सियासत में आम इंसान की कीमत महज़ एक वोट से ज़्यादा नहीं है, ये एक वोट सरकार बना भी सकते है और गिरा भी लेकिन आपकी इस ताकत को सियासी लोग हिंदू-मुसलमान, हिंदुस्तान-पाकिस्तान, सेकुलर-कट्टर जैसी चीज़ों में उलझाकर इतना तुच्छ कर देते हैं कि हम-आप उनके मोहरे बनकर रह जाते हैं। और आंख बंद करके उन लोगों को भी संसद पहुंचा देते हैं जिनको असल में जेल में होना चाहिए।
लोकसभा के 43% सांसद अपराधी! कोर्ट ने कहा ऐसे लोगों को रोकने के लिए फौरन कानून पास हो।
supreme court says criminal can not be allowed to mp mla
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11 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:03 PM)
यही वजह है कि राजनीति में अपराधीकरण का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है और राजनीतिक दलों में ऐसे दागी नेताओं की भीड़ को शामिल करने की होड़ लगी हुई है, जबकि आम जनता शुरू से ही ये मांग करती रही है कि आपराधिक छवि के लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। लेकिन न तो सरकार ने और न ही राजनीतिक दलों ने ऐसे लोगों को बायकॉट करने में कोई दिलचस्पी दिखाई है।
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मगर लोकतंत्र की लाज और मर्यादा रखने के लिए अब सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा है, सुप्रीम कोर्ट ने बेहद तल्ख लहजे में साफ कहा है कि आपराधिक छवि के लोगों को कानून बनाने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए। ऐसे में सवाल है कि क्या सरकार और राजनीतिक दलों ने जिस तरह से ओबीसी आरक्षण संशोधन बिल को मिल-जुलकर पास करवा दिया। क्या उसी तरह से आपराधिक छवि वाले नेताओं की राजनीति में एंट्री बैन के लिए कानून बनाएंगे?
अपराधी या बाहुबली सियासी दलों के लिए वो चेक हैं जो कभी बाउंस नहीं होते, मगर जनता पर ये खोटे सिक्के किसी कहर की तरह टूटते हैं। लिहाज़ा सुप्रीम कोर्ट को मजबूर होकर राजनीति के कलंकों पर तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि राजनीतिक दल जीतने के लालच में गहरी नींद से जागने को तैयार ही नहीं हैं। लेकिन क्या कोर्ट की इस तीखी टिप्पणी के बाद सियासी दलों की नींद टूटेगी? या फिर ऐसे ही कान में तेल डालकर सोते रहेंगे?
इसके साथ कोर्ट ने ये भी कहा कि-
राजनीतिक व्यवस्था के अपराधीकरण का खतरा बढ़ता जा रहा है, इसकी शुद्धता के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को कानून निर्माता बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, मगर हमारे हाथ बंधे हैं। हम सरकार के आरक्षित क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं कर सकते, हम केवल कानून बनाने वालों की अंतरात्मा से अपील कर सकते हैं।
पता नहीं सियासी दलों के कानों तक सुप्रीम कोर्ट की ये आवाज पहुंच रही है कि नहीं, लेकिन अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में आपराधिक छवि के लोगों की भरमार है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा में आपराधिक छवि वाले सांसदों की भरमार है।
17वीं यानी वर्तमान लोकसभा की 543 सीटों में 233 सांसद आपराधिक बैंकग्राउंड के हैं, यानी कुल 43 प्रतिशत सांसदों की पृष्ठभूमि आपराधिक है। और उनमें से 153 यानी 29 प्रतिशत सांसद गंभीर आपराधिक छवि वालें हैं।
जिनमें बीजेपी के 116
कांग्रेस के 29
डीएमके के 10
टीएमसी के 9
और जेडीयू के 13 सांसद दागदार छवि वाले हैं।
लोकतंत्र के ये कलंक सिर्फ संसद की ही शोभा नहीं बढ़ाते हैं, बल्कि देश की विधानसभाओं में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं।
पूरे देश की विधानसभाओं में कुल 1610 विधायक ऐसे हैं जिनकी छवि बाहुबलियों की है, यानी कुल 40% विधायक दागी हैं। और इनमें से 1047 विधायक ऐसे हैं जिनका गंभीर आपराधिक बैकग्राउंड है। राजनेताओं के कानों तक भले ही जनता की पीड़ा और मुऱझाए लोकतंत्र की चीखें नहीं पहुंच रही हों। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को लोकतंत्र की मर्यादा, मान और सम्मान का पूरा ख्याल है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी उम्मीदवारों की आपराधिक कुंडली सार्वजनिक नहीं करने पर भी फटकार लगाई।
कोर्ट ने बीजेपी समेत 9 दलों पर एक एक लाख रुपये का जुर्माना ठोंका है, जनता की नुमांदगी करने वाली इन पार्टियों ने बिहार चुनाव में ताल ठोंकने वाले अपने आपराधिक चरित्र वाले उम्मीदवारों की क्राइम कुंडली का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया था। लेकिन जुर्माने की रकम अदा करना इन राजनीतिक दलों के लिए कोई बड़ी बात नहीं है। क्योंकि इनके लिए ये दागी नेता उस गोल्ड की तरह हैं जो सदन में सौ टके के हैं, तो बाहर हजार टके के।
ये दागी नेता न सिर्फ अपनी सीटें जीतने में कामयाब होते हैं बल्कि आसपास की सीटों पर भी इनका दबदबा होता है, ऐसे में सवाल है कि क्या देश के सभी राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को गंभीरता से लेंगे। क्योंकि जिस तरह से ओबीसी आरक्षण संसोधन बिल को बिना किसी शोर शराबे से पास करवाया गया। क्या उसी तरह से ये कानून बनाएंगे कि आपराधिक छवि वाले नेताओं को कानून बनाने की अनुमति नहीं होगी।
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