प्रलय का ट्रेलर आ चुका है, पानी में डूबने वाले हैं भारत के ये शहर!

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CrimeTak

11 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:03 PM)

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दुनिया के माथे पर चिंता की ये लकीरें यूं ही नहीं है, दरअसल जो संकेत मिल रहे हैं वो बेहद खतरनाक हैं। धरती पर मौजूद प्राकृतिक संसाधन किसी न किसी वजह से खत्म हो रहे हैं, ये भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। अगर इन प्राकृतिक संसाधनों को बचाने और सहेजने के लिए अभी से कड़े कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले कुछ सालों में इसके भयानक परिणाम देखने को मिलेंगे।

जंगल से लेकर पिघल रहे ग्लेशियर तक, धरती पर मौजूद ये कुछ ऐसे प्राकृतिक स्त्रोत हैं जो पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखते है, लेकिन अब जिस तरह से इन स्रोतों को नुकसान पहुंच रहा है वो बेहद खतरनाक संकेत है।

यही नहीं खतरा हिन्दुस्तान पर भी बहुत बड़ा है, भारत के 12 तटीय शहरों पर जल समाधि का खौफ मंडरा रहा है और अगर इंसान वक्त रहते नहीं संभला तो जल समाधि का ये खतरा बहुत दूर नहीं है। महज 78 सालों में भारत के 12 बड़े तटीय शहर लगभग 3 फीट पानी में डूब डाएंगे।

प्रकृति के प्रलयकारी बर्ताव की ये कड़ियां एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, पेड़ कटेंगे, जंगलों में आग लगेगी तो ग्लेशियर पिघलेंगे और ध्रुवों पर जमा बर्फ के इस तरह पिघलने से हिंदुस्तान के शहर साल दर साल पानी में डूबते चले जाएंगे।

सोचिए जब इतने बड़े- बड़े शहरों का अस्तित्व खतरे में है तो बाकी शहरों पर भी धीरे-धीरे ये आफत गहराएगी, वक्त सोचने का नहीं है। वक्त करने का है, कुदरत की चेतावनी को समझकर अब अपनी प्राकृतिक संपदा को खत्म होने से रोकना है। बस यही एक रास्ता है, संभल जाओ, कहीं ऐसा न हो कि न जीने के लिए सांस हो और न ही पानी।

इस खतरनाक चेतावनी का आधार है इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी IPCC, जिसने हाल ही में आई अपनी रिपोर्ट में कहा भी गया है कि 2100 तक दुनिया प्रचंड गर्मी बर्दाश्त करेगी। कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण नहीं रोका गया तो तापमान में औसत 4.4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी, अगले दो दशकों में ही तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। जब इतना तापमान बढ़ेगा, तो जाहिर सी बात है कि ग्लेशियर पिघलेंगे, उसका पानी मैदानी और समुद्री इलाकों में तबाही लेकर आएगा।

आईपीसीसी की इसी रिपोर्ट के आधार पर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने Sea Level Projection Tool बनाया है, जिसके बाद वैज्ञानिक इस जलसमाधि की डरावनी भविष्यवाणी कर पा रहे हैं। लगातार बढ़ती गर्मी से ध्रुवों पर जमा बर्फ पिघलेगी, उससे समुद्री जलस्तर बढ़ेगा, फिर क्या चेन्नई, कोच्चि, भावनगर जैसे शहरों का तटीय इलाका छोटा हो जाएगा। तटीय इलाकों में रह रहे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाना होगा, क्योंकि किसी भी तटीय इलाके में तीन फीट पानी बढ़ने का मतलब है, काफी बड़े इलाके में तबाही।

