Delhi Murder Mystery: साल था 2013, तारीख थी 20 मई, दिल्ली पुलिस को फुटपाथ पर एक अज्ञात व्यक्ति का शव मिलता है. शव पर चाकू के निशान हैं, जो बताते हैं कि यह हत्या का मामला है. लेकिन मृतक की पहचान हुए बिना पुलिस के लिए हत्यारे तक पहुंचना नामुमकिन है. और सबसे बड़ी समस्या यह है कि मृतक के पास न तो पर्स है, न मोबाइल फोन और न ही जेब में कोई आई-कार्ड. यानी पुलिस को एक ऐसी हत्या की जांच करनी है जिसमें शव का कोई चेहरा नहीं है.
पर्ची में दफन था मौत का राज, गुमनाम लाश और एक क्लू... क़ातिल की पुलिस को चुनौती पकड़ के दिखाओ
Delhi Murder Mystery: साल था 2013, तारीख थी 20 मई, दिल्ली पुलिस को फुटपाथ पर एक अज्ञात व्यक्ति का शव मिलता है. शव पर चाकू के निशान हैं,
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Crime Tak
23 Feb 2024 (अपडेटेड: Feb 25 2024 10:05 AM)
उत्तर-पश्चिम दिल्ली के बड़े बाजारों और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में से एक ब्रिटानिया चौक. लोगों की इस भीड़ और ट्रैफिक से थोड़ी दूर इस वक्त फुटपाथ पर एक शख्स बेहोश पड़ा था. और फिर वहां से गुजर रहे लोग ने नोटिस किया की किसी का शव है और इसी बीच पुलिस को फोन पर सूचना दी जाती है.
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अब सुभाष प्लेस थाने की पुलिस मौके पर थी. बेहोश शख्स का मुआयना करती है. लेकिन ये क्या? इस शख्स के शरीर पर चाकुओं के निशान हैं. शरीर के बायीं तरफ और सीने पर लगे चाकू के घावों से काफी खून भी बह चुका था. पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या यह शख्स अभी भी जीवित है या नहीं. लेकिन फिर पुलिस ने ज्यादा समय बर्बाद न करते हुए उसे अस्पताल ले जाना उचित समझा.
अस्पताल में डॉक्टर शख्स को मृत घोषित कर देते हैं. पुलिस शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजती है और साथ ही हत्या का मामला दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर देती है. शुरुआती जांच में यह साफ हो गया है कि मृतक की जेब में से उसका पर्स और मोबाइल गायब है. तो क्या, क्या किसी ने लूट के इरादे से इस शख्स की हत्या कर दी है? या फिर मृतक की हत्या कर घटना को लूट का रूप देने के इरादे से ऐसी साजिश रची गई है?
जाहिर है बिना किसी ठोस जानकारी के पुलिस के लिए किसी नतीजे पर पहुंचना नामुमकिन था. हालांकि शव और घटना के हालात से ये मामला लूट का जरूर लग रहा था. पुलिस को ऐसा लग रहा था की हो सकता है कल रात को ये कत्ल हुआ हो, या तो हो सकता है ये शख्स किसी लुटेरे के चंगुल में फंस गया हो... हालांकि, फिलहाल पुलिस की सारी थ्योरी कयासों पर आधारित हैं. क्योंकि अभी तक न तो मृतक की पहचान हो पाई है और न ही पुलिस को कोई सुराग मिला है हत्या की इस घटना में. अभी तक पुलिस को कोई भी सुराग नहीं मिला है.
लेकिन इसी बीच शव की तलाशी के दौरान मिले कागज के एक छोटे से टुकड़े पर अचानक पुलिस का ध्यान जाता है और पुलिस एक बार फिर उसी हिस्से के सहारे जांच को आगे बढ़ाने का फैसला करती है... तो क्या, एक मृतक के लिए कागज का छोटा सा टुकड़ा ही काफी है. हत्यारे की पहचान या पता बता सकते हैं?
