Nirbhaya : निर्भया के 10 साल बाद क्या बदला? क्यों चीखें खामोश हो जाती हैं और रेपिस्ट को सजा नहीं मिलती?

Nirbhaya Case 10 Years : निर्भया केस को आज 10 साल पूरे हुए. 16 दिसंबर (16 December Nirbhaya Case 10 years). 2012 के 10 साल बाद 2022 तक क्या बदला. जानें इस रिपोर्ट से. Delhi Nirbhaya Nirbhaya Photo

CrimeTak

15 Dec 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:32 PM)

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Nirbhaya 10 Years : निर्भया के ठीक 10 साल. पर सवाल वही. कितना कुछ बदला. हमारा समाज. उस समाज में रेप की घटनाएं. ऐसी घिनौनी वारदात को अंजाम देने वाले अपराधी. इन अपराधियों को पकड़ने वाली पुलिस. और पुलिस की आंखों के सामने रहते हुई भी सजा ना पाने वाले अपराधी. वो अपराधी जो रेपिस्ट तो होते हैं लेकिन सजा नहीं मिल पाती. निर्भया केस का वो साल 2012. तारीख 16 दिसंबर. अब तारीख वही है पर साल है 2022. यानी 10 साल गुजर गए. पर क्या बदला? साल 2012 में देश में रेप की कुल 24923 घटनाएं हुईं. यानी हर दिन करीब 69 रेप की घटनाएं हुईं. लेकिन सिर्फ 24.2 प्रतिशत केस में सजा मिल पाई.

अब 10 साल बाद. साल 2022 की रिपोर्ट. NCRB यानी नेशनल रिकॉर्ड ब्यूरो का डेटा. जिसकी लेटेस्ट रिपोर्ट बताती है कि पूरे 2021 में रेप की कुल 31677 घटनाएं हुईं. यानी हर रोज 86 घटनाएं हुईं. पर पूरे साल में सिर्फ 28.6 प्रतिशत केस में अपराधियों को दोषी करार दिया गया. यानी 100 में सिर्फ 28 अपराधियों को सजा मिली. यानी निर्भया केस के 10 साल बाद कितना बदला सिस्टम.

आज भी निर्भया जैसी आवाजें चीखकर भी हो जाती हैं खामोश

Nirbhaya case 10 Years : 10 साल पहले 100 में 24 और अब सिर्फ 28 अपराधियों को दोषी करार दिया जा रहा है. यानी सजा दिलाने वाले सिस्टम उसी तरह से लाचार और बेबस जैसे कभी निर्भया की हालत थी. 14 दिनों तक वो जिंदगी और मौत से लड़ती रही. तो इधर लोग कड़ाके की सर्द में भी हाथ में कैंडल लिए यही दुआ करते रहे कि अब दूसरी कोई निर्भया ना बने. अब कोई ऐसी गलती करे तो उसे तुरंत सजा मिले. लेकिन अफसोस सिर्फ साल बदले पर हालात नहीं. क्योंकि वाकई आंकड़े आइने की तरह होते हैं जो कभी झूठ नहीं बोलते.

अब 2022 के ये आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 साल में निर्भया जैसी घटनाओं में कमी आना तो दूर बल्कि अब तो हर रोज रेप की घटनाओं में 18 का इजाफा हो गया. ये तो वो आंकड़े हैं जो पुलिस थाने की चारदीवारी में पहुंचकर लड़खड़ाते हुए किसी तरह से एफआईआर के पन्नों तक पहुंच जाते हैं. जबकि आधे से ज्यादा केस तो ना थाने की दीवार को लांघ पाते हैं और गलती से वहां तक पहुंच भी गए तो कागजों पर लिखे जाने से पहले ही सवालों में ऐसे उलझते हैं कि निर्भया जैसी चीखें बस खामोश होकर रह जातीं हैं.

