Video: छात्रावासों में लगाए स्प्रिंग-लोडेड पंखे, अब नहीं कर पाएंगे स्टूडेंट्स सुसाइड

Kota Suicide Case: छात्रों के बीच आत्महत्या के मामलों को कम करने के लिए कोटा के सभी छात्रावासों और पेइंग गेस्ट (पीजी) आवासों में स्प्रिंग-लोडेड पंखे लगाए गए हैं।

kota suicide case

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18 Aug 2023 (अपडेटेड: Aug 18 2023 5:10 PM)

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Kota Suicide Case : छात्रों के बीच आत्महत्या के मामलों को कम करने के लिए कोटा के सभी छात्रावासों और पेइंग गेस्ट (पीजी) आवासों में स्प्रिंग-लोडेड पंखे लगाए गए हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि अगर कोई छात्र लटकने की कोशिश करे तो वो सफल नहीं हो सके।  

पिछले एक साल में 29 स्टूडेंट्स ने खुदकुशी कर ली है। अभी साल का आठवां महीना पूरा भी नहीं हुआ औऱ इस कोटा फैक्ट्री से 22 बच्चों की खुदकुशी की खबर आ चुकी है। यानी औसतन हर महीने करीब 3 बच्चों को उनका बस्ता मार रहा है। अकेले सिर्फ पिछले 11 दिनों में ही 4 बच्चों को ये कोटा फैक्ट्री निगल चुकी है।

सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि 15 अगस्त 2023 तक जिन 22 बच्चों ने खुदकुशी की है वो सभी दो, चार या आठ महीने पहले ही कोटा पढ़ने आए थे। इन 22 में से एक भी ऐसा बच्चा नहीं है जो एक-दो साल से कोटा में रह रहा हो। यानी इन आंकड़ों से साफ हो जाता है कि एक बच्चा जब कोटा में कदम रखता है, उसके कुछ दिन बाद से ही उसकी जिंदगी और सोच दोनों बदलनी शुरू हो जाती है।

कोटा में इस साल भी लगभग ढाई से तीन लाख बच्चे कोचिंग के लिए पहुंचे हैं। अगर आंकड़ों की बात करें तो हर साल NEET और JEE का एग्जाम क्लियर कर डॉक्टर और इंजीनियर बनने वाले लाखों छात्र एग्जाम में बैठते हैं। 

2023 के आंकड़ों के मुताबिक, डॉक्टर बनने के लिए नीट के एग्जाम में इस साल देशभर से कुल 20 लाख 38 हजार 500 छात्र बैठे थे, जिनमें से 11 लाख 45 हजार 900 ने एग्जाम क्लियर किया, जबकि MMBS की कुल सीटें सिर्फ 1 लाख थी।

इसी तरह इंजीनियर बनने के लिए होने वाले JEE एग्जाम में 2022 में कुल 10 लाख 26 हजार 799 छात्रों ने अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन इनमें से सिर्फ ढाई लाख छात्रों को ही अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल पाया। NEET और JEE के एग्जाम में कोटा की कामयाबी का प्रतिशत 8 से 10 फीसदी है, जबकि देश के बाकी सेंटर्स की कामयाबी का प्रतिशत सिर्फ 3 फीसदी। 

यही वजह है कि पूरे उत्तर भारत के ज्यादातर छात्र डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए कोटा फैक्ट्री का रुख करते हैं। हालाकि एक सच ये भी है कि यहां आने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स दसवीं और बारहवी में 80 या 90 फीसदी से ज्यादा नंबर लेकर पहुंचते हैं और बस यहीं से मां-बाप की उम्मीदें बढ़ जाती हैं और बच्चों का दबाव। 

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