क्या दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की दहलीज पर है ?

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28 Jan 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:12 PM)

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शम्स ताहिर खान की रिपोर्ट

RUSSIA UKRAINE FIGHT : रूस और यूक्रेन के बीच कोई मुकाबला नहीं है। फिर भी इन दोनों देशों की वजह से पूरी दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के अंदेशे से सहमी हुई है। य़ूक्रेन की सीमा को चारों तरफ से जिस तरह से रूस के एक लाख सैनिकों ने टैंक, तोपों, ड्रोन, परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलों और हथियारों से घेर रखा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है। बस यूं समझ लीजिए कि अगर रूस ने य़ूक्रेन पर हमला बोल दिया तो दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध से कोई नहीं बचा सकता।

वारदात देखने के लिए इस लिंक का प्रयोग करे।

खतरा कितना ज्यादा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यूक्रेन में मौजूद अमेरिकी दूतावास ने बुधवार को यूक्रेन में मौजूद अमेरिकी नागरिकों से फौरन यूक्रेन छोड़ देने की सलाह दी है। कहा है कि जिसे जो भी साधन मिले वो उसी से तुरंत यूक्रेन छोड़ दे। इससे पहले मंगलवार को अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया ने रूसी हमले को देखते हुए यूक्रेन की राजधानी कीव में मौजूद अपने-अपने राजनयिकों के परिवारों को यूक्रेन छोड़ने की सलाह दी थी। जर्मनी ने भी अपने नागरिकों को वहां से निकालने में मदद देने का भरोसा दिया है। इतना ही नहीं जंग के अंदेशे के मद्देनजर नाटो और पश्चिमी देश भी हरकत में हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन, तुर्की समेत कई देशों ने यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई भी शुरू कर दी है।

पश्चिमी देशों का डर है कि अगर रूस और यूक्रेन के बीच जंग हुई तो इसकी आग पूरे यूरोप में फैल सकती है। पश्चिमी देशों की ख़ुफ़िया संस्थाओं का मानना है कि यूक्रेन की सीमा पर टैंकों और तोपों के साथ रूस के अभी एक लाख सैनिक तैनात हैं। मगर अमेरिका का मानना है कि जनवरी के आखिर तक रूसी सैनिकों की तादाद पौने दो लाख तक पहुंच जाएगी। अमेरिका और सहयोगी नाटो देश पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि यूक्रेन पर रूस के किसी भी हमले के गंभीर आर्थिक परिणाम होंगे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री इसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे खतरनाक वक्त बता रहे हैं।

अब सवाल ये है कि आखिर कड़ाके की इस ठंड में अचानक रूस और यूक्रेन के बीच जंग का ये माहौल कैसे बन गया? क्यों रूस के एक लाख सैनिक यूक्रेन की सीमा पर डटे गुए हैं। और क्यों अमेरिका, ब्रिटेन, और दूसरे देश रूस को धमका रहे हैं। तो सबसे पहले रूस और यूक्रेन के बीच बने जंग के आसार की वजह जान लीजिए।

1991 तक यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था। पर 31 साल पहले जब सोवियत संघ के टुकड़े हुए तो यूक्रेन भी एक आजाद देश बन गया। हालांकि आजाद देश होने के बाद भी यूक्रेन रूस का हमदर्द बना रहा। यूक्रेन में ज्यादातर राष्ट्रपति वही बने जो रूस के दोस्त थे। ये सिलसिला 2013 तक चला। नवंबर 2013 में यूक्रेन में राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। यूक्रेन की राजधानी कीव में तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का विरोध शुरू हो गया। यानुकोविच को रूस का समर्थन था, जबकि अमेरिका-ब्रिटेन प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रहे थे। फरवरी 2014 में यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा अब यूक्रेन में पहली बार रूस विरोधी सरकार आ गई थी।