जो खामोशी आवाज बनकर थाने की दहलीज को पार कर अदालत की सीढ़ियों तक पहुंच भी जातीं हैं उनमें कितनों को सजा मिलती है. उसके आंकड़े तो पहले ही देख ही चुके हैं. निर्भया के 10 साल बाद अब भी सिर्फ 4 प्रतिशत ही सजा वाले मामले बढ़े हैं. काश, सजा दिलाने वाले मामले हर साल भी एक बढ़ते तो शायद 10 साल में आंकड़े कहां पहुंच जाते. लेकिन अफसोस....अफसोस यही कि निर्भया कांड के समय पर जहां 100 में से 24 आरोपियों को ही सजा मिल पाती थी. और अब 10 साल बाद भी हर 100 में सिर्फ 28 आरोपी को ही सजा मिल पाती है.

जबकि इन 10 सालों में देश में काफी बदलाव आए. पुलिस फोर्स से लेकर सबूतों की जांच के लिए एडवांस तकनीकी आई. अब आसानी और तेजी से फॉरेंसिक जांचें हो रहीं हैं. लेकिन अपराधियों के दोषी करार दिए जाने वाले की संख्या कमोबेश वही है. जहां तक निर्भया वाले साल में शुरू हुआ था. अफसोस की पहले एक निर्भया ने हम सबसे अलविदा लिया. फिर आने वाले सालों में हाथरस से लेकर हैदराबाद में भी निर्भया ने आंसू बहाए. हमने हाथों में इंसाफ के लिए कैंडल निकाले. लेकिन फिर से अफसोस वही. केस बढ़ते भी गए पर सजा दिलाने की रफ्तार उतनी नहीं बढ़ी जितनी होनी चाहिए थी. पर उम्मीद तो उम्मीद है. इसे हमेशा बरकरार ही रखेंगे...

निर्भया कांड से 10 साल पहले क्या थे हालात

Nirbhaya Case 10 Years : अगर निर्भया केस से 10 साल पहले की बात की जाए तो क्या थी हालत. यानी अब से करीब 20 साल पहले 2001 की बात. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2001 में 16075 रेप के केस दर्ज हुए थे. यानी हर दिन 44 रेप की घटनाएं होतीं थीं. साल 2001 में हर 100 में से 26 अपराधी दोषी करार दिए जाते थे. 2001 के बाद 2011 तक औसतन 25 से 26 प्रतिशत केस में सजा मिलती रही.

लेकिन साल 2012 ही ऐसा साल था जब पूरे 20 साल में अपराधियों को दोषी करार दिए जाने का रेट सबसे कम रहा था. जबकि इन 20 साल यानी 2001 से 2021 तक के आंकड़ों को देखा जाए तो साल 2017 में सबसे ज्यादा 32.2 प्रतिशत का कन्विक्शन रेट रहा था. इसके बाद 2015 में 29.4 प्रतिशत केस में आरोपी दोषी करार दिए गए.

निर्भया के 10 साल में पुलिस फोर्स में कितना आया बदलाव

Nirbhaya Case : दिल्ली में जब निर्भया केस हुआ था तब पूरे देश में कितनी पुलिस की तैनाती थी. और अब 10 साल बाद कितनी पुलिस तैनात है. साल 2012 में पूरे देश में कुल पुलिस फोर्स की संख्या 21 लाख 24 हजार 596 (21,24,596) थी. उस समय 568 पब्लिक पर एक पुलिस तैनात थी. अब करीब 10 साल बाद के आंकड़े बताते हैं कि कुल पुलिस फोर्स 26 लाख 23 हजार 225 है. यानी निर्भया केस के 10 साल बाद करीब 5 लाख पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ी. अब 511 की आबादी पर 1 पुलिसकर्मी तैनात है. यानी आबादी के हिसाब से पुलिसकर्मी बढ़े लेकिन फिर भी रेप केस की संख्या बढ़ी है पर उस हिसाब से आरोपियों को सजा नहीं मिल रही.

