तालिबान अफगानिस्तान में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए चीन का सपोर्ट चाहता है। इसके लिए उसने चीन को ये भरोसा भी दिलाया है कि वो अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकियों को किसी दूसरे देश को निशाना बनाने के लिए नहीं करने देगा। तालिबान के एक डेलिगेशन ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की है। दरअसल तालिबान अपने पाकिस्तानी हैंडलरों की मदद से चीन से अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए मदद चाहते हैं।
तालिबान को चाहिए ड्रैगन का सपोर्ट?
taliban seek support of china for expanding footprint in afghanistan
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16 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:03 PM)
बात सिर्फ चीन तक ही महदूद नहीं है, बल्कि तालिबान के नाम से दुनिया के डर को कम करने के लिए उसने बाकायदा गेम प्लान तैयार किया है।
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क्या है तालिबान का गेम प्लान?
तालिबान ने चीन को ये भरोसा दिलाया है कि वो अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकियों को नहीं करने देगा, तालिबान ऐसा करके दुनिया के उस डर को कम करना चाहता है कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन और अलकायदा जैसे संगठन असैनिक विवाद का फायदा उठाकर अफगानिस्तान में टेरर कैंप बना लेंगे और इनका इस्तेमाल कट्टर इस्लाम का विरोध करने वाले देशों के खिलाफ करेंगे।
तालिबान कैसे जीतेगा देशों का भरोसा?
तालिबान जब 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान पर शासन कर रहा था, तब उसने अलकायदा, हरकत-उल-अंसार, हूजी बांग्लादेश जैसे आतंकी संगठनों को पनाह दी। लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन ने अफगानिस्तान में टेरर कैंप लगाए और दुनिया में ग्लोबल जिहाद को स्पॉन्सर किया। उधर, चीन इस बात को लेकर परेशान है कि उइगर चरमपंथी वाखा बॉर्डर के जरिए अफगानिस्तान में पनाह पा सकते हैं और चीन के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं।
अब कैसे होंगे कूटनीतिक समीकरण?
पाकिस्तान तालिबान पर अपने प्रभाव का फायदा उठाकर अमेरिका से अपने संबंधों को बहाल करना चाहेगा। वहीं तालिबान चीन की मदद से अफगानिस्तान में अपने पैर जमाएगा और इस्लामाबाद के कंधों पर सवार होकर चीन के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करेगा। चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव को आगे बढ़ाएगा। अफगानिस्तान के साथ द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देकर कोयला, तांबा और लोहा जैसे रिसोर्सेज का इस्तेमाल करेगा और सेंट्रल एशिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाएगा। अफगानिस्तान को चीन ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों तक पहुंचने के रास्ते के तौर पर देख रहा है।
अब भारत का क्या होगा?
ईरान से भारत के रिश्ते अच्छे हैं, मगर पाकिस्तान से भी उसके संबंध बुरे नहीं है। इसीलिए भारत सरकार ने अफगानिस्तान में अपनी पैठ बनाने के लिए अफगानिस्तान को आर्थिक मदद और हथियार मुहैय्या कराए थे, साथ वहां के इंफ्रास्ट्रक्चर में भी मदद की। लेकिन सरकार बदल जाने से सब पानी में जाता दिख रहा है। लेकिन इस बीच अच्छी खबर ये है कि तालिबान ने साफ किया है कि वो भारत से अच्छे रिश्ते चाहता है और उसे इससे कोई मतलब नहीं कि भारत और पाकिस्तान के बीच क्या विवाद है। हालांकि भारत की मुश्किल ये भी है कि तालिबान का रुख चीन की तरफ काफी झुका हुआ है।
तालिबान को डर किस बात का है?
अमेरिका ने घोषणा कर दी है कि वो 31 अगस्त तक अफगानिस्तान छोड़ देगा। हालांकि, अमेरिकी विदेश मंत्री ने पहले ही कह दिया है कि वो अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं हटा रहे हैं, लेकिन वहां उनका दखल जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि हमारा अफगानिस्तानी दूतावास बेहद मजबूत है और हम वहां विकास और सुरक्षा को बढ़ाने के लिए इकोनॉमिक सपोर्ट करते रहेंगे। ऐसे में तालिबान को ये भी आशंका है कि तालिबान को लेकर अमेरिका की सोच कहीं बदल न जाए, खासतौर से अफगानिस्तान में बड़ी तादाद में सिविलियंस की मौतों के बाद।
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