चीन के नक्शे पर एक शिनजियांग सूबा है, करीब 17 लाख वर्ग किमी का ये इलाका ईरान जैसे बड़े देश के बराबर है। अकेले चीन के इस राज्य की आबादी ढाई करोड़ के आसपास है, यानी अपने आप में इसे आप एक पूरा देश कह सकते हैं। कह नहीं सकते बल्कि ये एक देश ही था जिसे चीन ने कब्ज़ा लिया। इस देश का नाम था पूर्वी तुर्किस्तान, इसे उइगुरिस्तान के नाम से भी जाना जाता था। उइगुरिस्तान इसलिए क्योंकि इस इलाके में ज़्यादातर आबादी उइगर मुसलमानों की है, तुर्की मूल के ये उइगर मुसलमान आसपास के मुस्लिम देशों मसलन कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान और तज़ाकिस्तान में भी रहते हैं। शिनजियांग प्रांत में रहने वाले उइगुर मुसलमानों का खाना-पीना, रहना सहना बाकि चीनी लोगों से अलग है। खास बात ये है कि ये लोग धार्मिक हैं और इस्लाम के मानने वाले हैं।
चीन में नर्क से भी बदतर है ये जगह, जहां इंसान मर्ज़ी से खाना भी नहीं खा सकता
Who are the Uyghurs and why is China being accused of genocide?
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02 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:02 PM)
चीन में मुसलमानों की सबसे घनी आबादी शिनजियांग सूबे में ही है, शिनजियांग के अलावा निंगज़िया, गानसू और किनघाई में भी काफी मुसलमान रहते हैं। इन तमाम इलाकों में करीब 40 हज़ार से ज़्यादा मस्जिदें हैं, चीनी इतिहासकारों के मुताबिक करीब 14 सौ सालों से चीन में इस्लाम के मानने वाले हैं। माना जाता है कि यहां बसे ज़्यादातर मुसलमान तुर्की से व्यापार के सिलसिले में आए थे, और यहीं बस गए। चीन में उइगर मुसलमानों की तादाद करीब एक करोड़ के आसपास है, आज भी इन उइगर मुसलमानों की मूल भाषा तुर्की ही है।
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चीन में मोटे तौर पर तीन तरह के मुसलिम समुदाय रहते हैं,
उइगर- जिनकी आबादी करीब 90 लाख है
हुई- जिनकी आबादी करीब 98 लाख है
और कज़ेख्स- जिनकी आबादी 35 लाख है
चीन का शिनजियांग तिब्बत की तरह ही स्वायत क्षेत्र है, ये पूरा इलाका सदियों से राजशाही का हिस्सा रहा है। मगर 20वीं सदी के शुरूआत में उइगरों ने कुछ वक्त के लिए खुद को आज़ाद घोषित कर दिया था, हालांकि 1949 में पीपुल रिपब्लिक ऑफ चाइना का गठन होते ही, चीनी सरकार ने सोवियत रूस की मदद से इस इलाके को अपने कब्ज़े में ले लिया और यहां के उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार का सिलसिला शुरू कर दिया। चीन की कम्यूनिस्ट सरकार और उइगर मुसलमानों के बीच ये संघर्ष लंबे वक्त तक चला, मगर अब हालात ये हैं कि शिनजियांग सूबे में लोगों को धार्मिक विचार छोड़कर नई पहचान अपनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
तो सवाल ये कि आखिर चीन ने इस इलाके पर कब्ज़ा क्यों किया? तो उसकी वजह है चीन की विस्तारवादी नीति, आपको बता दें कि दरअसल चीन का ये सूबा एक दो नहीं बल्कि 8-8 देशों के साथ अपनी सरहद साझा करता है, और इस इलाके में चीन की मौजूदगी उसके लिए कई मायनों में फायदेमंद है। हालांकि कागज़ पर ये सूबा आज भी एक ऑटोनॉमस यानी स्वायत राज्य है, यानी इस इलाके के अपने कुछ अलग अधिकार हैं। लेकिन ये सबकुछ सिर्फ कागज़ों पर ही है, जबकि हकीकत ये है कि चीन ना सिर्फ यहां हर फैसले में दखल देता है, बल्कि मुस्लिम आबादी होने और इस सूबे को खो देने के डर से चीनी सरकार यहां के लोगों पर तमाम तरह के अत्याचार भी करती है। और तो और इस इलाके में चीन ने भारी तादाद में आर्मी को भी तैनात कर रखा है, जो उसके तुगलकी फरमानों को यहां लागू करवाती रहती है, मसलन यहां,