गुमनाम लाश और एक क्लू
ये गुमनाम लाश पुलिस के लिए किसी पहेली से कम नहीं थी. लेकिन तभी पुलिस को लाश की जेब से एक पर्ची मिलती है, जिसमें कुछ होटलों और कुछ वेटरों के नाम लिखे होते हैं. लेकिन क्या ये पर्ची कुछ बताती है पुलिस को सूचना? सुराग देता है? क्या इस पर्ची की मदद से पुलिस को शव की पहचान पता चल जाएगी या फिर उनकी कोशिशें बेकार हो जाएंगी.
वैसे तो पुलिस पर लापरवाही या लापरवाही के आरोप कोई नई बात नहीं है. लेकिन हत्या के मामलों में ऐसा कम ही होता है, जब पुलिस जांच से पूरी तरह आंखें मूंद लेती है. लेकिन नेताजी सुभाष प्लेस थाने की पुलिस केस को सुलझाने में लगी थी. ये केस एक ब्लाइंड मर्डर का था जिसमें पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. यहां तक कि पुलिस ने वो जगह भी ढूंढ ली जहां उस अनजान शख्स की लाश मिली थी. उस जगह पर जाकर भी वह लोगों को ढूंढते-ढूंढते थक गई, लेकिन उसे पहचानने वाला कोई नहीं मिला.
अब हार कर पुलिस ने उसी पर्ची की दोबारा जांच करने का फैसला किया जो शव की जेब से मिली थी. ध्यान से देखने पर पुलिस को पता चला कि उस पर्ची पर कुछ होटलों और वेटरों के नाम लिखे थे. तो क्या यह शव होटल व्यवसाय से जुड़े किसी व्यक्ति का है या मृतक खुद वेटर है? बात भले ही पुख्ता न हो, लेकिन शव के पास मिले उस छोटे से हिस्से ने पुलिस को पहले ही सुराग दे दिया था. कम से कम अब पुलिस होटल लाइन से जुड़े लोगों से इस संबंध में पूछताछ तो कर ही सकती थी.
पर्ची में दफन था मौत का राज
पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाई और पर्ची में लिखे कुछ होटलों के नंबरों पर कॉल की, लेकिन तभी पुलिस को बड़ी सफलता हाथ लगी, जब इसी कोशिश में राजस्थान से एक शख्स ने मरने वाले शख्स को पहचानने का दावा किया. घटना के बारे में और मृतक का बारे सुनने के बाद होटल में फोन उठाने वाले व्यक्ति ने बताया कि यह सच है या नहीं ये मुझे पता नहीं पर हां मृतक शकूरपुर निवासी उम्मेद हो सकता है, जो वेटर सप्लायर का काम करता है. अब पुलिस को जांच में मामूली सफलता मिली है. लेकिन होटल व्यवसायी के दावे का सत्यापन होना अभी बाकी था.
अब तक पुलिस को पता चल चुका था कि उम्मेद शकूरपुर के एल ब्लॉक में रहता है. इसलिए पुलिस ने शव की फोटो खींची और एल-ब्लॉक में उसके परिजनों की तलाश करने का फैसला किया. इस बार भी पुलिस की कोशिश काम आई. तब जाकर एल-ब्लॉक में उम्मेद का परिवार मिला. यहां शव की तस्वीर देखते ही उम्मेद की पत्नी और उसका भाई फूट-फूटकर रोने लगे. आया कि उम्मेद हर दो हफ्ते में एक बार राजस्थान से घर आता था. लेकिन इस बार वह घर नहीं लौटा.
लेकिन एक सवाल अब भी वही बना हुआ है. वो ये कि क्या उम्मेद की हत्या किसी दुश्मनी के चलते की गई थी या डकैती के चलते? इस सवाल का जवाब जानने के इरादे से पुलिस ने उनके परिवार से उन चीजों के बारे में जानने की कोशिश की जो आमतौर पर उनकी जेब में होती थीं. लेकिन इसमें उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली.. हां, ये जरूर मिल पता चला कि उम्मेद के पास एक मोबाइल फोन भी था, जो घटना के बाद से लगातार बंद था. पुलिस ने उम्मेद के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा दिया था. लेकिन इसी बीच उम्मेद के कातिलों ने एक ऐसी गलती कर दी, जिससे बड़ा सुराग मिल गया.
