है। क़रीब 38 साल पहले ये कहानी वजूद में आई। सिंगापुर में एक परिवार था जिसका मुखिया था अयाकन्नो मरियामुत्थू। साल 1983 में अयाकन्नो की उम्र क़रीब 34 साल थी।
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अयाकन्नो और उसकी पत्नी नगराता वैली रमैया और उनके तीन बच्चे पूरा परिवार हंसी खुशी सिंगापुर में रहता था। अयाकन्नो चर्च में केयरटेकर की नौकरी करता था और उसकी तनख्वाह से ही घर का गुज़र बसर हो जाता था।
Shams ki Zubani :18 दिसंबर 1983 को नगराता सिंगापुर के चैंगी मैरेन माउंटेन रोड के पुलिस स्टेशन पर पहुँचती है और पुलिस से अपने पति अयाकन्नो के गुमशुदा होने की रिपोर्ट दर्ज करवाती है। पुलिस में लिखी शिकायत के मुताबिक अयाकन्नो पिछले छह रोज से लापता है। हालांकि पुलिस चौंकती है कि जो शख्स 6 दिन से लापता है उसके बारे में अब रिपोर्ट क्यों लिखवाई जा रही।
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मगर नगाराता पुलिस को बताती है कि कई बार वो एक दो दिन के लिए चले जाते हैं मगर इस बार जब 6 दिन के इंतजार के बाद भी वो नहीं लौटे तो मुझे फिक्र हुई लिहाजा उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखना चाहती हूं।
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पुलिस नगाराता की रिपोर्ट लिख लेती है। नगराता पुलिस को बताती है कि अयाकन्नो उससे कैसिनो में जाकर जुआ खेलने की बात कहकर घर से गया था। पुलिस कैसिनो में जाकर जुआ खेलने की बात सुनकर बुरी तरह चौंकती है क्योंकि सिंगापुर में आमतौर पर जुआ खेलने का शौक अमीर लोगों को ही होता है क्योंकि मामूली हैसियत के आदमी का जुआ खेलना क़रीब क़रीब नामुमकिन जैसा है असल में इसमें बहुत पैसा लगता है और अयाकन्नो की पत्नी ने पुलिस को जो बताया उसके मुताबिक उनकी हैसियत ऐसी नहीं थी कि वो जुआ जैसी लत को बर्दाश्त कर सकें।
पुलिस ने तब जांच शुरु की। पूछताछ करने के बाद अपने मुखबिरों के नेटवर्क को एक्टिव कर दिया। तमाम खबरियों को अयाकन्नो की तस्वीर देकर उसका पता लगाने के लिए सभी दिशाओं में रवाना कर दिया। कुछ वक्त बीतने के बाद जब अयाकन्नो का कहीं कोई पता नहीं लगा तो पुलिस ने मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया। परिवार भी ग़रीब था लिहाजा पुलिस को मामला नज़रअंदाज़ करना ज़्यादा अखरा भी नहीं।
Shams ki Zubani : हफ्तों महीनों के बाद साल भी बीत जाता है इसके बावजूद अयाकन्नो का कोई सुराग नहीं मिला। बात 1983 में शुरु हुई थी और 1987 तक अयाकन्नो का पुलिस कुछ भी अता पता नहीं लगा पाती। रिपोर्ट दर्ज होने के चार साल बाद 9 जनवरी 1987 को अचानक कुछ ऐसा होता है जिसे सुनकर पुलिस बुरी तरह से चौंक पड़ती है।
डिटेक्टिव अलामलाई के पेजर पर एक मैसेज आया। ये मैसेज डिटेक्टिव के मुखबिर का था। जिसने डिटेक्टिव से एक खबर के सिलसिले में मिलने की हसरत जाहिर की थी। डिटेक्टिव अपने मुखबिर को मिलने के लिए बुला लेता है। और फिर वो खबरी जो कुछ भी बताता है उसे सुनकर डिटेक्टिव ज़ोर ज़ोर से हंसता है। क्योंकि जो कुछ भी उसके मुखबिर ने बताया उस पर किसी भी सूरत में कोई भी यकीन नहीं कर सकता था।
