इनके हाथ में तालिबान की कमान जान लीजिए कौन हैं ये?

Who's who of taliban

CrimeTak

15 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:03 PM)

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हैबतुल्ला अखुंदजादा, तालिबान का मुखिया

जब 2016 में अमेरिका के ड्रोन स्ट्राइक में तालिबान का तत्कालीन मुखिया मुल्ला मंसूर अख्तर मारा गया था तब हैबतुल्ला की तालिबान चीफ के तौर पर ताजपोशी की गई थी। मुखिया बनने से पहले हैबतुल्ला एक साधारण धार्मिक गुरु था।

कहा जाता है कि उसको तालिबान का मुखिया इस वजह से बनाया गया ताकि वो तालिबान लड़ाकों के दिमाग में धर्म की गलत व्याख्या कर उन्हें जिहाद में झोंक सके। उसका किसी भी तरह का कोई मिलिट्री अनुभव नहीं रहा है।

अल-कायदा का मुखिया अयमन अल जवाहिरी भी हैबतुल्ला को अपना समर्थन दे चुका है । दरअसल अलग-अलग आतंकी संगठनों को तालिबान से जोड़ने में हैबतुल्ला का बेहद अहम रोल रहा है।

2016 में मुल्ला मंसूर के मारे जाने के बाद तालिबान कई धड़ों में बंट गया था लेकिन हैबतुल्ला एक बार फिर इन्हें तालिबान के अंदर लेकर आया और उन्हें मिलकर अमेरिका का मुकाबला करने के लिए तैयार किया गया।

कहा जाता है कि हैबतुल्ला अच्छा लड़ाका तो नहीं है लेकिन वो बहुत अच्छा वक्ता है और भटके लोगों को जिहाद में झोंकने में उसे माहिर माना जाता है।1996-2001 के दौरान जब अफगानिस्तान में तालिबान की हुकुमत थी तब भी कोई तालिबान की पूरी लीडरशिप के बारे में नहीं जानता था।

हम आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं कि इस वक्त जब तालिबान एक बार फिर अफगानिस्तान की हुकूमत पर काबिज होने जा रहा है तब कौन-कौन इसके खास नेता हैं।

मुल्ला बरादर, तालिबान संस्थापक

मुल्ला बरादर का पूरा नाम है अब्दुल गनी बरादर। बरादर का बचपन कंधार में गुजरा जहां पर तालिबान का जन्म हुआ। 1970 में जब रुस ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो बरादर की जिंदगी पर भी असर पड़ा और वो भी सोवियत फौज के खिलाफ जंग में कूद पड़ा और एक लड़ाका बन गया।

बरादर सोवियत फौजों के खिलाफ तालिबान का मुखिया रहा मुल्ला उमर के साथ लड़ा, जिस वजह से उसे मुल्ला उमर का खास माना जाता था और जब मुल्ला उमर का सिक्का तालिबान में चला तब बरादर को भी अहम रोल दिया गया।

सोवियत फौजों के जाने के बाद साल 1990 में अफगानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया। देश में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार फैल गया इसी दौरान मुल्ला उमर और बरादर ने बाकी लोगों के साथ मिलकर तालिबान की शुरुआत की।

साल 2001 में जब तालिबान की अफगानिस्तान में हार हुई तब बरादर ने हामिद करज़ई की सरकार को समर्थन का पत्र भी दिया था। साल 2010 में अमेरिकी दबाव के चलते पाकिस्तान में बरादर को गिरफ्तार कर लिया गया।

साल 2018 में उसे रिहा कर कतर भेज दिया गया। यहीं पर बरादर को तालिबान की राजनीति विंग का मुखिया बना दिया गया और उसकी देखरेख में ही अमेरिका और तालिबान का अफगान छोड़ने का एग्रीमेंट साइन किया गया।

सिराजुद्दीन हक्कानी, हक्कानी नेटवर्क का मुखिया

एंटी सोवियत जिहाद का मुखिया रहा जलालुद्दीन हक्कानी के बेटे का नाम है सिराजुद्दीन हक्कानी। जिसने अपने पिता के बाद हक्कानी नेटवर्क की बागडोर संभाली। वो केवल हक्कानी नेटवर्क का मुखिया ही नहीं बलकि तालिबान मूवमेंट का डिप्टी लीडर भी है।

अमेरिका हक्कानी नेटवर्क को आतंकी गुट घोषित कर चुका है। अमेरिकी मानते हैं कि पिछले बीस साल में अफगानिस्तान में अमेरिकी और नेटो फौजों को सबसे ज्यादा नुकसान हक्कानी नेटवर्क के आतंकियों ने ही पहुंचाया है।

हक्कानी नेटवर्क सुसाइड हमलों के लिए मशहूर है और काबुल में कुछ बड़े सुसाइड अटैक हक्कानी नेटवर्क ने ही अंजाम दिए हैं। साथ ही हक्कानी नेटवर्क पर अफगान सरकार के अधिकारियों के क़त्ल और फिरौती के लिए पश्चिमी देशों के लोगों को अगवा करने का भी आरोप है।

हक्कानी नेटवर्क के आतंकी अफगानिस्तान की पूर्वी पहाड़ी इलाके में लड़ाई की महारत रखते हैं और इस इलाके में अफगान आर्मी, अमेरिकी और नाटो फौजों से इन्होंने ही मुकाबला किया था।

मुल्ला याकूब, तालिबान के पूर्व प्रमुख मुल्ला उमर का बेटा

मुल्ला याकूब तालिबान की नींव रखने वाले मुल्ला उमर का बेटा है। 90 के दशक में मुल्ला उमर ने ही तालिबान को अफगानिस्तान के कोने-कोने तक पहुंचाया था। मुल्ला याकूब इस वक़्त तालिबान के मिलिट्री कमीशन का मुखिया है। अफगानिस्तान में लड़ने वाले तमाम तालिबान आतंकी और कमांडर उसके इशारों पर ही काम करते हैं।

अपने पिता की वजह से याकूब का तालिबान में अलग ही जलवा है। तालिबान लड़ाके उसे मुल्ला उमर की वजह से बेहद इज्जत देते हैं और उसको अपना मुखिया मानते हैं। हालांकि तालिबान के भीतर मुल्ला याकूब के रोल को लेकर सवाल खड़े होते रहते हैं।

तालिबान मामलों के कुछ जानकार मानते हैं कि मुल्ला याकूब को तालिबान के इतने अहम पद पर इसलिए बैठाया गया है क्योंकि वो मुल्ला उमर का बेटा है।

ये तालीबान के वो चेहरे हैं जो तालिबान में बेहद अहम हैं। चाहें जंग का मैदान हो या फिर दूसरे देशों से तालिबान के रिश्ते यही चेहरे तालिबान की दशा और दिशा तय करते हैं।

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