दिल्ली से श्रेया चटर्जी के साथ अरविंद ओझा की रिपोर्ट
94 साल पहले भगत सिंह के बम कांड से कितने प्रभावित थे 13 दिसंबर को संसद में घुसने वाले आरोपी? क्या है ये नई कहानी, जानिए
Lok Sabha Security Breach : 13 दिसंबर को संसद में उपद्रव करने वाले युवकों क्या क्रांतिकारी भगत सिंह से थे प्रेरित. कुल 6 लोगों की साजिश में क्या राज छुपा है.
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94 साल बाद फिर सदन में बेजान बम कांड की कहानी
14 Dec 2023 (अपडेटेड: Dec 14 2023 7:40 PM)
Parliament Security Breach : संसद की सुरक्षा को भेदने की साजिश डेढ़ साल से चल रही थी. इस साजिश का मास्टरमाइंड एक टीचर है. कोलकाता का रहने वाला शिक्षक ललित झा. क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह से बेहद प्रभावित. जैसे करीब 94 साल पहले हुआ था. अंग्रेजी शासन में संसद में एक बम धमाका किया गया था. लेकिन वो धमाका किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि सोई हुई सरकार को जगाने के लिए था. वो तारीख थी 8 अप्रैल 1929. जगह दिल्ली की सेंट्रल असेंबली. पब्लिक सेफ्टी बिल पेश करने की तैयारी थी. उसी दौरान सदन में दो लोग इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए घुसे थे. फिर सदन के बीचोंबीच बम फेंका गया था.
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पूरे सदन में धुआं ही धुआं फैल गया था. अफरातफरी मच गई थी. लेकिन बम फेंकने वाले दोनों क्रांतिकारी वहीं खड़े रहे. नारा लगाते हुए उन्होंने कुछ कागज की पर्ची भी सदन में फेंकी. इन पर्चियों पर लिखा था… बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत पड़ती है. इसके बाद दोनों क्रांतिकारी को अंग्रेज राज में गिरफ्तार कर लिया गया था. अब 94 साल बाद 2023 में दो लड़के लोकसभा की दर्शक दीर्घा में आते हैं. यहां से ही दोनों सदन की कार्यवाही वाली जगह पर कूदकर चले जाते हैं और जूते से कलर स्प्रे बम निकालकर पूरे सदन में धुआं धुआं ही फैला देते हैं. इस साजिश को अंजाम देने वाले अब ये दावा कर रहे हैं कि 94 साल पहले जैसे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जैसे सोती हुई सरकार को जगाने के लिए बेजान बम फेंका था ठीक उसी तरह उन्होंने अपनी आवाज पहुंचाने के लिए ये कदम उठाया है.
क्या है संसद में सुरक्षा चूक और शहीद भगत सिंह वाले वाक्ये की पूरी कहानी
8 अप्रैल 1929 : दोपहर 12.30 बजे : बात आज से 94 साल पुरानी है. देश उन दिनों अंग्रेजों के कब्जे में था... संसद की कार्यवाही चल रही थी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पर हुई वोटिंग के बाद सेंट्रल असेंबली के अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल वोटिंग का रिजल्ट बताने जा रहे थे... वो रिजल्ट बताने के लिए खडेा ही हुए थे कि अचानक असेंबली के बीचों-बीच खाली जगह पर एक के बाद एक दो बम आकर गिरे... जोरदार धमाका हुआ और चारों ओर धुआं ही धुआं फैल गया... संसद में अफरातफरी मच गई... आज की तरह तब भी संसद एक बेहद सुरक्षित जगह थी और ऐसी जगह हुए इन धमाकों ने हर किसी को सकते में डाल दिया... अभी लोग इन धमाकों का सबब समझ पाते, तब तक क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त नारे लगाते हुए दर्शक दीर्घा से नीचे सेंट्रल असेंबली में कूद पड़े... और इसी के साथ उन्होंने कुछ गुलाबी पर्चे फेंके. जिनमें लिखा था-बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है...