इन 3 वजहों से रेपिस्ट को नहीं मिल रही है जल्दी सजा

Nirbhaya Case : पिछले 10 सालों में रेप के आरोपियों को सजा नहीं मिलने या फिर कम लोगों को सजा मिलने के पीछे क्या वजह रही होगी. इसे लेकर एक जर्नल में पूरी रिसर्च रिपोर्ट आई है. ये रिपोर्ट है इंटरनेशनल जर्नल ऑफ लॉ मैनेजमेंट एंड ह्यूमिनिटिज (International Journal of Law Management and Humanities) में प्रकाशित है. इंडिया में रेप केस में कम लोगों को सजा होने को लेकर कई वजहें बताई गईं. उनमें से 5 बड़ी वजहें ये हैं.

  • पहली कंप्लेंट पर पुलिस नहीं करती FIR

इस रिसर्च रिपोर्ट से पता चलता है कि पुलिस किसी रेप पीड़िता की  FIR लिखने में देरी करती है. एक सर्वे का हवाला देते हुए 14 गैंगरेप पीड़ित लड़कियों से बात की गई. इनमें से 11 लड़कियों ने बताया कि उन्होंने जब पहली बार थाने में जाकर शिकायत की तो उनकी ही FIR दर्ज नहीं की गई. यानी 90 प्रतिशत केस में ऐसा होने की आशंका रहती है कि कोई लड़की रेप की शिकायत लेकर पुलिस में जाए तो तुरंत रिपोर्ट ही नहीं लिखी जाए. रिसर्च में ये भी सामने आया कि रेप केस में 2 दिन से लेकर 228 दिनों बाद रिपोर्ट दर्ज की गई. ये रिपोर्ट बेहद चौंकाती है. यूपी के सनसनीखेज हाथरस गैंगरेप केस में भी पहली शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी.

  • साइंटिफिक सबूत जुटाने में लापरवाही

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी भी लोकल पुलिस एविडेंस यानी सबूत जुटाने में लापरवाह होती है. घटनास्थल को समय पर सील नहीं किया जाता है. मौके से साइंटिफिक सबूत जुटाने की पुलिस के पास ट्रेनिंग नहीं है. ऐसे में इन सबूतों को सबसे पहले कलेक्ट करने में लापरवाही होती है. अगर सबूत के सैंपल ले लिए तो उसे फॉरेंसिक लैब भेजने में देरी होती है. या फिर अच्छे तरीके से लिए गए सैंपल को नहीं भेजा जाता है. हाल में दिल्ली के छावला गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि आरोपियों के साइंटिफिक सैंपल सही तरीके से नहीं लिए गए और ना ही जांच के लिए सही तरीके से भेजे गए.

इस रिसर्च पेपर में नेशनल ह्यूमन राइट कमिशन का एक बयान भी है. जिसमें NHRC ने कहा था कि ऐसे गंभीर केस में पुलिस SOP यानी Standard Operating Procedure को गंभीरता से नहीं लेती. यानी जैसे साइंटिफिक जांच के लिए फॉरेंसिक सैंपल लिए जाते हैं वैसे सैंपल लेने में कोई अनुभव नहीं है. जिसकी वजह से सजा दिलाने में सबूतों की कमी पड़ जाती है

  •  पीड़ित परिवार का दबाव

इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि रेप के ज्यादातर केस में पहचान वाले ही रहे हैं. ऐसे में पीड़ित परिवार भी काफी मामलों में समाज के डर से या परिवार की बदनामी सोचकर केस वापस ले लेता है. या फिर गवाह अपने बयान से पलट जाता है. ऐसे में आरोपी को सजा नहीं मिल पाती. कई बार लड़की पर परिवार के लोग ही काफी प्रेशर डालकर केस वापस करा लेते हैं. या फिर कई बार रेपिस्ट से शादी भी कराने की पहल कर दी जाती है. जिससे आरोपियों को मनोबल बढ़ जाता है.

जिंदा निर्भया की कहानी

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