रूस विरोधी सरकार तो आ गई मगर यूक्रेन के कई इलाकों में रूसी लोगों की अच्छी खासी पैठ थी। खास कर क्रीमिया में। क्रीमिया के लोगों ने यूक्रेन का विरोध और रूस का समर्थन करना शुरू कर दिया। इसका फायदा रूस को मिला। विरोधियों की मदद से रूस ने 2014 में ही क्रीमिया पर हमला कर क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। बस तभी से दोनों देशों में तनाव बना हुआ है।

2014 से लेकर अब तक क्रीमिया में रूस समर्थक विद्रोहियों और यूक्रेन की सेना के बीच जारी लड़ाई में 14 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। क्रीमिया वही प्रायद्वीप है जिसे 1954 में सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को तोहफे में दिया था। 1991 में जब यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ तो कई बार क्रीमिया को लेकर दोनों के बीच तनातनी होती रही।

मगर इस बार की सारी तनातनी यूक्रेन की यूरोप और अमेरिका के साथ बढ़ती नजदीकी और अमेरिका की अगुआई वाली तीस देशों के नाटो संगठन का सदस्य बनने की कोशिश की वजह से है। दरअसल बेलारूस और यूक्रेन को छोड़कर रूस की सरहद से लगे ज्यादातर देश नाटो के सदस्य हैं। यूक्रेन की तो 2295 किलोमीटर लंबी सीमा रूस से लगती है। अब अगर ऐसे में यूक्रेन नाटो में शामिल हो जाता है तो इसका सीधा मतलब ये होगा कि रूस की सरहद तक अमेरिकी फौजें पहुंच जाएंगी।

रूस चाहता है कि यूक्रेन यूरोपीय संघ के साथ कोई रिश्ता ना रखे। 2014 के बाद से ही यूक्रेन अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य संगठन नाटो का सदस्य बनना चाहता है। और रूस को ये गवारा नहीं। रूस नहीं चाहता है कि उसकी सीमा तक नाटो की पहुंच हो। रूस इस बात से भी नाराज है कि यूक्रेन के कारण अमेरिकी सेना और बाकी दुश्मन देश उसकी सीमा तक पहुंच रहे हैं। पिछले कई साल से अमेरिकी सेना के अधिकारी लगातार यूक्रेन का दौरा कर रहे हैं। कई बार तो अमेरिकी सैनिकों को यूक्रेन और रूस की सीमा पर भी देखा गया है। रूस इसे बहुत बड़े खतरे के रूप में देख रहा है। यूक्रेन ने रूस से हिफाजत के नाम पर अमेरिका से काफी मात्रा में हथियार भी खरीदे हैं। यूक्रेन की आबादी का लगभग छठा हिस्सा रूसी बोलने वालों का है, ऐसे में रूस का दावा है कि यूक्रेन में इन लोगों की सुरक्षा को भी खतरा है।

हालांकि एक तरफ रूसी सैनिकों ने यूक्रेन की सीमा की घेरेबंद कर रखी है तो वहीं दूसरी तरफ ये भी कह रहा है कि उसका यूक्रेन पर हमले का कोई इरादा नहीं है। वहीं अमेरिका ने खुफिया रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि जनवरी के आखिर या फरवरी में रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता है। खुद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूसी सेना अपने देश में कहीं भी जाने के लिए आजाद है। अपनी सीमा के अंदर उनकी तैनाती पर किसी भी देश को सवाल नहीं उठाना चाहिए।

उधर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि रूस और यूक्रेन की सीमा पर किसी भी तरह की कार्रवाई को हमला माना जाएगा और रूस को इसका भयानक अंजाम भुगतना होगा। अमेरिका के रक्षा मंत्रालय ने इलजाम लगाया है कि रूस यूक्रेन की पूर्वी सीमा पर लड़ रहे अपने समर्थक विद्रोहियों पर हमले करवा सकता है, ताकि उसकी आड़ में यूक्रेन पर चढ़ाई कर सके। हालांकि रूस ने ऐसे अलजामों को बकवास बताया है। वैसे रूस पर ये भी इलजाम है कि उसने विद्रोहियों के क़ब्ज़े वाले इलाक़े में 5 लाख पासपोर्ट भी बांटे हैं। ताकि उसकी मंशा पूरी न होने पर वो अपने नागरिकों की सुरक्षा की आड़ में किसी भी सैन्य कार्रवाई को जायज़ ठहरा सके।

