जब जंग छिड़ती है तो जंग के मैदान के नज़दीक रहने वाले लोग महफूज़ ठिकानों की तरफ भागने लगते हैं, मगर रोमांच के शिकारी उन जगहों पर दौड़े चले जाते हैं जहां संग्राम मचा हुआ है। इनकी नजरें इंतेज़ार करती हैं बर्बादी और तबाही के मंज़र की, क्योंकि इन्हें तोपों के धमाके और आसमान में उड़ते बारूद का धुआं अपनी तरफ खींचता है।
अब कुल्लू-मनाली नहीं जंग देखने जाइये!
War Tourism is Getting Popular
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27 Jul 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:02 PM)
जैसे जैसे जंग के हालात बनते हैं वैसे वार टूरिज़्म बढ़ने लगता है, सुनने में अजीब लगता है कि लेकिन युद्ध के इंतेज़ार में सैकड़ों लोग जमा होने लगते हैं। जब उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच जंग के हालात बने थे, तो जापान, चीन और साउथ कोरिया, तीनों तरफ से लोग दूरबीन से नार्थ कोरिया की हलचल और तैयारियों को देख रहे थे। कुछ सैलानी आब्ज़रवेट्री टॉवर पर खड़े होकर जंग के मैदान का नज़ारा ले रहे थे।
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दुनियाभर से आए सैलानियों का जमावड़ा लग गया जो टेंशन के माहौल और युद्ध को लाइव अपनी आंखों से देखना चाहते थे। यही हाल जापान में भी था। यहां भी सेनाएं हाई एलर्ट पर थीं लेकिन सैनानी समंदर से कोरिया का नज़ारा देखने की कोशिश कर रहे थे। नार्थ कोरिया और साउथ कोरिया के बॉर्डर पर ऐसी कई जगह हैं जहां सैलानी दूरबीन से युद्द की इन तस्वीरों को देखने के लिए बेकरार थे, फिलहाल युद्ध तो छिड़ा नहीं है लेकिन दोनों देशों की युद्ध की तैयारियों का नज़ारा वो लोग ज़रूर ले पाए।
इसे पागलपन कहिए या रोमांच, लेकिन फिलहाल वॉर टूरिज़्म बहुत ज़्यादा लोकप्रिय हो रहा है। दुनिया में कहीं भी युद्ध की आशंका हो वॉर टूरिज़्म के ये प्रेमी या रोमांच ढ़ूढ़ने वाले लोग वहां पहुंच जाते हैं। अक्सर अमेरिका और नॉर्थ कोरिया के बीच युद्ध के हालात की पैदा होने वाली आशंका को देखते हुए चीन और जापान जैसे देशों में लगातार ऐसे टूर ऑपरेटर्स की तादाद बढ़ रही है जो सैलानियों को इस युद्ध के मंज़र को लाइव दिखाने की पेशकश कर रहे हैं और उन्हें युद्ध का लाइव एहसास कराने का दावा भी कर रहे हैं।
वॉर टूरिज़्म को बढ़ावा देने वाले लोग टूर ऑपरेटर सैलानियों को सरहद के ऐसे इलाकों में लेकर आते हैं जहां से लड़ाई की तस्वीरें और आवाज का बहुत करीब से एहसास होता है।
जैसे जैसे कहीं हालात बिगड़ते हैं वैसे वैसे उन इलाकों में सैलानियों के लिए सुविधाओं का भी मजमा लग जाता है। जंग के मैदान के नज़दीक कैमरे, खाने पीने की दुकानें और काम चलाऊ होटल खोल दिए जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि वार टूरिज़म के सैलानियों को यूं ही जंग के मैदान में छोड़ दिया जाता है। बार्डर पर जंग का तमाशा देखने आए सैलानियों की सुरक्षा का पूरा ख्याल भी रखा जाता है। जंग के पास के इलाकों में इन्हें बेहद सुरक्षित जगहों पर इनके खड़े होने का इंतेज़ाम किया जाता है। और कई इलाकों में दूरबीनों के जरिए दूर से ही सैलानी जंग की तैयारियों को देखने का मौका दिया जाता है।
जंग और तबाही को देखने पहुंचते सैलानियों का ये जुनून है या फिर धमाकों और शोलों को देखने की इंसानी फितरत जानलेवा हो सकती है, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि ऐसे लोगों को मौत का खौफ भी नहीं होता।
सीरिया में भी गृहयुद्ध के दौरान भी ऐसे लोग वहां मौजूद थे जो तोपों के धमाके और आसमान में उड़ते बारूद के धुएं का लुत्फ लेने गए थे। ये नज़ारे वो सीरिया और इजराइल की सीमा पर गोलन पहाड़ियों से ले रहे थे। यहां ऐसे सैलानियों की भीड़ थीजो सीरिया में चल रही गोलीबारी और युद्द को लाइव अपनी आंखों से देखना चाहते थे।
इजराइल में भी लगातार ऐसे टूर ऑपरेटर्स की तादाद बढ़ रही है जो सैलानियों को सीरिया में होने वाली बमबारी और जंग का लाइव एहसास कराने का दावा करते हैं और सैलानियों को सरहद के ऐसे इलाकों में लेकर आते हैं जहां से जंग के दौरान सीरिया के शहरों में चल रही लड़ाई की तस्वीरें और आवाज का बहुत करीब से एहसास होता है।
यहां पर सैलानी अपने कैमरों में युद्द की तस्वीरों को कैद करते हैं, यहां उनके बैठने के लिए कुर्सियां और मेज़ वगैहरा भी डाले जाते हैं, जिनपर आराम से बैठकर सैलानी सीरिया की लड़ाई का दीदार कर सकें। इसके अलावा सैलानियों की सुरक्षा के लिहाज़ से उन्हें बंकरों के अंदर भी बैठाया जाता है, ताकि वो गरजती तोपों की आवाज़ महफूज़ रहते हुए सुन सकें। और कई इलाकों में दूरबीनों के जरिए दूर से ही सैलानी जंग की तबाही दिखाई जाती है।
आज से नहीं बल्कि सदियों से वॉर टूरिज़्म को रोमांच पसंद करने वाले लोग बढ़ावा देने की कोशिश करते रहे हैं। श्रीलंका में लिट्टे के सबसे बड़े आका प्रभाकरण के उस अड्डे को टूरिस्ट स्पॉट बना दिया गया जहां वो कभी अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देता था, ये वो जगह थी जहां परिंदे भी पर नहीं मार सकते थे।
वॉर टूरिज़्म का ये बिलकुल नया चेहरा है, वो जगह जो कभी बेहद संवेदनशील हुआ करती थीं। वहां आज बच्चे फोटो खिचाते हैं, वहां आज दुनियाभर के सैलानी आते हैं। उस जगह को नज़दीक से देखते हैं जहां हज़ारों बेगुनाहों की जान गई। जहां कभी इंसानियत के दुश्मन रहा करता था।
पुत्थुकुडूयिरप्पू के घने जंगल में था प्रभाकरण का खुफिया ठिकाना जो आज टूरिस्टों की पहली पसंद बना हुआ है। लंका से प्रभाकरण का नामो निशाम मिटा दिया गया लेकिन उसकी इस निशानी को अभी भी सरकार ने संजो कर रखा है। शायद इसलिए ताकि इंसानियत के दुश्मन के इस हश्र को दुनिया देख सके।
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