Court News: समलैंगिकों और ट्रांसजेंडर्स (LGBTQ) के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में साफ लिखा है कि वैज्ञानिक कारणों की वजह से समलैंगिकों को खून दान (Blood Donation) करने से मना किया जाता है। क्योंकि असुरक्षित यौन संबंधों की वजह से उनमें एचआईवी पॉजिटिव (HIV Positive) होने का जोखिम बना रहता है। सरकार का ये फैसला वैज्ञानिक आधार पर है ना कि निजी स्वतंत्रता के अधिकार वाले आधार पर। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के हलफनामे में कहा गया है कि ये मुद्दा कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में है जिसका सीधा संबंध व्यक्तिगत अधिकारों के बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य से है। सुप्रीम कोर्ट में ये अर्जी ट्रांसजेंडर समुदाय के थांगजम सांता खुरई सिंह ने दाखिल की है। मणिपुर के रहने वाले सिंह की वकील अनिंदिता पुजारी के मुताबिक याचिका में नेशनल एड्स नियंत्रण और नेशनल ब्लड ट्रांस फ्यूजन काउंसिल यानी एनबीटीसी की 2017 में जारी गाइड लाइन की धारा 12 और 51 की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए विरोध किया गया है। क्योंकि, इसमें रक्तदाताओं के चयन और रक्तदाताओं के रेफरेंस में ट्रांसजेंडर्स, समलैंगिक पुरुषों, महिला यौनकर्मियों को एचआईवी संक्रमण के मद्देनजर उच्च जोखिम वाली श्रेणी में रखा गया है। यही वजह है कि उनको रक्तदान करने से रोका गया है। इसका संबंध व्यक्तिगत अधिकारों की स्वतंत्रता से कोई लेना देना नहीं है।
Supreme Court: सेक्स वर्कर और ट्रांसजेंडर नहीं कर सकते रक्त दान
Court News: सुप्रिम कोर्ट का आदेश कि सेक्स वर्कर और ट्रांसजेंडर नहीं कर सकते रक्त दान.
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12 Mar 2023 (अपडेटेड: Mar 12 2023 10:47 AM)
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Supreme Court News: ये गाइड लाइन (Court Guidlines) एनबीटीसी के विशेषज्ञ डॉक्टर्स और वैज्ञानिकों के निर्देश पर तैयार की गई है। उनका स्पष्ट मानना है कि ये उच्च जोखिम वाले समूह एड्स यानी एचआईवी संक्रमण से ग्रस्त हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार, एनबीटीसी और naco को नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ता ने बताया कि इन दिशानिर्देशों का प्रभाव पिछले वर्ष के दौरान सबसे अधिक महसूस किया गया था जब ट्रांसजेंडर व्यक्ति आपात स्थिति के दौरान अपने समुदाय के अन्य सदस्यों को रक्त दान करने में असमर्थ थे। जबकि ब्लड बैंक भी महामारी के कारण कम रक्तदान के कारण मामूली आपूर्ति पर सेवा देने में पूरे समर्थ नहीं थे।
याचिकाकर्ता की वकील अनिंदिता पुजारी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 के उलट यह भेदभाव है। यह प्रावधान उन्हें सामाजिक भागीदारी और स्वास्थ्य देखभाल के लिए कम योग्य मानता है। क्योंकि इसमें कहा गया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, समलैंगिक पुरुषों और महिला यौनकर्मियों को रक्त दाता होने के अधिकार से वंचित करना नैतिक, सामाजिक, कानूनी और व्यवहारिक नजरिए से भी उचित नहीं है। उन्हें केवल उनकी लिंग पहचान और यौन प्राथमिकता के आधार पर रक्तदान करने से रोकना पूरी तरह से मनमाना, अनुचित, भेदभावपूर्ण और अवैज्ञानिक भी है।
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