असल में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ये भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का वो विरोध था, जिसने मानों राख के नीचे सुलग रही चिंगारी को हवा दे दी थी... दोनों तब अपनी बात देश के आम लोगों और नौजवानों तक पहुंचाना चाहते थे... 94 साल बाद : तारीख 13 दिसंबर 2023, समय दोपहर 1.01 मिनट मगर अब आज़ादी के 76 साल बाद नए-नए संसद भवन में भी कुछ-कुछ वैसा ही हुआ, जैसा तब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के जमाने में हुआ था... बुधवार को संसद की कार्यवाही चल रही थी... और इसी कार्यवाही के दौरान पहले दर्शक दीर्घा से दो नौजवान नीचे कूदे और नारे लगाने लगे... इससे पहले कि उन्हें काबू किया जाता, दोनों ने 'स्मोक क्रैकर' यानी धुआं छोड़ने वाले पटाखे चला दिए जिससे हर ओर पीला धुआं फैल गया. कुछ उसी तरह, जिस तरह भगत सिंह ने किया था. लेकिन इस विरोध प्रदर्शन की खास बात ये थी कि इस बार जहां से संसद के अंदर दो नौजवानों ने हंगामा मचाया, वहीं संसद के बाहर भी लड़का लड़की की एक जोड़ी ने स्मोक क्रैकर और नारेबाजी के जरिए लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की.
फिलहाल पुलिस ने सुरक्षा इंतज़ामों को धत्ता बता कर संसद के अंदर और बाहर विरोध प्रदर्शन करने और स्मोक क्रैकर के जरिए अफरातफरी मचाने के जुर्म में इन चारों को तो गिरफ्तार कर लिया है, मामले की तफ्तीश भी शुरू कर दी है... लेकिन संसद में हुए इस विरोध प्रदर्शन ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के द्वारा संसद में बम फेंके जाने की वारदात की याद दिला दी है... खास कर इसलिए क्योंकि तब क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने कोई घातक बम फेंक कर लोगों की जान लेने की कोशिश नहीं की थी, बल्कि सिर्फ स्मोक बॉम्ब से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहा था और इस बार भी संसद में 'स्मोक क्रैकर' चलाने वाले नौजवानों ने भी अपने विरोध में किसी के जान-माल को नुकसान पहुंचाने की साजिश नहीं रची, बल्कि सिर्फ शोर मचा और स्मोक क्रैकर चला कर लोगों तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की... लेकिन फिर सवाल ये है कि आखिर ये नौजवान चाहते क्या थे? ये किस बात का विरोध कर रहे थे?
13 दिसंबर 2023 सदन में प्रदर्शन वाली साजिश कैसे रची?
इस विरोध प्रदर्शन की साजिश उन्होंने कब और कैसे रची? और सबसे अहम ये कि इन्होंने सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का ऐसा अजीबोगरीब और खतरनाक तरीका क्यों चुना? तो आज वारदात में आपको पुलिस की तफ्तीश के हवाले से संसद में स्मोक क्रैकर से अफरातफरी मचाने वाले इन नौजवानों की पूरी साजिश और इसके पीछे के मकसद का एक-एक सच तफ्सील से बताएंगे... सबसे पहले तो यही जान लीजिए कि इन नौजवानों ने संसद के अंदर और बाहर जिस तरह से स्मोक क्रैकर के जरिए अपना विरोध जताने की कोशिश की, उसका भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के विरोध प्रदर्शन के मिलना महज कोई इत्तेफाक नहीं है, बल्कि ये सारे के सारे लोग क्रांतिकारी भगत सिंह से बहुत ज्यादा प्रभावित थे और उन्होंने कुछ-कुछ उन्हीं बातों को ध्यान में रख कर विरोध प्रदर्शन का ये तरीका चुना था... अब तक की तफ्तीश में पुलिस को पता चला है कि ये सभी के सभी लोग सोशल मीडिया पर भगत सिंह फैंस क्लब से जुड़े थे... और एक दूसरे से कनेक्टेड थे...