आईपीसीसी हर 5 से 7 साल में दुनियाभर में पर्यावरण की स्थिति की रिपोर्ट देता है, इस बार की रिपोर्ट बहुत भयावह है। ये पहली बार है जब नासा ने पूरी दुनिया में अगले कुछ दशकों में बढ़ने वाले जलस्तर को मापने का नया टूल बनाया है। ये टूल दुनिया के उन सभी देशों के समुद्री जलस्तर को माप सकता है, जिनके पास तट हैं। भारत के जिन 12 शहरों को खतरा है वो हैं,

  • भावनगर- यहां 2100 तक समुद्र का जलस्तर 2.69 फीट ऊपर आ जाएगा

  • कोच्चि- यहां समुद्री पानी 2.32 फीट ऊपर आ जाएगा

  • मोरमुगाओ- यहां पर समुद्री जलस्तर 2.06 फीट तक बढ़ जाएगा

  • ओखा- यहां समुद्री पानी 1.96 फीट तक बढ़ जाएगा

  • तूतीकोरीन- यहां समुद्री पानी 1.93 फीट तक बढ़ जाएगा

  • पारादीप- यहां समुद्री पानी 1.93 फीट तक बढ़ जाएगा

  • मुंबई- यहां समुद्री पानी 1.90 फीट तक बढ़ जाएगा

  • मैंगलोर- यहां समुद्री पानी 1.87 फीट तक बढ़ जाएगा

  • चेन्नई- यहां समुद्री पानी 1.87 फीट तक बढ़ जाएगा

  • विशाखापट्टनम- यहां समुद्री पानी 1.77 फीट तक बढ़ जाएगा

इसके अलावा पश्चिम बंगाल का किडरोपोर इलाका, जहां पिछले साल तक समुद्री जल स्तर के बढ़ने का कोई खतरा महसूस नहीं हो रहा है, वहां पर भी साल 2100 तक आधा फीट पानी बढ़ जाएगा। जो कि परेशान करने वाली बात है, इन सभी तटीय इलाकों में कई स्थानों पर प्रमुख बंदरगाह है, व्यापारिक केंद्र हैं, मछलियों और तेल का कारोबार होता है। यही वजह है कि इन शहरों में समुद्री जलस्तर बढ़ने से आर्थिक व्यवस्था को करारा नुकसान पहुंचेगा।

IPCC की नई रिपोर्ट में 195 देशों से जुटाए गए मौसम और प्रचंड गर्मी से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है, वैज्ञानिकों का दावा है कि अगले 20 साल में धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। ऐसा जलवायु परिवर्तन की वजह से होगा, इतना ही नहीं IPCC की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जो Extreme Heatwave पहले 50 सालों में एक बार आती थी। अब वो हर दस साल में आ रही है, ये धरती के गर्म होने की शुरुआत है।

नासा का ये सी लेवल प्रोजेक्शन टूल दुनियाभर के नेताओं, वैज्ञानिकों को ये बताने के लिए काफी है कि अगली सदी तक हमारे कई देश जमीनी क्षेत्रफल में छोटे हो जाएंगे। क्योंकि समुद्र का जलस्तर इतनी तेजी से बढ़ेगा जिसे संभाल पाना मुश्किल हो जाएगा, अगर समय रहते इंसान ने प्रकृति के इस धीरे-धीरे होते विनाश पर लगाम नहीं लगाई तो साफ है कि कई द्वीप डूब चुके हैं, कई अन्य द्वीपों को समुद्र अपनी लहरों में निगल जाएगा।

हिंदुस्तान में जलवायु परिवर्तन का असर 1970 के दशक से देखने मिला है, जिसका परिणाम अब सामने आने लगा है। समंदर का जलस्तर बढ़ रहा है, समंदर से सटे शहरों पर खतरा भी बढ़ रहा है, समंदर का जलस्तर बढ़ने की वजह ग्लेशियर का पिघलना है और ग्लेशियर धरती के तापमान बढ़ने की वजह से पिघल रहे हैं। जाहिर है ये खतरा अभी नहीं लेकिन आने वाले समय के लिए बेहद डरावना होने वाला है, जिसकी तस्वीर अभी से नजर आने लगी है।

