चलती ट्रेन से RBI के 342 करोड़ रुपए चोरी हो गए और डेढ़ दर्जन गार्ड्स को पता भी नहीं चला!

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CrimeTak

03 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:02 PM)

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चलती ट्रेन में डकैती पर फिल्मों में ऐसे कई सीन आपने देखे होंगे। द ग्रेट ट्रेन ऱॉबरी पर बनी उन फिल्मों के सीन देख कर कई बार आपके रौंगटे भी खड़े हो गए होंगे। पर ऐसे फिल्मी सीन हकीकत में भी बदल सकते हैं शायद ही किसी ने सोचा हो।

8 अगस्त 2016 की उस रात कुछ 9 बजे हुए थे, एक पैसेंजर ट्रेन तमिलनाडु के सेलम रेलवे स्टेशन चेन्नई के लिए चलती है। पैसेंजर ट्रेन की दो बोगी रिजर्व थी। रिजर्व बैंक आफ इंडिया के लिए। इन दोनों बोगियों में लकड़ी के 226 बॉक्स थे। जिनमें कुल 342 करोड़ रुपए थे। ये सारे नोट पुराने और इस्तेमाल किए हुए रुपए थे। इनमें कटे-फटे नोट भी थे। ये 342 करोड़ रुपए भारतीय स्टेट बैंक, इंडियन बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक के थे। इन तीनों बैंकों ने ये रुपए भारतीय रिजर्व बैंक के खजाने में लौटाने के लिए दिए थे ताकि उनकी जगह उन्हें नए नोट मिलें। इन सारे रुपयों को चेन्नई में भारतीय रिजर्व बैंक के खजाने में पहुंचाना था।

सेलम से चली पैसेंजर ट्रेन की जिन दो बोगी में ये 342 करोड़ रुपए थे उन दोनों बोगियों की हिफाजत के लिए 18 पुलिसवाले थे। जिनमें एक असिस्टेंट कमिश्नर भी था। सुरक्षा की जिम्मेदारी रेलवे पुलिस फोर्स की थी। जिसके 15 जवान ट्रेन के साथ चल रहे थे। मगर जिस बोगी में डाका पड़ा उसके अंदर कोई पुलिसवाल नहीं था। बोगी सील थी और सुरक्षा जवान दूसरी बोगी में बैठे थे जिनमें बाकी के रुपए रखे थे।

सलेम से विरधाचलम तक ट्रेन डीजल इंजिन से चलती है। ये रूट इलैक्टिफाइड नहीं है। यानी इस रूट पर ट्रेनें इलैक्ट्रिक इंजिन से नहीं चलतीं। जबकि विरधाचलम से चेन्नई तक रूट इलैक्टिफाइड हो जाता है। यानी तब ट्रेनें 25 हजार वॉल्ट्स करंट से दौड़ती हाई टेंशन तारों के सहारे चलती हैं। सेलम से विरधाचलम तक की दूरी 140 किलोमीटर है। और ये ट्रेन इस दूरी को दो घंटे में पूरी करती है।

सलेम से 140 किलोमीटर का फासला तय कर ट्रेन तय वक्त पर रात 11 बजे विरधाचलम रेलवे स्टेशन पहुंचती है। यहां ट्रेन एक घंटा रुकती है। क्योंकि यहीं से डीजल इंजिन बदला जाना था। उसकी जगह अब इलक्ट्रिक इंजिन लगना था। इंजिन चेंज होता है और फिर ट्रेन आगे बढ़ जाती है।

पांच घंटे बाद अगले दिन की सुबह के चार बजे एग्नोर रेलवे स्टेशन पर पहुंचती है, तब पहली बार एक रेलवे कर्मचारी की नज़र इस बोगी के छत पर पड़ती है। छत में सुराख था। ट्रेन में डाका पड़ चुका था। क्योंकि ये उन दो में से ही एक बोगी थी जिसमें भारतीय रिजर्व बैंक के 342 करोड़ रुपए रखे थे।

अब सवाल ये था कि चलती ट्रेन में आखिर डाका कैसे पड़ा? कहां पर पड़ा? और इस तरह डाका डालने वाले वो शातिर लोग कौन हैं? कौन हो सकते हैं? तो पेश है द ग्रेट ट्रेन ऱॉबरी की आगे की कहानी।

चेन्नई पहुंचने से पहले शायद ट्रेन में पड़ चुके इस डाका का खुलासा भी ना होता। वो तो ट्रेन जब सेलम से एग्नोर रेलवे स्टेशन पहंची तो पुलिसवालों ने बोगी का दरवाजा खोल कर यूं ही अंदर का मुआयना कने लगे। और उसी दौरान एक अफसर को तब बड़ा अजीब लगा जब उसने देखा कि रात के अंधेरे में बी बोगी के अंदर बाहर से तेज रोशनी आ रही है। इसी के बाद जब एक रेलवे कर्मचारी को बोगी की छत पर भेजा गया तो पता चला कि छत में सेंध मारी जा चुकी है।