लंबी दाढ़ी रखने पर पाबंदी
नकाब पहनने पर पाबंदी
सार्वजनिक जगहों पर नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी
बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने पर रोक है
लाउडस्पीकर पर अज़ान देने पर पाबंदी
हलाल मांस खाने पर पाबंदी
सरकारी टीवी चैनल देखने पर मनाही
यानी यहां चीन की सरकार ही तय करती है कि अपने ही मुल्क यानी पूर्वी तुर्किस्तान में रह रहे उइगर क्या खाएंगे, क्या पिएंगे, क्या ओढेंगे, क्या पहनेंगे। कुल मिलाकर चीनी सरकार की कोशिश है कि वहां के उइगरों की मज़हबी पहचान को ही खत्म कर दिया जाए। मगर त्रास्दी ये है कि चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे जुल्मों सितम पर कभी कोई चर्चा नहीं करता। दुनिया के तमाम देश अब भी चुप्पी साधे हुए हैं, यहां तक कि पाकिस्तान भी। क्योंकि ये मामला चीन से जुड़ा है।
चीनी सरकार किसी भी कीमत पर शिनजियांग प्रांत पर किसी एक समुदाय का कब्ज़ा नहीं होने देना चाहती है, क्योंकि प्राकृतिक खनिज के मामले में शिनजियांग बहुत बड़ा भंडार है। जहां तेल, गैस और खनिजों का अकूत खज़ाना है, और इसीलिए चीनी सरकार स्थानीय पहचान और भाषा को खत्म करने की कोशिश कर रही है। साथ ही इस्लाम के मानने वालों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वो नास्तिक बन जाएं, और इसके लिए यहां रोज़ नए नए नियम लागू कर दिए जाते हैं, मसलन
2014 में मुसलमानों को रमज़ान में रोज़े रखने पर रोक लगाई गई
मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अज़ान देने से रोका गया
मस्जिदों में चलने वाली इस्लामिक दीक्षा को भी रोक दिया गया
दरअसल कम्युनिस्टों के इस देश की सरकार चाहती है कि उइगरों की आने वाली नस्ल को इस तरह तैयार किया जाए कि वो मज़हब को मानना ही छोड़ दें, इसलिए धर्म से जुड़े नाम रखने से रोका जाता है। साथ ही स्कूलों में बच्चों को धर्म से दूर रहने की सलाह दी जाती है, ये सब उस चीन में हो रहा है जो दावा करता है कि उसके लोगों को धार्मिक तरीके से जीने की आज़ादी है।
यूं तो चीन की 70 फीसदी आबादी धर्म मानती ही नहीं, मगर इसका ये मतलब नहीं है कि चीन में धर्म के मानने वाले लोग ही नहीं। शिनजियांग सूबे में मुसलमान बहुसंख्यक हैं, 60 फीसदी से ज़्यादा लोग यहां इस्लाम के मानने वाले हैं।
सदियों से राजशाही में रहे पूर्वी तुर्किस्तान को 18वीं सदी में क्विंग शासकों ने कब्ज़ा लिया था, मगर 1930 के दशक में यहां उइगर लोगों ने विद्रोह छेड़ दिया। और इस पूरे इलाके को ईस्ट तुर्किस्तान रिपब्लिक घोषित कर दिया, और तब यहां के लोगों ने आज़ादी महसूस की, हालांकि 1949 में पीपुल रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना होते ही चीन ने जल्द ही सोवियत रूस की मदद से शिनजियांग पर फिर से कब्ज़ा जमा लिया। इसके बाद चीनी सरकार ने उइगरों को सताना और हान लोगों को यहां बसाना शुरु कर दिया।
