जासूसी करने वाला कैसे बन गया दुनिया के सबसे बड़े देश का राष्ट्रपति?

story of Vladimir Putin from spy agent to president

CrimeTak

17 Sep 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:05 PM)

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नाम है व्लादिमीर पुतिन

एक ऐसा राष्ट्रपति जिसके नाम के आगे महामहिम ना लगा हो तो ये तय कर पाना मुश्किल हो जाए कि उसे कहा क्या जाए। 68 की उम्र में रिंग का सुल्तान है या घुड़सवारी करने वाला कड़ियल जवान, बरफीले पानी से लड़ने वाला जियाला या फिर मुसीबतों से लड़ने वाला लड़ाका।

दुनिया भर के नेता उससे रश्क कर सकते हैं क्योंकि वो जो कर सकता है, उसे दुनिया का कोई और राष्ट्राध्यक्ष सोच भी नहीं सकता। ज़रा इनकी खूबियों पर नज़र दौड़ाइए,

राजनेता

जासूस

मार्शल आर्ट मास्टर ((ब्लैक बेल्ट))

पायलट

टैंक चलाने वाला सैनिक

अभेद निशाना लगाने वाला निशानेबाज़

स्पोर्ट्स कार चलाने वाला रेसर

बाइकर

आईस हॉकी का खिलाड़ी

पानी में शिकार करने वाला शिकारी

जंगली जानवरों से खेलने वाला जियाला

टाइगर को ज़मीन चटाने वाला जांबाज़

घुड़सवार

तैराक

पहाड़ों पर चढ़ने वाला क्लाइंबर

स्कूबा डाइविंग करने वाला डाइवर

फ्राइंग पैन को हाथों से मोड़ देने वाला बहादुर

आखिर ये पुतिन हैं क्या बला? ऐसी कौन सी चीज है जिससे अमेरिका तक पुतिन से घबराता है। वो कौन सी ताकत है जो पुतिन को इतना ताकतवर बनाती है?

क्या है पुतिन की कहानी?

7 अक्टूबर 1952

लेनिनग्राद जिसे अब सेंट पीटर्सबर्ग कहते हैं के सोवियत परिवार में एक बच्चे ने जन्म लिया, नाम रखा गया व्लादिमीर पुतिन। पिता सोवियत नेवी का हिस्सा थे, तो मां एक फैक्ट्री वर्कर, मगर दोनों की कमाई के बाद भी घर जैसे तैसे ही चलता था। लिहाज़ा पुतिन बचपन में ही चूहों को पकड़ने लगे जिसके बदले उन्हें कुछ पैसे मिल जाते थे, मगर कहां पता था कि बड़ा होकर यही बच्चा दुनियाभर में रूस के दुश्मनों को पकड़ेगा। जिस उम्र में बच्चे डॉक्टर इंजीनियर या खिलाड़ी बनने के ख्वाब देखते हैं उस उम्र में ही इस बच्चे ने जासूस बनने का फैसला कर लिया।

जासूस बनने की कहानी?

जितनी फुर्ती और मुस्तैदी चूहे पकड़ने में थी उतनी ही पढ़ाई करने में भी, क्लास में फर्स्ट आने से कम पर तो पुतिन ने कभी समझौता किया ही नहीं। मगर इसी दौरान पुतिन ने एक और हुनर सीखा, जूडो कराटे का। क्योंकि सेंट पीटर्सबर्ग में पुतिन जहां रहते थे वहां माहौल ऐसा था कि स्थानीय लड़कों के बीच मार-पीट होना आम बात थी और यहीं पुतिन ने अपनी ज़िंदगी के लिए एक मूलमंत्र तैयार किया, अगर लड़ाई होनी तय है तो पहला पंच मारो।

चूहे पकड़ने वाला एक पढ़ा लिखा सड़कछाप इंसान पहले जासूस और फिर देश का राष्ट्रपति कैसे बना ये कहानी भी दिलचस्प है, स्कूल खत्म होते ही पुतिन अपने बचपन के ख्वाब यानी जासूस बनने के सपने को पूरा करने में जुट गए। और रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी के दफतर के चक्कर काटने लगे, पुतिन की चाहत थी कि वो केजीबी के अफसर बनें। मगर उन्हें ये नहीं पता था कि ये होगा कैसे, एक रोज़ उन्हें केजीबी की एक महिला अधिकारी मिली जिसने उन्हें केजीबी को ज्वाइन करने से पहले कानून की डिग्री लेने की सलाह दी। लिहाज़ा कानून की डिग्री के लिए पुतिन ने लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया और साल 1975 में डिग्री। डिग्री मिलते ही पुतिन ने केजीबी में जासूस बनने के लिए अप्लाई कर दिया, अब फैसला करने की बारी केजीबी की थी।

KGB में कैसे मिली एंट्री?

केजीबी दुनिया की सबसे खतरनाक खुफियां एजेंसियों में से एक है। केजीबी के जासूसों के कारनामों की कहानियां दुनिया भर में सुनी और सुनाई जाती हैं। और उसी केजीबी का जासूस बनने के लिए पुतिन ने पूरी तैयारी कर रखी थी। जासूस बनने के लिए व्लादिमिर पुतिन का दीवानापन देखते हुए उनके पहले ही आवेदन पर केजीबी ने उन्हें भर्ती कर लिया। केजीबी ज्वाइन करने के बाद पुतिन को लेनिनग्राद के ओखता ट्रेनिंग सेंटर भेजा गया, जहां उन्हें बंदूक चलाने से लेकर प्लेन उड़ाने तक तमाम तरह की ट्रेनिंग दी गई।

