75 साल के पाकिस्तान के इतिहास में जब जब मुल्क पर संकट आया, तब तब सेना के इन नुमाइंदों ने लोकतंत्र को कुचल कर देश की कमान अपने हाथों में ले ली। फील्ड मार्शल अय्यूब खान से लेकर याहया खान तक और ज़ियाउल हक़ से लेकर परवेज़ मुशर्रफ तक कुल 35 साल तक पाकिस्तानी सेना प्रमुख मुल्क पर राज कर चुके हैं, और अब एक बार फिर पाकिस्तान उसी राह पर है।
क्या फिर से तख्तापलट की तरफ बढ़ रहा है पाकिस्तान?
क्या फिर से तख्तापलट की तरफ बढ़ रहा है पाकिस्तान? Is Pakistan heading towards a coup again?
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31 Mar 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:16 PM)
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आज़ादी के बाद से ही पाकिस्तान की सियासत के साथ एक अपशकुन जोंक की तरह चिपका है, और वो जोंक है मार्शल लॉ। शुरूआत मुल्क के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान से हुई, 1951 में उनकी हत्या के बाद 1958 तक छह बार प्रधानमंत्री बर्खास्त किए गए और आखिर में आर्मी चीफ फील्ड मार्शल अयूब खान ने 1958 में सत्ता पर कब्जा किया। अयूब खान के बाद याह्या खान, फिर जनरल नियाज़ी। उसके बाद जनरल टिक्का खान ने पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगाकर जनता को लोकतांत्रिक शासन से महरूम रखा।
पहले प्रधानमंत्री लियाक़त अली खान के बाद करीब 4 साल तक चलने वाली पहली सरकार पाकिस्तान की आज़ादी के दिन 1973 में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने बनाई। मगर सेना को चुनी हुई सरकार रास नहीं आई और 3 साल 10 महीने और 21 दिन की इस सरकार को आर्मी चीफ़ जरनल ज़ियाउल हक़ ने भुट्टों को सत्ता से बेदखल कर उन्हें फांसी दे दी। हालांकि ज़ियाउल हक़ को भी सत्ता रास नहीं आई और साल 1988 में एक हवाई दुर्घटना में वो मारे गए मगर देश में सबसे ज़्यादा वक्त तक राज करने वाले तानाशाह कहलाए।
इसके बाद अगले 11 साल यानी 1988 से लेकर 1999 तक पाकिस्तान के लोकतंत्र ने चैन की सांस ली और इस दौरान बेनज़ीर भुट्टों और नवाज़ शरीफ बारी बारी से मुल्क के प्रधानमंत्री बने। तीन बार नवाज़ शरीफ, दो बार बेनज़ीर भुट्टो। मगर दोनों कभी भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और साल 1999 में नवाज़ की सरकार का तख्तापलट कर जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने पाकिस्तान में फिर मार्शल लॉ लगा दिया और मुल्क की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया।
साल 2007 में बेनज़ीर की हत्या के बाद 2008 में हुए आम चुनाव में बेनज़ीर भुट्टों की पार्टी पीपीपी ने सरकार बनाई और फिर 2013 में पीएमएलएन को सरकार बनाने का मौका मिला। पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार है जब लगातार दो बार किसी चुनी हुई सरकारों ने अपना कार्यकाल पूरा किया हो। मगर इमरान सरकार कि किस्मत में लगता है कि ये मुमकिन नहीं हो पाएगा।
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