इस पर मुखबिर पूरे दावे के साथ कहता है कि वो जो कुछ भी बता रहा है उसका एक एक शब्द सच है। मगर डिटेक्टिव किसी भी सूरत में उसकी बात को अपने गले से नीचे उतारने को तैयार ही नहीं हुआ।
Shams ki Zubani : उस मुखबिर ने डिटेक्टिव को बताया था कि 1983 में अयाकन्नो का क़त्ल किया गया था। और ये बात उसके सूत्र ने ही उसे पुख्ता तौर पर बताई थी। और कत्ल तीन लोगों ने मिलकर किया। यहां तक तो सब ठीक ठाक था जिसे डिटेक्टिव को मानने में कोई ऐतराज नहीं था। लेकिन इसके बाद जो कुछ भी बताया उसे सुनकर डिटेक्टिव के लिए यकीन करना मुश्किल हो गया।
असल में मुखबिर के मुताबिक कत्ल करने के बाद क़ातिलों ने उसकी लाश को किसी के हाथ न लगने की गरज पर उसके टुकड़े किए और फिर शरीर की तमाम हड्डियों को इकट्ठा करके उन्हें शहर के अलग अलग हिस्सों में फेंक दिया। लेकिन अयाकन्नो के गोश्त के छोटे छोटे बारीक पीस किए और उन्हें सब्ज़ी में मिलाकर इंसानी गोश्त को पका दिया।
यानी इंसानी मांस की करी बना दी। फिर चावल के साथ उसे एक पैकेट में पैक किया और अपने तमाम पड़ोसियों में उस रोज की खास डिश कहकर वो खाना बांट दिया। पड़ोसियों ने मुफ्त में मिले इस खाने को बड़े ही ज़ायके के साथ खा भी लिया।
जाहिर है मुखबिर की बताई इस बात को सुनकर डिटेक्टिव के लिए इसे पचा पाना नामुमकिन था। उधर मुखबिर अपनी बात पर अड़ा हुआ था। दावा यही कि उसकी एक भी लाइन और एक भी शब्द ग़लत नहीं है। डिटेक्टिव मुखबिर की बात को सुनने के बाद सीधे सिंगापुर के सीआईडी के दफ्तर में पहुँचता है और वहां अपने अफसरों को मुखबिर की बताई बात बताने लगता है।
Shams ki Zubani : मुखबिर की बात सुनकर जो हाल डिटेक्टिव का हुआ था वही हाल डिटेक्टिव की बात सुनकर उसके अफसरों का हुआ। उन्होंने भी इस बात को गले से उतारने से इनकार कर दिया। लेकिन डिटेक्टिव के जोर देने पर उसके अफसरों ने उसे इस बात की इजाजत दे दी कि तमाम काम के बीच वो इस केस की तफ्तीश भी जारी रख सकता है। लेकिन उसकी हफ्तावर रिपोर्ट उसे अपने अफसरों को देते रहनी पड़ेगी।
डिटेक्टिव अलामलाई अपने अफसरों के पास से तो लौट आया लेकिन उसे समझ में आने लगा कि उसके अफसरों को इस कहानी पर कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन वो अब अपने मुखबिर की बात को नज़रअंदाज़ करने के मूड में कतई नहीं था।
लिहाजा वो तफ्तीश में लग जाता है। तब उस डिटेक्टिव ने अयाकन्नो से जुड़ी जानकारी और मुखबिर की बताई गई बातों का मिलान किया ताकि केस की दिशा सही रह सके। डिटेक्टिव ने सबसे पहला काम ये किया कि उसने 1983 दिसंबर में ग़ायब हुए लोगों की रिपोर्ट सिंगापुर के अलग अलग थानों से तलब की।
कई दिन कई थानों की रिपोर्ट खंगालने के बाद जब डिटेक्टिव को कोई कामयाबी नहीं मिलती तब वो चैंगी मैरेन माउंटेन रोड पुलिस स्टेशन पहुँचता है। वहां पहुँचकर वो 1983 में लापता हुए लोगों की लिस्ट मांगता है। डिटेक्टिव को इस थाने में कामयाबी मिलती है और उसे वो रिपोर्ट मिल जाती है जो नगराता ने 18 दिसंबर 1983 को लिखवाई थी।