अब पुलिस को मरने वाले के बारे में तो पता चल गया था. लेकिन न तो हत्या का मकसद पता चला और न ही हत्यारों के बारे में. लेकिन फिर कातिल ने खुद ही ऐसी हरकत कर दी, जिससे पुलिस को पता चल गया उनके विषय में वास्तव में वह कार्रवाई क्या थी? और उम्मेद की हत्या की वजह क्या थी?
उम्मेद की हत्या की वजह क्या थी?
उम्मेद के हत्यारों की तलाश में जुटी पुलिस को अब उम्मीद नजर आने लगी. दरअसल, हत्या के बाद से गायब उम्मेद के जिस मोबाइल फोन को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया था, वह एक दिन बाद अचानक स्विच ऑन हो गया. फिर कुछ देर बाद वह भी बंद हो गया. लेकिन मोबाइल पर नजर रख रही पुलिस को पता चला कि फोन शकूरपुर इलाके में ही चालू हुआ था. अब एक बात और साफ हो गई कि जिसने उम्मेद की जान ली यानी उसका कातिल अभी भी शकूरपुर इलाके में ही मौजूद था. जहां मोबाइल फोन ऑन हुआ था और पुलिस शकूरपुर इलाके में ही थी. एक झोपड़ीनुमा छोटी सी दुकान पर पहुंचा. इस दुकान में उम्मेद का कातिल तो नहीं था, लेकिन दुकान पर मौजूद शख्स से उम्मेद के मोबाइल के बारे में पूछताछ की तो उसे नई बात पता चली.
दुकानदार ने पुलिस को बताया कि उसी दिन सुबह दो युवक उम्मेद का मोबाइल फोन बेचने आए थे. दोनों सस्ते दाम पर मोबाइल देने को तैयार थे, लेकिन उम्मेद का मोबाइल लॉक था और कीपैड नहीं खुल रहा था. मोबाइल खरीदने से इनकार कर दिया. हालांकि दुकानदार मोबाइल बेचने आए दोनों लड़कों को जानता था और अब इन दोनों की पहचान से पुलिस को हत्यारों का पता मिल गया था.
अब पुलिस तुरंत शकूरपुर जे-जे कॉलोनी में रहने वाले उन लड़कों के घर पहुंच गई. संयोग से दोनों की मुलाकात घर में ही हो गई. उनमें से एक नाबालिग था, जबकि दूसरे की पहचान सजायाफ्ता स्नैचर साजिद के रूप में हुई. पुलिस ने जब दोनों से उम्मेद के बारे में पूछताछ की तो पहले तो उन्होंने पुलिस को चकमा देने की कोशिश की, लेकिन फिर जल्द ही टूट गए अब उनकी निशानदेही पर पुलिस ने साजिद से उम्मेद का लूटा हुआ पर्स बरामद कर लिया. एक चाकू भी बरामद किया.
अब पूछताछ में दोनों ने जो कहानी बताई वो रोंगटे खड़े कर देने वाली है. दोनों ने बताया कि घटना वाली रात वे पैसों की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे. नशे के आदी साजिद को थी सख्त जरूरत पैसों की और तभी दुर्भाग्य से उमेद उस रास्ते से गुजर रहा था. उमेद को आजादपुर की तरफ से आता देख दोनों बटनदार चाकू लेकर एफओबी के पास चुपचाप खड़े हो गए और जैसे ही उमेद उनके पास पहुंचा, दोनों ने उस पर हमला करना शुरू कर दिया. इससे पहले कि उम्मेद कुछ समझ पाता, दोनों ने उसकी जेब से पर्स और मोबाइल फोन समेत अन्य सामान निकाल लिया और उम्मेद को मरा हुआ समझकर मौके से भाग गए.
एक मामूली से कागज के पुर्जे से कातिलों तक पहुंच कर इस मर्डर मिस्ट्री को पुलिस ने अब सुलझा लिया था। इस मामले में पुलिस ने कानून के मुताबिक कार्रवाई की.
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