पुतिन का जासूसी मिशन

ट्रेनिंग पूरी होने के बाद पुतिन को पहले मिशन के लिए जर्मनी भेजा गया। पुतिन करीब 15 साल जर्मनी में ट्रांसलेटर बनकर अंडर कवर एजेंट के तौर पर काम करते रहे। मिशन पूरा होने के बाद 1990 में पुतिन वापस लौटे और कुछ वक्त के लिए उन्होंने लेनिनग्राद की स्टेट यूनिवर्सिटी में जासूस बनने की ट्रेनिंग दी। मगर सोवियत संघ के पतन के बाद पुतिन ने रिटायरमेंट का फैसला कर लिया और 16 साल की अपनी नौकरी के बाद 20 अगस्त 1991 में पुतिन कर्नल की पोस्ट से रिटायर हो गए।

सियासत में पुतिन की एंट्री

इस दौरान पुतिन ने ल्यूडमिला से शादी की और उनकी दो बेटियां भी हुईं। लेकिन कहते हैं कि पुतिन काम में इतना उलझे थे कि घर पर टाइम ही नहीं दे पाए, नतीजतन बीवी से तलाक हो गया। पुतिन फिर उन्हीं गलियों में लौट गए जहां उनका बचपन बीता था, जाने माने नेता अनातोली सोबचक के साथ जुड़कर राजनीतिक करियर की शुरूआत की और उनके करीबी बन गए। बाद में जब सोबचक लेनिनग्राद के मेयर चुने गये तो उन्होंने पुतिन को उप मेयर बना दिया, 1996 में चुनावी समीकरण बदले और सोबचक को हार का सामना करना पड़ा, तो पुतिन अपने पद से इस्तीफा देते हुए मॉस्को चले गए।

प्रधानमंत्री बने पुतिन

मास्कों में पुतिन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की टीम में जगह बनाने में कामयाब रहे और जल्द ही उन्हें राष्ट्रपति प्रशासन के उप प्रमुख की बागडोर सौंप दी गई। इसके बाद तो जैसे पूरी कायनात ही उन्हें राजनेता बनाने की साज़िश में जुट गई। पहले राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया, और फिर दो साल बाद ही 1999 में जब येल्तसिन ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया तो पुतिन को कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया।

रूस के राष्ट्रपति पद पर थी नज़र

पुतिन की मंज़िल कार्यवाहक राष्ट्रपति नहीं बल्कि महामहिम का पद थी, लिहाज़ा साल 2000 में वो राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़े और जीते भी। इसके बाद 2004 में उन्हें रूस ने दोबारा अपना राष्ट्रपति चुना, चूंकि रूसी संविधान के मुताबिक कोई लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ सकता लिहाज़ा पुतिन प्रधानमंत्री बन गए और दोबारा साल 2012 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा और जीते।

चेचन्या विद्रोहियों को सिखाया सबक

साल गुजरते रहे मगर रूस से पुतिन को कोई बदल नहीं पाया। बेहद सख्त मिजाज पुतिन ने जो ठान लिया, वो कर दिखाया। दुनिया में किसी की परवाह न करने वाला, अमेरिका और यूरोप को भी कुछ नहीं समझता। हालांकि कहा ये जाता है कि दुनिया ने पुतिन का सबसे कठोर रूप पहली बार 16 साल पहले तब देखा था जब चेचन्या विद्रोहियों ने मास्कों के एक थिएटर में सैकड़ों रूसी नागरिकों को बंधक बना लिया था।

23 अक्टूबर, 2002

मॉस्को, रूस की राजधानी

डुबरोवका थियेटर

रात के करीब 9 बजे

नॉर्ड-ओस्ट नाम के एक म्यूजिकल प्ले में करीब 900 लोग मौजूद थे, मंच पर नाटक का दूसरा हिस्सा पेश किया जा रहा था। तभी एक बस में सवार 40 से 50 हथियार बंद मर्द और औरतें थियेटर के अंदर जा घुसी। इसके बाद हवा में दनादन गोलियां चलते हुए हमलावरों ने थिएटर में मौजूद सभी लोगों को बंधक बना लिया, इतिहास में ये घटना ‘मॉस्को थियेटर हॉस्टेज क्राइसिस’ के नाम से जानी जाती है।

चेचन्या विद्रोहियों के एक गुट ने इसे अंजाम दिया था, कट्टरपंथी चाहते थे कि रूस चेचन्या से अपनी फौज हटा ले। रूसी सरकार को एक हफ्ते का वक्त दिया गया, इस घटना के तीन दिन बाद 26 अक्टूबर को पुतिन ने विद्रोहियों की मांग को सुनने से ही इनकार कर दिया। इसके बाद एयर कंडीशनिंग सिस्टम के रास्ते सरकार ने थिएटर में ज़हरीली गैस छुड़वा दी। विद्रोही और बंधक दोनों का दम घुटने लगा, लिहाज़ा विद्रोहियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। जवाब में रूसी कमांडोज़ ने भी गोलियां चलाईं। गोलीबारी के चंद मिनटों बाद ही ऑपरेशन खत्म हो गया, विद्रोहियों के साथ साथ 118 रूसी नागरिक भी मारे गए।

पुतिन के इस ऑपरेशन की कई देशों ने निंदा भी की और तारीफ भी, मगर इतना तो तब ही तय हो गया था कि पुतिन को कोई ब्लैकमेल नहीं कर सकता और वो किसी धमकी के आगे झुकने वाले नहीं। तब से लेकर अब तक रूस की कमान इस इंसान ने अपने हाथों में ले रखी है। इस दौरान पुतिन ने वो तमाम कानून बदल डाले जो राष्ट्रपति पद और उनके बीच अड़चन बन रहे थे।

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