Dacoit Kusuma Nain Real Story : ये कहानी डाकू फूलन देवी (Phoolan Devi) की नहीं है. पर रियल जिंदगी में वो फूलन देवी से कहीं ज्यादा खूंखार रही. ये उस लेडी डाकू की कहानी है जिसकी हनक में फूलन देवी की परछाई तो है. पर गुस्से में वो फूलन से कहीं आगे रही. बेशक फूलन देवी ने 22 लोगों को एक साथ लाइन में खड़ा कर गोली मार दी थी. तो इस लेडी डाकू ने 15 लोगों को एक साथ गोली मारी थी.
कभी फूलन के लिए खाना बनाने वाली दुश्मनों की आंखें निकालने लगी, जंजीर से बांध हंटर मारने वाली सबसे खूंखार लेडी डाकू की कहानी
कभी फूलन के लिए खाना बनाती थी, फिर दुश्मनों की आंखे निकालने लगी, जंजीर से बांध हंटर मारने वाली सबसे खूंखार लेडी डाकू की कहानी phoolan devi cook Dacoit Kusuma Nain ki kahani Kusuma nain Real Story
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04 May 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:18 PM)
किसी से बदला लेने के लिए ये दुश्मन की आंखें ही निकाल लेती थी. तो किसी को जिंदा ही जला देती थी. जिस डकैत के गैंग में इसका रुतबा था. उसने एक बार बहस करते हुए इस लेडी डाकू को मां की गाली दे दी. फिर क्या हुआ? उस लेडी डॉन ने तुरंत कहा कि… अभी तुम्हें गोली से उड़ा दूंगी. फिर डाकुओं का सरगना कहता है… मैंने तुझे जमीन से आसमां पर पहुंचाया है. मत भूल अपनी औकात.
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तब वो लेडी डकैत कहती है कि… तुम्हारी औकात नहीं कि अब मुझे आसमान से नीचे ला सको. आज क्राइम की कहानी (Crime Ki Kahani) में उस डाकू कुसुमा नाइन की कहानी. जो अब जेल में रहते हुए पुजारिन बन गई.
Dacoit Kusuma Nain ki Kahani : कुसुमा नाइन. ये नाम कभी ज्यादा चर्चा में नहीं रहा. लेकिन इसकी हनक और खौफ से आज भी लोग डरते हैं. कुसुमा का जन्म साल 1964 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में हुआ. इस गांव के प्रधान के घर कुसुमा पैदा हुई. परिवार में कोई आर्थिक तंगी नहीं थी. परिवार का कोई दबाव भी नहीं था. बल्कि इकलौती बेटी थी. इसलिए लाड-प्यार ज्यादा ही था. जब ये तीसरी में पढ़ाई करती थी तभी पड़ोस में रहने वाले एक लड़के से उसे प्यार हो गया.
उस लड़के का नाम था माधव मल्लाह. चूंकि मामला एक ही गांव का था. तो दोनों को मिलने-जुलने में दिक्कत होती थी. अब कुसुमा 13 साल की हुई थी. साल 1977 की बात है. उस समय तक माधव डकैत विक्रम मल्लाह के संपर्क में आ चुका था. वो भी गैंग में शामिल होना चाहता था. तभी कुसुमा को घरवालों का ज्यादा रोक-टोक पसंद नहीं लगा. इसीलिए वो माधव मल्लाह के साथ गांव छोड़कर ही चली गई.
इधर, परेशान परिवारवाले तलाश करते रहे. उसके नहीं मिलने पर पुलिस में शिकायत की. पुलिस जांच शुरू करती है. दोनों भागकर दिल्ली में आ चुके थे. यहां दिल्ली पुलिस को पता चलता है कि माधव मल्लाह किसी डकैत गैंग से मिला था. इसलिए घर से भागने के कुछ दिन बाद ही दिल्ली पुलिस माधव और कुसुमा दोनों को गिरफ्तार कर लेती है.
जेल भेज दिया जाता है. कहा जाता है कि दोनों को डकैती के फर्जी मामले में जेल भेजा गया. क्योंकि दोनों कभी किसी वारदात में शामिल ही नहीं हुए. आखिरकार 3 महीने बाद जेल से बाहर आते हैं. जिसके बाद जालौन पुलिस कुसुमा को उसके परिवार के हवाले कर देती है.
Lady Daku Kusuma ki kahani : जेल से छूटकर कुसुमा अपने पिता के पास आ जाती है. बेटी भले घर लौट आई. पर इसकी चर्चा गांव के बाहर तक फैल गई. पिता नाराज रहने लगे. पहले सोचते थे कि बेटी को काफी पढ़ा-लिखाकर आगे बढ़ाएंगे. पर अब सोच बदली. सोचा बेटी के हाथ जल्दी पीले करा दूं. फिर तैयारी में जुट भी गए.
