महंत नरेंद्र गिरि के अखाड़े से कैसे कोई इंसान बनता है नागा? नागाओं की INSIDE STORY

who is naaga sadhu and how a man become naaga

CrimeTak

21 Sep 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:05 PM)

follow google news

राख से लिपटे, बिना लिबास वाले, माथे पे तिलक लगाए, हाथो मे त्रिशूल लिए, आंखों में गुस्सा और जुबान पे हर हर महादेव। अपनी धुन मे मगन कौन हैं ये? यही तो नागा हैं इन्हें ही नागा कहते हैं। जटा-जूट धारी और निर्वस्त्र, भस्म इनका आभूषण है और जटा इनका मुकुट। अखाड़ा परंपरा को निभाने वाले नगा साधु आम दिनों में कहां रहते हैं? आम लोगों को इनके दर्शन कुंभ जैसे आयोजनों में ही क्यों होते हैं? नागा साधुओं को लेकर कुंभ जैसे मेले में बड़ी बेताबी से लोग इनके बारे में जानना चाहते हैं।

कोई कैसे बनता है नागा?

कहां रहते हैं नागा बाबा?

क्यों ये कपड़ों को त्याग कर आकाश को अपना वस्त्र बना लेते हैं नागा?

क्यों ये कपड़ों के नाम पर पूरे शरीर पर धूनी की राख लपेट लेते हैं?

गंगा के तट पर नागा साधुओं का ये संसार सवालों से ज्यादा कौतुहल से भरा है, कौतुहल ये कि नागा साधुओं की विचित्र दुनिया का सच क्या है? एक साथ कहां से आते हैं इतने साधु? सवाल ये कि पवित्र स्नान के बाद आखिर कहां चले जाते हैं ये साधु? लोगों को सबसे ज्यादा नागा साधुओं की दुनिया आकर्षित करती है, नागा साधुओं को लेकर सवालों की फेहरिस्त लंबी है। मसलन,

क्या नागा साधु बनने के लिए कोई ट्रेनिंग होती है?

क्या नागा साधु अस्त्र शस्त्र में भी निपुण होते हैं?

क्या है नागा साधुओं की 108 डुबकियों का रहस्य?

शून्य डिग्री तापमान में कैसे रह लेते हैं नागा साधु?

क्या हिमालय की गुफाओं में है साधुओं का संसार?

अपनी धुन में मगन साधुओं को देखकर अगर आप ये सोचते हैं कि ये कुछ नहीं करते, तो आप गलत हैं। हकीकत तो ये है कि नागा साधु बनने के लिए भी इन्हें कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। कोई भी साधु यूं ही नागा नहीं बन सकता, इसके लिए साधुओं को गुरु-शिष्य परंपरा में आना पड़ता है। सालों तक गुरु की सेवा और मुश्किल तपस्या करनी पड़ती है और तब कहीं जाकर इन्हें नागा साधु होने का दर्जा मिलता है।

ये शिव के भक्तों की धुंधुबी है, आदिगुरू शंकराचार्य ने जिनके कंधों पर सनातन धर्म की रक्षा का भार सौंपा था। उनकी ये हुंकार है, ये वो रणभेरी है जो सदियों से बजती आ रही है। लेकिन शिव के जिन भक्तों को दुनिया नागा साधू कहती है वो सिर्फ युद्धनाध ही नहीं करते वो हथियार चलाने में माहिर होते हैं, और महाकुंभ जैसे अवसर पर हथियार भांजकर अपना कौशल भी दिखाते हैं। नागा साधुओं को हर हथियार चलाने में महारत हासिल होती है, शास्त्र के साथ शस्त्र विद्या के हर हुनर में वो माहिर होते हैं। गुस्सा आ जाए तो खैर नहीं, नहीं तो शांत रहते हुए भी अद्भुत योद्धा का एहसास देते रहते हैं नागा साधु।

संतों को हथियार से क्या काम, लेकिन नागा साधुओं का सौंदर्य भी बगैर हथियार के पूरा नहीं होता। सीधे शब्दों में कहा जाए तो अगर अखाड़े फोर्स हैं तो नागा उसके कमांडो। ज़माना बदला तो हथियार भी बदले बंदूक भी हाथ में आ गई और ट्रिगर पर उंगलियां भी कसने लगीं। पंरपरा में सिर्फ बावन हथियार चलाने की बात है, लेकिन अब तो बंदूक गोली भी शोभा बढ़ा रही है। उनके मुताबिक हथियारों में ही उनके ईष्ट देव बसते हैं।

इतिहास बदला व्यवस्था बदली अखाड़ों के तेवर भी बदले, लेकिन नागा साधुओं का हथियार प्रेम नहीं बदला। वो आज भी सदियों के इतिहास की गवाही दे रहा है, लेकिन इन नागा साधुओं के बनने की एक खास और मुश्किल प्रक्रिया होती है। आमतौर पर 18 साल से ज़्यादा के युवक को ही नागा बनाया जाता है। अगर संयासी जप, तप, योग, धर शस्त्र शास्त्र की सारी कसौटियों पर खरा उतरता है। तो महाकुंभ के दौरान किसी भी शाही स्नान से एक दिन पहले उसे नागा बनाया जाता है।

इसके लिए संयासी का मुंडन होता है, पितृऋण से मुक्ति के लिए पिंड दान कराया जाता है, और सबसे आखिर में उस साधु की कामेंद्रियों को बेअसर बनाया जाता है। ताकि नागा संयासी बनने से पहले उसकी वासना मर जाए, खास बात ये है कि चारों कुंभों में बनाए गए नागा अलग अलग होते हैं। हरिद्वार में बनने वाला नागा को बर्फानी नागा, प्रयाग में त्यागी नागा, उज्जैन में खूनी नागा और नासिक में खिचड़ी नागा कहा जाता है। इन्हीं नागा संयासियों पर होता है धर्म ध्वजा की रक्षा का भार।

    follow google newsfollow whatsapp