दिल्ली से हिमांशु मिश्रा की रिपोर्ट
Video: ईंट, सीमेंट और कंक्रीट का ये जंगल, बीच सड़क में तड़प तड़प कर एक नौजवान ने दम तोड़ दिया, तमाशबीन देखते रहे!
ADVERTISEMENT
02 Nov 2023 (अपडेटेड: Nov 2 2023 2:50 PM)
DELHI SHOCKER: दिल्ली के हौजखास में खौफनाक हादसा, बाइक को मारी टक्कर, बाइक सवार फोटोग्राफर की मौत हो गई।
Delhi Shocking News: ये तेरे शहर का दस्तूर हो गया…हर आदमी इंसानियत से दूर हो गया। ढाई करोड़ की आबादी वाले इस शहर दिल्ली में एक इंसान पूरे पौना घंटे तक एक मददगार हाथ के लिए तड़पता रहा। इस दौरान उसके पास से हजारों इंसान गुजरे। पर मदद का हाथ किसी ने नहीं बढ़ाया।
ADVERTISEMENT
वो तड़पता रहा लोग तमाशा देखते रहे
देश की राजधानी दिल्ली में बीच सड़क पर 30 साल का नौजवान तड़प-तड़प कर मरता रहा पर खुद को इंसान बताने वाला एक भी इंसान उसकी मदद को आगे नहीं आया। इस दौरान इस जगह से इंसानों की तमाम भीड़ गुजरी। तमाम इंसानों ने अपने जैसे ही एक इंसान को लाइव मरते हुए देखा। पर किसी ने इतनी भी तकलीफ नहीं की कि एक मरते हुए इंसान को उठा कर अस्पताल पहुंचा दें।
एक भी इंसान उसकी मदद को आगे नहीं आया
हम बात कर रहें हैं दिल्ली के ताजा हादसे की। रात के 10.11बजे का वक्त होगा। दिल्ली का हौजखास इलाका। तभी लाल रंग की बाइक एक दूसरी बाइक से टकरा गई। ये टक्कर इतनी जोरदार थी कि बाइक सवार युवक की मौत हो गई। मौके पर पहुंची पुलिस ने जानकारी ली तो पता चला कि बाइक सवार का नाम पीयूष पाल था। 30 साल का पीयूष पाल दिल्ली के कालका जी का करने वाला था। पीयूष पेशे से गुरुग्राम में फ्रीलांस फोटोग्राफी किया करता था। इस हादसे का सीसीटीवी सामने आया है। पुलिस के मुताबिक पीयूष की बाइक की टक्कर एक दूसरी बाइक से हो गई थी जिसे बंटी नाम का शख्स चला रहा था।
शहर या ईंट- सीमेंट और कंक्रीट का ये जंगल
हादसे के बाद काफी देर तक पीयूष मौके पर पड़ा रहा किसी ने मदद नहीं की। करीब पौना घंटे बाद पुलिस आई और पीयूष को अस्पताल ले गई जहां उसकी मौत हो गई। ईंट...सीमेंट... और कंक्रीट का ये जंगल....कहने को शहर है। पर इस शहर का दिल भी उतना ही पत्थर है जितनी ये बेजान इमारतें। ये पथरीली सड़क भी शायद उतनी पथरीली नहीं होगी जितना ये शहर पत्थर दिल है। वैसे सच्चाई तो ये है कि पीयूष की मौत के लिए सिर्फ पुलिस को ही क्यों जिम्मेदार ठहराया जाए?
तमाशबीन की तरह गुजरते चले गए
क्या उन पत्थर दिल इंसानों की कोई गलती नहीं जो तड़पते हुए पीयूष के पास से बस तमाशबीन की तरह गुजरते चले गए? अगर उस वक्त एक हाथ भी मदद को आगे आ जाता तो क्या पता आज भी पीयूष अपनी मां के आंचल मे होता। पर अफसोस! ऐसा हो नहीं हो सका। इस पत्थर दिल शहर में हर साल दो हजार से ज्यादा पीयूष सड़कों पर मरते हैं। उनमें से बहुत से पीयूष को बचाया जा सकता है। बस जरूरत सिर्फ दो अदद मददगार हाथों की है। इसलिए अगली बार जब भी आपको सड़क पर कोई पीयूष तड़पता दिखाई दे तो प्लीज मुंह मत मोड़िएगा। हाथ आगे बढ़ा दीजिएगा।
ADVERTISEMENT