कैसे बनाये मोसाद ने 3000 पेजर बम? बम बनाने से धमाका करने तक, जानिए पेजर अटैक की पूरी इनसाइड स्टोरी

जैसे ही दोपहर के साढ़े 3 बजते हैं, अचानक एक साथ 3 हजार पेजरों पर एक मैसेज आता है। और इस एक रहस्यमयी मैसेज के साथ ही बीप की आवाज़ आनी शुरू हो जाती है। फिर जैसे ही बीप की आवाज़ खामोश होती है, अचानक धमाका होता है। एक साथ तीन हजार धमाके। दुनिया में शायद ही इससे पहले इतनी बड़ी तादाद में, इतने बड़े इलाके में, एक साथ इतने बड़े पैमाने पर धमाके हुए हों।

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18 Sep 2024 (अपडेटेड: Sep 18 2024 8:44 PM)

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शम्स ताहिर खान की रिपोर्ट

Beirut: अगर 2020 का कोरोना एक साज़िश थी और कोरोना वायरस को एक बायो-वेपन की तरह इस्तेमाल किया गया था, तो वो इस सदी की सबसे बड़ी साज़िश थी। लेकिन अगर ऐसा नहीं था, तो फिर यकीन मानिए 17 सितंबर की दोपहर लेबनान के अलग-अलग शहरों और सीरिया के कुछ इलाक़ों में जो कुछ हुआ वो इस सदी का सबसे बड़ा हमला और सबसे बड़ी और अनोखी साज़िश थी। एक ऐसी साज़िश.. जिसमें एक साथ 3 हजार लोगों के हाथों में ऐसे बम थमा दिये गये थे, जिन्हें लोगों ने अपनी मर्जी से या तो अपनी जेबों में रखा था, कमर में लगा रखा था या हाथों में उठा रखा था। पेजर की शक्ल में। इसके बाद जैसे ही दोपहर के साढ़े 3 बजते हैं, अचानक एक साथ उन्हीं 3 हजार पेजरों पर एक मैसेज आता है। और इस एक रहस्यमयी मैसेज के साथ ही बीप की आवाज़ आनी शुरू हो जाती है। फिर जैसे ही बीप की आवाज़ खामोश होती है, अचानक धमाका होता है। एक साथ तीन हजार धमाके। दुनिया में शायद ही इससे पहले इतनी बड़ी तादाद में इतने बड़े इलाके में एक साथ इतने बड़े पैमाने पर धमाके हुए हों। लेबनान के करीब आधा दर्जन शहरों का शायद ही कोई बाज़ार, दुकान, मॉल, घर, दफ्तर, सड़क और मोहल्ला बचा हो, जहां ये धमाके न हुए हों। क्योंकि अलग-अलग शहर के अलग-अलग इलाक़ों में एक साथ 3 हज़ार लोग अनजाने में पेजर की शक़्ल में बम लिए घूम रहे थे।

धमाकों के बाद हर जुबान पर मोसाद का नाम

उधर, लेबनान में ये धमाका होता है, इधर अचानक पूरी दुनिया में हरेक के जेहन और जुबान पर इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद का नाम तैरने लगता है। किसी साई-फाई या जासूसी फिल्मों की तरह इतनी सटीक और खतरनाक साजिश मोसाद ही रच सकता था। सीरियल धमाकों की ऐसी साजिश जिसके बारे में 17 सितंबर की दोपहर से पहले कोई सोच भी नहीं सकता था। कोई सोच भी नहीं सकता था कि मोबाइल के दौर में कोई पेजर को भी बम बना सकता है। पर यहां सोचने वाली बात ये थी कि साल 2000 के आते-आते जिस पेजर को मोबाइल खा चुका था, जो पेजर भूली बिसरी यादें बन चुका था, जिस पेजर का इस्तेमाल दुनिया ने बंद कर दिया था, वही पेजर लेबनान में एक साथ तीन हजार लोगों के हाथों या जेबों में क्यों था? तो इस पेजर बम की कहानी यहीं से शुरू होती है।