कुल मिला कर यूक्रेन की सीमा इस जबरदस्त ठंड में भी बेहद गरम है। दुनिया की सांसें अटकी हैं कि पुतिन का इशारा पाते ही रूसी सैनिक यूक्रेन पर धाना ना बोल दें। और ऐसा हुआ तो फिर आंच पहले यूरोप तक और उसके बाद पूरी दुनिया तक पहुंचेगी। बीस साल तक जिस तलिबान और अल-कायदा के नाम पर अमेरिका अफगानिस्तान में अरबों-खरबों रुपए लुटाता रहा वो तालिबान तो खत्म नहीं हुआ अलबत्ता अमेरिकी सैनिकों की अफगान से खाली हाथ विदाई जरूर हो गई।

अमेरिका को मिला ये सबसे ताजा जख्म है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि अगर रूस और यूक्रेन के बीच दंग हुई तो क्या अमेरिका इस जंग में कूदने की गलती करेगा? तो सवाल ये है कि क्या अमेरिका यूक्रेन का साथ देगा । क्या वो सीधे रूस से युद्ध लड़ेगा?

अमेरिका भले ही अपने सैनिकों को तैयार रहने का आदेश दे रहा हो । नाटो देश यूक्रेन को हथियार दे रहे हों। लेकिन हकीकत ये है कि रूस से सीधे टकराने को अमेरिका अभी तैयार नहीं है। बात सिर्फ तैयारी और खर्चे की भी नहीं है। बात तकनीकी भी है। दरअसल अमेरिका 30 देशों वाले नेटो सेना के गठबंधन का सरबराह है। मगर यूक्रेन फिलहाल नेटो का सदस्य देश नहीं है। ऐसे में रूस और यूक्रेन के बीच जंग होती है तो अमेरिका नेटो के नाम पर कम से कम रूस से जंग नहीं कर सकता। अलबत्ता बिना जंग लड़े नेटो देशों की मदद से वो रूस पर दबाव बनाने का काम कर सकता है।

वैसे फिलहाल हथियारों की बात करें तो पूरी दुनिया के पास इस वक्त परमाणु हथियार हैं करीब-करीब उतने अकेले रूस के पास हैं। भले ही पहला एटम बम अमेरिका ने गिराया था मगर इस वक्त रूस के पास कुल 6257 परमाणु बम हैं। जबकि अमेरिका के पास 5550 परमाणु हयिरा हैं। तीसरे नंबर पर चीन है। चीन के पास 350 परमाणु बम हैं। 290 परमाणु बमों के साथ फ्रांस चौथे और 195 परमाणु हथियारों के साथ ब्रिटेन पांचवें नंबर पर है। छठे नंबर पर पाकिस्तान है। उसके पास 165 परमणु बम हैं। जबकि 160 परामणु बमों के साथ भारत सातवें नंबर पर है। भारत के बाद इजराइल का नंबर आता है उसके पास 90 परामणु बम हैं। जबकि नार्थ कोरिया के पास 40 परमाणु बम हैं।

ज़ाहिर है रूस के पास एक से बढ़कर एक हथियार और मिसाइलें हैं। ऐसे में अमेरिका समेत दुनिया की किसी भी महाशक्ति के लिए उसे रोकनाआसान नहीं होगा। हालांकि इसी के साथ ये भी सच है कि य़ूक्रेन के पास कोई परमाणु बम नहीं है। लिहाजा अगर रूस और यूक्रेन के बीच जंग हुई भी तो परामणु हमलों का खतरा बेहद कम है। हां परमाणु युद्ध की नौबत तभी आ सकती है जब इस जंग में अमेरिका और नाटो देश भी कूद पड़ें। पर फिलहाल तो पूरी दुनिया की निगाहें यूक्रेन की इस बार्डर पर गड़ी हैं जिसके बेहद करीब एक लाख रूसी सैनिक अपने कमांडर पुतिन का एक इशारे का इंतजार कर रहे है।

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