अफगान अधिकारियों के मुताबिक तालिबान ने काबुल के कालाकन, खाराबाग और पघमन जिले में कब्जा कर लिया है। दूसरी तरफ तालिबान आतंकियों को कहना है कि वो जोर के जरिए काबुल पर कब्जा नहीं करेंगे ।
काबुल के बाहरी जिलों पर तालिबान का क़ब्ज़ा, कभी भी अफगानिस्तान की गद्दी पर काबिज़ हो सकते हैं तालिबान
Taliban entre kabul, anytime Afghanistan can fall to taliban
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15 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:03 PM)
हालांकि अफगानिस्तान की राजधानी में रह रह कर फायरिंग की आवाज गूंज रही है। तालिबान के मुताबिक किसी भी शहरी की ज़िंदगी को खतरे में डाला नहीं जाएगा और वो इज्जत के साथ काबुल में रह सकते हैं।
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रविवार तड़के तालिबान ने काबुल के बाहरी इलाके पर कब्जा कर लिया था और काबुल की केन्द्र सरकार को अलग-थलग कर दिया था। जलालाबाद तालिबान के कब्जे में आने के बाद अफगान सरकार का देश के राज्यों की 34 राजधानियों में से केवल राष्ट्रीय राजधानी काबुल सात राज्यों की राजधानी पर ही कब्जा रह गया था।
महज हफ्ते भर में तालिबान ने अफगान आर्मी को हराकर कई राज्यों पर कब्जा कर लिया था जबकि इस बीच कई जगहों पर अमेरिका ने बमबारी कर अफगानिस्तान आर्मी की मदद भी की थी।
अंदाजा लगाया जा रहा ह कि चंद घंटों में या एक दो दिन में काबुल पूरी तरह से तालिबान के कब्जे में आ जाएगा लिहाजा अमेरिका समेत नाटो देशों के कई दूतावास वहां पर रखे अति गोपनीय दस्तावेज जलाने में लगे हुए हैं ।
अफगान के राष्ट्रपति ने शनिवार को ही राष्ट्र के नाम संदेश दिया लेकिन वो अब अलग-थलग दिख रहे हैं। गनी ने अफगानिस्तान के कई लड़ाकू गुटों से संपर्क किया था लेकिन इन सबने तालिबान के सामने हथियार डाल दिए हैं।
इस लड़ाई की सबसे ज्यादा मार आम अफगानी लोगों पर पड़ी है जो अपने घरों को छोड़कर काबुल के पार्कों और खुले आसमान के नीचे रहने के लिए मजबूर हैं। तालिबान की दस्तक के बाद पूरे काबुल में अफरा तफरी, बैंकों के बाहर लोगों की लंबी-लंबी कतारें है। शहर में लगे एटीएम ने काम करना बंद कर दिया है।
अफगानिस्तान में एक के बाद एक कई महत्वपूर्ण शहर तालिबान के कब्जे में आ चुके हैं। जलालाबाद से पहले वो मज़ारे शरीफ, हेरात, और कांधार पर कब्जा जमा चुके हैं। बताया जा रहा है तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान आर्मी के लिए सबसे बड़ी मदद देने वाले लड़ाकू कबीले के कई प्रमुख तालिबान के सामने सरेंडर कर चुके हैं ।
इनमें सबसे बड़ा नाम हेरात के शेर के नाम से मशहूर इस्माइल खान का है। गनी के लिए तालिबान के खिलाफ सबसे बड़ी ढाल बनकर खड़े अता मोहम्मद नूर और अब्दुल राशिद दोस्तम को भी तालिबान की दस्तक के बाद अफगानिस्तान के चौथे सबसे बड़े शहर मजारे शरीफ को छोड़कर उजबेकिस्तान भागने पर मजबूर होना पड़ा।
शांतिवार्ता अभी भी जारी है
अमेरिका अभी भी कतर में अफगान सरकार और तालिबान के बीच वार्ता करा रहा है। इस हफ्ते भी शांति वार्ता को आगे बढ़ाया जाएगा। दुनिया भर के देशों ने तालिबान को शांति से मुद्दा सुलझाने की सलाह दी थी लेकिन तालिबान ने सबकी बात को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान में अपनी लड़ाई जारी रखी और कई शहरों को अपने कब्जे में ले लिया।
तालिबान के आने की दस्तक से लोग डरे हुए हैं। उन्हें लगता है पिछले बार के शासन की तरह ही तालिबान देश भर में कड़े शरिया कानून लागू करेगा और लोगों की आजादी पर कई पाबंदियां भी लगा देगा।
खासतौर पर अफगान की महिलाएं तालिबान के आने से बेहद डरी हुई हैं। पिछली हुकूमत में तालिबान ने सबसे ज्यादा जुल्म अफगानी महिलाओं पर ढहाया था जिन्हें घर में बंद रहने के लिए मजबूर कर दिया गया था।
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