मोबाइल बना खतरा तो हिजबुल्लाह ने पकड़ा पेजर
बात इसी साल 13 फरवरी की है। हिज्बुल्लाह के सेक्रेटरी जनरल हसन नसरुल्लाह ने टीवी पर हिज्बुल्लाह के तमाम सदस्यों को चेतावनी दी थी। चेतावनी ये कि हिज्बुल्लाह का हर मेंबर अपने मोबाइल फोन को या तो तोड़ दे, दफ्ना दे या लोहे के बक्से में रख कर उस पर ताला लगा दे। नसरुल्लाह ने मोबाइल से ये दूरी इसलिए बनाने को कहा था, क्योंकि उन्हें ये खबर मिली थी कि मोसाद मोबाइल के जरिए हिज्बुल्लाह के बड़े बड़े टारगेट का लोकेशन पता कर ड्रोन के जरिए उन पर हमला कर रहा है। और इस हमले में हिज्बुल्लाह के कई मेंबर और कमांडर मारे गए थे। दरअसल नई तकनीक के तहत मोबाइल के जरिए आज किसी का भी करेंट या लाइव लोकेशन आसानी से पता लगाया जा सकता है। जैसे अपने देश की पुलिस भी क्राइम सीन पर क्रिमिनल की मौजूदगी का पता उसके मोबाइल की लोकेशन से पता लगा लेती है। यानी कुल मिला कर मोबाइल एक ऐसा हथियार है, जो आपके हर राज़ को आम कर सकता है। और बस इसीलिए नसरुल्लाह ने हिज्बुल्लाह के हर मेंबर और कमांडर को मोबाइल तोड़ कर फेंक देने या दफ्ना देने के लिए कहा था, ताकि मोसाद मोबाइल के जरिए उन तक ना पहुंच सके।

हिजबुल्लाह ने निकाला मोबाइल का तोड़ 

पर दिक्कत ये थी कि अगर मोबाइल का इस्तेमाल ना हो तो हिज्बुल्लाह के टॉप लीडरशिप से लेकर आम मेंबर तक एक दूसरे से संपर्क या एक दूसरे को पैग़ाम कैसे भेजेंगे? तो इसी के बाद इस मसले के हल के तौर पर 90 के दशक में आए और अब गायब हो चुके पेजर को चुना गया। पेजर को चुनने की वजह ये थी कि ये मोबाइल की तरह किसी सेटेलाइट से ऑपरेट नहीं होता। ये लगभग वैसे ही काम करता है, जैसे पुलिस वाले वायरलेस सेट का इस्तेमाल करते हैं। यानी रेडियो रिसिवर के तौर पर। जैसे मोबाइल का एक फोन नंबर होता है, वैसे ही पेजर का भी एक नंबर होता है। उसी नंबर पर पेजर रखने वाला दूसरा शख्स उसे मैसेज या पैगाम भेजता है। टेक्स्ट की शक्ल में। पेजर पर एक छोटा सा स्क्रीन होता है। उसी स्क्रीन पर ये टेक्स्ट आता है। जैसे मोबाइल की घंटी बजती है, तो पता चलता है कि किसी का फोन आ रहा है, वैसे ही पेजर पर जब भी कोई मैसेज आता है, तो उसके साथ बीप की आवाज आती है। बीप की आवाज सुन कर ये पता चल जाता है कि कोई नया मैसेज आया है। इसीलिए बहुत से लोग पेजर को बीपर भी करते हैं। यानी इस पेजर का सबसे बड़ा फायदा ये है कि रेडियो रिसिवर होने की वजह से पेजर का लोकेशन पता नहीं किया जा सकता।

मोसाद ने की हिजबुल्लाह में घुसपैठ
मोसाद से बचने के लिए हिज्बुल्लाह को ग्रुप में मैसेज पास करने का सबसे नायाब तरीका पेजर ही नजर आया। इसी के बाद इसी साल मार्च में हिज्बुल्लाह ने पेजर बनाने वाली दुनिया की सबसे प्रमुख कंपनी ताईवान की गोल्ड अपोलो कंपनी को तीन हजार पेजर के ऑर्डर दिए। खबरों के मुताबिक मोसाद ने हिज्बुल्लाह में भी अपनी घुसपैठ बना रखी है। और उसी घुसपैठिये की वजह से पहले मोसाद और फिर इजरायली मिलिट्री तक इतनी बड़ी तादाद में पेजर के ऑर्डर की खबर लगी। मोसाद समझ गया कि हिज्बुल्लाह अब मोबाइल की जगह पेजर का इस्तेमाल करने जा रहा है। और यहीं से मोसाद ने अपनी प्लानिंग शुरू की।