एक महीने के भीतर ही कुसुमा की शादी केदार नाई से करा देते हैं. इधर माधव गुस्से में बदला लेना चाहता है. वो जेल से आने के बाद फिर से डाकू विक्रम मल्लाह के संपर्क में रहता है. अब कुसुमा की शादी के कुछ महीने बीत जाते हैं.
माधव अपने कई साथी डाकुओं के साथ उस गांव में पहुंचता है जहां कुसुमा की शादी हुई थी. अब आंखों के सामने कुसुमा और उसका पति केदार. कंधे पर बंदूक. आंखों में गुस्सा. इधर आंखों से गुस्सा और उधर कंधे से बंदूक दोनों को ही माधव नीचे उतारता है. अब सामने सिर्फ कुसुमा का पति केदार ही था. और बंदूक का मुंह उसके सीने पर. इसे देख वो कांपने लगता है. और माधव कुसुमा को अपने साथ लेकर बीहड़ में लौट आता है.
Crime Stories in Hindi : माधव मल्लाह बीहड़ में उसी जगह आता है जहां फूलन देवी (Phoolan Devi) थी. उस समय फूलन भी डाकुओं के गैंग में नई-नई थी. गैंग में विक्रम मल्लाह की हनक थी. और विक्रम की सबसे खास बन गई थी फूलन.
कुछ महीनों का वक्त बीतता है. जब विक्रम मल्लाह डाकुओं के सरदार बाबू गुज्जर को गोलियों से भून देता है. फिर विक्रम मल्लाह खुद सरदार बन जाता है. और फूलन का कद भी उसके साथ ही बढ़ जाता है. फूलन का सबसे खास साथी था विक्रम मल्लाह. और विक्रम का करीबी बन गया था माधव मल्लाह.
कुसुमा नाइन इसी माधव की प्रेमिका थी. पर वो गुस्सा करती थी. लेकिन हनक नहीं थी. अब डकैतों के गैंग में कुसुम को फूलन ने ही जिम्मेदारी सौंपी. काम था घरेलू. जैसे गैंग के लिए खाने-पीने का इंतजाम करना. खाना बनाना. काम सही नहीं होने पर फटकार लगाना. कुसुमा ही दूर से पानी भरकर भी लाती थी.
फूलन कई बार कुसुमा पर झल्ला भी जाती थी. इस बारे में कुसुमा अपने प्रेमी और पति मान चुकी माधव से शिकायत करती. लेकिन माधव की इतनी हिम्मत नहीं थी कि फूलन के खिलाफ कुछ बोल दे. ये देखकर कुसुमा नाराज होती. पर कुछ कर भी नहीं पाती थी.
Daku Kusuma Nain Real story : कहते हैं कि फूलन और विक्रम मल्लाह का सबसे बड़ा दुश्मन था डाकू लालाराम. अब डाकू लालाराम को रास्ते से हटाने के लिए विषकन्या जैसी साजिश रची गई. मसलन, साजिश ये थी कि कुसुमा को डाकू लालाराम के गैंग में भेजा जाए. ताकी वो उसके प्यार के जाल में फंसाकर लालाराम को मार डाले. अब ये साजिश फूलन ने विक्रम को बताई. और विक्रम मल्लाह ने तुरंत कुसुमा को समझाकर काम को अंजाम देने के लिए भेज दिया.
अब यहीं से कुसुमा की जिंदगी में नया मोड़ आया. उसके दिल में जो गुस्से की आग थी उसे परवान पर चढ़ने का मौका था. लिहाजा, कुसुमा दुश्मन डाकू लालाराम के पास गई तो थी उसे प्यार के जाल में फंसाकर मारने लेकिन वहां जाकर उसने कुछ और ही कर डाला.
अब कुछ दिनों तक लालाराम के साथ रहने के बाद फूलन से बदला लेने के लिए कुसुमा ने सबकुछ उगल देती है. लालाराम को साजिश बताकर विक्रम मल्लाह को ही मारने की साजिश रच डालती है. अब विक्रम मल्लाह को बुलाकर उसी की हत्या करा देती है. इस दौरान कुसुमा का पति और प्रेमी माधव मल्लाह भी मारा जाता है. अब कुसुमा लालाराम गैंग की खास सदस्य बन जाती है. और अपना कद फूलन जैसा कर लेती है.
अब कुसुमा हथियार चलाने की ट्रेनिंग लेती है. अपहरण और लूट को अंजाम देने लगती है. फिर वो लालाराम की सबसे खास बन जाती है. अब ये लूट और अपहरण का नया ट्रेंड भी शुरू करती है. अपहरण करने के बाद फिरौती के लिए बाकायदा लेटर भेजती थी. ये लेटर पर बाकायदा लिखवाती थी कि कहां और कैसे फिरौती की रकम चाहिए.