कहीं नदियों में उफान है, कहीं पहाड़ के पहाड़ जमींदोज हो रहे हैं। कहीं सैलाब ही सैलाब नजर आ रहा है, इस साल तो अगस्त में ही ऐसी बारिश हुई है। जिससे कई राज्यों में हाहाकार मचा हुआ है। मौसम विभाग हर दूसरे दिन कई शहरों के लिए कभी ऑरेंज तो कभी रेड अलर्ट जारी कर रहा है, कहीं इस तबाही के पीछे जलवायु परिवर्तन ही तो नहीं है।

कुदरत का ऐसा प्रकोप हिंदुस्तान के कई शहरों ने पहली दफा देखा है, माना जा रहा है कि जलप्रलय के पहले कुदरत दुनिया को आगाह कर रही है। कुदरत कह रही है कि संभल जाओ लेकिन अगर वक्त रहते हालात नहीं बदले तो धरती की तस्वीर बदलने में देर नहीं लगेगी।

अकेले भारत में ही नहीं बल्कि एशिया के कई देशों में जलवायु परिवर्तन के गहरे प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। यूएन की रिपोर्ट भी इसी तरफ इशारा कर रही है कि आने वाले कुछ सालों में हिमालय के इलाकों में ग्लेशियर से बनी झीलों के बार-बार फटने से निचले तटीय इलाकों को बाढ़ के अलावा कई बुरे असर झेलने पड़ेंगे। देश में अगले कुछ दशकों में सालाना औसत बारिश में इजाफा होगा, खासकर दक्षिणी प्रदेशों में हर साल बहुत ज्यादा बारिश हो सकती है।

जलवायु में बेतहाशा परिवर्तन की ये खौफनाक दास्तान आखिर कब से शुरू हुई है? इस सवाल का जवाब जब हमने तलाशने की कोशिश की तो कई हैरान करने वाले खुलासे हुए। धरती का तापमान अनुमान से कहीं ज्यादा तेजी के साथ बढ़ रहा है, बदलते हालात के लिए इस रिपोर्ट में साफतौर पर मानव जाति को ही ज़िम्मेदार कहा गया है और जलवायु परिवर्तन को मानवता के लिए 'कोड रेड' करार दिया गया है।

- यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय उपमहाद्वीपों में अगले कुछ दशकों में प्रचंड लू, तेज़ बारिश, भयंकर चक्रवाती तूफान आने की आशंका है

- ये रिपोर्ट 195 देशों के 234 वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है, 3 हज़ार पन्नों की ये रिपोर्ट है

- ये रिपोर्ट कहती है कि भारत में बारिश होने के पैटर्न में भी बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा

- यूएन की रिपोर्ट कहती है कि हिंदुकुश की पहाड़ियों में मौजूद ग्लेशियरों के तेज़ी से सिकुड़ने का सिलसिला जारी है

- जिसके चलते इसके आस-पास के इलाकों में भारी बारिश, बाढ़, भूस्खलन के साथ झीलों से अचानक पानी का बहाव होगा

मौसम में आये इस बदलाव का दौर बीते कई दशकों से जारी है, माना जा रहा है कि बीते कुछ सालों में जिस अंदाज में धरती के तापमान में इजाफा हुआ है, वो बेहद डरावना है। 1970 से धरती के तापमान में तेजी से बढोत्तरी होने का दौर शुरू हुआ और 2019 में तो धरती में कार्बन डाइ ऑक्साइड का लेवल तेजी से बढ़ा है।

दुनिया को वक्त से पहले वैज्ञानिकों ने आगाह कर दिया है, ऐसे हालात में अब सरकारों के साथ साथ हम सबकी ये जिम्मेदारी होगी कि हम जलवायु में हुए इस भयानक परिवर्तन का संतुलन बनाने के लिए क्या कदम उठायेंगे।

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