चीन की कुल आबादी का करीब डेढ़ फीसदी हिस्सा मुसलमानों का है, यानी 138 करोड़ की कुल आबादी में 2 से 3 करोड़ मुसलमान हैं। और चीन के इस सबसे बड़े सूबे में मुसलमान बहुसंख्यक हैं, मगर एक ऐसा देश और एक ऐसी सरकार जो महज़ब में यकीन ही नहीं रखती, वहां इतनी बड़ी आबादी अगर इस्लाम के मानने वाले की है, तो क्या जिस तरह चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान की हिमायत करती है। उसी तरह उसको अपने मुल्क के मुसलमानों के हक़ में भी फिक्रमंद नहीं रहना चाहिए, मगर चीन ऐसा करता नहीं है, बल्कि वो तो पूरी दुनिया में बदनाम है अपने मुल्क में मुसलमानों पर अत्याचार के लिए।
यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक
चीन ने शिनजियांग प्रांत में कई खुफिया प्रताड़ना कैंप बना रखे हैं।
10 लाख से ज्यादा उइगरों, कजाखों और दूसरे मुस्लिम अल्पसंख्यकों को हिरासत में लिया है।
2014 से अब तक करीब 13 हजार उइगर मुसलमानों को आतंकी बताकर गिरफ्तार किया गया है।
और तो और कैदखानों में उन्हें राष्ट्रपति शी जिनपिंग से वफादारी की कसमें खिलाई जाती है।
दुनिया में मुसलमानों का मसीहा बनने वाले देश भी इस अत्याचार पर होठ सिले बैठे हुए थे, मगर अब मुसलमानों के लिए चीन की इस दोहरी नीति पर पहली बार आवाज़ उठी है। पहली बार किसी ने इस मसले के उपर चीन पर वार किया है, और ये वार किसी और ने नहीं अमेरिका ने किया है। जिससे चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, इतना ही नहीं शिनजियांग के साथ साथ अब आज़ाद तिब्बत की मांग ने भी ज़ोर पकड़ लिया है। और अगर इन दोनों मुल्कों को आज़ादी मिल जाती है, तो ये भारत के हक़ में होगा, क्योंकि भौगोलिक तौर पर तिब्बत और शिनजियांग भारत से सटे हैं। और इन दोनों के अलग होते ही भारत का चीन से कोई लेना-देना ही नहीं रह जाएगा।
चीन में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार को लेकर अभी तक पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया, यहां तक की मुसलमानों का सबसे बड़ा हिमायती बनने वाले सऊदी अरब की ज़ुबान से एक लफ्ज़ भी नहीं निकला है। जानकारों के मुताबिक ऐसा इसलिए है क्योंकि,
सऊदी अरब के तेल निर्यात का 10% कारोबार चीन के साथ होता है।
मलेशिया में सबसे बड़ा विदेशी निवेश चीन ने किया है।
चीन ने पाकिस्तान में सीपेक पर अरबों का निवेश किया है।
कुल मिलाकर चीन तमाम बड़े मुस्लिम देशों में या तो निवेश कर रखा है, या वो उनका सबसे बड़ा खरीदार है। लिहाज़ा दोनों ही मामलों में चीन को नाराज़ करना उन देशों के लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है, इसलिए इस्लाम को एक किनारे रखकर ये तमाम देश अपने हित साधने में लगे हुए हैं।
अब आइये बताते हैं कि चीन के खिलाफ आतंकियों की खामोशी का सच क्या है? हिंदुस्तान के खिलाफ ज़हर उगलने वाले आतंकी चीन के खिलाफ इसलिए खामोश रहते हैं क्योंकि चीन ने इन आतंकियों को हथियार और बारूद मुहैय्या कराकर इन्हें अपना गुलाम बना रखा है। पाकिस्तानी आतंकी संगठनों को पैसा भी चीन से आता है, और जब दुनिया उनके खिलाफ आवाज़ उठाती है तो चीन उनका कवच भी बन जाता है। चीन ने संयुक्त राष्ट्र में मसूद अज़हर को आतंकी घोषित करने के खिलाफ वीटो लगा रखा है, चीन की ये ढाल आतंकियों के लिए सबसे बड़ा सुरक्षाकवच है। यही वजह कि आतंकी भी चीन की ताकत के आगे नतमस्तक हैं।
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