जिसमें उसने अपने शौहर की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई थी। डिटेक्टिव इन तमाम जानकारियों को सामने देखकर चौंक पड़ता है क्योंकि उसे अब लगने लगता है कि उसे उसके मुखबिर ने जो कुछ भी बताया था वो शायद सही है।
Shams ki Zubani : अब डिटेक्टिव एक बार फिर अपने अफसरों के पास पहुँचा और उन्हें अब तक की तफ्तीश की रिपोर्ट तो दी साथ ही कामयाबी का पूरा किस्सा भी बता दिया। तब सीआईडी के अफसर उसे आगे की तफ्तीश के लिए हरी झंडी दे देते हैं। अब तक डिटेक्टिव को इस केस में दिलचस्पी पैदा हो गई थी। उसने सारा सच जानने के लिए अपनी तफ्तीश की रफ्तार तेज़ कर दी।
अगले दो तीन महीनों के दौरान वो डिटेक्टिव इस केस से ताल्लुक रखने वाले क़रीब 30 लोगों से पूछताछ करता जिसमें खुद अयाकन्नो की बीवी नगराता भी शामिल थी। सभी से पूछताछ करने के बाद वो डिटेक्टिव अब एक बार फिर अपने अफसरों के पास पहुँचा और उन्हें बताया कि इस केस के सिलसिले में उसे कुछ लोगों पर शक है। लिहाजा पूछताछ के लिए उन्हें पकड़ा जा सकता है।
डिटेक्टिव के मुताबिक शक के दायरे में खुद अयाकन्नो की बीवी नगराता भी है और साथ में हैं उसके तीनों भाई। और इसके अलावा दो ऐसे लोग जिनका उनके परिवार से कोई लेना देना नहीं था।
डिटेक्टिव अपने अफसर को अपनी तैयार की गई थ्योरी को कुछ इस तरह से बताता है कि क्यों उसे अयाकन्नो की पत्नी पर शक है। डिटेक्टिव के मुताबिक अयाकन्नो की पत्नी की कई बातें शक पैदा करने की वजह देती है। खासतौर पर उसके लापता होने के बाद छह दिन के बाद रिपोर्ट लिखाना, या फिर अयाकन्नो को जुआ खेलने के जाने की बात कहना पूरी तरह से सच नहीं है।
Shams ki Zubani : लेकिन एक सबसे अहम वजह सामने आई वो ये थी कि जिस कंपनी के ज़रिए अयाकन्नो चर्च में केयरटेकर की नौकरी कर रहा था, उस कंपनी के मैनेजर ने बताया था कि अयाकन्नो ने परिवार की वजह से 22 और 23 दिसंबर की छुट्टी मांगी थी जो मंजूर भी हो गई थी। लिहाजा जिसकी छुट्टी पहले से ही मंज़ूर हो वो शख्स किसी भी सूरत में पहले छुट्टी नहीं लेगा।
इसके बाद डिटेक्टिव अपने अफसर को बताता है कि ऐसा लगता है कि मुखबिर ने जो बात अयाकन्नो के बारे में बात बताई उसके मुताबिक उसको मांस को करी में पकाया गया था। ऐसे में ये काम किसी न किसी तरह के पेशेवर कत्लगाह में काम करने वाले कसाई का हो सकता है। जिसके पास अच्छे हथियार होते हैं। ऐसे में ये पता लगाना जरूरी है कि ऐसी कौन सी जगह हो सकती है जहां इंसानी मांस को आसानी से काटकर उससे जुड़े सबूतों को मिटाया भी जा सकता है।
अपनी जांच रिपोर्ट क हवाला देते हुए डिटेक्टिव कहता है कि नगराता के तीन भाई हैं। इसके अलावा ये भी पता चला है कि अयाकन्नो कभी कभी शराब पीता था और शराब के नशे में अक्सर अपनी पत्नी से झगड़ा करके उसकी पिटाई भी कर देता था। पड़ोसियों ने इस बात की तस्दीक भी की है।