ये सबकुछ उसी पर लिखा जाता था. डाकुओं में सीमा परिहार के नाम से लोग जानते हैं. लेकिन ये कुसुमा और डाकू लालाराम ही थे जिन्होंने सीमा परिहार का अपहरण किया था. इस अपहरण के बाद ही सीमा परिहार भी बीहड़ की कुख्यात डाकू बन गई थी.
फूलन देवी (Phoolan Devi) की जिंदगी का सबसे कुख्यात बेहमई कांड माना जाता है. जिसे फूलन देवी ने 14 मई 1981 को अंजाम दिया था. इस कांड में फूलन ने कुल 22 लोगों को एक लाइन में खड़ा करवाकर मार डाला था. इसमें 20 राजपूत थे और दो अन्य जातियों से थे. असल में फूलन देवी बेहमई में डाकू लालाराम और श्रीराम को मारने के लिए ही गई थी.
ये वही दोनों डकैत थे जिन्होंने जानबूझकर बदला लेने के लिए फूलन से गैंगरेप किया था. इसी वजह से फूलन अपने गैंग के साथ बेहमई आई थी लेकिन दोनों नहीं मिले. फिर भी 22 लोगों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था. जिसके बाद लालाराम और कुसुमा दोनों ही मिलकर फूलन को मारने की कोशिश में जुट गए थे. हालांकि, बेहमई की घटना के एक साल बाद ही 1982 में फूलन ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.
बेहमई कांड के बाद ही कुसुमा और लालाराम दोनों दुश्मनी की आग में जलने लगे थे. 1982 में फूलन के सरेंडर के बाद अब उसे तो नहीं मार सकते थे. लेकिन गुस्सा तो गुस्सा था. जो शांत ही नहीं हो रहा था. इसलिए लालाराम और कुसुमा ने गैंग के साथ बेतवा नदी के किनारे बसे मईअस्ता गांव में धावा बोल दिया.
बेहमई की तरह ही यहां पर 15 मल्लाहों को एक लाइन में खड़ा किया. फिर इनको गोली मार दी गई. लेकिन फिर भी गुस्सा कम नहीं हुआ तो इनके घरों में आग लगा दी. इधर आग की ज्वाला धधकने लगी तो उधर लालाराम और कुसुमा की गुस्से की आग धीरे-धीरे शांत होने लगी.
Lady Daku ki Kahani : अब लालाराम से कहीं ज्यादा खौफ कुसुमा का चलने लगा था. किसी का अपहरण हो और कुसुमा का नाम जुड़ जाए तो अच्छे खासे लोग भी तुरंत पैसे निकाल देते थे. अब कुसुमा नाई का परचम लहराने लगा था.
उन्हीं दिनों लालाराम से किसी बात को लेकर कुसुमा की बहस हो गई. बातों ही बातों में लालाराम ने कुसुमा को गाली दे दी. ये गाली मां की थी. अब कुसुमा भड़क गई. कुसुमा सबकुछ सुन सकती थी. लेकिन अपनी मां के खिलाफ एक शब्द भी नहीं. बस फिर क्या था. उसने तुरंत लालाराम को ही ललकार दिया. ये कह दिया... इसी समय तुम्हें गोली से उड़ा दूंगी.
अब ये सुनते ही लालाराम भी दंग रह गया. तुरंत पलटकर बोला,... ''मैंने तुझे जमीन से आसमान पर पहुंचाया है. ये सुनते ही कुसुमा का पारा मानों सातवें आसमां पर पहुंच गया. फिर कुसुमा ने कह दिया...ठीक है तुमने मुझे जमीन से आसमां पर पहुंचाया, लेकिन अब तुम्हारी औकात नहीं कि आसमान से नीचे ला सको. ये कहते हुए उसी समय कुसुमा ने गैंग छोड़ दिया. और वहां से चली गई.
अब कुसुमा का नया ठिकाना था फक्कड़ बाबा का गैंग. फक्कड़ बाबा को डाकुओं का गुरु कहा जाता है. इसका असली नाम रामाश्रय तिवारी. पर डाकुओं का गुरु होने से नाम पड़ गया था फक्कड़ बाबा.
असल में रामाश्रय लूटपाट और डकैती के साथ भगवान पर बहुत भरोसा करता था. उनकी पूजा-अर्चना करता था और डाकुओं को प्रवचन भी सुनाता था. इसलिए दूसरे डाकू उसकी इज्जत करते थे. साथ ही गुरु भी मानते थे. इसलिए उसे फक्कड़ बाबा का नाम दे दिया था. अब यहां पर कुसुमा का कद फक्कड़ बाबा के बाद दूसरे नंबर का हो गया.
