Asad Update: असद और गुलाम को लेकर कुल 3 FIR दर्ज!

Asad Update: उमेश पाल हत्याकांड के इनामी शूटर असद और गुलाम के एनकाउंटर में कुल 3 FIR दर्ज हुई है। झांसी के बड़ागांव थाने में दर्ज हुई एसटीएफ की तरफ से 3 एफआईआर करवाई गई है।

Asad Update: असद और गुलाम को लेकर कुल 3 FIR दर्ज!

Asad Update: असद और गुलाम को लेकर कुल 3 FIR दर्ज!

14 Apr 2023 (अपडेटेड: Apr 14 2023 3:38 PM)

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Asad Update: उमेश पाल हत्याकांड के इनामी शूटर असद और गुलाम के एनकाउंटर में कुल 3 FIR दर्ज हुई है। झांसी के बड़ागांव थाने में दर्ज हुई एसटीएफ की तरफ से 3 एफआईआर करवाई गई है। 

पहली fir no 74/23 में असद और मो गुलाम पर हत्या के प्रयास की एफआईआर दर्ज हुई है। 

दूसरी fir 75/23 अतीक अहमद के बेटे असद से बरामद हुई पिस्टल के मामले में आर्म्स एक्ट में दर्ज हुई है।

तीसरी fir 76/23 मो गुलाम से बरामद हुई विदेशी पिस्टल, कारतूस के मामले में आर्म्स एक्ट में दर्ज हुई है। तीनों fir stf के डिप्टी sp नवेंदु सिंह की तरफ से लिखाई गई है। तीनों एफआईआर के अनुसार असद और गुलाम ने पुलिस पर की फायरिंग तो एसटीएफ की तरफ से 9 गोली चलाई गई।

सीओ नवेंदु सिंह ने दो गोली चलाई,  co विमल सिंह ने एक, इंस्पेक्टर अनिल सिंह और ज्ञानेंद्र राय ने एक एक, हेड कांस्टेबल पंकज तिवारी, सुशील कुमार,सुनील कुमार और भूपेंद्र ने  अपनी अपनी पिस्टल से किया एक-एक फायर।

 उमेश पाल की हत्या के दो दिनों के बाद सूचना मिली थी कि आरोपी गुलाम घटना के दूसरे दिन पारीछा पावर प्लांट में किसी सतीश पांडेय के घर पर आकर रुका था। सवाल यहां ये खड़ा होता है कि

ये सतीश कौन है?

क्या पुलिस ने सतीश को गिरफ्तार किया था? या वो फरार हो गया?

जब आरोपियों को ये भनक लग गई थी पहले कि झांसी में पुलिस मौजूद है तो वो दोबारा वहां क्यों आए?

पहले आरोपी के बारे में सूचना क्या पुलिस उपाधीक्षक श्रीनवेंदु कुमार को मिली थी?

इसके बाद दोनों टीमें झांसी में ही स्टेशन थी, क्योंकि पुलिस को अंदेशा था कि आरोपी शायद वापस यहां आए।

मुखबिर ने बताया कि दोनों को चिरगांव में देखा गया था। ऐसे में सवाल ये है कि चिरगांव में वो किसके घर में रुके हुए थे? या फिर इलाके में घूम रहे थे?

क्यों आरोपियों ने चिरगांव को ही सेफ प्लेस मान लिया था?

मुखबिर ने असद और गुलाम के बारे में सूचना पुलिस उपाधीक्षक नवेंदु कुमार को दी थी।

एफआईआर के मुताबिक, एक टीम (बिमल कुमार टीम) को बड़ागांव और पारीछा के आसपास स्टेशन किया गया। दूसरी टीम चिरगांव में स्टेशन हुई। यानी पुलिस उपाधीक्षक  नवेंदु कुमार की टीम चिरगांव में थी।  

मुखबिर ने कल यानी गुरुवार को बताया कि दोनों आरोपी बाइक पर चिरगांव से निकल कर पारीछा की तरफ गए है। सवाल यहां ये है कि मुखबिर को क्या ये पता था कि दोनों किस घर में रुके हुए है? या उसने इत्तेफाकन इलाके में बाइक पर जाते हुए देखा था? पहले कहा गया कि आरोपी चिरगांव में देखे गए। फिर कहा गया कि चिरगांव से निकल कर पारीछा की तरफ बढ़ गए। क्या मुखबिर आरोपियों के पीछे लगा हुआ था?

सवाल ये भी है कि दोनों क्या चिरगांव में रुके थे या फिर पारीछा में ? दोनों में कितनी दूरी है।

आरोपी दोनों इलाके में घूम क्यों रहे थे वो भी बिना हेलमेट, बिना मास्क, बिना मुंह को छिपाए?