तकरीबन डेढ़ साल पहले इन्होंने मैसूर में एक मीटिंग की थी... और इसके ठीक नौ महीने बाद यानी मार्च 2022 में ये सारे लोग दूसरी बार मिले और इसी मीटिंग में इन्होंने संसद पर स्मोक क्रैकर से विरोध दर्ज कराने का फैसला किया... लेकिन ये काम आसान नहीं था और इसीलिए इन्होंने इस वारदात को अंजाम देने से पहले ना सिर्फ अच्छी तरह प्लानिंग की, बल्कि संसद के अंदर और बाहर पूरी तरह से रेकी भी की... मैसूर का रहनेवाला कंप्यूटर साइंस का स्टूडेंट मनोरंजन डी वहां के राजनीतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में जाया करता था... और उसने संसद के अंदर जाने के लिए किसी सांसद की मदद से एंट्री पास हासिल कर लेने की बात कही थी...
दूसरी मीटिंग के बाद वो अपनी इस बात पर कायम रहा और मार्च के महीने में ही उसने बेंगलुरु से संसद का एंट्री पास जुगाड़ कर लिया... और इसी पास को लेकर वो ना सिर्फ संसद के अंदर जाने में कामयाब रहा, बल्कि उसने तब अच्छी तरह से सुरक्षा व्यवस्थाओं की रेकी भी कर ली... इसी दौरान उसे पता चल गया था कि संसद में एंट्री के दौरान चेकिंग तो सख्त होती है, लेकिन अकसर सुरक्षा कर्मी लोगों के जूतों की जांच करने की जहमत नहीं उठाते... मनोरंजन के बाद सागर शर्मा ने भी संसद की रेकी की... हालांकि लखनऊ का रहनेवाला सागर संसद के अंदर जाने के लिए एंट्री पास का इंतजाम नहीं कर सका और जुलाई के महीने में वो संसद के बाहर से ही रेकी कर लौट गया... इसी बीच इन सभी ने दिसंबर के महीने में और खास कर 13 दिसंबर को संसद पर हमले की बरसी के दौरान ही अपने विरोध प्रदर्शन की प्लानिंग कर ली... इसके बाद एक-एक कर इस साज़िश के सारे किरदार अपनी-अपनी जगहों से दिल्ली पहुंचे... मनोरंजन डी मैसूर से 10 दिसंबर को फ्लाइट लेकर दिल्ली पहुंचा... लखनऊ का रहने वाला सागर भी इसी रोज दिल्ली आया... और हिसार की रहनेवाली नीलम और लातूर का रहनेवाला अमोल भी इसी रोज दिल्ली आ गया... इस साज़िश के एक किरदार विक्की ने इन चारों को लॉजिस्टिक प्रोवाइड करवाई यानी उनके ठहरने खाने का इंतजाम किया...
फाइनल साजिश गुरुग्राम में विक्की के घर रची गई
सभी 10 दिसंबर को ही गुरुग्राम में विक्की के घर पहुंचे थे और वहीं रुके थे... साजिश को अंजाम देने से ठीक पहले साजिश रचने के मुख्य आरोपी ललित झा से यहीं उनकी फिर से ही मुलाकात हुई... तय प्रोग्राम के मुताबिक अमोल महाराष्ट्र से ही अपने साथ कलर वाला पटाखा यानी स्मोक क्रैकर लेकर आया था... यानी अब साज़िश रची जा चुकी थी, साजिश को अंजाम देने का सामान जुटाया जा चुका था... साजिश को सिरे तक पहुंचाने के लिए सारे किरदार एक जगह पर इकट्टा हो चुके थे... अब बस, कुछ बाकी था, तो वो था संसद में घुस कर बवाल मचा देना... चूंकि मैसूर के रहनेवाले मनोरंजन डी ने पहले ही संसद के विज़िटर पास के लिए बेंगलुरु के बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा से बात कर रखी थी, 13 दिसंबर को वो तय प्लान के मुताबिक सुबह 9 बजे दिल्ली में महादेव रोड पर मौजूद उनके घर पहुंच गया... और उनके पीए से उसने दो लोगों के लिए विज़िटर पास कलेक्ट भी कर लिया... इसके बाद सभी लोग इंडिया गेट पर इकट्ठा हुए... जहां अमोल ने स्मोक क्रैकर बांटा...
