'ऐ मेरे वतन के लोगों' अमर गीत की अमर कथा, सिगरेट की पन्नी से शुरू सफर इतिहास के पन्नों तक पहुँचा

Independence Day Special: ऐ मेरे वतन के लोगों.. ये ऐसा गीत है कि आज़ादी के जश्न का मौके पर इस गीत का फिज़ा में तैरना एक रिवाज़ है...लेकिन इस गीत के बनने की कहानी भी अमर कथा की ही तरह रोमांचकारी है।

CrimeTak

15 Aug 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:24 PM)

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Independence Day Special: आज देश आज़ादी का जश्न मना रहा है। हिन्दुस्तान की आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर देश एक अलग जोश और अलग ज़ज्बे में डूबा हुआ है। कश्मीर से कन्या कुमारी तक और अरुणाचल प्रदेश से गुजरात तक हर घर तिरंगा मुहिम से सराबोर है। स्वतंत्रता दिवस की सालगिरह के लिए ये ज़ज्ब हरेक हिन्दुस्तानी के दिलों में होना भी...।

इस मौके पर हर कोई आजादी को लेकर दिलचस्प रोचक और शानदार क़िस्सों की भी कोई कमी भी नहीं हैं...आज़ादी के परवानों की दंत कथाएं...सुनते ही रोम रोम जोश और उमंग से भर भी जाता है।

पिछले पचास सालों से आज़ादी के जश्न के मौके पर राष्ट्रीय गान और राष्ट्रीय गीत के अलावा वो कौन सा गाना है जिसके बिना आज़ादी का ये जश्न अधूरा माना जाता है। शायद आप मेरी बात से सहमत हो...स्वर कोकिला लता मंगेशकर का गावा गया ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लोग पानी, इस गाने के बिना आजादी का जश्न मुकम्मल नहीं हो पाता।

Independence Day Special: यानी जन गण मन और वंदे मातरम के बाद जिस गीत का बजना और उसके बोलों का फिजा में गूंजना अब एक रिवाज बन चुका है, वो गीत है ऐ मेरे वतन के लोगों...

ये गीत अब देश के सबसे बड़े गीतों की कतार का हिस्सा है...या यूं भी कह सकते हैं कि ये तराना राष्ट्र और देश भक्ति के संदर्भ में हमेशा गुनगुनाया जाता रहा है और आगे भी इसे यूं ही गुनगुनाया जाता रहेगा।

लेकिन इस गीत के बनने का क़िस्सा भी किसी आज़ादी की जंग जैसा ही रोचक और रोमांच से भरपूर है।

Independence Day Special: दरअसल ये दौर था भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के बाद का। सीमा पर चीन से मिली हार के बाद समूचे देश में निराशा का माहौल था। ऐसा लग रहा था कि ज़ज़्बे की कमी महसूस हो रही है। तब गणतंत्र दिवस के बाद होने वाले एक राष्ट्रीय कार्यक्रम के लिए कुछ ऐसे कार्यक्रमों को तैयार करके उन्हें मंच पर प्रस्तुत करने की बात चली जिससे लोगों में फिर से जोश और जज़्बा भर सके।

ऐसा कोई कार्यक्रम हो जिससे लोगों के दिलों में फिर से देश के लिए कुछ कर गुज़रने का ज़ज्बा भरा जा सके...इस परिकल्पना पर आधारित कार्यक्रम के लिए जगह का निर्धारण हुआ। दिल्ली का नेशनल स्टेडियम। मौका था 27 जनवरी। और तय हुआ कि इस मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के अतिरिक्त देश के विशिष्ट गणमान्य लोग आमंत्रित रहेंगे।

ऐसे में इस मौके के लिए तीन अलग अलग संगीतकारों को एक एक गीत तैयार करने को कहा गया। उन तीन में एक थे नौशाद साहब, एक थे ख्याम और तीसरे थे सी रामचंद्र।

Independence Day Special: नौशाद साहब ने मोहम्मद रफी के साथ मिलकर उस समय के चर्चित सिनेमा के संगीत पर आधारित कुछ गीतों की माला को तैयार किया। जबकि ख्याम साहब ने कुछ नए पुराने गायक गायिकाओं के साथ गीतों का एक गुलदस्ता बनाया।

मगर सी रामचंद्र उस वक़्त अपनी दक्षिण भारत की फिल्मों के लिए डबिंग के काम में मशरूफ थे। कार्यक्रम के आयोजकों की शर्त के मुताबिक कार्यक्रम में प्रस्तुति से पहले जो भी प्रोग्राम तैयार किया जाना था उसका एक रिव्यू ज़रूरी था और वो रिव्यू क़रीब एक महीने पहले कराया जाना था। लेकिन सी रामचंद्र ने कार्यक्रम से तीन हफ्ते पहले तक भी कुछ तैयार करके नहीं भिजवाया था।

जब आयोजकों की तरफ से उन पर दबाव डाला गया तब सी रामचंद्र ने कवि प्रदीप से संपर्क किया। कवि प्रदीप उन गीतकारों में से एक थे जो देश भक्ति के गीतों की रचना बहुत ही शानदार तरीक़े से करते थे। लिहाजा सी रामचंद्र ने कवि प्रदीप से आग्रह किया कि वो इस खास मौके के लिए कोई गीत लिखें और वो भी जल्दी। गीतकार प्रदीप और संगीतकार सी रामचंद्र जी के बीच बातचीत में मुखड़ा तय हो गया...ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लोग पानी