3000 पेजर में फिट किए 3000 मिनी बम
जो पेजर लेबनान भेजे जाने थे, वो AP924 मॉडल के थे। पेजर के पुर्जों को एसेंबल करते वक़्त मोसाद ने पेजर की बैट्री के बगल में लगभग 30 ग्राम पीईटीएन विस्फोटक फिट कर दिया। मोबाइल की तरह पेजर में भी बैट्री होती है। अमूमन पेजर में डबल ए या ट्रिपल ए बैट्री इस्तेमाल होता है। जबकि जो नया पेजर आ रहा है, उसमें लीथियम बैट्री का इस्तेमाल होता है। लीथियम बैट्री चार्जिंग के दौरान जब ज्यादा गरम हो जाती है, तब कई बार उसमें से धुआं निकलता है या वो फट जाता है। इसी का फायदा मोसाद ने उठाया। उसने इसी बैट्री के ठीक बराबर में पीईटीएन विस्फोटक लगाया। लेकिन बैट्री के साथ लगे इस विस्फोटक में तभी धमाका हो सकता था, जब उसे एक्टिव किया जाए। मोसाद ने इसका भी तोड़ निकाला। उसने पेजर में एक प्रोग्राम फिट किया और उसे एक कोड मैसेज से जोड़ दिया। मतलब ये कि जैसे ही वो कोड मैसेज इन 3 हजार पेजर के पास पहुंचते, पेजर से बीप की आवाज़ आती, बैट्री गर्म होता और फिर पीईटीएन में धमाका हो जाता।

बम तैयार बस सही मौके का इंतजार
इन सारी तैयारियों के बाद यूरोप के रास्ते इसी साल अप्रैल और मई में ये तमाम पेजर लेबनान पहुंचे। लेबनान पहुंचने के बाद इन तीन हजार पेजर्स को हिज्बुल्लाह के लोगों में बांट दिया गया। कुछ पेजर सीरिया और ईरान में मौजूद हिज्बुल्लाह के लोगों के भी हिस्से आए। पेजर आने के साथ ही अब हिज्बुल्लाह मैसेज देने और लेने के लिए इसी का इस्तेमाल कर रहे थे। मोसाद की बराबर इन पर नजर थी। मोसाद तक अब ये जानकारी भी पहुंच चुकी थी कि 3 हजार पेजर हिज्बुल्लाह के 3 हजार हाथों तक पहुंच चुके हैं। अब बस मोसाद को एक मैसेज भेजना था। इसके लिए पहले से ही तारीख और वक्त चुन लिया गया था। वक़्त वो रखा गया, जिस वक्त सबसे ज्यादा पेजर का इस्तेमाल किया जाता है।


सीक्रेट मैसेज ने दी मौत की दस्तक
और वो तारीख और वक़्त था 17 सितंबर दोपहर के साढ़े 3 बजे। वही रहस्यमयी मैसेज एक साथ तीन हजार पेजर पर आया, मैसेज के साथ ही पेजर ने बीप बजाना शुरू किया और फिर उसी बीप के साथ लेबनान के अलग-अलग शहरों में एक साथ तीन हजार धमाके हुए। इन धमाकों में हिज्बुल्लाह के करीब 27 सौ लोग घायल हुए। जिनमें से 11 की अब तक मौत हो चुकी है। लेबनान में मौजूद ईरान के राजदूत भी शायद उस वक़्त हिज्बुल्लाह के किसी मेंबर या चीफ के साथ थे। क्योंकि पेजर धमाके में घायल होने वालों में ईरान के एंबेसेडर भी हैं। दरअसल जिस वक़्त धमाका हुआ, तब एंबेसडर अमानी के पास दो बॉडीगार्ड खड़े थे। शायद उनमें से ही एक के पास वो पेजर था। जब पेजर में धमाका हुआ तब बीप बजने के बाद उनमें से एक बॉडीगार्ड पेजर पर मैसेज पढ़ने की कोशिश कर रहा था। अमानी सामने खड़े थे। धमाके की वजह से उनके सिर और चेहरे पर चोट आई। खबरों के मुताबिक इस धमाके में उनकी एक आंख खराब हो गई।

नाम ताइवान का, पेजर बना यूरोप में
इस धमाके के बाद जब ऊंगली पेजर बनाने वाली ताईवान गोल्ड अपोलो कंपनी की तरफ उठी, तो कंपनी ने भी आनन-फानन में सफाई दी। कंपनी का कहना है कि इस पेजर का ऑर्डर बेशक उनकी कंपनी को मिला था, लेकिन ये पेजर यूरोपीय देश हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में बना था। कंपनी के मुताबिक बुडापेस्ट में मौजूद कंपनी बैक ने ताईवान की कंपनी से कुछ साल पहले समझौता किया था। पेजर वो बनाती थी, लेकिन ब्रांड गोल्ड अपोलो का ही इस्तेमाल करती थी। ताईवान की कंपनी ने अपनी सफाई में ये भी कहा कि गोल्ड अपोलो के नाम पर ताईवान से जनवरी 2022 से लेकर अगस्त 2024 तक कुल दो लाख 60 हजार पेजर ताईवान के बाहर भेजे गए थे। लेकिन ये सारे पेजर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया गए थे। मॉडल नंबर -- एपी924 का कोई भी पेजर लेबनान या मिडिल ईस्ट नहीं भेजा गया।