संसद में पास लेकर 12 बजे दोपहर हुई एंट्री
दोपहर करीब 12 बजे विजिटर पास लेकर मनोरंजन और सागर बड़े आराम से संसद में दाखिल हो गए... नियम के मुताबिक सुरक्षाकर्मियों ने दोनों की गहन तलाशी ली... लेकिन उन्होंने दोनों के जूतों की तलाशी लेने की जरूरत नहीं समझी... और दोनों ने बड़ी चालाकी से अपने मोजों में कलर क्रैकर छिपा लिया था... फिर तो जैसे ही दोपहर के एक बजे, संसद के दर्शक दीर्घा से नीचे कूद कर मनोरंजन और सागर ने नारेबाजी करना शुरू कर दिया, जबकि संसद के बाहर नीलम और अमोल भी वही काम करने लगे... प्रदर्शनकारियों ने अंदर और बाहर दोनों ही जगहों पर स्मोक क्रैकर चला कर धुआं-धुआं कर दिया... चूंकि टीवी पर संसद की कार्यवाही लाइव चल रही थी, तो संसद के अंदर मचे हंगामे के फुटेज तो वैसे भी घर-घर तक पहुंच गए, लेकिन बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे नीलम और अमोल का वीडियो ललित झा शूट कर रहा था... जल्द ही सुरक्षाकर्मियों ने चारों प्रदर्शनकारियों को काबू कर लिया, लेकिन उन्हें विक्की और ललित का कुछ पता नहीं चला... असल में ललित खामोश था, भीड़ में छुपा हुआ था...
संसद के अंदर जाने से पहले और प्रदर्शन करने से पहले मनोरंजन, सागर, नीलम और अमोल सभी ने अपना मोबाइल फोन ललित के पास ही रख छोड़ा था... अब जैसे ही पुलिस ने चारों को काबू कर लिया, ललित झा मौके से सबके मोबाइल फोन अपने साथ लेकर भाग निकला... विक्की पहले ही फरार हो चुका था... चूंकि मामला संगीन है... संसद की सुरक्षा में सेंधमारी का है, पुलिस ने इन सभी आरोपियों के खिलाफ यूएपीए यानी अन लॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है... यानी फिलहाल ये तो साफ है कि इनका इरादा जानमाल का नुकसान नहीं, बल्कि विरोध प्रदर्शन करना था, लेकिन ये विरोध प्रदर्शन ठीक किस बात को लेकर था, ये इन आरोपियों ने अभी साफ नहीं किया है...
गिरफ्तारी के वक्त से लेकर शुरुआती पूछताछ तक में आरोपियों ने सरकार की नीतियों, बेरोजगारी, तानाशाही, मणिपुर में हुई हिंसा जैसे मसलों को लेकर अपना विरोध दर्ज करवाने की बात कही है, यानी अब तक की तफ्तीश में इनका मोटिव यानी हंगामे का मकसद पूरी तरह साफ नहीं है... यानी ये चाहते क्या थे? इनकी मांग क्या है, इस पर इन्होंने कोई साफ जवाब नहीं दिया है... और तो और आरोपियों को अदालत में पेश करने के लिए ले जाए जाने के दौरान जब आजतक ने उनसे हंगामे की वजह जानने की कोशिश की, तो आरोपियों में से एक मनोरंजन ने अदालत में ही कुछ बताने की बात कही... उधर, ललित झा के बारे में जो जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक वो कोलकाता का रहनेनवाला है और एनजीओ से जुड़ा है, जो पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों खास कर झारग्राम और पुरुलिया में काम करती है... पुलिस सूत्रों की मानें तो इस हंगामे को अंजाम देने के बाद उसने कथित तौर पर अपने एंप्लायर यानी एनजीओ के मालिक को फोन किया था और उसे हंगामे का एक वीडियो भी भेजा... हालांकि आज तक जब एनजीओ के मालिक लक्षित से बात कही, तो उसने वीडियो भेजे जाने की बात तो मानी, लेकिन फोन पर ललित से बात होने की बात से इनकार किया...
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