Bilkis Bano Case: 'बिलकिस बानो के आरोपियों को क्यों किया रिहा'?

Bilkis Bano Case: केंद्र सरकार ने इस साल जून में आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में दोषी कैदियों की रिहाई के लिए राज्यों को विशेष दिशानिर्देश जारी किए थे। अब रिहाई पर सवाल उठ रहे है।

CrimeTak

17 Aug 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:24 PM)

follow google news

Bilkis Bano Case: गुजरात के 2002 दंगों के बिलकिस बानो मामले में सभी 11 आजीवन कैदियों को रेमिशन पॉलिसी के तहत जेल से रिहा कर दिया गया है। दरअसल विपक्ष ने गोधरा दंगों के समय गैंगरेप और हत्या के आरोपियों को रेमिशन पॉलिसी के तहत जेल से रिहा करने पर सवाल उठाए थे। केंद्र सरकार ने इस साल जून में आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में दोषी कैदियों की रिहाई के लिए राज्यों को विशेष दिशानिर्देश जारी किए थे।

1992 में बनी थी रेमिशन पॉलिसी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1992 की पॉलिसी के तहत ले फैसले

बिलकिस बानो केस के 11 आरोपियों को 2008 में मुंबई की एक विशेष अदालत ने दोषी ठहराया था। दोषी ठहराए जाने के समय गुजरात एक रेमिशन पॉलिसी का पालन कर रहा था, जो 1992 में लागू हुई थी। यानी 1992 में रेमिशन पॉलिसी बनी थी। जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा तो उसने रिहाई के बारे में निर्णय लेने का निर्देश दिया, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि 1992 की नीति के तहत उन्हें रिहा किया गया क्योंकि इन आरोपियों के खिलाफ 2008 में दोष सिद्ध हुआ था।

2014 में नई संशोधित छूट नीति हुई थी लागू

गृह विभाग के सीनियर अधिकारी ने बताया कि गुजरात ने 2014 में कैदियों के लिए एक और नई संशोधित छूट नीति अपनाई। यही नीति वर्तमान में प्रभावी है। इसमें दोषियों की श्रेणियों के बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश हैं कि किसे राहत दी जा सकती है और किसे नहीं ?

गुजरात सरकार ने लिया था 2014 की नीति के तहत फैसला

गृह विभाग के अधिकारी के मुताबिक, चूंकि बिलकिस बानो केस के आरोपियों के खिलाफ 2008 में दोष साबित हुआ था और सुप्रीम कोर्ट ने हमें 1992 की रेमिशन पॉलिसी के तहत इस मामले पर विचार करने का निर्देश दिया था, जो 2008 में प्रभावी थी, उस नीति में विशेष स्पष्टता नहीं थी कि किसे छूट दी जा सकती है और किसे नहीं? लिहाजा 2014 की संशोधित नीति के तहत फैसला लिया गया।

18 साल से ज्यादा काट ली सजा

गोधरा के बिलकिस बानो मामले मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 11 आरोपियों को दोषी पाया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा। इन दोषियों ने 18 साल से ज्यादा सजा काट ली थी, जिसके बाद राधेश्याम शाही ने धारा 432 और 433 के तहत सजा को माफ करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

क्या था गोधरा कांड ?

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था। इस ट्रेन से कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे। इससे कोच में बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी। इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे। बिलकिस बानो और उनका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया। भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया। उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं। उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी।

    यह भी पढ़ें...
    follow google newsfollow whatsapp