Shams ki Zubani : अब ऐसे में सवाल यही खड़ा होता है कि क्या बीवी के साथ मारपीट करने की वजह से ही अयाकन्नो को मौत के घाट उतार दिया गया। सीआईडी अफसरों को डिटेक्टिव की कहानी और थ्योरी सुनकर उसमें दम नज़र आने लगता है। फिर ये तय हुआ कि जितने भी संदिग्ध हैं सभी के घरों में अलग अलग छापा मारकर वहां तलाशी ली जाए और कत्ल से जुड़े सुरागों की तलाश की जाए। हालांकि सीआईडी ये भी समझ चुकी थी कि वाकये को एक अच्छा खासा लंबा वक्त गुजर चुका है ऐसे में किसी सुराग का मिलना करीब करीब नामुमकिन है।
अपने अफसरों से हरी झंडी मिलने के बाद डिटेक्टिव सिंगापुर में मार्च के महीने में पांच अलग अलग जगहों पर छापा मारती है। अयाकन्नो का घर, अयाकानों की पत्नी के तीनों भाइयों का घर और नगराता की मां का घर और चर्च के सामने मौजूद एक मटन शॉप का ठिकाना। इन जगहों पर छापा मारने के बाद सीआईडी की टीम आठ लोगों को हिरासत में ले लेती है।
अयाकन्नो की पत्नी नगराता, नगराता के तीनो भाई और उनकी पत्नियां और नगराता की मां । फिर इन सबसे डिटेक्टिव पूछताछ करता है। सबसे हैरानी की बात ये है कि पूछताछ के दौरान सभी आठ के आठ खुद को इस मामले से दूर ही रखते हैं और एक ही तरह का जवाब देते हैं कि उन्हें अयाकन्नो के लापता होने की कोई बात पता ही नहीं थी।
Shams ki Zubani : तब सीआईडी को महसूस हुआ कि उसके पास इन लोगों को ज़्यादा दिनो तक अपनी हिरासत में रखने की कोई वजह नहीं क्योंकि सभी ने उस गुनाह से अपना पल्ला सीधे तौर पर झाड लिया था।
जाहिर है सीआईडी के पास ऐसा एक भी सबूत नहीं था जो क़त्ल के इस केस को कोर्ट में साबित कर सके। इसके बावजूद पुलिस पूछताछ करती ही रही। तभी पुलिस को फिर कामयाबी मिल ही जाती है। क्योंकि आठ में से एक ने पुलिस की मार और पूछताछ में ये बात कुबूल कर ली कि कत्ल हुआ और कत्ल किया गया।
सीआईडी के सामने जिसने कबूल किया उसी ने बताया कि अयाकन्नो को 12 दिसंबर को ही किडनेप किया गया था। और किडनैप के बाद उसी रोज उसका क़त्ल भी कर दिया था। जब डिटेक्टिव ने कत्ल की वजह जाननी चाही तो गुनाह कुबूल करने वाले ने कहा कि अयाकन्नो अपनी बीवी को मारता पीटता था।
Shams ki Zubani : ये बात नगराता ने अपने तीनों भाइयों को बता रखी थी और वो भी अक्सर अयाकन्नो पर गुस्सा करते ही रहते थे। और उसी वजह से बदला लेने की गरज से 12 दिसंबर को उसे अगवा किया और फिर उसका कत्ल कर दिया। और वो कत्ल की पूरी कहानी बताता है। और कत्ल के बाद जब लाश को ठिकाने लगाने का मसला खड़ा हुआ तो यहां मटन शॉप का रोल शुरू होता है। असल में तीनों ही भाई मटन शॉप से मीट काटने वाले बड़े चाकू लेकर आते हैं।
और फिर बड़ी ही तसल्ली से उसकी लाश के टुकड़े करते हैं शरीर की हड्डियों को एक जगह इकट्ठा करके उन्हें अलग अलग पॉलिथिन की थैलियों में पैक करके शहर के अलग अलग हिस्सों में फिकवा देते हैं। उसके बाद उसके गोश्त के बहुत बारीक टुकड़े किए जाते हैं। फिर उसे बड़ी सी कढ़ाई में सब्ज़ी के साथ मिलाकर पका देते हैं। फिर चावल पका कर खाने के छोटे छोटे पैकेट बनाए गए और करी और चावल को उसमें पैक करके सारे पड़ोसियों की दावत कर दी।
