THE KASHMIR FILES : कश्मीरी पंडित जस्टिस नीलकंठ गंजू के मर्डर की फाइल फिर खोली गईं, 33 साल पहले श्रीनगर में इसलिए हुई थी हत्या?

Justice Ganju murder file reopen: 33 साल पहले श्रीनगर में जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या की फाइल अब दोबारा खोली जाएगी और कश्मीरी पंडितों को इंसाफ दिलाने की नई कवायद शुरू की जा रही है।

जम्मू कश्मीर में खुलेगी 33 साल पुरानी मर्डर फाइल

जम्मू कश्मीर में खुलेगी 33 साल पुरानी मर्डर फाइल

08 Aug 2023 (अपडेटेड: Aug 8 2023 3:40 PM)

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Justice Ganju murder: जम्मू कश्मीर में 33 साल पुराने एक हत्या के मामले को फिर से इंसाफ की देवी के सामने लाने की कवायद शुरू हुई है इस उम्मीद के साथ कि अब कश्मीरी पंडितों को इंसाफ मिल सकेगा। असल में जम्मू कश्मीर में सुरक्षा एजेंसियां 33 साल पहले कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हुए अपराधों के मामलों की जांच का काम शुरू करने जा रही है। और इसी कड़ी में जस्टिस नील कंठ गंजू हत्याकांड की जांच करने वाली एजेंसी ने लोगों से अपील की है कि इस मामले से जुड़ी जो भी जानकारी उसके पास है वो सब जांच एजेंसियों के साथ साझा करे। ऐसा करने वालों की पहचान किसी भी हाल में उजागर नहीं की जाएगी। साथ ही इस बात का भी भरोसा दिया गया है कि कि जांच के एवज में उन्हें किसी भी सूरत में पुलिस या जांच एजेंसियों के किसी भी और सवालों के जवाब नहीं देने होंगे। 

जस्टिस नीलकंठ गंजू, जिनकी 33 साल पहले  श्रीनगर में हत्या हुई थी

SIA ने मांगी लोगों से मदद

खुलासा हुआ है कि जम्मू कश्मीर में राज्य की जांच एजेंसी SIA अब जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या के बारे में गहराई से जांच करेगी। बताते चलें कि जस्टिस गंजू की हत्या श्रीनगर में जेकेएलएफ के आतंकवादियों ने की थी। राज्य की जांच एजेंसी ने अब उन तमाम लोगों से जानकारी साझा करने की अपील की है जो इस मामले में किसी न किसी शक्ल में चश्मदीद हैं। या जिन्हें इस हत्या के बारे में कोई भी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जानकारी है उसे राज्य की जांच एजेंसी के साथ साझा कर सकते हैं। जांच एजेंसी ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा है कि इस जघन्य अपराध से जुड़े तथ्यों या हालात के बारे में जिस किसी को भी कुछ भी पता है वो अपनी पहचान गुप्त रखकर उस जानकारी को साझा कर सकता है। 

मकबूल भट को सुनाई थी फांसी की सजा

ये बात गौरतलब है कि जस्टिस गंजू ने 1960 के दशक में पुलिस अधिकारी अमर चंद की हत्या से जुड़े एक मामले में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ के संस्थापक मोहम्मद मकबूल भट को मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन नबंबर 1989 में आतंकवादियों ने श्रीनगर में जस्टिस गंजू की गोली मारकर हत्या कर दी थी। ये बात भी गौर  करने वाली है कि जम्मू कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के खिलाफ होने वाली आतंकवादियों की घटनाओ में मारे गए प्रमुख कश्मीर पंडितों में से एक थे। 

राज्य जांच एजेंसी ने लोगों से जज गंजू की हत्या से जुड़ी जानकारी मांगी

इंस्पेक्टर की हत्या का मुकदमा

ये बात गौर करने वाली है कि 1966 में पुलिस इंस्पेक्टर अमर चंद की हत्या की गई थी। और उस हत्या के सिलसिले में 1968 में जिला अदालत में जस्टिस गंजू ने इस मुकदमे की सुनवाई के बाद मकबूल भट को फांसी की सजा सुनाई थी। बताया जा रहा है कि उसके बाद जस्टिस गंजू को कई बार जान से मारने की धमकी भी दी गई थी लेकिन जस्टिस गंजू श्रीनगर छोड़कर कहीं नहीं गए बल्कि उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए भी कभी सरकार या सुरक्षा एजेंसियों के सामने कोई गुहार नहीं लगाई थी। 

नीलकंठ गंजू को गोली मार दी

इसी बीच 4 नवबंर 1989 को श्रीनगर में आतंकियों ने नीलकंठ गंजू को गोली मार दी। इस वक़्त तक जस्टिस गंजू रिटायर हो चुके थे। जस्टिस गंजू ने अपने फैसले में जिन तर्कों और दलीलों का जिक्र किया था उसके आधार पर ही साल 1982 में सुप्रीम कोर्ट ने भी मकबूल भट की फांसी की सजा बरकरार रखी थी। इसके बाद 1984 में मकबूल भट को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी। 

कोई गवाह नहीं मिला

1989 में जस्टिस गंजू की हत्या के बाद किसी ने भी जे के एलएफ के आतंकियों के खिलाफ न तो गवाही दी बल्कि हत्या के बारे में भी कोई भी जानकारी पुलिस और जांच एजेंसियों के साथ साझा नहीं की। लिहाजा तभी से जस्टिस गंजू को इंसाफ दिलाने वाली फाइल धूल खा रही है। 

33 साल पुरानी फाइल

मगर अब राज्य जांच एजेंसी ने जस्टिस नील कंठ गंजू की हत्या के मामले में फिर से जांच शुरू करने और 33 साल पुरानी फाइल को फिर से खोलने का इरादा किया है। ताकि इस मामले को उसके अंजाम तक पहुँचाया जा सके और जस्टिस गंजू को इंसाफ दिलाकर कश्मीरी पंडितों के दिलों में ये भरोसा पैदा किया जा सके कि घाटी में अब उनके साथ किसी भी तरह का कोई नाइंसाफी नहीं होगी। 

लोगों से जानकारी साझा करने की अपील

अपनी इस बात को पुख्ता करने के लिए राज्य जांच एजेंसी ने अपनी प्रेस रिलीज में ये बात स्पष्ट तौर पर लिखी हैकि जानकारी साझा करने वाले की पहचान पूरी तरह से गुप्त रखी जाएगी। इस सिलसिले में SAI ने एक फोन नंबर और एक ईमेल आईडी जारी की है। 

यासिन मलिक की बढ़ी मुश्किलें

साल 2002 में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में खुद यासिन मलिक ने इस बात को कुबूल किया था कि 4 नवंबर 1989 को न्यायमूर्ति नीलकंठ गंजू की हत्या का ऑर्डर खुद यासीन मलिक ने ही दिया था। ऐसे में ये माना जा सकता है कि यासिन मलिक के खिलाफ फिर से फांसी की मांग हो सकती है। मौजूदा समय में यासिन मलिक जेल में उम्र कैद की सज़ा काट रहा है वो टेरर फंडिंग मामले में दोषी पाया गया है। 

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