Independence Day Special: अब इस गीत के अंतरे लिखे जाने थे। प्रदीप को ये समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर इस गाने को पूरा कैसे करें...जल्दी भी करने का प्रेशर था...उस रोज प्रदीप सुबह सैर के लिए बीच पर गए हुए थे...तभी उनके दिमाग में इस गाने की पहली पंक्ति गूंजी और एक ही झटके में पूरा पैरा तैयार होता चला गया। अब उस वक़्त तो उनके पास न तो कागज था और न ही पैन। तब उन्होंने वहीं बीच पर घूम रहे एक शख्स से पेन मांगा और फिर वहीं पड़े एक चारमिनार सिगरेट की पन्नी पर उस गीत का पहला अंतरा लिख डाला।

और फिर उस अंतरे को गुनगुनाना शुरू कर दिया...गुनगुनाते गुनगुनाते कवि प्रदीप जब तक घर पहुँचे तो उस गीत के 95 अंतरे पूरे हो चुके थे। अगले दिन जब कवि प्रदीप ने सी रामचंद्र को गीत के 95 अंतरे सुनाए तो सी रामचंद्र यानी अन्ना साहब चक्कर में पड़ गए। उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर 95 अंतरों वाला गाना कैसे तैयार किया जाए...और किसी भी अंतरे को वो किसी भी सूरत में कमतर मान ही नहीं पा रहे थे।

दोनों ही सुबह से लेकर शाम तक चाय पीते रहे और माथा पच्ची करते रहे, कि आखिर कौन सा अंतरा रखा जाए और कौन सा निकाल दिया जाए। तब खुद प्रदीप ने अपने गीतों से अंतरों को कम करने का इरादा किया और आखिर में 19 अंतरों पर बात आकर अटक गई। लेकिन 19 अंतरों के गीत का मतलब था क़रीब दो घंटे का गाना। और इतना बड़ा गाना हो नहीं सकता था। लिहाजा फिर माथा पच्ची का दौर शुरू हुआ। और बात 11 अंतरे पर जाकर टिक गई। लेकिन कार्यक्रम की समय सीमा को देखते हुए ये 11 अंतरे भी बहुत ज़्यादा थे।

Independence Day Special: बहरहाल करते करते दोनों के बीच 9 अंतरों में सहमति बन गई। और तय पाया गया कि 9 अंतरों को संगीतबद्धकरके उसे गवाया जाए।

जब गीत काट छांटकर छोटा कर दिया गया तो फिर ये सोच विचार शुरू हुआ कि इस गीत को आखिर आवाज़ किसकी मिलनी चाहिए। वो ज़माना लता मंगेशकर का था...ऐसे में इस गाने के लिए भी वही पहली पसंद हो सकती थीं लेकिन सी रामचंद्र और लता मंगेशकर में बातचीत बंद थी। तब आशा भोंसले पर बात बनीं..और रिहर्सल भी शुरू हो गई।

मगर कवि प्रदीप यही चाहते थे कि ये गाना लता मंगेशकर को गाना चाहिए...मगर वो भी सी रामचंद्र पर ज़्यादा दबाव नहीं डाल सकते थे। चूंकि इस गाने को जोशीली आवाज़ की ज़रूरत भी थी लिहाजा आशा भोंसले को लेकर बात बन गई। हालांकि इस गाने के लेकर जब कवि प्रदीप ने लता मंगेशकर से बात की तो वो फौरन तैयार भी हो गईं थीं। मगर सी रामचंद्र आशा भोंसले के नाम पर ही रजामंद रहे।

इसी बीच रिकॉर्डिंग का दिन तारीख तय हो गया। शाम को पांच बजे स्टूडियो में जब रिकॉर्डिंग की तैयारी हो रही थी ऐन उसी वक़्त रिकॉर्डिंग से थोड़ी ही देर पहले लता मंगेशकर वहां पहुँच गईं, और उन्होंने आशा भोंसले से कुछ बात की।

Independence Day Special: लता दीदी की बात सुनकर आशा भोंसले वहां से रोते रोते चली गईं। और बाद में आशा ने सी रामचंद्र से अपनी तबीयत खराब होने की बात कही।

वक़्त बचा नहीं था...गाने को फौरन फाइनल करके आयोजकों के पास भिजवाना सी रामचंद्र की मज़बूर भी थी लिहाजा वो रिकॉर्डिंग सी रामचंद्र ने लता मंगेशकर के साथ की। हैरानी की बात ये है कि इस गीत के लिए लता मंगेशकर ने ज़्यादा रिहर्सल भी नहीं की। एक या दो रिहर्सल के बाद ही गाना ओके हो गया।

हालांकि इस गीत के रिकॉर्ड हो जाने के बाद भी सी रामचंद्र को भरोसा था कि ये गीत कार्यक्रम में आशा भोंसले से ही प्रस्तुत करवा लेंगे। लेकिन सी रामचंद्र इस गाने को गवाने के लिए आशा भोंसले को तैयार नहीं कर सके।

और 27 जनवरी 1963 को दिल्ली के राष्ट्रीय स्टेडियम में लता मंगेशकर ने जब ये गीत गाया तो इतिहास बन गया। बताया जाता है कि उस गीत के मौके पर खुद पंडित जवाहरलाल नेहरू के आंसू छलक उठे थे। इस कालजयी गीत की हैसियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है 29 जनवरी को होने वाली बीटिंग द रिट्रिट के मौके पर बजने वाले एबाइड विद मी की जगह लता मंगेशकर के गाये गीत ऐ मेरे वतन के लोगों को बजाने का आदेश दे दिया गया था।

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