फक्कड़ बाबा कुसुमा को बेहतर तरीके से जानता था. इसलिए उसे और ट्रेनिंग दी. कहा जाता है कि कुसुमा अब हैंड ग्रेनेड से लेकर स्टेन गन ही चलाने लगी. किसी को मारने के लिए फक्कड़ बाबा सोचता उससे पहले ही कुसुमा उसे निशाना बना देती थी. कहा जाता है उस जमाने में एक बार जब पुलिस और डाकुओं के बीच एनकाउंटर हुआ था तब कुसुमा ने 3 पुलिसवालों को भी गोली मार दी थी.
ये भी कहा जाता है कि कुसुमा या तो अपने दुश्मनों को गोली मार देती थी. या फिर बुरी तरह से तड़पाती थी. ऐसी कई घटनाएं सामने आईं जिनमें उसने जलती हुई लकड़ी से किसी के शरीर को दाग दिया था. कभी जंजीरों से बांधकर हंटर भी मारती थी. जब वो घर छोड़कर माधव संग भागी थी और लौटने के बाद पिता ने कुसुमा की जहां शादी कराई थी.
कुसुमा ने उन ससुरालवालों से भी बदला लिया. एक दिन वो अपने गैंग के साथ ससुराल गई और पति व उसके परिवार की महिलाओं को खूब पीटा था. उसने जालौन की एक महिला और उसके बच्चे को भी जिंदा जलाकर मार डाला था.
कुसुमा इतनी खतरनाक बन चुकी थी उसके सामने अब किसी की नहीं चलती थी. साल 1995 की बात है जब उसने एक रिटायर्ड ADG हरदेव आदर्श शर्मा को ही अगवा कर लिया था. अपहरण के बाद बाकायदा लेटर भेजकर 50 लाख की फिरौती मांगी थी. कुसुमा की तरफ से लेटर पर पूरी डिटेल के साथ पैसे कब, कहां और किस समय पहुंचाना है.
ये सबकुछ लिखा हुआ था. लेकिन समय पर रिटायर्ड एडीजी की परिवार फिरौती नहीं दे सका. बल्कि कुछ दिनों की और मोहलत मांग ली. लेकिन कुसुमा किसी को मोहलत नहीं बल्कि मौत देती थी. इस मामले में भी मौत ही मिली. कुसुमा ने हरदेव आदर्श को गोली मार कर लाश को नहर में बहा दिया. अब इस घटना के बाद पुलिस ने कुसुमा पर 35 हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया था. लेकिन कुसुमा पकड़ में नहीं आई.
कुसुमा और फक्कड़ बाबा दोनों चुनाव में भी अपने पहचानवालों को जीत दिलाने के लिए धमकी देने लगे थे. प्रधानी चुनाव के साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी प्रत्याशी को वोट देने के लिए धमकी देते थे. इसी तरह साल 1996 के लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी को वोट देने के लिए फक्कड़ बाबा और कुसुमा ने फरमान सुनाया थाे.
लेकिन औरेया जिले के असेवा गांव के रहने वाले संतोष और इनके चचेरे भाई राजकुमार ने इनकी बात नहीं मानी. बल्कि ये प्रचार करने लगे कि अच्छे और बिना किसी दबाव के ही लोग वोट डालें. इससे नाराज होकर कुसुमा ने दोनों को सबक सिखाने के लिए इनकी आंखें ही निकाल ली थी. जिसके बाद इनका खौफ वहां के आसपास के इलाके में बढ़ गया था.
अब जैसे-जैसे समय बदल रहा था. देश भर में कई डाकू सरेंडर कर रहे थे. इसी बीच, फक्कड़ बाबा की बातों का असर कुसुमा पर भी हुआ. अब कुसुमा और फकक्ड़ बाबा दोनों पुलिस से ज्यादा समय तक लुकाछिपी का खेल नहीं खेलना चाहते थे. इसलिए दोनों ने एक साथ मिलकर सरेंडर करने की प्लानिंग की.
साल 2004 में कुसुमा और फक्कड़ ने अपनी पूरी गैंग के साथ यूपी पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था. कुसुमा एडीजी अधिकारी की हत्या समेत दर्जनों मामलों में अभी जेल में उम्रकैद की सजा काट रही है. अब वो जेल में फक्कड़ बाबा के कहने पर ही पुजारिन बन चुकी है. जेल में सुबह-शाम को पूजा पाठ करने के साथ गीता और रामायण सुनती है. जेल में वो राम-राम लिखती रहती है. जबकि फक्कड़ बाबा जेल में कैदियों को अब प्रवचन सुनाता रहता है.
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