ये कहानी सुनने के बाद डिटेक्टिव को एक बड़ी कामयाबी तो मिल ही गई कि उसके सामने इकरारनामा आ गया लेकिन इसका कोई सबूत नहीं था। जिससे अदालत में इस मामले में सज़ा दिलाई जा सके। सबूत के बिना ये कहानी बस कहानी ही रह जाएगी।
इस बयान के आधार पर पुलिस अगले चार पांच महीनों तक तफ्तीश करती रही। और 6 जून 1987 को उन सभी आरोपियों को अदालत में पहली बार पेश किया गया। पुलिस ने अपनी चार्जशीट में नगराता के तीनों भाइयों को मुख्य कातिल ठहराया जबकि बाकी लोगों को सबूत मिटाने का दोषी बताया गया।
Shams ki Zubani : अदालत की कार्रवाई शुरू हुई और दोनों तरफ की बहस और कहानी सुनने के बाद जब अदालत ने सबूत मांगे तो सीआईडी के हाथ खाली थे। यानी कोई भी ऐसी चीज नहीं थी जिससे क़त्ल की उस कहानी को साबित किया जा सके। लिहाजा सबूतों के अभाव में अदालत ने आठो को बरी कर दिया। लेकिन सीआईडी के अनुरोध पर अदालत ने बाद में पांच लोगों को रिहा कर दिया जबकि शक के आधार पर तीन लोगों को पुलिस हिरासत में रखने का ही हुक्म दे दिया।
पुलिस ने हिरासत में आए तीनों भाइयों से पूछताछ का सिलसिला आगे बढ़ाया और उनके बताई गई जगहों की तलाशी ली लेकिन एक भी सबूत सीआईडी के हाथ नहीं लगा। अगले चार सालों तक तीनों जेल में ही रहते हैं। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। तब अदालत ने आरोपियों की अर्जी पर 1991 में उन्हें जेल से रिहा करने का फैसला किया।
आरोपी बरी तो हो गए लेकिन सीआईडी उनके पीछे लगी रही। लेकिन चार साल और बीतने के बावजूद सीआईडी को कोई सबूत नहीं मिला। इस बीच मीडिया में ये करी मर्डर बहुत छाया रहता था। लेकिन वक़्त गुज़रने के साथ लोग अब इस किस्से को भूलने लगे थे।
Shams ki Zubani : तभी इस कहानी ने एक बार फिर लोगों के जहन में दस्तक दी और 1995 में सिंगापुर के एक टीवी चैनल ने एक सीरियल बनाया जो इसी करी मर्डर पर आधारित था। और उसमें वही सारी कहानी को पर्दे पर उतारा जो कहानी पुलिस की थ्योरी थी। उस सीरियल का नाम था डॉक्टर जस्टिस।
इत्तेफाक से तीनों भाइयों ने जब उस सीरियल को देखा तो अदालत का दरवाजा खटखटाया। उनकी दलील थी कि सीरियल के जरिए उन्हें बदनाम किया जा रहा है जबकि अदालत ने उन्हें बाइज्जत बरी किया है और वो भी सबूत और सुरागों के अभाव में।
लेकिन अदालत ने उनकी दलील को ये कहकर ठुकरा दिया और सिंगापुर के टीवी चैनलके हक में फैसला दिया कि जो सीरियल टीवी चैनल ने बनाया वो मीडिया में छपी रिपोर्ट पर अधारित है। और चूंकि ये कहानी एक काल्पनिक कथा के डिस्क्लेमर के साथ प्रसारित हो रही है तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने का कोई सवाल पैदा नहीं होता।
अब इस किस्से को 38 साल हो चुके हैं। यानी सिंगापुर पुलिस की ये थ्योरी तो सही है कि अयाकन्नो ज़िंदा तो नहीं है। वर्ना इतने वक्त में कहीं न कहीं लौटके दिखता जरूर। और 35 साल पहले पेजर पर भेजी उस मुखबिर की कहानी को भी ग़लत नहीं कहा जा सकता।
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