दरअसल बोगी की लोहे की छत को किसी वेल्डिंग या गैस मशीन से काटा गया था। चौड़ाई इतनी थी कि एक आदमी आसानी से उस सुराख से बोगी के अंदर आ-जा सकता था। जैसे ही इस बात का अहसास सुरक्षाबलों को हुआ अचानक हड़कंप मच गया।

इसी के बाद जब बोगी में रखे ब़क्स की तलाशी ली गई तो पता चला कि उस बोगी में रखे कुल चार बॉक्स ऐसे थे जिनके साथ छेड़छाड़ की गई है। इनमें से एक तो पूरी तरह खाली था। जबकि बाकी बॉक्स से कुछ नोट निकाले गए थे। बाद में सारे बॉक्स की गिनती की गई तो पता चला कि करीब पांच करोड़ रुपए गायब हैं। यानी लुटेरे अपने साथ पांच करोड़ रुपए ले गए। ब़क्से में रखे ज्यादातर नोट हजार, पांच सौ और सौ के थे।

ट्रेन में डाका पड़ चुका था अब ये पता लगाना था कि आखिर ये हुआ कैसे? तो छानबीन के बाद जांच टीम फिलहाल इसी नतीजे पर पहुंची है कि ट्रेन में लूट सेलम से विरधाचलम के बीच ही हुई है। क्योंकि सेलम से विरधाचलम के बीच 140 किलोमीटर के इस ट्रैक पर ही डीजल इंजिन से ट्रेन चलती है। ऐसे में ट्रेन की छत पर चढ़ कर छत को काटना आसान था। जबकि इलैक्ट्रिफाइड रूट पर हाई टेंशन तार के नीचे ट्रेन की छत पर चढ़ना और छत में सेंध लगाना मुम्मिकन ही नहीं है। इससे करंट लगने का खतरा था।

हालांकि एक दूसरी थ्योरी ये भी आ रही है कि ट्रेन जब डीजल इंजिन से इलैक्टिक इंजिन में तब्दील होने के लिए विरधाचलम स्टेशन पर एक घंटे रुकी थी तब वहां पर भी डाका पड़ सकता है। हालांकि पुलिस का मानना है कि इसकी संभावना कम है। क्योंकि स्टेशन पर ट्रेन के खड़ी होने की सूरत में छत पर चढ़ कर सेंध लगाना बेहद रिस्की काम है।

पहले रेलवे पुलिस, फिर लोकल पुलिस ने मामले की जांच की। मगर चोरी इस तरह फिल्मी अंदाज़ में की गई थी कि पुलिस को कुछ समझ नहीं आया। लिहाज़ा मामला सीबी-सीआईडी की स्पेशल टीम को सौंप दिया गया। टीम पूरे 2 साल तक छानबीन करती रही, करीब 2 हजार लोगों से पूछताछ की। तमाम पहलुओं को खंगाल डाला। रेलवे कर्मियों से लेकर पार्सल कंपनी के कर्मचारियों तक का कच्चा चिट्ठा खोला गया, मगर नतीजा सिफर रहा।

हर तरफ से हार कर आखिर में स्पेशल सेल ने ब्रह्मास्त्र चलाया और मामले को सुलझाने के लिए आईटी एक्सपर्ट्स की मदद ली, तब टीम के हाथ लगा पहला सुराग, दरअसल स्पेशल सेल ने सेलम से चेन्नई के बीच ट्रेन चलते वक्त जितने भी मोबाइल नंबर एक्टिव थे उनको खंगाला तो उनमें से चार-पांच मोबाइल नंबर संदिग्ध मिले। उन संदिग्ध मोबाइल नंबरों में कुछ समानता पाई गई, जब इन नंबरों की जांच की गई तो पता चला कि ये सभी नंबर मध्यप्रदेश के एक ही जगह के हैं।

मगर सवाल ये था कि ये कैसे तय हो कि इन्हीं लोगों ने ट्रेन में डाका डाला। लिहाज़ा अब मामले को सुलझाने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की मदद ली गई, और इस इलाके की सैटेलाइट तस्वीरों के ज़रिए चोरों की तलाश शुरू की गई। तब पता चला कि सेलम से विरधाचलम के बीच की इस ट्रेन रॉबरी को 11 लोगों ने मिल कर अंजाम दिया था।

पुलिस के लिए ये दोनों ही लीड मामले को सुलझाने में मददगार साबित होने लगी, मोबाइल नंबरों के साथ साथ सेटेलाइट तस्वीरों से ये साफ हो गया कि ट्रेन में डकैती करने वाले डकैत मध्यप्रदेश और बिहार के रहने वाले थे। हालांकि पुलिस के मुताबिक इस डकैती में रेलवे या पार्सल कंपनी के किसी शख्स के शामिल होने के कोई सबूत नहीं है।

कुछ आरोपी पुलिस के हाथ लग चुके हैं। कुछ लगने बाकी हैं। यानी पुलिस मामले को सुलझाने के बेहद करीब है। बस इंतजार है तो सभी आपराधियों के हाथ लगने का। इसके बाद ही हाल के वक्त की इस सबसे बड़ी ट्रेन रॉबरी की पूरी कहानी हमारे सामने होगी।

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