मौका देख कर एक्टिव किया धमाके वाला मैसेज
यानी ताईवान की कंपनी के दावे के हिसाब से पेजर के साथ जो भी छेड़छाड़ हुई वो ताईवान में नहीं बुडापेस्ट में हुई। सूत्रों के मुताबिक यूरोपीय देश होने के नाते बुडापेस्ट या हंगरी में मोसाद की अच्छी खासी पकड़ है। ताईवान के बनिस्बत बुडापेस्ट में पेजर में छेड़छाड़ करना उसके लिए आसान था। पर यहां सवाल ये है कि जिस मोसाद के डर से हिज्बुल्लाह ने मोबाइल तोड़ या दफ्ना दिया, उसी हिज्बुल्लाह ने इतनी बड़ी तादाद में पेजर का ऑर्डर देने के बाद उस पेजर की कभी जांच क्यों नहीं की? तो लेबनान से आ रही खबर के मुताबिक अप्रैल मई में हिज्बुल्लाह के बीच पेजर बांटे जाने के बाद हिज्बुल्लाह के एक कमांडर को पेजर को लेकर कुछ शक हुआ था। वो इसकी छानबीन भी कर रहा था। लेकिन ये बात मोसाद तक पहुंच गई। कहा जाता है कि कुछ वक़्त पहले ही उस कमांडर की मौत हो गई थी। शक है कि मोसाद ने ही उसे ठिकाने लगा दिया। इसके बाद पेजर को लेकर फिर कभी किसी ने कोई शक ही नहीं जताया। मोसाद ने भी पेजर इस्तेमाल में आने के बाद करीब तीन से चार महीने तक खामोशी बरती। ताकि किसी को शक ना हो। फिर सही मौका देखते ही धमाके वाला मैसेज एक्टिव कर दिया।

क्या होता अगर धमाका इससे बड़ा होता? 
चूंकि पेजर अमूमन जेब में होता है या कमर में बेल्ट के साथ अटका होता है या फिर मैसेज पढ़ने के लिए हाथों में इसीलिए जब ये धमाका हुआ, तो ज्यादातर लोगों को कमर और कमर के निचले हिस्से पेट, गर्दन, चेहरे और सिर में चोटें आईं। पेजर बम होने के बावजूद हिज्बुल्लाह के बहुत से लोग इसलिए बच गए, क्योंकि तब या तो पेजर उनके पास नहीं था, चार्जिंग पे लगा था, या टेबल पे रखा था। 17 सितंबर की दोपहर साढ़े तीन बजे जब ये सिलसिलेवार धमाके जब हुए तब शुरू में किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है? धमाके तो हो रहे थे पर धमाके उतने तेज भी नहीं थे। धमाकों से सिर्फ पेजर के इर्द गिर्द खड़े दो-चार लोग ही उसकी चपेट में आ रहे थे। अब जरा अंदाज़ा लगाइए अगर विस्फोटक ताकतवर होता या ज्यादा होता तो क्या होता।

लेबनान ने इजराइल पर साधा निशाना
पेजर धमाके के बाद लेबनान ईरान और सीरिया ने सीधे-सीधे इसके लिए मोसाद और इजरायली मिलिट्री को जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि इजरायल इन धमाकों को लेकर अब भी चुप है। लेकिन इन धमाकों ने दुनिया के सामने एक नया और कहीं ज्यादा बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। और वो खतरा है मोबाइल का। इस वक्त पूरी दुनिया की कुल आबादी लगभग 8 अरब है। और इन 8 अरब लोगों में से लगभग 90 फीसदी यानी 7 अरब से ज्यादा लोग मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं। यानी कायदे से हर शख्स के हाथ में मोबाइल है। अब जरा सोचिए मोसाद जैसी एजेंसियां या दुनिया का कोई भी देश अपने दुश्मन देश को तबाह करना चाहे तो सिर्फ एक मैसेज या एक कॉल से कितनी जानें ले सकता है। यानी इसे यूं समझिए कि हर हाथ में एक मोबाइल नहीं एक बम है। हालांकि एक्सपर्ट्स की मानें तो पेजर की तरह मोबाइल को हैक करना इतना आसान नहीं है।

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