पुलिस की दो टीमें मौजूद थे। एफआईआर के मुताबिक, श्रीनवेंदु कुमार पुलिस उपाधीक्षक, इस मामले के शिकायतकर्ता है।

एक टीम (बिमल कुमार की टीम) को पारीछा में आरोपियों को घेरने के लिए कहा गया। दूसरी टीम चिरगांव से पारीछा की तरफ रवाना हुई।

जैसे ही मैं (श्रीनवेंदु कुमार )अपनी टीम के साथ पारीछा बांध के मोड से करीब 100 मीटर पहले पहुंचा ही था, आरोपी पारीछा की तरफ जाते हुए दिखाई दिए।

मैंने(श्रीनवेंदु कुमार ) आरोपियों को घेर कर उन्हें रुकने के लिए, लेकिन वो पारीछा बांध मोड के आगे कच्चे वाले रास्ते पर गाड़ी को मोड़ पर भागने लगे।

सामने से एक टीम ने उन्हें घेर दिया था। सवाल ये उठता है कि जब कच्चे वाला रास्ता एक साइड से बंद है तो सामने से दूसरी टीम ने कैसे आरोपियो को घेर लिया?

दोनों टीमें किस-किस डायरेक्शन में थी, क्या पुलिस ये बताएगी? और उस वक्त बाइक किस डायरेक्शन में थी?

एफआईआर के मुताबिक, 1.5  मीटर आगे जाकर बाइक सिल्प होकर कच्चे रास्ते से नीचे बबूल की झाड़ में गिर गई। दोनों ने जमीनी आड़ लेकर गाली देते हुए फायर कर दिया।

इस दौरान मैंने (श्रीनवेंदु कुमार)अपनी पिस्टल से दो फायर किए। विमल कुमार सिंह (दूसरी टीम को जो लीड कर रहे थे,पुलिस उपाधीक्षक)
ने अपनी पिस्टल से एक फायर, निरीक्षक अनिल कुमार सिंह और ज्ञानेंद्र कुमार राय ने अपनी पिस्टल से एक फायर, हेड कांस्टेबल पंकज तिवारी, सुशील कुमार, सुनील कुमार और भूपेंद्र सिंह ने अपनी अपनी पिस्टल से एक-एक फायर किया। पुलिस को मेप के जरिए ये बताना होगा कि कौन-कौन से पुलिस कर्मी की पोजिशन क्या-क्या थी? दूसरा उनके पास कौन-कौन से हथियार थे? तीसरा, आरोपियों की पोजिशन क्या थी? इस हिसाब से टीमों ने कुल 9 फायर किए।

इसके बाद देखा तो दोनों जख्मी हो गए थे,लिहाजा पीसीआर और एंबूलेंस को सूचना दी गई। ये सूचना उप निरीक्षक विनय तिवारी ने दी। 12 बज कर 52 मिनट पर इसकी सूचना पीसीआर और एंबेलेंस को दी गई। दोनों को अलग-अलग एंबूलेंस से अस्पताल ले जाया गया। जो पुलिस कर्मी इन एंबूलेंस में गए, वो थे निरीक्षक ज्ञानेंद्र कुमार, हेड कांस्टेबल भूपेंद्र सिंह, कमांडो दिलीप और अरविंद और उप निरीक्षक विनय तिवारी। उस वक्त तक आरोपी जिंदा थे, ऐसा पुलिस का दावा है। बाद में अस्पताल में डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

सवाल ये उठता है कि एंबूलेंस को मौके पर पहुंचने में कितना वक्त लगा? क्या उस वक्त तक आरोपी जिंदा थे? 
कितने वक्त में वो अस्पताल पहुंचे? 
क्या उन्हें एंबूलेंस में बचाने की कोशिशें हुई? 
क्या एंबूलेंस में सारी सुविधाएं मौजूद थी?

इसके बाद सूचना सीनियर अफसरों को दी गई। साथ साथ मौके को सुरक्षा घेर में लिया गया और विधि विज्ञान प्रयोगशाला को सूचना दी गई। काफी समय तक दोनों टीमों की देखरेख में मौके को सुरक्षित रखा गया। फिर सीनियर अधिकारी मौके पर पहुंचे और फोरेंसिक की टीम ने बदमाशों की पिस्टल रिवाल्वर, खोंखा, जीवित कारतूस, बाइक और अन्य सबूत इकट्ठा किए।

ये भी नहीं बताया गया कि आरोपियों की तरफ से कितनी गोलियां चलाई गई?और किस हथियार से कितने राउंड गोलियां चली? जो दावें पुलिस कर्मी कर रहे हैं, क्या उनके हथियारों को सीज किया गया है? क्या पुलिस उनकी बैलिस्टिक रिपोर्ट सार्वजनिक करेगी? क्या पुलिस कर्मियों और आरोपियों के मोबाइल रिकार्ड की जांच होगी?

बाइक पर क्या चाबी नहीं लगी हुई थी? बाइक किसकी थी?

सबसे पहले मौके पर कौन पहुंचा था? पुलिस के अलावा ? उसने क्या देखा था?

सवाल कई है, जिनका जवाब यूपी पुलिस को देना होगा। आखिर में पुलिस को आरोपियों के मरने की खबर मिली। 
 

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